एक दिन बहादुर नाम का एक सियार भूख के मारे इधर उधर भटक रहा था। भटकता हुआ वह दो सेनाओं के लड़ने के मैदान में पहुंचा। वहाँ एक पेड़ के निचे एक नगाड़ा पड़ा हुआ था। जो सियार की नजर में नहीं पड रहा था। तभी एक हवा का झोंका आता है और पेड़ से एक लकड़ी टूट कर नगाड़े पर गिरती है जिससे बहुत जोरों से आवाज आती है और सियार डर के मारे सोचता है कि “अरे मारे गए लगता है कोई बड़ा जानवर भोजन ढूंढ़ने के लिए इस मैदान में आ गया है वह मुझे नहीं छोड़ेगा”।
लेकिन एक और वो सोचता है कि “बिना जाने कि आवाज कौन कर रहा है भागना उचित नहीं होगा”। वह साहस करके यह देखने के लिए आगे बढ़ा तभी वह देखता है कि एक पेड़ के निचे एक नगाड़ा रखा हुआ है जो पेड़ से गिरी लकड़ी के कारण बज उठा। सियार उसके पास जाता है और ख़ुशी के मारे नगाड़े को जोर जोर से बजाने लगता है और सोचता है कि अवश्य ही यह चर्भी से भरा होगा। सियार मेहनत करके नगाड़े पर लगा चमड़ा फाड़ देता है।
इस कोशिश में उसके दो दन्त टूट जाते हैं सियार अंदर देखता है कि उसमे तो लकड़ी और चमड़े के आलावा कुछ नहीं है। तब वह कहता है -“मैंने तो सोचा था कि यह चर्भी से भरा होगा लेकिन जब मेहनत की तब जाना कि उसमे कितनी लकड़ी पर कितना चमड़ा”।
शिक्षा
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि सिर्फ आवाज से नहीं डरना चाहिए उसकी छान बिन जरूर करनी चाहिए।