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अकबर बीरबल की कहानियां ~ akbar birbal stories in hindi
मूर्खों की गिनती
घोड़ों का एक व्यापारी कुछ घोड़ों को लेकर अरब देश से आया और शहंशाह अकबर से मिला। बादशाह को घोड़े पसंद आ गए और उन्होंने सारे घोड़े .खरीद लिए और सौदागर से कहा, “तुम हमारे लिए और अरबी घोड़े लाओ। तुम अरब से आए हो, इसलिए पेशगी के तौर पर हम तुम्हें हजार रुपये दे रहे हैं।”
सौदागर बहुत ही प्रसन्न हुआ और वापस अरब लौट गया। सौदागर के चले जाने के बाद बीरबल को मालूम हुआ कि वह व्यापारी पेशगी लेकर अपने देश चला गया और बादशाह ने उसका नाम-पता भी नहीं पूछा। उन्हीं दिनों शहंशाह अकबर बीरबल से बोले, “बीरबल,हमारे राज्य में वैसे तो मूर्ख बहुत ही कम हैं, फिर भी जो मूर्ख हैं, उनके नाम हम जानना चाहते हैं।
इस राज्य में कितने मूर्ख हैं, उनकी गिनती करने का काम हम तुम्हें सौंपते हैं, बीरबल।” “आपका हुक्म सिर-आंखों पर, हुजूर।” बीरबल इतना कहकर मूों की गिनती करने के लिए निकल गए।
दो दिन के बाद बीरबल दरबार में आए और मूर्खों की एक सूची बादशाह को दी। उस सूची में बादशाह सबसे ऊपर अपना नाम देखकर भड़क उठे और बीरबल से इसका कारण पूछा। बीरबल सिर झुकाकर बोले, “जहांपनाह, अरब देश से जो व्यापारी आया था,आपने उसका नाम-पता पूछे बिना ही उसे हजार रुपये पेशगी में दे दिए।
यदि वह व्यापारी घोड़े नहीं लाया तो आप उसका क्या बिगाड़ लेंगे? आप तो उसका नाम-पता नहीं जानते। क्या यह मूर्खता भरा काम नहीं है?’ शहंशाह अकबर को बीरबल की बात बहुत पसंद आई।
वह अपनी गलती पर मन-ही-मन पछताने लगे लेकिन वह थे तो एक शहंशाह। अकड़ते हुए बोले, “यदि वह व्यापारी घोड़े लेकर आ गया तब….?” बीरबल ने जवाब में कहा, “जहांपनाह, फिर मैं आपके नाम के स्थान पर उस व्यापारी का नाम लिख दूंगा।”
शहंशाह अकबर यह सुनकर अचानक ही हंस पड़े। । हाजिर जवाब बीरबल भला गलत कैसे हो सकते थे।.
सीढियाँ कितनी हैं
बादशाह अकबर और बीरबल महल के बाग में टहल रहे थे। शहंशाह मूड में थे। उन्होंने बीरबल से सवाल कर दिया, “बीरबल, क्या तुम्हें मालूम है कि तुम्हारी पत्नी की कलाइयों में कितनी चूड़ियां हैं?तुम तो दिन में कई बार पत्नी का हाथ पकड़ते होंगे।”
बीरबल दुविधा में पड़ गए। उन्होंने तो कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया था। बीरबल कुछ देर तक चुप रहे, फिर बोले, “हुजूर, मेरा हाथ तो पत्नी के हाथ को कभी कभार ही पकड़ता है। लेकिन हुजूर, क्या आप बता सकते हैं कि आपकी दाढ़ी में कितने बाल हैं?”
बादशाह बीरबल की बात को नजरअंदाज कर गए और बोले, “बीरबल दाढ़ी के बाल की गिनती कर पाना नामुमकिन है किंतु हाथ की चूड़ियों को तो सरलता से गिना जा सकता है।” बीरबल बोले, “हुजूर, औरतों का क्या, वे तो अपनी कलाइयों में कम-ज्यादा चूड़ियां पहनती रहती हैं।
औरत के हाथों में कितनी चूड़ियां हैं बिना गिने बता पाना मुश्किल है। आप तो महल में प्रतिदिन ही जाते हैं। ऊपरी मंजिल पर जाने के लिए आप सीढ़ियां तो चढ़ते ही होंगे। हुजूर, आप बता सकते हैं कि कितनी सीढ़ियां हैं?” शहंशाह बोले, “मैंने कभी सीढ़ियों की संख्या की तरफ ध्यान ही नहीं दिया।”
बीरबल हंसते हुए बोले, “जहांपनाह, सीढ़ियों को तो घटाया-बढ़ाया भी नहीं जा सकता। वे वर्षों से एक ही संख्या में हैं, फिर भी वे कितनी हैं आपको मालूम नहीं तो भला मैं हर माह घटने-बढ़ने वाली चूड़ियों की संख्या कैसे बता सकता हूं? फिर भी मैं दोषी हूं तो बंदे की गर्दन हाजिर है, हुजूर।”
बीरबल की इस बुद्धिमत्ता के आगे बादशाह अकबर निरूत्तर रह गए।
सच्चे झूठे का भेद
बादशाह और बीरबल में सिद्धान्त निरूपण हो रहा था इसी के अन्तरगत बादशाह ने बीरबल से सच्चे और झूठे. का भेद पूछा। बीरबल ने उत्तर दिया-“पृथिवीनाथ !
इन दोनों के मध्य उतना ही भेद है जितना कि आँख और कानों में है।” बादशाह की समझ वहाँ तक न पहुँच सकी इस वास्ते बीरबल से फिर पूछा-“क्यों, ऐसा काहे को होता है ?” बीरबल ने उत्तर दिया-“पृथिवीनाथ ! सुनिये, जो बात आँखों देखी रहती है वह तो सच्ची और जो कान से सुनी जाती है वह झूठी।” बादशाह बीरबल के युक्तिसंगत और तर्कपूर्ण उत्तर से सन्तुष्ट हो गया।
सीढियाँ कितनी हैं
बादशाह अकबर और बीरबल महल के बाग में टहल रहे थे। शहंशाह मूड में थे। उन्होंने बीरबल से सवाल कर दिया, “बीरबल, क्या तुम्हें मालूम है कि तुम्हारी पत्नी की कलाइयों में कितनी चूड़ियां हैं?तुम तो दिन में कई बार पत्नी का हाथ पकड़ते होंगे।”
बीरबल दुविधा में पड़ गए। उन्होंने तो कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया था। बीरबल कुछ देर तक चुप रहे, फिर बोले, “हुजूर, मेरा हाथ तो पत्नी के हाथ को कभी कभार ही पकड़ता है। लेकिन हुजूर, क्या आप बता सकते हैं कि आपकी दाढ़ी में कितने बाल हैं?”
