बुनकर और धन की कहानी | Panchatantra Stories in Hindi

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 बुनकर और धन की कहानी (Panchatantra Stories in Hindi)

Panchatantra Stories in Hindi
 बुनकर और धन की कहानी

एक गांव में एक बुनकर रहता था जो विभिन्न प्रकार के अच्छे-अच्छे वस्त्र बनाकर बेचता था और अपनी रोजी रोटी कमाता था। एक दिन वह अपनी पत्नी से कहता है-

 

“प्रिय! हमारा यह वस्त्रों का काम अन्य धनि बुनकरों के कारन बहुत मंदा पड़ गया है और इस काम से हम सिर्फ रोजी रोटी ही कमा पाते हैं इसलिए मुझे अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए और अधिक धन कमाने के लिए विदेश जाना चाहिए।”

 

इसपर उसकी पत्नी कहती है – “प्रिय! यह विचार ठीक नहीं अगर भगवान ने चाहा और हमारे भाग्य में हुआ तो हमें इसी काम में बहुत लाभ होगा और अगर भाग्य में नहीं होगा तो विदेश जाकर भी आप अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं कर सकते।”

 

बुनकर कहता है – “भाग्य की बात तो कायर करते हैं इसलिए मैं तो आवश्य ही विदेश जाऊंगा और धन कमाऊंगा।”

 

यह कहकर वह विदेश चला जाता है और वहां अपना काम शुरू करके लगभग तीन सौ मोहरें कमा कर वापिस लोटता है। लौटते समय रस्ते में एक घना जंगल पड़ता था जहाँ वापिस लौटते समय उसे रात हो जाती है।

 

 वह रात बिताने के लिए एक बरगद के पेड़ की शाखा पर चढ़ जाता है और उस पर रात बीतता है। बुनकर को सपने में दो व्यक्तियों के साये नजर आते हैं जो आपस में बातें करते है उनमे से एक दूसरे से कहता है-

 

“हे पौरुष! तूने इस बुनकर को भोजन और वस्त्र से ज्यादा धन क्यों दिया, क्या तू जानता नहीं कि इसके भाग्य में भोजन और वस्त्र से ज्यादा धन नहीं है ? 

 

इसपर दूसरा साया कहता है – “हे भाग्य! मेरा काम तो एक बार मेहनत का फल देना है। उसके उसे रहने देना या न रहने देना तेरा काम है। 

 

उसके बाद बुनकर की आंख खुल जाती है और वह  अपने धन की पोटली पर हाथ फेर कर देखता है और वहां धन नहीं मिलता।  

 

 वह बहुत निराश होता है पर हार नहीं मानता और सोचता है कि शायद यह धन मेरे भाग्य में नहीं लेकिन मैं दोबारा धन कमाने के लिए जाऊंगा और धन कमाकर लाऊंगा। बुनकर वहीँ से विदेश के लिए वापिस लोट जाता है और इस बार मेहनत से पांचसो मोहरें कमाकर लाता है।

 

 वह घर वापिस लोट ही रहा था कि उसी घने जंगल में उसे रात हो जाती है और वह वही रात बिताने लगता है पर इस बार वो सोता नहीं अपनी धन की पोटली को पकडे बैठा रहता है उसी समय उसे दोबार दो साये दीखते हैं जो पहले की तरह बातचीत कर रहे होते हैं। 

 

“हे पौरुष! तूने इस बुनकर को भोजन और वस्त्र से ज्यादा धन क्यों दिया, क्या तू जानता नहीं कि इसके भाग्य में भोजन और वस्त्र से ज्यादा धन नहीं है ? 

 

इसपर दूसरा साया कहता है – “हे भाग्य! मेरा काम तो एक बार मेहनत का फल देना है। उसके उसे रहने देना या न रहने देना तेरा काम है। 

 

उसके बाद वह धन की पोटली को देखता है पर मोहरें गायब होती हैं। वह बहुत निराश होता है और सोचता है कि इतने सालों की मेरी मेहनत गायब हो गई अब मैं अपनी पत्नी को क्या कहूंगा। ऐसा सोचकर वह निर्णय लेता है कि मैं अब जीना नहीं चाहता इसलिए वह घास-कबाड़  से एक रस्सी बाटने लगता है और ऊँचे पेड़ में बांध कर गले में डालने वाला ही होता है कि उसे आकाशवाणी होती है –

 

“हे बुनकर! ऐसा दुःसाहस मत कर तेरे  भाग्य में भोजन और कपड़ों के धन से ज्यादा धन नहीं है। पर मैं तुम्हारी मेहनत से बहुत प्रसन हूँ, तू मुझसे कोई वरदान मांग ले।” 

 

बुनकर कहता है – “अगर आप मुझे वरदान देना चाहते हो तो मुझे बहुत धन का वरदान दीजिये।” 

 

देवता ने कहा – “हे बुनकर तेरे भाग्य में धन नहीं है।”

 

बुनकर कहता है – “भले ही मेरे भाग्य में धन नहीं है पर आप मुझे धन ही दीजिये। क्योंकि अगर गरीब के पास धन आ जाये तो वह समाज में आदर पाता है और अपनीआवश्यकताओं को पूरी कर सकता है।” 

 

शिक्षा 

इस कहानी से यह सपष्ट हो जाता है कि संसार में सभी धन के पीछे भागते हैं किन्तु अगर धन भाग्य में नहीं तो वह प्राप्त होकर भी व्यर्थ जाता है और अगर भाग्य में धन है तो वह किसी न किसी रूप में प्राप्त हो जाता है, परन्तु भाग्य भरोसे बैठे रहना भी उचित नहीं इसलिए हमें बुनकर की तरह मेहनत भी करनी चाहिए। 

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