गरुड़, उल्लू और कौए की कहानी

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एक बार जंगल में मोर, हंस, चिड़िया, तोता, मुर्गे, कोयल, उल्लू, कबूतर आदि की सभा लगी हुई थी। वो आपस में महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा कर रहे थे। उनमे से कुछ सदस्य कहते हैं- 

“अरे! गरुड़ देव हम सबका राजा है जो हमेशा वासुदेव की सेवा में व्यस्त रहते हैं। परन्तु ऐसे राजा का क्या फायदा जो शिकारियों से हमारी रक्षा न कर सके। इसलिए हमको विचार करके किसी दूसरे सूंदर पक्षी को राजा बनाना चाहिए।”

बाद में वे बहुत सूंदर उल्लू को देखते हैं जिसे देखकर वो कहते हैं-“उल्लू ही हम सबका राजा होगा और इस उल्लू का ही राजतिलक करो।”

उल्लू का राज्याभिषेक करने के लिए सात समुदरों का जल लाया जाता है, एक सौ आठ जड़ीबूटुयों की जड़ें लेकर उनकी सामग्री बनाई जाती है, सोने का घड़ा पानी से भरा गया और पडित, प्रधान आदि जोर-जोर से मन्त्रों का उच्चारण करने लगते हैं। सिंहासन सजाया जाता है। 

उल्लू सिंहासन पर बैठने ही वाला था कि कहीं से एक कौआ आ  जाता है और कहता है-“अरे! तुम सबने यह मेला किस खुशी में लगाया है।”

पक्षियों ने उसे देखा और आपस में कहने लगे – “कहा जाता है पक्षियों में कौआ सबसे बुद्धिमान होता है।”

एक महाजन कौए से कहते हैं – “पक्षियों में कोई भी पक्षियों का राजा नहीं है। इसलिए हम उल्लू को राजा बना रहें हैं। लेकिन तुम ठीक समय पर आये हो। मेरी इस कार्य में सहमति नहीं है अब तू अपने विचार रख।” 

कौआ कहता है- ” महाजनो अन्य बुद्धिमान और सुन्दर पक्षियों के होते हुए भी आप लोग दिन में न देखने वाले और बदसूरत इस उल्लू को राजा बना रहे हैं  मेरी इसमें सम्मति नहीं है और उल्लू को राजा बनाकर हमारा क्या फायदा होगा। 

एक राजा के होते हुए भी दूसरे को राजा नहीं बनाया जा सकता। कहा भी है कि “एक ही राजा पृथ्वी के लिए हितकारी होता है।”

फिर गरुड़ के होते हुए हम उसका नाम लेकर ही शत्रु पर विजय प्राप्त करते हैं। अंधे उल्लू का नाम लेने से तो चिड़िया भी नहीं डरती। 

शिक्षा 

किसी कुशल और कामयाब मालिक होते हुए किसी दूसरे अकुशल और असफल को मालिक नहीं बनाना चाहिए। कुशल और कामयाब के नाम मात्र लेने से ही काम बन जाते हैं परन्तुं अकुशल और असफल का नाम लेने से कुछ प्राप्त नहीं होता। 

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