बादशाह बीरबल की बात को नजरअंदाज कर गए और बोले, “बीरबल दाढ़ी के बाल की गिनती कर पाना नामुमकिन है किंतु हाथ की चूड़ियों को तो सरलता से गिना जा सकता है।” बीरबल बोले, “हुजूर, औरतों का क्या, वे तो अपनी कलाइयों में कम-ज्यादा चूड़ियां पहनती रहती हैं।
औरत के हाथों में कितनी चूड़ियां हैं बिना गिने बता पाना मुश्किल है। आप तो महल में प्रतिदिन ही जाते हैं। ऊपरी मंजिल पर जाने के लिए आप सीढ़ियां तो चढ़ते ही होंगे। हुजूर, आप बता सकते हैं कि कितनी सीढ़ियां हैं?” शहंशाह बोले, “मैंने कभी सीढ़ियों की संख्या की तरफ ध्यान ही नहीं दिया।”
बीरबल हंसते हुए बोले, “जहांपनाह, सीढ़ियों को तो घटाया-बढ़ाया भी नहीं जा सकता। वे वर्षों से एक ही संख्या में हैं, फिर भी वे कितनी हैं आपको मालूम नहीं तो भला मैं हर माह घटने-बढ़ने वाली चूड़ियों की संख्या कैसे बता सकता हूं? फिर भी मैं दोषी हूं तो बंदे की गर्दन हाजिर है, हुजूर।”
बीरबल की इस बुद्धिमत्ता के आगे बादशाह अकबर निरूत्तर रह गए।
कुछ भी नहीं बचा
अपने सवालों के लिए प्रसिद्ध बादशाह अकबर अदरबार आए तो बीरबल कहीं नजर नहीं आए। उन्होंने दरबारियों से पूछा, “बताओ, 27 में से 1 गए तो क्या शेष रहा?” दरबारी मन-ही-मन सोचने लगे कि बादशाह यह क्या पूछ रहे हैं।
क्या हम लोग कोई बच्चे हैं कि इतना आसान सवाल हल नहीं कर सकेंगे?” सभी दरबारियों ने एक ही जवाब दिया, “हुजूर 27 में से 9 निकल जाने पर 18 बचे। यह तो सबको ही मालूम है।”
बादशाह मुस्कराए, फिर बीरबल के आने का इंतजार करने लगे। इतने में बीरबल दरबार में आ खड़े हुए। शहंशाह ने उनसे भी यही सवाल कर दिया।
बीरबल जवाब में बोले , “हुजूर, कुछ भी नहीं बचा।” बीरबल का यह जवाब सुनकर सब आश्चर्य में पड़ गए। उनके जवाब से कोई भी संतुष्ट नहीं दिखा तो बीरबल आगे बोले, “इसमें हैरान होने की कोई बात नहीं है। 27 नक्षत्र सालभर में होते हैं।
इनमें से नौ नक्षत्र जो हैं, वे वर्षा ऋतु में होते हैं। यदि इन नक्षत्रों को निकाल दिया जाए तो जो बचे उनसे तो इस संसार का कोई भला नहीं होने वाला, इसीलिए मैंने कहा कि 27 में से 9 के चले जाने पर कुछ भी नहीं बचा।’
शहंशाह अकबर बीरबल का जवाब सुनकर अत्यंत ही प्रसन्न हुए और इसके लिए उन्हें इनाम भी दिया।
कौन ऋतु सर्वोत्तम है ?
एक दिन बादशाह राजकीय कामों से अवकाश पाकर अपने दर्बार में बैठे थे। इधर उधरकी बातें भी हो रही थी। तब बादशाह ने पूछा-गर्मी, बर्सात, जाड़ा, हेमन्त, शिशिर और बसन्त इन छहों ऋतुओं में सर्वोत्तम ऋतु कौन है ?”
दरबारियों ने अपनी अभिरुचि के अनुसार किसी ने कुछ और किसी ने कुछ बतलाया, परन्तु उनका मतैक्य न हुआ। तब बादशाह बीरबल से पूछे-“बीरबल ने तुरत उत्तर दिया-“पृथ्वीनाथ ! पेट भरों को सभी ऋतुवें अच्छी होती हैं, भूखों के लिये एक भी नहीं यानी सभी बुरी होती हैं।”
कर्मो का फल
एक बार की बात है कि शहंशाह अकबर और एबीरबल बगीचे में टहल रहे थे। अचानक बादशाह के दिमाग में एक सवाल आ गया। वह बीरबल की ओर देखते हुए बोले, “बीरबल, इस संसार में कोई गरीब है और कोई अमीर है। क्या बता सकते हो ऐसा क्यों है? खुदा तो समदर्शी है और वह सबका ही मालिक है और सभी उसकी संतान है।
एक पिता तो अपनी संतान का सदा भला चाहता है और सभी को एक समान देखता है। फिर खुदा परम पिता होकर क्यों किसी को अमीर बना देता है और किसी को दो जून की रोटी के लिए भी तरसाता है?’ बादशाह अकबर यह कहकर चुप हो गए।
बीरबल बहुत सोचने के बाद बोले, “हुजूर, खुदा ऐसा न करे तो कोई उसे खुदा मानेगा ही नहीं। दुनिया में पांच पिता होते हैं। आप भी उन पांच में से एक हैं अर्थात् अपनी प्रजा के पिता हैं। आप तो किसी को दो सौ, किसी को चार सौ, किसी को सौ तो किसी को डेढ़ सौ – और किसी को कवल चार-पांच रुपये की तनख्वाह देते हैं। जहांपनाह , आप ऐसा क्यों करते हैं? सबको एक नजर से क्यों नहीं देखते?”
बादशाह अकबर निरूत्तर हो गए और काफी सोच में पड़ गए। बीरबल समझ गए कि बादशाह असमंजस की स्थिति में हैं। अतः बीरबल बोले, “हुजूर, इसमें इतना दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। जो जिस तरह का काम करता है, वैसी ही उसको मजदूरी मिलती है और संसार ऐसे ही चलता है।
यदि ऐसा न हो तो संसार चल ही नहीं सकता। ईश्वर कर्मों के अनुसार फल देता है। उसकी यह इच्छा कभी नहीं होती कि संसार के प्राणी दुःख उठाएं। ईश्वर तो सबका भला चाहता है, अब कोई उसके बताए रास्ते पर नहीं चलता है तो उसे उसके कर्मों का फल भुगतना पड़ता है।
जो परिश्रम करता है, अच्छा कर्म करता है, वह धनवान बनता है और जो कामचोर होता है, वह गरीब होता है। ईश्वर तो वही देता है, जो हम करते हैं, हुजूर।” बीरबल की बातों से अकबर बादशाह खुश हो गए और बीरबल की तारीफ करते हुए अपने महल की ओर लौट गए।
भुला वादा
बीरबल से एक बार शहंशाह अकबर इतना बा प्रसन्न हुए कि उन्होंने बीरबल को इनाम में जागीर देने का निर्णय कर लिया। बीरबल के बुद्धिमत्तापूर्ण कार्यों से खुश होकर शहंशाह अकबर ने जागीर देने की बात तो कह दी लेकिन बाद में उनका इरादा बदल गया। बीरबल ने दो-तीन बार शहंशाह को उनका फैसला याद भी दिलाया लेकिन बादशाह बीरबल को अब जागीर देना नहीं चाहते थे।
एक रोज बीरबल ने कहा, “हुजूर, मेरी जागीर का क्या हुआ?”
बादशाह बीरबल की बात अनसुनी कर दूसरों की बातों में लग गए। बीरबल को बहुत बुरा लगा और वह अब मौके की तलाश में रहने लगे। एक दिन मौका आ ही गया। बादशाह बीरबल के साथ सैर पर निकले। रास्ते में उन्होंने ऊंट देखा तो बीरबल से सवाल कर दिया, “बीरबल, ऊंट की गर्दन टेढ़ी क्यों है?”
