देवशयनी एकादशी व्रत कथा (2023) | devshayani ekadashi vrat katha

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एक नजर मे देवशयनी एकादशी

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं।

सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।

देवशयनी एकादशी व्रत कथा (devshayani ekadashi vrat katha)

पौरा‍णिक कथाओ के अनुसार सतयुग मे मांधवा नाम का राजा राज करता था। उस राजा के राज्‍य मे तीन साल तक वर्षा नहीं हुई। जिस कारण से राज्‍य मे बहुत भंयकर आकाल पड गया। सारी भूमि सूखी पड गई। भूमि बंजर होने लगी। राज्‍य की प्रजा परेशान होकर राजा के पास गई, उन्‍हें अपना सारा दु:ख बतलाया। वहां राजा भी बहुत चिंति‍त थे।

राजा माधवा को लगता था कि आखिर हमने ऐसा कौनसा पाप कर दिया जिसकी सजा भगवान हमे दे रहा है। इस विपत्‍ती से बाहर निकलने के लिए राजा मांधवा अपने सैनिको के साथ

के पुत्र अंगिरा ऋषि के पास गये। ऋषिवर ने उनसे पुछा कि हे राजन तुम्‍हारे यहां आने का कारण क्‍या है। राजा ने उनके सामने हाथ जोड कर कहा कि हे ऋषिवर मैंने हमेशा से प्रेम व निष्‍ठा से हर धर्म का पालन किया है, फिर मेरे राज्‍य की ऐसी स्थिती क्‍यों। कृपया करके आप हमारी इस समस्‍या का हल निकाले। ऋषिवर ने कहा कि हे पुत्र यह सतयुग है। यहां छोटे से छोटे पाप का बहुत बडा दण्‍ड मिलता है।

ऋषिवर ने राजा से आषाढ महिने के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने को कहा। ऋषिवर कहते है कि इस व्रत का फल भी अवश्‍य मिलेगा और इस संकट से भी मुक्ति मिलेगी। राजा ऋषिवर की बातो का अमल करते हुए वापस अपने महल को लौट आए और उन्‍होंने ऋषिवर के कहे अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत किया। उसके बाद राज्‍य में मुसलाधार वर्षा हुई।

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