ब्राह्मणी और तिलों की कहानी (short panchatantra stories in hindi)

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एक नगर में ब्राह्मण और और उसकी पत्नी रहा करते थे। वे गरीब थे जिस कारन ब्राह्मण भिक्षा मांग कर अपनी रोजी रोटी कमाता था। एक दिन ब्राह्मण अपनी पत्नी से कहने लगा-

“प्रिय ! आज दक्षिणायन संक्रांति है जो भी इस दिन दान करता है वह अनत फल पाता है इसलिए तू किसी ब्राह्मण को दान दे देना और मैं भी नगर में दान मांगने के लिए जा रहा हूँ।”

इसपर ब्राह्मण की पत्नी क्रोधित होकर कहती है –

“अरे दरिद्र, कभी भी तूने मुझे अच्छा भोजन नहीं कराया, अच्छे कपडे पहनने को नहीं दिए और गहनों की तो बात ही छोड़ दो।”

ब्राह्मण जवाब देता है –

“प्रिय ! भगवान जितना भी जिस किसी को देता है उसे वह ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करना चाहिए इसलिए तुम दान अवश्य देना।” 

ब्राह्मण की पत्नी ने उसकी बात मान ली और ब्राह्मण दान मांगने के लिए चला गया। ब्राह्मण की पत्नी ने दान देने के लिए सोचा कि घर में तिल पड़े हैं मैं उन्हें अच्छे से साफ करके उनके लड्डू बना कर दान दूंगी इसलिए वह तिलों को पानी में धो कर और छांट कर सूखने के लिए धुप में रख देती है। 

थोड़ी ही देर बाद वहां एक कुत्ता आ जाता है और तिलों में पेशाब कर देता है। ब्राह्मणी सोचती है कि अब मैं इन्हे दान में नहीं दे सकती इसलिए नगर में जा कर इन छंटे हुए तिलों  के बदले में मैं बिना छंटे हुए तिल लेलूँगी। वह एक घर में तिल बदलने के लिए चली गयी और उस घर की गृहणी से कहने लगी कृपया करके आप इन छंटे हुए तिलों के बदले मुझे बिना छंटे तिल दे दो। 

गृहणी उसके हाथ से बदलने के लिए तिल ले लेती है तभी अंदर से उसका शास्त्रों का ज्ञाता पुत्र आया। ब्राह्मणी का पति भी उसी घर में दान लेने के लिए आया हुआ था। उसका पुत्र बोला माँ ये तिल न लो, बिना कारणवश कोई छंटे हुए तिल बिना छंटे हुए तिलों से नहीं बदलता। निश्चय ही इसके पीछे कोई कारन है। इस प्रकार उस ब्राह्मणी के तिल बदले नहीं जा सके।  

शिक्षा 

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कम मूल्य पर अगर कोई बहुत अधिक मूल्यवान वस्तु दे तो उसके पीछे कोई कारन होता है जैसे ब्राह्मणी के तिलों में कुत्ते ने पेशाब कर दिया था और वो उन साफ तिलों को बिना साफ तिलों से बदलने चली गयी। 

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