बीरबल ने जवाब में कहा, “जहांपनाह, यह भी किसी को पिछले जन्म में जागीर देने का वायदा करके भूल गया होगा।” बीरबल के इतना कहते ही शहंशाह शर्मसार हो गए और उसी समय उन्होंने बीरबल को जागीर देने की घोषणा कर दी।.
लकीर छोटी हो गई
एक दिन बादशाह ने बीरबल को छकाने के विचार से एक भूल भुलैया की चाल निकाली। वह एक लकीर जमीन पर खींचकर बीरबल से बोले-“बीरबल! इस लकीर को बिना काटे छाँटे छोटी कर दो । बीरबल तो पूरा गुरु घण्टाल था ही, उस लकीर कोन घटाया और न बढ़ाया, बल्कि उसके पास ही अपनी उँगली से एक दूसरो लकीर उससे भी बड़ी खींचकर बोला-“लीजिये पृथिवीनाथ! अब आपकी लकीर इससे भी छोटी हो गई।” बादशाह बीरबल की बुद्धि से हार मान गया।
दूध की जगह पानी
बादशाह अकबर को मुगल सम्राटों में सबसे अच्छा समझा जाता है। अकबर भी यह समझते थे कि उनकी प्रजा उन्हें बहुत चाहती है और वह बहुत कर्त्तव्यनिष्ठ हैं। एक दिन उन्होंने यही बात बीरबल के सामने रखी, “बीरबल! हम यह जानना चाहते हैं कि हमारे राज्य में प्रजा कितनी ईमानदार है और हमें कितना प्यार करती है?” ।
बीरबल ने तुरंत उत्तर दिया, “हुजूर! आपके राज्य में कोई भी पूरी तरह ईमानदार नहीं है। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रजा आपको कितना प्यार करती है।”
बादशाह अकबर बोले, “यह तुम क्या कह रहे हो, बीरबल?” “मैं अपनी बात को साबित कर सकता हूं,जहांपनाह!” “ठीक है, तुम हमें साबित करके दिखाओ।”
तब बीरबल ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि बादशाह सलामत एक भोज करने जा रहे हैं। इसके लिए सारी प्रजा से अनुरोध है कि कल दिन निकलने से पहले हर आदमी एक-एक लोटा दूध पहुंचा दे। कड़ाहे रखवा दिए गए हैं। उनमें हर आदमी एक लौटा दूध डाल जाए।
ढिंढोरा सुनकर हर आदमी ने यही सोचा कि जहां इतना दूध इकट्ठा होगा, वहां उसके द्वारा एक लोटे पानी का क्या पता चलेगा? अतः हर आदमी कड़ाहों में पानी डालता गया। सुबह जब बादशाह अकबर ने उन कड़ाहों को देखा जिनमें प्रजा से दूध डालने को कहा गया था तो दंग रह गए। उन कड़ाहों में केवल पानी ही पानी था।
इस घटना के बाद बादशाह अकबर को यह मानना पड़ा कि बीरबल प्रजा की नब्ज को अच्छे से पहचानते हैं।
एक हजार जूते
एक दिन बादशाह बीरबल को झिपाने की नीयत से उसके जूते गुम करा दिये । जब घर जाने का समय हुआ तो बीरबल अपने जूतों को तलाश करने लगा। जब वे न मिले तो बादशाहने कहा-‘अच्छी बात है; बीरबलको हमारी तरफ से जूते दिये जायँ ।” बीरबल नये जूतों का पहन कर ऊपरी प्रसन्नता दिखलाते हुए बोला-“मैं आपको आशीर्वाद देता हूँ कि ईश्वर इसके पहले आपको हरलोक परलाक सभी जगह ऐसे ही हजार जूते दे।
” बीरबल के ऐसे हास्यपूर्ण आशीर्वाद को सुनकर वादशाह खिलखिला कर हँस पड़ा। दरबारी लोग चकित हाकर वीरयल का मुंह देखते रह गये।
बीरबल की चुड़ैल वाली चतुराई
एक बार रात के समय अकबर अपनी सभा खत्म करके अपने कमरे में सोने के लिए जा रहे थे। वह सोने के लिए अपने बिस्तर पर लेट जाते हैं और सो जाते हैं।
रात में उन्हें अपने कमरे में कुछ आवाजें सुनती हैं अकबर अपने बिस्तर से उठ जाते हैं। उन्हें लगता है कि शायद कोई बिल्ली कमरे में घुस गई है। इसलिए वह दोबारा सो जाते हैं।
सोने के कुछ समय बाद उन्हें फिर से आवाजें सुनाई दी और वे उठ कर अपने कमरे में झाँकने लगे जब वह अपने कमरे में उस जगह गए जहाँ पर वह सोना चाँदी रखते थे तब उन्हें वहां एक चुड़ैल दिखाई दी।
अकबर डर के मारे बेहोश हो गए। जब उन्हें होश आया तब सुबह हो चुकी थी अकबर ने सभी को दरबार में बुलाया और बीरबल से कहा –
“बीरबल हमने रात अपने कमरे में एक चुड़ैल देखी” ?
बीरबल ने पूछा-
“महाराज अपने किस जगह चुड़ैल देखी”
अकबर ने जवाब दिया-
“मैंने अपने कमरे में उस जगह चुड़ैल देखी जहाँ मैं अपना धन रखता हूँ”
बीरबल बहुत ही होशियार थे बीरबल ने खतरा भांप लिया था। बीरबल उसी स्थान पर गया जहाँ अकबर ने चुड़ैल को देखा था। जब बीरबल ने उस स्थान का जायजा किया तब पता चला कि वहां रखे धन में से कुछ धन गायब है। बीरबल को अब पता चल गया था कि मामला चोरी का है बीरबल ने यह बात किसी को नहीं बताई और अकबर से कहा-
“महाराज अगर यहाँ चुड़ैल थी तो हम उसको तांत्रिक की मदद से पकड़ लेंगे”
बीरबल की सलाह से अकबर ने तांत्रिक को बुलाया तांत्रिक अपना काम करके चला गया। लेकिन सबसे मजेदार बात यह है कि बीरबल जानता था कि यहाँ कोई चुड़ैल नहीं है। सिर्फ कोई चोरी करने के लिए कोई चुड़ैल बन रहा है। बीरबल उस चोर को रंगे हाथ पकड़ना चाहते थे। इसलिए बीरबल ने अकबर से कहा –
“महाराज आप निश्चिंत होकर सो जाइये अब यहाँ कोई चुड़ैल नहीं है”
बीरबल जानते थे कि चोर के पास धन खत्म होने पर वह एक दिन यहाँ जरूर चोरी करने के लिए आएगा। कुछ दिन बाद ऐसा ही हुआ चोर दोबारा से चुड़ैल का रूप बनाकर अकबर के कमरे में घुस गया।
बीरबल ने बिना किसी को बताये एक षड्यंत्र रचा बीरबल भी चुड़ैल का रूप बना कर उसी कमरे में बैठ गए जहाँ धन रखा जाता था कुछ देर बाद वहां चोर आ जाता है और चोरी करने के लिए सोने की मोहरे उठाने लगता हैं।
तभी बीरबल चुड़ैल का रूप बनाये उसके ऊपर झलांग लगा देते हैं चोर बहुत डर जाता है। चोर जिसने चुड़ैल का रूप बनाया था वह जोर जोर से चिल्लाने लगता है।
जिससे बीरबल का सन्देह सच्चाई में बदल जाता है कि यह कोई चुड़ैल नहीं सिर्फ एक चोर है। बीरबल सोचता है कि अगर सचमुच की चुड़ैल होती तो मुझसे क्यों डरती और चोरी क्यों करती क्योंकि चुड़ैलों को धन की क्या जरुरत है।
इस तरह बीरबल चोर को बहुत डराते हैं और जोर जोर से चिलाते हैं –
“चोर…. चोर…. चोर….. चोर…… “
चिलाते हुए वह अपना चुड़ैल का रूप उतार देते हैं। बीरबल के चिलाते ही सभी नींद से जाग कर धन वाले कमरे जाते हैं और देखते हैं कि बीरबल ने चुड़ैल रूपी चोर को दबोच रखा है
सभी डर जाते हैं और सोचते हैं कि बीरबल ने चुड़ैल को पकड़ रखा है तभी बीरबल कहते हैं महाराज यह कोई चुड़ैल नहीं है यह चोर है सभी बीरबल की चतुराई समझ जाते हैं और चोर को रंगे हाथ पकड़ लेते हैं। बीरबल की इस चतुराई से अकबर उन्हें इनाम से नवाजते हैं।
जो समय पर काम आये
बदशाह अकबर ने दरबार में आते ही सवाल कर दिया, “सबसे श्रेष्ठ और उत्तम हथियार कौन-सा है?” एक दरबारी उठकर बोला, “जहांपनाह , भाला…. भाला उत्तम हथियार है।” दूसरा दरबारी बोला, “नहीं हुजूर, तलवार।” तीसरा दरबारी बोला, “नहीं जहांपनाह तीर-कमान।”
बादशाह को दरबारियों के जवाब से संतुष्टि नहीं मिली तो उन्होंने बीरबल की ओर देखा और कहा, “तुम्हारा क्या जवाब है, बीरबल?’
