एक नजर मे गोगा जी
गोगाजी के बारे में कथा है जोकि विभिन्न लोकगीतों और गोगा जी के जागरण में भगत समैया द्वारा गाई जाती है कथा के अनुसार पांडवों में एक पांडव अर्जुन हुए अर्जुन के पुत्र वीर अभिमन्यु थे। जिनका विवाह मत्सय नरेश के पुत्री उत्तरा से हुआ था और इन्हीं अभिमन्यु और उत्तरा के एक पुत्र हुवे जिनका नाम परीक्षित था। एक बार राजा परीक्षित के सिर पर कलयुग सवार हो गया तब राजा में कलयुग के प्रभाव में आकर एक ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया।
जब ऋषि के पुत्र को इस घटना का पता चला उसने राजा को शाप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मरा हुआ सर्प डाला है उसको आज से सातवें दिन तक्षक नाग काट खाएगा राजा को जब इस बात का पता चला तब उसने अपने लिए एक सात मंजिला महल तैयार करवाया। लेकिन कड़े पहरे के बावजूद भी तक्षक नाग महल में पहुंच गया और राजा को सातवें दिन काट कर आसमान में उड़ गया।
जब राजा परीक्षित का पुत्र जन्मेजय राज गद्दी पर बैठा तो उसको पता चला कि उसके पिता को तक्षक ने मारा था तब उसने सर्पदमन यज्ञ का आयोजन किया जिसके कारण सारे सांप यज्ञ मे जलकर मरने लगे बाद में माता मनसा देवी के पुत्र आस्तीक के सतप्रयत्नों से नागों के प्राणों की रक्षा हुई कहते हैं कि जब राजा जन्मेजय की मृत्यु हुई तब नागों ने जनमेजय की आत्मा को पाताल लोक में कैद कर लिया था। कलयुग में जब माता बाछल ने गुरु गोरखनाथ जी की सेवा की तब उनकी सेवा से प्रसन्न होकर गुरु गोरखनाथ जी ने उनको तेजस्वी पुत्र का वरदान देने के लिए पाताल लोक की ओर प्रस्थान किया जहां से में राजा जन्मेजय की आत्मा को गूगल में छुपा कर जाने लगे कहते हैं।
तब नाग भी उनका पीछा कर रहे थे जब गोगा जी धरती पर आए तब भी तक्षक नाग ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनके हाथ से गूगल छीन कर निगल गया। सौभाग्य क वहां पर एक झाड़ू मारने वाला युवक साफ सफाई कर रहा था जब उसने देखा कि किसी साधु के हाथ से नाग ने कुछ वस्तु निगल ली है। तब उसमें नाग पर झाड़ू के डंडे से प्रहार किया जिसके कारण गूगल तक्षक के मुख से नीचे गिर पड़ी।
गुरु गोरखनाथ जी ने गूगल उठाई और और झाड़ू मारने वाले को वरदान भी दिया के इस गूगल से उत्पन्न बालक बड़ा ही सिद्ध पुरुष होगा जिस के भजनों को तुम लोग गाया करोगे।
ऐसा कहकर गुरु गोरखनाथ जी वहां से अंतर्ध्यान हो गए। उसी झाड़ू मारने वाले के वंश को आज समइया कहा जाता है। यही लोग गोगा जी के जागरण को अपनी भाषा मे गाकर सुनाते हैं। तक्षक नाग भी निराश होकर पाताल को लौट गया इस प्रकार राजा जन्मेजय ही गोगाजी के नाम से विख्यात हुए।
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गोगा जी की मृत्यु कैसे हुई
लोक कथाओं के अनुसार, गोगा जी के भाइयों (अर्जुन सरजून) ने उनसे राजपाठ हासिल करने के लिए दिल्ली के राजा के साथ मिलकर हमले की योजना बनाई। यह बात गोगा जी ने अपनी माँ को बताई। बहुत समझने के बाद भी अर्जुन सरजून नहीं माने। इसलिए आखिर मे युद्ध करने का निर्णय लिए गया।
दिल्ली के राजा और अर्जुन सरजून ने मिल कर गोगा जी के राज्य पर अकर्मण कर दिया। गोगा जी ने बड़ी ही वीरता से न ही सिर्फ दिल्ली के राजा को वहाँ से खदेड़ा बल्कि इस युद्ध मे गोगा जी ने अर्जुन सरजून को मार दिया। गोगा जी जब जंग जीत कर घर वापिस जा रहे थे तब वो अपने साथ जंग की जीत की निशानी के तौर पर अर्जुन सरजून के शीश भी ले गए। जब गोगा जी की माँ ने पूछा कि क्या तुम जंग मे जीत गए हो या नहीं। तब गोगा जी ने अपनी माँ को अर्जुन सरजून के शीश दिखा दिये।
जब गोगा जी की माँ ने यह देखा तो वह बहुत क्रोधित हुई और कहने लगी तुमने अपनी मोसेरे भाइयों यानि मेरी बहन के भाइयों को मारा है इसलिए अब मुझे कभी भी अपनी शक्ल मत दिखाना। गोगा जी यह सुनकर बहुत दुखी हुए। गोगा जी अपने नीले घोड़े के साथ अपने महल से 80 किमी दूर आ गए।
गोगा जी ने निश्चय किया कि अब वह इस दुनिया मे नहीं रहेंगे। गोगा जी ने कुछ कलमे पढे और धरती मे समा गए। जहां गोगा जी धरती मे समाये थे वहाँ आज गोगा मेडी स्थित है। गोगा जी अकेले एसे पीर हैं जो हिंदुओं तथा मुसलमान दोनों मे समान रूप से पूजे जाते हैं।
वैसे तो आजकल बहुत से जगह गोगा मेडी स्थित है। कहीं कहीं तो हर गाँव की एक अलग गोगा मेडी होती है। परंतु जहां असल मे गोगा जी धरती मे समाये थे वह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। कहा जाता है गोगा जी अपने नीले घोड़े से साथ धरती मे समा गए थे। जब उन्हे भूख लगती तब वह धरती से अपना मुंह निकाल कर आसपास चार रही गायों का दूध पीते थे।
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