Chanakya thoughts In Hindi
चाणक्य का जन्म एक बहुत ही निर्धन परिवार में 400 ईसा पूर्व में हुआ था। उनका स्वाभाव बचपन से ही बहुत उग्र था इसलिए उन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है तथा उन्हें विष्णु गुप्त के नाम से भी जाना जाता था। चाणक्य ने उस समय के महान शिक्षा के केंद्र में शिक्षा ग्रहण की थी। उनका रंग काला था तथा रूप के बदसूरत थे। इस लेख में Chanakya thoughts के साथ उनकी Image भी आपको प्राप्त हो जाएगी।
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“कार्य करते समय जो कार्य बिगड़ जाये उसको देखकर ठीक करने का प्रयत्न करना चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
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“लालच के कारण मनुष्य की बुद्धि सही दिशा में सोचने में असमर्थ रहती है, उसके लिए वस्तुओं की प्राप्ती महत्वपूर्ण होती है, परिणाम नहीं।” ~ आचार्य चाणक्य
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“मनुष्य को दान उतना ही करना चाहिए, जीतनी उसमे शक्ति हो, शक्ति से अधिक दान देने से हानि होती है।” ~ आचार्य चाणक्य
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“जिस व्यक्ति में धैर्य नहीं होता उसमे कार्य करने की शक्ति नष्ट हो जाती है।” ~ आचार्य चाणक्य
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“लालची को धन देकर, अभिमानी को जोड़कर, मुर्ख को उसकी इच्छानुसार काम करके और विद्वान को सच्ची बात बता कर वश में करना चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
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“अच्छी प्रकार से सोच-समझकर तथा अवसर को पहचानने के बाद जो व्यक्ति कार्य करता है, उसे ही सफलता प्राप्त होती है। ” ~ आचार्य चाणक्य
“शत्रु को अपनी दुर्बलताओं का परिचय नहीं देना चाहिए। ऐसा प्रयास करना चाहिए कि अपनी दुर्बलताएँ शत्रु के सामने प्रकट न हो।” ~ आचार्य चाणक्य
“काम छोटा हो या बड़ा व्यक्ति को शुरू से ही उसमे अपनी पूरी शक्ति लगा देनी चाहिए। यह गुण हमे शेर से सीखना चाहिए। ” ~ आचार्य चाणक्य
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“समय पर जगाना, युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहना, अपने साथियों को उचित हिस्सा देना ये बातें हमें मुर्गे से सीखनी चाहिए। ” ~ आचार्य चाणक्य
“समय-समय पर वस्तुएं इकट्ठी करना, हमेशा सावधान रहना और किसी दूसरे पर पूरी तरहं विश्वास न करना ये पांच बातें कौए से सीखनी चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
“अधिक भोजन की क्षमता होने पर भी कम भोजन में संतुष्ट हो जाना, जरा सी आहट से नींद से जाग जाना, मालिक से प्रेम करना और बहादुरी से लड़ना ये गुण कुत्ते से सिखने चाहिए। ” ~ आचार्य चाणक्य
“थके रहने पर भी मेहनत करना, सर्दी गर्मी की चिंता न करना और अपने जीवन से संतुष्ट रहना यह गुण हमें गधे से सिखने चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
“बारिश के पानी के जैसा दूसरा कोई जल शुद्ध नहीं, आत्मबल के समान कोई दूसरा बल नहीं और अन्न के जैसा कोई दूसरा प्रिय पदार्थ नहीं। ” ~ आचार्य चाणक्य
“किसी भी चीज से लगा घाव भर जाता है परन्तु कठोर वाणी का घाव दिल पर हमेशा रहता है। कठोर बातें बोलना एक प्रकार का व्यसन है।” ~ आचार्य चाणक्य
“मनुष्य के मन की इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती, क्योंकि वो भाग्य के अधीन होती हैं। इसलिए मनुष्य को धैर्य धारण करना चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
“ज्ञानी पुरुषों को किसी प्रकार का भय नहीं होता है।” ~ आचार्य चाणक्य
“दुष्ट व्यक्ति से किसी प्रकार की भलाई की आशा नहीं रखनी चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
“मनुष्य को अत्यंत सरल और सीधा भी नहीं बनना चाहिए। क्योंकि वन में सीधे वृक्ष काट दिए जाते हैं परन्तु टेढ़े-मेढे वृक्ष खड़े रहते हैं।” ~ आचार्य चाणक्य
“जो व्यक्ति अपने कर्तव्य को नहीं पहचानता वह आंखें होते हुए भी अँधा है।” ~ आचार्य चाणक्य