बीरबल सोचते हुए बोले, “हुजूर, मेरे विचार से उत्तम हथियार वही है, जो समय पर काम आए और अपनी श्रेष्ठता साबित कर दे।’ बादशाह अकबर असंतुष्ट होते हुए बोले, “यह कोई जवाब नहीं हुआ बीरबल।” बीरबल बोले, “जहांपनाह , मैं अपनी बात को सिद्ध करके दिखा दूंगा।”
अगली सुबह बीरबल अकबर बादशाह के साथ सैर के लिए निकले। बीरबल ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए पहले से ही योजना बना ली थी। घूमते-घूमते वे दोनों एक सड़क पर में आ गए। इतने में गली में अचानक एक क्रोधित हाथी तेज गति से आता हुआ दिखाई दिया। बीरबल घबराई हुई आवाज में बोले, “हुजूर! हाथी तो सनकी लगता है। देख नहीं रहे कैसे पैर पटकता हआ आ रहा है।”
अकबर बादशाह भी घबरा गए, “हा, बारबल! हम ता पगलाया हाथी भागता हुआ आ रहा है। हम तो इतनी तेज भाग भी नहीं सकते, बीरबला” यह कहते-कहते बादशाह काफी घबरा गए। उन्होंने कमर से लटक रही म्यान पर हाथ रखा तो बीरबल बोले, “जहांपनाह , यह क्या कर रहे हैं।
मदांघ हाथी का मुकाबला भला तलवार से कैसे हो सकता है?” बीरबल यह बोल ही रहे थे कि तभी बादशाह के पैर के पास एक कुत्ते का पिल्ला आ गया। बादशाह ने झट से पिल्ले को उठाया और आ रहे हाथी की सूंड की ओर फेंक दिया। कुत्ते का पिल्ला इतना डर गया कि बुरी तरह चिल्लाने लगा। हाथी घबराकर पीछे की तरफ हटता चला गया।
अकबर और बीरबल को भागने का मौका मिल गया। वे भागते हुए एक गली में आ गए। बीरबल बादशाह अकबर को माथे का पसीना पोंछते हुए देखकर बोले, “अब क्या कहते हैं, हुजूर, मैंने कोई गलत तो नहीं कहा था कि जो मौके पर काम आए, वही श्रेष्ठ हथियार होता है?”
अकबर बादशाह बोले, “हां बीरबल, कुत्ते का पिल्ला हथियार की गिनती में थोड़े ही आता है। लेकिन उसने ही हमारा बचाव उस मदांघ हाथी से किया। मौके पर वह न आता तो आज हम जिंदा न होते। तुम्हारा कहना सही था कि श्रेष्ठ हथियार वही है, जो मौके पर काम आए।”
तीन सवालों का जवाब
एक दिन बादशाह और उसके खोजे से आपस में कुछ बात हो रही थीं, इसी बीच बीरबल की बात आई। तब खोजे ने बीरबल की बड़ी दुनिन्द की। यह बादशाह का मुंह लगा खोजा था इसलिये खुलेआम उसकी अवहेलना करना उचित न समझ कर प्रमाणों द्वारा मुँहतोड़ उत्तर देना शुरू किया।
वह बोले-“तुम स्वयं विचार कर देखो कि मेरे दरबार में बीरबल सा हाजिर जवाब एक आदमी भी नहीं है।” खोजा बादशाह के मुख से बीरबल की प्रशंसा सुनकर मन ही-मन भड़क उठा और बोला-“हुजूर यदि आप बीरबल के हाजिर जवाब बताते हैं तो वह मेरे तीन सवालों का जवाब दे । यदि ठीक २ उत्तर दे देगा तो मैं भी उसे श्रेष्ठ मान लूंगा। बादशाह ने उससे सवाल पूछने को कहा । खोजा बोला-
“(1) आकाश में तारों की कितनी संख्या है
(2) दुनियाँ में स्त्री पुरुष अलग 2 कितने हैं।
(3) धरती अपना बीच कहाँ रखती है।”
बादशाह खोजे को अपने पास बैठाकर बीरबल को बुलवाने के लिये सिपाही भेजा। जब वह आया तो उससे खोजे के तीनों सवालों का उत्तर माँगा। बीरबल चुपके बाजार से एक बड़ा मेढ़ा खरीद लाया और उसे बादशाह के सामने खड़ा कर बोला-“खोजा साहब ! इसके पीठ के बालों की गणना कर लेवें।
इसके शरीर में जितने बाल हैं उतने ही आकाश में तारे भी हैं। फिर इधर उधर गोड़ से पड़ताल कर एक जगह जमीन में खूटी गाड़ कर बोला”पृथ्वीनाथ ! पृथ्वी का मध्य यही है, यदि खोजे को यकीन न हो तो स्वयं नाप ले, जब पहले और तीसरे सवालों के बाद दूसरे की बारी आई तो बीरबल हंसा पड़ा परन्तु अपना असली भाव छिपाकर उत्तर दिया-“गरीब परचर खी पुरुषों की संख्या तो इन खोजों के कारण बिगड़ गई है
क्योंकि ये न तो स्त्रियों की संख्या में आते हैं और न पुरुषों के ही। यदि सब खोजे जान से मरवा दिये जायें तो ठीकठीक गणना निकल सकती है।”
खोजे का मुंह छोटा हो गया। उसके मुंह से एक बात भी न निकली बादशाह ने बहुत कुछ उसे भला बुरा सुनाया। बेचारा लाज का मारा, दुम दबाकर जनानखाने में चला गया। बादशाह ने बीरबल को पारितोषिक देकर विदा किया।
बादशाह का तोता
बादशाह तोते की खूबसूरती और इल्मियत से निहायत खुश हुआ और वह उसे एक सुविज्ञ सेवक को सपुर्द कर उससे बोला-“देखो इस तोते की आब हवा और दाना पानी पर बड़ो सावधानी रखना, इसकी प्रकृति में कुछ अन्तर न पड़ने पावे। इसको जरा भी तकलीफ होते ही फौरन मुझे खबर देना। यदि कोई मेरे पास इसके मरने को खबर लायेगा तो तुरत उसकी गर्दन मार दी जायगी।”
दैवात् तोता मर गया। विचारा सेवक बहुत डरा, उसे अपने जीवनरक्षा की कोई सूरत नहीं दिखलाई पड़ती थी। दोनों प्रकारसे मृत्यु का सामना था । “करने पर गदन मारी जावेगी और यदि मरने का समाचार न देकर गुप्त रक्खू तो किसी दिन भेद खुलने पर और भी दुर्गति होगी।”
लाचार अपना कुछ वश न चलते देख बीरबल के पास गया और उससे सारा समाचार कहकर बहुत गिड़गिड़ाया और कए से छुटकारा पाने की तरकीब पूछी । बीरबल बोला–“डरो नहीं, मैं तुमको अभयदान देता हूँ।”
इधर नौकर का बिदा कर वह तुरत बादशाह के पास जा पहुंचा और बड़ी घबड़ाहट के साथ बोला-“गरीब परवर ! अपना तो-ता, अपना तो-ता।” उसको घबराहट देखकर बादशाह बोल उठा-“क्या वह मर गया ?” बीरबल बात संभालते हुए उत्तर दिया- नहीं पृथ्वीनाथ ! वह बड़ा बिरागी हो गया है, आज सुबह से ही अपना मुख ऊपर किये हुए है और कोई अंग नहीं हिलाता, उसकी चोंच और आँखें भी बन्द हैं।”
