लोहा और पारश का स्पर्श | akbar birbal stories in hindi

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अकबर बीरबल की कहानियां
बीरबल

एक दिन सन्ध्या समय बादशाह बीरबल को साथ ले घुड़सवारी द्वारा हवा खाने के लिये महल से बाहर निकले । ये आपस में वार्तालाप करते हुए मध्य बाजार में जा पहुंचे । वहाँ सब प्रकार की वस्तुएँ बिक रही थीं, परन्तु इन्हें क्या प्रयोजन जो कहीं उतर कर कुछ सौदा खरीदते ।

 

इसी बीच बादशाह की दृष्टि एक वृद्धा स्त्री पर पड़ी। उसके हाथ में पुरानी म्यान से ढकी हुई एक तलवार लटक रही थी। उसकी तलवार देखते ही बादशाह के जी में आया कि अक्सर पुराने लोगों के पास अच्छी वस्तु निकल आती हैं। इसलिये इस वृद्धा की तलवार को देखना चाहिये ।

 

वह घोड़े की राश को बुढ़िया की तरफ मोड़ दिया। जब घोड़ा उसके समीप पहुँचा तो बादशाह ने उस वृद्धा से पूछा-“यह तलवार लेकर तू शहर में क्यों खड़ी है ?” बुढ़िया ने दीनता भरी बाणी से कहा-“गरीब परवर! मैं इसे वेचना चाहती हूँ।

 

यह तलवार बहुत दिनों से मेरे घर में पड़ी हुई है आज बड़ी गिरीवस्था को प्राप्त होकर और कोई दूसरा सामान न रहने पर इस बेचने की गरज से बाजार में लाई हूँ।”

 

बादशाह उससे तलवार माँग उसे म्यान से निकालकर देखने लगे। वह एकदम खराब हो गई थी। उस पर जंग का गहरा पर्दा पड़ गया था और उसकी धार भी कई जगह से टूट गई थी। बादशाह ने बुढ़िया की तलवार को ज्यों का त्यो लौटा दिया। वह उसको हाथ में लेकर बड़े गौर से देखने लगी।

 

ऐसा मालूम होता था मानो उसकी तलवार बदल गई हो। इसको ऐसी भौचकसी हुई देखकर बादशाह ने पूछा-“क्या बात है ! तेरी तलवार बदल तो नहीं गई है ?” वह वृद्धा बोली-“पृथ्वीनाथ ! मैंने सुना था कि पारस के स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है, परन्तु यह हमारी लोहे की तलवार आपके पारस हाथों के स्पर्श से सोने की क्यों नहीं हुई ।

 

बस में यही देख रही हूँ।” बादशाह वृद्धाके इस उत्तरसे गदगद हो गये और उसको तलवार के बराबर सोना देने की आज्ञा दी। बीरबल अभी तक खड़े खड़े इनकी सब बातें सुन रहा था। बुढ़िया की बुद्धिमत्ता भरी बाते सुन और बादशाह की उदारता देखकर उसे बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ। दोनों सानन्द घोड़ा बढ़ाते हुये नगर से बाहर निकले।

 

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