चैत्र पुर्णिमा व्रत कथा | chaitra purnima vrat katha in hindi

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एक नजर मे चैत्र पुर्णिमा

चैत्र हिंदू पंचांग का पहला मास है। इसी महीने से भारतीय नववर्ष आरम्भ होता है। हिंदू वर्ष का पहला मास होने के कारण चैत्र की बहुत ही अधिक महता है। अनेक पर्व इस मास में मनाये जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णिमा, चित्रा नक्षत्र में होती है इसी कारण इसका महीने का नाम चैत्र पड़ा।

मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। वहीं सतयुग का आरम्भ भी चैत्र माह से माना जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी महीने की प्रतिपदा को भगवान विष्णु के दशावतारों में से पहले अवतार मतस्यावतार अवतरित हुए एवं जल प्रलय के बीच घिरे मनु को सुरक्षित स्थल पर पहुँचाया था, जिनसे प्रलय के पश्चात नई सृष्टि का आरम्भ हुआ।

उपर दी गयी जानकारी विकिपीडिया से ली गयी है।


चैत्र पुर्णिमा व्रत कथा (chaitra purnima vrat katha in hindi)

पैराणिक कथा के अनुसार एक नगर में सेठ-सेठानी रहते थे। सेठानी रोजाना भगवान श्री हरि की पूजा भक्ति-भाव से किया करती, लेकिन सेठानी का पूजा करना उसके पति को बिल्कुल पसंद नहीं था। इस कराण एक दिन सेठ ने उसे घर से निकाल दिया। सेठानी घर से निकलकर जंगल की ओर चल दी। रास्ते में सेठानी ने देखा कि जंगल में चार आदमी मिट्टी खोद रहे हैं, ये देखकर सेठानी ने उनसे बोला कि आप लोग मुझे किसी काम पर रख लो।  

सेठानी के कहने पर उन्होंने सेठानी को नौकरी पर रख लिया। लेकिन सेठानी बहुत कोमल थी, इस वजह से उसके हाथ पर छाले पड़ गए। यह देख चारों आदमी ने सोठानी से काम छोड़ने की बात कही। उन्होंने कहा कि इसकी जगह तुम हमारे घर का काम कर दो। सेठानी के मान जाने पर वे उसे अपने घर ले गए। वहां वे चारों आदमी चार मुट्ठी चावल लाते और उसे बांटकर खा लेते। ये देख सेठानी को बहुत बुरा लगता। इसे देख सेठानी ने उन चारों आदमी को 8 मुट्ठी चावल लाने को कहा सेठानी की बात मानकर चारों आदमी 8 मुट्ठी चावल लाए।

इन चावलों का सेठानी ने भोजन बनाया और भगवान विष्णु को भोग लगाकर सभी आदमियों को परोस दिया। इस बार चारों आदमियों को भोजन बहुत स्वादिष्ट लगा और सेठानी से खाने की तारीफ करते हुए इसका राज पूछा। तो सेठानी ने कहा कि ये भोजन भगवान विष्णु का झूठा है। इसी वजह से ये आपको स्वादिष्ट लग रहा है। उधर, सेठानी के जाने के बाद से सेठ भूखा रहने लगा। आसपास के लोग उसे ताने मारने लगे कि ये पत्नी की वजह से ही खाना खा रहा था। लोगों की बातें सुनकर सेठ सेठानी को जंगल में देखने निकल गया। रास्ते में उसे वही चार आदमी मिट्टी खोदते हुए दिखाई दिए। सेठ ने उन्हें कहा कि तुम मुझे काम पर रख लो। 

तब चारों आदमी ने उसे भी काम पर रख लिया। लेकिन सेठानी की तरह मिट्टी खोदने से सेठ के हाथों में भी छाले पड़ गए। ये देखकर उन्होंने सेठ को भी घर का काम करने की सलाह दी। सेठ भी उनकी बात मानकर उनके घर चल दिया। घर पहुंचकर सेठ ने सेठानी को पहचान लिया, लेकिन सेठानी घूंघट में होने के कारण सेठ को पहचान नहीं पाई। हर दिन की तरह इस बार भी सेठानी ने भगवान विष्णु को भोग लगाकर सभी को खाना परोस दिया। लेकिन जैसे ही सेठानी सेठ को खाना परोसने लगी, तो भगवान विष्णु ने सेठानी का हाथ पकड़ लिया और कहा कि ये तुम क्या कर रही हो। सेठानी बोली, मैं कुछ नहीं कर रही, मैं तो भोजन परोस रही हूं।

चारों भाइयों ने सेठानी से कहा कि हमें भी भगवान विष्णु के दर्शन कराओ। सेठानी के अनुरोध करने पर भगवान विष्णु उन सभी के सामने प्रकट हो गए। यह देख सेठ ने सेठानी से क्षमा मांगी और उसे हाथ पकड़कर घर चलने को कहा। तब चारों भाइयों ने बहन को बहुत सारा धन देकर विदा किया। तब से सेठ भी भगवान विष्णु का भक्त बन गया और पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा करने लगा। इससे उसके घर में फिर से धन की बरसात होने लगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सत्यनारायण भगवान के साथ हनुमान जी, प्रभु श्री राम और माता सीता की कृपा भी प्राप्त होती है। 

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