बीरबल की ऊपर कही बातें सुनकर बादशाह ने कहा-“तब क्यों नहीं कहते कि वह मर गया।”
बीरबलने उत्तर दिया-“आप चाहे जो कुछ भी कहे परन्तु मेरी समझ में तो यही आता है कि वह मौन होकर तपस्या कर रहा है। आप चलकर स्वयं देख लेवें तो बहुत अच्छा हो ।”
बादशाह ने बीरवल की बात मान ली और दोनों तोते के पास पहुँचे, तोते की दशा देखकर बादशाह ने बीरबल से पूछा-“बोरबल ! कहने को तो तुम बड़े चतुर बजने हो फिर भी तोते के मरने की तुम्हे खबर न मिली। यदि यही बात’ मुझसे पहले ही बतला दिये होते. तो मुझको यहाँ तक आने की क्या जरूरत थी ?”
बीरपल ने उत्तर दिया-“पृथ्वीनाथ ! मैं लाचार था,, क्योंकि यदि पहले ही बतला दिये होता तो जान से हाथ धोना पड़ता।
उसकी इस चालाकी से बादशाह बहुत खुश हुआ और उसको अपनी पहली आज्ञा का स्मरण हो आया। उसने बीरबल की बड़ी प्रशंशा की और एक बड़ी रकम पुरस्कार में देकर उसे बिदा किया।
काला पत्थर और बीरबल की बुद्धि
एक बार अकबर ने सभी महान लोगों को अपनी बैठक में आमंत्रित किया। राज्य के सभी महान लोगों ने बैठक में भाग लिया जिसमें से बीरबल भी एक था।
अकबर राजा कहने लगे-
“आज मैंने आपको अपनी बुद्धिमानी जानने के लिए यहाँ बुलाया है”
सब सोचने लगे कि आज महाराज हमसे कुछ सवाल पूछने वाले हैं। लेकिन ऐसा नहीं था।
अकबर ने यह जानने के लिए कि इन महान लोगों में सबसे बुद्धिमान कौन है। सभी लोगों को एक परीक्षा दी और सभी महान लोगों को एक काला पत्थर दिखाया। और कहने लगे –
“जो कोई एक महीने में इस काले पत्थर से हीरा बना सकता है वह मेरी नजर में सबसे बुद्धिमान होगा”
हर कोई सोचने लगा कि इस काले पत्थर से हीरा कैसे बनाया जा सकता है।
कुछ लोगों ने उस पत्थर को आम जनता को यह कहकर बेचना शुरू कर दिया कि यह आसमान से आया है।और कुछ ने इसे एक रहस्यमयी पत्थर बताकर आम जनता से पैसा कमाना शुरू कर दिया।
कई बुद्धिमान लोगों ने सामान्य लोगों में कहना शुरू कर दिया कि यह आपके सभी रोगों का इलाज कर सकता है। लेकिन किसी ने भी उस पत्थर का हीरे जितना मूल्य नहीं दिया। सब लोग परेशान होकर अकबर के पास गए और कहने लगे –
“महाराज इस काले पत्थर का कौन बेफकूफ हिरे जितना मूल्य देगा “
अकबर ने जवाब दिया –
“यह आप लोगों के बस की बात नहीं है आप लोग देखते रहिये कि कैसे बीरबल इस काले पत्थर को हीरे में बदल देता है”
बीरबल ब्राह्मण पंडित का रूप बना कर दूसरे राज्य में उस पत्थर को हिरा बनाने के लिए चले गए । वहाँ पहुँचने के बाद उन्होंने वहां एक गाँव देखा जहाँ के लोग बहुत अमीर थे। गांव के बीचों बिच एक पीपल का पेड़ था जो बीरबल ने देख लिया था।
बीरबल ने रात में जाकर उस पीपल के पेड़ के निचे वह पत्थर तिलक लगा कर रख दिया और दिन में जाकर गांव के लोगों को इकट्ढा किया और कहने लगे-
“भाईयो मैं राजा अकबर के राज्य से आया हूँ”
गांव ने पूछा-
“पंडित जी आप यहाँ क्यों आये हैं “
बीरबल ने जवाब दिया-
“मेरे सपने में कल रात शनिदेव आये थे और उन्होंने मुझे कहा-
मैं उस गांव में पीपल के पेड़ के निचे एक काले पत्थर के अवतार में प्रकट हुआ हूँ जो भी मेरी पूजा करेगा और दान करेगा मैं उसके सभी संकट हर लूंगा”
बस बीरबल की उस चालाकी से लोग उस पत्थर की पूजा करने लगे और वह दान भी करने लगे। सिर्फ एक महीने में बीरबल के पास दान में दिए इतने पैसे हो गए कि उसने उनसे हिरा खरीद लिया।
बीरबल वहां से अपने राज्य में वापिस चले गए और हिरा जाकर अकबर को दे दिया सभी अचम्भित हो गए फिर बीरबल ने बताया कि मैंने उस काले पत्थर से हिरा कैसे बनाया। सभी ने बीरबल की बुद्धि को मान लिया।
अकबर ने खुश होकर कहा बीरबल हमारे राज्य का वह हिरा है जिसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती।
बीरबल और सोने का अंडा देने वाली मुर्गी
एक समय की बात है जब राजा अकबर एक महीने के लिए अपने राज्य में भ्रमण करने के लिए गए। कही राज गद्दी खाली न रह जाये इसलिए उन्होंने 1 महीने के लिए सलीम को राज सिंहासन की जिम्मेवारी सौंपी जिसमे बीरबल को उनके साथ मिलकर सही निर्णय लेने का काम करना था। सलीम अभी नादान था।
अकबर के राज्य भ्रमण के जाने के बाद राज्य के रसोइये ने एक विचित्र बात सलीम के दरबार में बताई। उसने कहा – राजकुमार सलीम मैंने जो मुर्गियां पाली थी उनमे से एक मुर्गी सोने का अण्डा देती है।
सलीम ने बीरबल की सलाह के अनुसार वह मुर्गी दरबार में मंगवाई और उसके द्वारा दिया गया अंडा भी मगवाया। बीरबल को यकीन नहीं हो रहा था कि यह मुर्गी सोने का अंडा दे सकती है।
बीरबल को संदेह हुआ। इसलिए बीरबल ने उस मुर्गी को एक अँधेरे और बिलकुल बंद कमरे ने रखने को कहा जिसके अंदर किसी को भी जाने की अनुमति नहीं थी सिर्फ मुर्गी को दाना डालने के लिए रसोइये को उस कमरे में जाने अधिकार था।
बीरबल उस कमरे का ध्यान रखता और जब रसोइया मुर्गी के पास दाना डालने के लिए जाता तो उसकी अच्छे से तलाशी ली जाती कि कहीं रसोइया ही इस मुर्गी के निचे अण्डा तो नहीं रखता। लेकिन जब बीरबल अगले दिन उस मुर्गी के कमरे में जाते हैं और देखते हैं कि क्या सच में मुर्गी सोने का अंडा देती है ?
