कबूतर-कबूतरी और शिकारी की कहानी (Panchatantra Short Stories In Hindi With Moral)

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एक बहुत घने जंगल में एक शिकारी रहता था जो चिड़िया आदि का शिकार करके अपना गुजरा करता था।  उसके सभी मित्र और रिश्तेदार उसे पापी समझ छोड़ कर चले गए थे। वह शिकार करने के लिए अपने पास एक जाल लाठी और पिंजरा रखता था। एक दिन वन में घूमते हुए उसे एक कबूतरी दिखी जिसने उसे मेहनत से पिंजरे में बंद कर दिया।  कबूतरी को बंद करने के बाद जंगल में बहुत तेज हवाएं अंधी चलने लगी।

 शिकारी बहुत डर गया और  ठण्ड के मारे कंपता हुआ एक पेड़ के निचे जा कर बैठ गया, जहाँ वह कबूतरी अपने कबूतर के साथ रहती थी। कबूतर बाहर निकल कर देखता है और शिकारी के हाथ में पिंजरा देखता है  जिसमे उसकी प्रेमिका कबूतरी होती है एक और उसे शिकारी पर गुस्सा आता है और वह यह सोचकर रोता भी है कि शिकारी ने प्रेमका को पकड़ लिया है और वो उसे अपना भोजन बना लेगा। तभी शिकारी ठण्ड के मारे कहता है- “अरे अगर यहाँ कोई जिव रहता है तो मेरी मदद करो।”

तभी पिंजरे में बंद कबूतरी पेड़ पर बैठे कबूतर से कहती है – “स्वामी इसकी रक्षा करो, घर हुए शत्रु को भी अपना अतिथि बनाना चाहिए। इसे अपना शत्रु न मानकर इसकी सेवा करो।”

कबूतर शिकारी के सामने आकर कहता है- “हे अतिथि बताईये मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ।”

शिकारी कहता है – “मुझे बहुत ठण्ड लग रही है इसलिए तुम मेरी सर्दी उतारने का कोई उपाय कर दो।”

यह सुनकर कबूतर लकड़ियां इकट्ठी करके आग जला देता है। शिकारी आग सेक कर अपनी ठण्ड उतार लेता है। कबूतर सोचता है “घर आये हुए अतिथि को घर से भूका नहीं भेजना चाहिए। पर मेरे पास तो खुद खाने के लिए एक दाना भी नहीं है तो मैं शिकारी को क्या खिलाऊं। कबूतर ने अपने प्राण दे कर उसे अपना मांस खिलाने का निश्चय किया।”

कबूतर जलती हुई आग में अपने घर की तरह घुस जाता है और अपने प्राण दे देता है। 

यह देखकर शिकारी सोचता है “मैं एक पापी हूँ। हमेशा पाप में पड़ा रहता हूँ और इसमें कोई शंका नहीं कि मुझे नरक ही मिलेगा।  शिकारी कबूतर का बलिदान देखकर पाप करने का काम छोड़ने और धर्म के रस्ते पर चलने का निश्चय कर लेता है और  पिंजरे में बंद कबूतरी को छोड़ देता है। कबूतरी अपने कबूतर के मरने का दुःख देख कर उसी आग में कूद कर अपनी जान दे देती है। 

शिकारी दुखी होता हुआ जंगल में आगे बढ़ जाता है। कुछ दिन बाद वह जंगल में लगी आग में अपने पापों के जीवन को नष्ट कर देता है क्योंकि उसने धर्म का पालन करते हुए अपने प्राण त्यागे इसलिए उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। 

शिक्षा 

घर में आये हुए शत्रु का भी अतिथि के समान सत्कार करो, प्राण देकर भी उसकी तृप्ति करो।  

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