एक नगर में किसी ईमानदार बनिये के द्वारा बाग में मंदिर बनवाया जा रहा था। मंदिर निर्माण के लिए बनिये ने बहुत से कारीगरों को काम पर लगाया हुआ था। कारीगर दोपहर के भोजन के लिए पास के ही शहर में जाते थे। उस बाग में बंदरो का झुण्ड कारीगरों के भोजन पर जाने बाद वहां कूदता था। एक दिन एक कारीगर ने बहुत बड़े पेड़ की लकड़ी बिच में से चिर कर रख दी और उसमे किसी कारणवश बिच में कील ठोक दी और भोजन करने के लिए शहर चले गए।
उनके पीछे से बाग में एक बंदरो का झुण्ड आ जाता है। बंदरों का झुण्ड कभी मंदिर पर कूदता है और कभी मंदिर निर्माण के लिए रखी हुई लकड़ियों पर तभी उनमे से एक बंदर कारीगर द्वारा बिच में से चिरी हुई लकड़ी के पास आ जाता है और उसपर लेट कर उसमे ठोकी हुई कील को बाहर निकलने की कोशिश करता है। दुर्भग्यवश वह बिच में से चिरी हुई लकड़ी का टुकड़ा घिसक जाता है और इसमें से उठी फ़ांस उसके पेट में जा घुसती है। परिणामस्वरुप वह मृत्यु को प्राप्त होता है।
शिक्षा
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जो भी अपने काम को छोड़ कर दूसरे के काम में टांग अड़ाता है वह कील खींचने वाले बंदर की तरह मृत्यु को प्राप्त होता है।