उन्होंने देखा कि सच मुच मुर्गी ने दो सोने के अंडे दिए थे बीरबल आश्चर्य चकित थे कि एक मुर्गी सोने का अंडा कैसे दे सकती है। बीरबल ने यह बात सभी को बता दी। एक दिन दूसरे राज्य का राजा जिसका नाम आदिराज था। दरबार में आया और कहने लगा –
राजकुमार सलीम हम अपने राज्य का एक हिस्सा जो आपकी सरहद पर लगता है और आपके पिता अकबर उसे बहुत पहले से लेना चाहते थे, वह हम बेचना चाहते हैं। मैंने यह भी सुना है कि आपके पास सोने के अंडे देने वाली मुर्गी भी है तो आप उस जमीन का बहुत अच्छा दाम दे सकते हैं।
सलीम ने सोचा कि अगर मैं इस जमीन को खरीद लूंगा तो मेरे पिता जी बहुत खुश होंगे और मेरे पास तो अब सोने का अंडा देने वाली मुर्गी भी है।
लेकिन उस ज़मीन की कीमत इतनी थी कि अकबर का पूरा धन खत्म हो जाता और जब धन खत्म होता तो कोई भी उनके ऊपर आक्रमण कर सकता था।
बीरबल ने खतरा भांप लिया और सलीम से कहा –
राजकुमार निर्णय लेने में जल्दबाजी न करें।
सलीम ने वैसा ही किया। बीरबल ने उस मुर्गी की सचाई जानने का निर्णय लिया और मुर्गी के कमरे में छिप कर बैठ गए।
बीरबल ने देखा कि राजा आदिराज का पाला हुआ बाज वहां अंडे लेकर रोशनदान से आता था और रसोइया उन्हें मुर्गी की टोकरी में रख देता था बीरबल को अब पता चल चूका था कि माज़रा क्या है।
बीरबल ने यह बात किसी को नहीं बताई और अलगे दिन आदिराज को सभा में यह कहकर बुलाया कि हम आपकी जमीन खरीद लेंगे उसी दिन राजा अकबर भी राज्य का भ्रमण करके वापिस आ गए। बीरबल ने सभी के सामने आदिराज का पर्दाफाश किया। अकबर पूछते हैं कि –
मेरे जाने के बाद क्या हुआ था ?
बीरबल ने जवाब दिया –
महाराज हमारे रसोइये ने हमारे साथ धोख किया है उसने राजा आदिराज के साथ मिलकर सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का षड्यंत्र रच कर हमारे खजाने को खाली करके हमारे राज्य पर आक्रमण करने की सलाह बनाई थी। अगर सलीम वह जमीन खरीद लेता तो हमारा खजाना खत्म हो जाता और राजा आदिराज की सेना हमपर आक्रमण देती।
अकबर के आदेशानुसार रसोइये और राजा आदिराज को बंदी बना लिया गया। इस मुश्किल का हल बीरबल के आलावा कोई और नहीं निकाल सकता था। सभी ने तो समझ लिया था कि सच में यह मुर्गी सोने का अंडा देती है अकबर ने हंसते हुए राजा आदिराज से कहा-
जब तक हमारे पास बीरबल हैं हमारे राज्य को कोई हरा नहीं सकता बीरबल ने अकबर के राज्य को बहुत बड़े खतरे से बचा लिया था।
जब बीरबल खरीद लिए गए
एक समय की बात है जब हर रोज की तरह राजा अकबर की सभा लगी हुई थी। सभा खत्म ही होने वाली थी कि उन्हें एक बहुत बड़ा तोहफा अचानक से मिला।
उनका तोहफा ये था कि उनके प्रिय मित्र जो दूसरे राज्य के बहुत बड़े राजा और बहुत धनवान थे उनसे मिलने के लिए आये। अकबर बहुत खुश हुए उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
अकबर उनसे बड़ी ही ख़ुशी से गले लगे और उनकी सेवा करने के लिए अपने नौकरों से कहने लगे। उनके नौकरों ने उनकी बहुत सेवा की। लेकिन अकबर के मित्र का इरादा अच्छा नहीं था वो एक विशेष कार्य के लिए अकबर से मिलने के लिए आये थे। जब अकबर बहुत ही खुश होते हैं तो उनका मित्र कहता है – महाराज मुझे आपसे कुछ चीज खरीदनी है। अकबर कहते हैं-
अरे आप बोलिये तो आपको क्या चाहिए आप जो भी चीज मुझसे माँगेंगे मैं आपको दूंगा पर वो चीज मेरे पास होनी चाहिए। अकबर के मित्र ने कहा –
हाँ आपके पास वो चीज है पर आप मुझसे वादा कीजिये कि जो चीज मैं आपसे मांगूगा उसके लिए आप मुझे मना नहीं करेंगे।
अकबर ने सोचा अगर मैंने अपने मित्र को उसके द्वारा मांगी गयी चीज से मना किया तो उसका असर हमारी दोस्ती पर पड़ेगा। अकबर ने कहा -हाँ आप जो मांगेगे मैं आपको जरूर दूंगा।
अकबर के मित्र ने जो माँगा वह सुनकर अकबर सन्न हो गए और सोचने लगे कि मैंने अगर इन्हे यह नहीं दिया तो मेरी मित्रता खतरे में पड़ जाएगी और अगर दे दिया तो राज्य खतरे में पड़ जायेगा।
अकबर के मित्र ने जो माँगा था वह था अकबर के नवरत्नों ने से एक बीरबल। क्योंकि बीरबल ने अपनी बुद्धि से राज्य के विस्तार में बहुत बड़ी भागीदारी दी थी और हर एक मुश्किल को बड़ी ही आसानी से हल कर लेते थे। अकबर के मित्र को असल में बीरबल की बुद्धि खरीदनी थी।
अकबर ने यह बात जाकर बीरबल को बता दी और कहा – बीरबल हमें माफ़ कर देना हमारा मित्र आपको खरीदना चाहता है और मै उसे मना भी नहीं कर सकता।
बीरबल बड़ी ही दुविधा में पड़ चुके थे। बीरबल पूरी रात न सो सके। बीरबल ने इस दुविधा का बहुत ही अच्छा हल निकला और सुबह अकबर से जा कर कहा- महाराज मैं आपके मित्र के पास जाने के लिए तैयार हूँ। मैंने ऐसा हल निकला है कि वो कुछ ही दिन बाद मुझको आपके पास झोड़ कर जायेंगे।
अकबर को बीरबल के ऊपर पूरा विश्वास था। बीरबल के कहने से अकबर ने बीरबल को अपने मित्र के पास बेच दिया उनका मित्र खुश होकर अपने राज्य बीरबल को लेकर चले गए। वहां जाकर उन्होंने बीरबल को अपने खास लोगों में शामिल किया।