“जो व्यक्ति बिना सोचे कार्य करता है, लक्ष्मी उसका त्याग कर देती है।” ~ आचार्य चाणक्य
“बुरी लत में पड़ा हुआ व्यक्ति किसी एक बात पर ध्यान न देने के कारण अपने कर्तव्य को भूल जाता है।” ~ आचार्य चाणक्य
“समय का सही प्रयोग न करने वाला व्यक्ति अपना जीवन निर्विघ्न होकर नहीं गुजार सकता।” ~ आचार्य चाणक्य
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“मनुष्य में यदि कोई एक बड़ा दोष हो तो वह बहुत से गुणो को दोष में बदल देता है।” ~ आचार्य चाणक्य
“अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गाये, कुंवारी कन्या, बूढ़ा आदमी और छोटे बच्चे इन सबको कभी भी पैर से नहीं छूना चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
“शांति से बढ़कर कोई तप नहीं, संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं, चाह से बढ़कर कोई रोग नहीं और दयालुता से बढ़कर कोई धर्म नहीं।” ~ आचार्य चाणक्य
“मनुष्य की देह अगर सुंदर है, लेकिन उसमें गुणों का अभाव है तो वह सौन्दर्य किसी काम का नहीं।” ~ आचार्य चाणक्य
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“यदि तू सफलता चाहता है तो बुरे व्यसनों और बुरी आदतों को विष के समान समझ कर उनका त्याग कर दे।” ~ आचार्य चाणक्य
“शत्रु पर आपत्ति आने की बात सुनकर प्राय सभी व्यक्तियों को प्रसन्ता होती है।” ~ आचार्य चाणक्य
“अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के स्थान पर क्षमा का प्रदर्शन करना अत्यधिक प्रशंसनीय कार्य है।” ~ आचार्य चाणक्य
“शास्त्रों के ज्ञान से इंद्रियों को शांत अथवा उन्हें अपने वश में रखा जा सकता है।” ~ आचार्य चाणक्य
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“शिक्षा मनुष्य का ऐसा गुप्त धन है जिसे चोर भी चुरा नहीं सकता। इसलिए शिक्षा को सवर्श्रेष्ठ धन माना जाता है।” ~ आचार्य चाणक्य
“चुगलखोर या दूसरों का दोष निकालने वाले व्यक्तियों को गुप्त नहीं बतानी चाहिए। उन्हें बताई गयी गुप्त बात गुप्त नहीं रहती।” ~ आचार्य चाणक्य
“कोई भी कार्य शुरू करने के बाद उसे पूरा करने में देरी या आलस्य नहीं करना चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
“विपत्ति के समय जब व्यक्ति को सारा संसार अकेला छोड़ देता है तो उस समय सहानुभूति रखने वाला ही मित्र कहलाता है।” ~ आचार्य चाणक्य
“अपनी योजना के भेद प्रकट होने के सभी मार्गों को रोककर उसकी रक्षा करनी चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
“दूसरे के गुणों से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। ” ~ आचार्य चाणक्य
“विद्यार्थी के लिए आवश्यक है कि वह क्रोध, लोभ, स्वादिष्ट पदार्थों की इच्छा, श्रृंगार और अधिक सोना इन बातों का त्याग कर दे। ” ~ आचार्य चाणक्य
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“देवता, सज्जन और पिता स्वभाव से संतुष्ट होते हैं। मेहमान और मित्र आदि खानपान से और विद्वान केवल मीठी बातों से प्रसन्न हो जाते हैं। ” ~ आचार्य चाणक्य
“दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन तथा आपत्तियां ये मनुष्य के अधर्म रूपी वृक्ष के फल हैं” ~ आचार्य चाणक्य
“जिस व्यक्ति के मन में प्राणियों के कष्टों को देखकर दया के भाव आते हैं, उसे ज्ञान और मोक्ष प्राप्त करने के लिए तप की आवश्यकता नहीं हैं। ” ~ आचार्य चाणक्य
“जो विद्या पुस्तकों तक ही सीमित है और जो धन दूसरों के पास पड़ा है, आवशयकता पड़ने पर न तो वह विद्या काम आती है न ही वह धन।” ~ आचार्य चाणक्य
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“मनुष्य को हर सुबह पूरे दिन के कार्यों संबंध विचार करना चाहिए।” ~ आचार्य चाणक्य
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“कठोर वचन बोलने वाला व्यक्ति पूरे कुल को कलंकित कर देता है।” ~ आचार्य चाणक्य
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“धन से धर्म की, योग से विद्या की और अच्छी स्त्रियों से घर की रक्षा होती है।” ~ आचार्य चाणक्य
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“इन्द्रियों को वश में रखना तप का सार है।” ~ आचार्य चाणक्य