क्योंकि अकबर से उनके मित्र ने बीरबल को खरीद लिया था इसलिए बीरबल अकबर के मित्र का हर एक काम करते थे पर उनके द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब नहीं देते। वह राजा बीरबल से उनकी सलाह लेने की कोशिश करते पर बीरबल कुछ भी नहीं बोलते थे।
एक दिन उस राजा ने परेशान होकर बीरबल से पूछ ही लिया बीरबल तुम मरे सवालों का जवाब और हमें सलाह क्यों नहीं देते जैसे राजा अकबर को दिया करते थे। बीरबल ने जो जवाब दिया उसे सुनकर आप आश्चर्यचकित रह जाओगे बीरबल ने जवाब दिया –
राजा आपने सिर्फ पैसों से बीरबल को ख़रीदा है बीरबल की बुद्धि को नहीं। बीरबल की बुद्धि सिर्फ राजा अकबर के पास है और वो किसी भी कीमत पर नहीं खरीदी जा सकती। यह सुनकर राजा हक्का बक्का रह गया।
राजा ने सोचा अब क्या किया जाये। राजा ने बीरबल के सामने अपनी हार मान ली और बीरबल को अकबर के दरबार में छोड़ दिया। अकबर बीरबल को देखकर बहुत खुश हुए और अकबर ने बीरबल से पूछा
ऐसा तुमने क्या किया कि इतने बुद्धिमान इंसान को खरीदने के बाद भी उन्होंने तुम्हे हमारे पास छोड़ दिया। बीरबल ने जवाब दिया –
महाराज उन्होंने बीरबल को ख़रीदा था बीरबल की बुद्धि को नहीं। बस महाराज अकबर समझ चुके थे कि बीरबल जैसे बुद्धि मान इंसान को फसाना हर किसी के बस की बात नहीं है।
बीरबल की शतरंज
एक समय की बात है जब अकबर के दरबार में हर रोज की तरह सभा बड़ी जोर शोर से लगी हुई थी। अकबर के बड़े बड़े मंत्री अपने राज्य की हालत के बारे में अकबर को बता रहे थे। सोच विचार कर रहे थे और अपने विचार अकबर के सामने रख रहे थे तभी एक राजा अकबर के दरबार में अपने दो साथियों के साथ आता है और कहता है-
महाराजा अकबर मेरे साथ जो आप ये दो व्यक्ति देख रहे हैं ये दोनों मेरे मित्र हैं और मैं आपको चुनौती देने आया हूँ। अगर आपके राज्य का कोई भी व्यक्ति मेरे दोनों मित्रों में से एक को शतरंज के खेल में हरा देगा तो मैं हर साल आपको 2 लाख मोहरें दिया करूँगा अगर नहीं हरा पाए तो आपको हमारी सिमा में लगने वाली सोने की खदाने हमें देनी होंगी।
अकबर ने यह चुनौती स्वीकार नहीं की। क्योंकि उस समय बीरबल बीमार थे और राजमहल में नहीं थे राजा अकबर अपने सभी फैसले बीरबल से सोच विचार करके ही लेते थे। इस पर वह राजा कहने लगा –
अरे मैंने सुना था अकबर के राज्य में बड़े-बड़े बुद्धिमान लोग हैं पर यह तो झूठ है यहाँ तो मुझे मेरे मित्रों से शतरंज खेलने वाला कोई भी नहीं दिख रहा। दरबार में अकबर के बेटे सलीम भी मौजूद होते हैं यह सुनकर सलीम को गुस्सा आ जाता है और सलीम कहते हैं मैं तुम्हारे मित्रों को शतरंज में हराऊंगा।
पर सच तो यह था कि उस राजा के मित्रों को शतरंज में हराना किसी के बस की बात नहीं थी वे दो केवल एक दूसरे को शतरंज में हरा सकते थे। अकबर इस फैसले से बहुत परेशान हो गए। वह जानते थे कि उन्हें हराना सलीम के बस की बात नहीं है। राजा अकबर ने अपनी परेशानी बीरबल को बताई। बीरबल ने कहा – महाराज मुझे समय दीजिये।
बीरबल उन खिलाडियों बारे में जानते थे कि वे केवल एक दूसरे को ही हरा सकते हैं बाकि उन्हें कोई नहीं हरा सकता। अकबर को पूरा विश्वास था कि बीरबल इस समस्या का जरूर समाधान निकालेंगे।
अगले दिन बीरबल ने सलीम को अपनी चाल समझा दी। बस अकबर को यकीं हो चूका था कि अब सलीम उन दोनों को जरूर हरा देगा। दरबार में शतरंज लगाई गई दोनों को अलग अलग बिठाया गया।
सलीम ने बीरबल के बताये अनुसार पहली चाल चलने को कहा पहले खिलाडी ने अपनी पहली चाल चली। सलीम दूसरे खिलाडी के पास गए और पहली चाल खुद चली। फिर सलीम पहले वाले खिलाडी के पास गए और अपनी चाल चली। फिर पहले खिलाडी ने अपनी चाल चली।
उसके बाद सलीम दूसरे खिलाडी के पास गए और अपनी चाल चली। बस ऐसे ही चलता रहा सलीम पहले खिलाडी के पास चाल चलने के लिए जाते फिर दूसरे खिलाडी के पास चाल चलने के जाते।
खेलते खेलते पहले खिलाडी ने सलीम को हरा दिया और सलीम ने दूसरे खिलाडी को हरा दिया। राजा के वादे के मुताबिक सलीम ने एक खिलाडी को हरा दिया था जिससे राजा को दो लाख मोहरें अकबर को हर साल देनी पड़ी।
अब अकबर का बीरबल से सवाल यह था जो आपके दिमाग में भी होगा कि ऐसे शतरंज के खिलाडी जो आजतक किसी से नहीं हारे और जो सिर्फ आपस में ही हार सकते थे उन्हें सलीम ने कैसे हरा दिया।
बीरबल जोर जोर से हंसने लगे और कहा –जहाँपना वो राजा के मित्र असल में आपस में ही शतरंज खेल रहे थे तो उनमे से किसी एक को तो हारना ही था। अकबर कहते हैं –
अरे बीरबल क्या कह रहे हो हमारे सामने तो सलीम उन दोनों से शतरंज खेल रहा था न कि वो आपस में खेल रहे थे। इस पर बीरबल कहते हैं –
महाराज जब पहले खिलाडी ने अपनी पहली चाल चली तो दूसरे खिलाडी के पास जा कर सलीम ने वही चाल दूसरे खिलाडी के पास चली। इस तरह पहले खिलाडी की हर चाल सलीम दूसरे खिलाडी के पास चलता था। इस तरहं जब पहले खिलाडी ने सलीम को हराया ठीक वैसे ही सलीम ने दूसरे को हराया। महाराज इस तरहं वो खिलाडी आपस में ही खेल रहे थे। अकबर ने कहा –
वाह…… बीरबल जिन खिलाडियों को आजतक कोई नहीं हरा पाया उन्हें तुमने बिना खेले ही हरा दिया। क्या आपको यह अकबर बीरबल की कहानी समझ में आयी अगर आपको यह कहानी समझ में आ गई तो आप बहुत ही समझदार हैं अगर नहीं तो हमें कमेंट जरूर करें।
जब बीरबल फांसी से बचे
जैसा कि आप जानते हैं अकबर बीरबल को उनकी बुद्धि के कारन बहुत पसंद करते थे। अकबर के सभी महामंत्री बीरबल से जलते थे यह देख अकबर को बहुत बुरा लगता था। लेकिन एक दिन बात इतनी बढ़ गयी कि अकबर के साले भी बीरबल से जलने लगे और महाराजा की पत्नी से कहने लगे- बहन बीरबल में ऐसा क्या है जो हममे नहीं है। महाराज अकबर ने बीरबल को अपने सर पर चढ़ा रखा है और अपना एक महत्वपूर्ण पद दे रखा है। कृपया करके आप मुझे बीरबल की जगह दिलवाएं।
यही बात अकबर की रानी ने अकबर को बता दे दी और कहने लगी – महाराज मेरा भाई भी तो आपके राज्य में महत्वपूर्ण पद का अधिकारी है पर आप बीरबल को ही महत्वपूर्ण पद पर रखते हैं ऐसा बीरबल क्या कर सकते हैं जो मेरा भाई नहीं कर सकता ? अकबर कहते हैं –
रानी साहिबा बीरबल को महत्वपूर्ण पद देने के पीछे उनकी बुद्धि है लेकिन आपके भाई में उतनी बुद्धि नहीं है जीतनी बीरबल में। इसपर महारानी कहती हैं –महाराज आप मेरे भाई की किसी भी प्रकार की परीक्षा ले सकते हैं वो हर परीक्षा में खरे उतरेंगे। अकबर ने कहा –
ठीक है मैं तुम्हारे भाई की परीक्षा लूंगा पर इस परीक्षा में बहुत खतरा है। अकबर की रानी ने यह बात जाकर अपने भाई को बता दी और उनके भाई ने यह परीक्षा देने की ठान ली। अगले दिन अकबर ने बीरबल और महारानी के भाई को यानि अपने साले को इकट्ठा बुलाया और उन्हें एक खत दिया और कहा-
बीरबल आप दोनों को यह खत लेकर ईरान जाना है और वहां के राजा को देना है तुम दोनों को कल सुबह सूरज उगने से पहले ही निकलना होगा। अकबर के साले और बीरबल अगले दिन ईरान निकल गए और कुछ समय के बाद ईरान के राजा के महल में पहुँच गए। ईरान के राजा ने उनका बहुत ही अच्छे से स्वागत किया और कहा –
खुशकिस्मती हमारी कि महाराजा अकबर का सबसे प्रिय और बुद्धिमान व्यक्ति हमारे पास आया। फरमाईये कि आप क्या चाहते हैं ? बीरबल और अकबर का साला कहते हैं महाराज अकबर ने आपको देने के लिए एक खत भेजा है कृपया इसे पढ़ें। ईरान के राजा ने वह खत पढ़ा और खत पढ़ने के बाद कहा – सिपाहियों इन्हे गिरफ्तार कर लो। यह सुनकर बीरबल और उनका साला बहुत डर गए। ईरान के राजा ने उन्हें कहा –
आप लोगों को पूर्णिमा की सुबह फांसी दे दी जाएगी। बीरबल और अकबर के साले की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर राजा ने हमें फांसी की सजा क्यों दी। बीरबल और अकबर का साला सारी रात न सो सके। अकबर का साला पूरी रात रोते रहे लेकिन बीरबल ने फांसी से बचने का उपाय निकला और अकबर के साले से कहा –
कृपया करके रोईए मत बस जो मैं कहता हूँ वही कीजिये। बीरबल ने फांसी से बचने का रास्ता बताया। दिन बितते गए और पूर्णिमा का दिन आ गया जब अकबर के साले और बीरबल को फांसी देने के लिए ले जा रहे थे तो वे दोनों जोर-जोर से हँसते हुए और जोर-जोर से गाकर नाचते हुए जा रहे थे ईरान का राजा और बाकि सभी सैनिक उन्हें देख कर हैरान हो गए और आपस में बातें करने लगे कि आज तो इनका आखिरी दिन है और ये बेफकूफ नाचते और गाते हुए जा रहें हैं।
दोनों को फांसी देने के लिए फंदे के आगे खड़ा किया गया और ईरान के राजा ने पूछा बताओ तुम दोनों में से कौन सबसे पहले ऊपर जायेगा। दोनों यह कहकर झगड़ने लगे पहले मैं जाऊंगा पहले मैं जाऊंगा। ईरान का राजा यह देखकर हैरान हो गया और दोनों को कहने लगा –
बकवास बंद करो आखिर तुम दोनों ऊपर जाने के लिए इतने बेताब क्यों हो। इसपर बीरबल ने कहा –
महाराज अकबर ने खत में यह जरूर लिखा था कि इन दोनों को फांसी दे दी जाये पर यह नहीं लिखा कि क्यों ? मैं आपको बताता हूँ। इसके पीछे यह कारण है कि हमारे राज्य के सबसे बड़े ज्योत्स्री ने यह भविष्यवाणी की है कि अगर कोई ईरान के राजा के पास जाकर पूर्णिमा के दिन पहले फांसी पर चढ़ेगा तो अगले जन्म में वहां का राजा बन जायेगा और जो दूसरे नंबर पर फांसी चढ़ेगा वह उसका वजीर बनेगा।
यह सुनकर ईरान के राजा ने सोचा कि अगर मैंने इन्हे फांसी पर चढ़ाया तो मेरी संतानो की जगह ये यहाँ के राजा बन जायेंगे और ऐसा मैं होने नहीं दूंगा। ईरान के राजा के सभी मंत्रियों ने उससे कहा इन्हे फांसी मत दीजिये नहीं तो यह यहाँ के राजा बन जायेंगे।
इस तरह ईरान के राजा ने उन्हें फांसी नहीं दी और बीरबल ने ईरान के राजा को बड़ी ही आसानी से बेफकूफ बना दिया। दोंनो अपने राज्य में अकबर के दरबार में पहुंचे। अकबर कहने लगे –
बीरबल मुझे मांफ कर दो लेकिन यह साबित करने के लिए कि तुमसे बुद्धिमान व्यक्ति कोई नहीं है मुझे यह करना पड़ा। अकबर के साले भी बीरबल से कहने लगे-
राजा बीरबल मेरी ये जिंदगी आज से आपकी देंन है आपसे बुद्धिमान व्यक्ति कोई नहीं है। मैं तो सिर्फ आपकी जगह लेने के लिए ऐसा कर रहा था मुझे मांफ कर देना।
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