8 हरिओम पंवार की कविताएँ 2023 | hariom pawar ki kavita

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एक नजर मे हरिओम पंवार

हरिओम पंवार जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलन्द शहर जिले में सिकन्दराबाद के निकट बुटना गाँव में हुआ था। वे मेरठ विश्वविद्यालय के मेरठ महाविद्यालय में विधि संकाय में प्रोफेसर हैं। उन्हें भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं विभिन्न मुख्यमंत्रियों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें ‘निराला पुरस्कार’, ‘भारतीय साहित्य संगम पुरस्कार’, ‘रश्मि पुरस्कार’, ‘जनजागरण सर्वश्रेष्ठ कवि पुरस्कार’ तथा ‘आवाज-ए-हिन्दुस्थान’ आदि सम्मान प्रदान किये गये हैं

उपर दी गयी जानकारी विकिपीडिया से ली गयी है।


हरिओम पंवार की कविताएँ

मैनें क्यों गाए हैं नारे

मैंने जो कुछ भी गाया है तुम उसको नारे बतलाओ
मुझे कोई परवाह नहीं है मुझको नारेबाज बताओ
लेकिन मेरी मजबूरी को तुमने कब समझा है प्यारे |
लो तुमको बतला देता हूँ मैंने क्यूँ गाये हैं नारे ||

जब दामन बेदाग न हो जी
अंगारों में आग न हो जी
घूँट खून के पीना हो जी
जिस्म बेचकर जीना हो जी
मेहनतकश मजदूरों का भी
जब बदनाम पसीना हो जी
जनता सुना रही हो नारे
संसद भुना रही हो नारे
गम का अँगना दर्द बुहारे
भूखा बचपन चाँद निहारे
कोयल गाना भूल रही हो
ममता फाँसी झूल रही हो
मावस के डर से भय खाकर,
पूनम चीख़े और पुकारे
हो जाएँ अधिकार तुम्हारे
रह जाएँ कर्तव्य हमारे
छोड़ – छाड़ जीवन-दर्शन को तब लिखने पड़ते हैं नारे |
इसीलिए गाता हूँ नारे इसीलिए लिखता हूँ नारे ||

निर्वाचन लड़ते हैं नारे
चांटे से जड़ते हैं नारे
सत्ता की दस्तक हैं नारे
कुर्सी का मस्तक हैं नारे
गाँव-गली, शहरों में नारे,
सागर की लहरों में नारे
केसर की क्यारी में नारे
घर की फुलवारी में नारे
सर पर खड़े हुए हैं नारे,
दाएँ अड़े हुए हैं नारे
नारों के नीचे हैं नारे
नारों के पीछे हैं नारे
जब नारों को रोज पचाने
को खाने पड़ते हों नारे
इन नारों से जान बचाने
को लाने पड़ते हों नारे
छोड़ गीत के सम्मोहन को तब लिखने पड़ते हैं नारे |
इसीलिए गाता हूँ नारे इसीलिए लिखता हूँ नारे ||

जब चन्दामामा रोता हो
सूरज अँधियारा बोता हो
जीवन सूली-सा हो जाये,
गाजर-मूली सा हो जाये,
पूरब ज़ार-ज़ार हो जाये
पश्चिम को आरक्षण खाए
उत्तर का अलगावी स्वर हो
दक्षिण में भाषा का ज्वर हो
अपने बेगाने हो जायें
घर में ही काँटे बो जायें,
मानचित्र को काट रहे हों
भारत माँ को बाँट रहे हों
ग़ैर तिरंगा फाड़ रहे हों
अपने झण्डे गाड़ रहे हों,
जब सीने पर ही आ बैठें
भारत माता के हत्यारे
छोड़ – छाड़कर सूर-कबीरा तब लिखने पड़ते हैं नारे |
इसीलिए गाता हूँ नारे इसीलिए लिखता हूँ नारे ||

कलियाँ खिलने से घबरायें
भौंरे आवारा हो जायें
फूल खिले हों पर उदास हों,
पहरे उनके आस-पास हों
पायल सहम-सहम कर नाचे,
पाखण्डी रामायण बाँचे
कूटनीति में सब चलता हो,
मर्यादा का मन जलता हो
उल्लू गुलशन का माली हो
पहरेदारी भी जाली हो
संयम मौन साध बैठा हो
झूठ कुर्सियों पर ऐंठा हो
चापलूस हों दरबारों में,
ख़ुद्दारी हो मझ्धारों में
बलिदानी हों हारे-हारे,
डाकू भी लगते हों प्यारे
छोड़ चरित्रों की रामायण तब लिखने पड़ते हैं नारे |
इसीलिए गाता हूँ नारे इसीलिए लिखता हूँ नारे ||

कहानी कांग्रेस की कहानी  

गाँधी के विरोधियों पुजारियों का मेल है
राजनीति सांप और नेवले का खेल है

काँग्रेसियों का देखो आज तुम कमाल जी
धीरे-धीरे पूरी काँग्रेस है हलाल जी
कोई पश्चाताप नहीं ना कोई मलाल जी
क्या हुआ जो जूतियों में बाँट रही है दाल जी

कांग्रेस नेहरु और गोखले की जान थी
कांग्रेस इंदिरा जी की आन-बान-शान थी
कांग्रेस गाँधी जी तिलक का स्वाभिमान थी
कल स्वतंत्रता -सेनानी होने का प्रमाण थी

काँग्रेस अरुणा आसिफ अली का ईमान थी
कांग्रेस भारती की पूजा का सामान थी
कांग्रेस भिन्नता में एकता की तान थी
पूरे देश को जो बांध सके वो कमान थी

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस काँग्रेसी थे
टंडन जी, नरेंदर देव घोष काँग्रेसी थे
लाल बहादुर की अंतिम साँस काँग्रेस थी
लोहिया जी की भी कभी प्यास काँग्रेस थी

लाला लाजपत की चोट वाली काँग्रेस थी
हर गली-गली में वोट वाली काँग्रेस थी
जे.पी. की भी जली थी जवानी काँग्रेस में
आजादी की पली थी कहानी काँग्रेस में

काँग्रेस पार्टी जो शुरू से महान थी
जो स्वतंत्र – काल में अधिक समय प्रधान थी
काँग्रेसी टोपी कल जो शीश पे थी शेरों के
आज पैरों में है ऐरे-गैरे नत्थू खैरों के

घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
मैं भी गीत सुना सकता हूँ शबनम के अभिनन्दन के
मै भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत पढूंगा जन-गण-मन के क्रंदन के

जब पंछी के पंखों पर हों पहरे बम के, गोली के
जब पिंजरे में कैद पड़े हों सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पार हों दाग लहू की होली के
कैसे कोई गीत सुना दे बिंदिया, कुमकुम, रोली के

मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आँसू गाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

कहाँ बनेगें मंदिर-मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी
मण्डल और कमण्डल ने पी डाला आँखों का पानी
प्यार सिखाने वाले बस्ते मजहब के स्कूल गये
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गये

कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल चलें
सोन -चिरैया सूली पर है पंछी गाना भूल चले
आँख खुली तो माँ का दामन नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेदारी सौंपी घर भरने में व्यस्त मिला

क्या ये ही सपना देखा था भगतसिंह की फाँसी ने
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

एक नया मजहब जन्मा है पूजाघर बदनाम हुए
दंगे कत्लेआम हुए जितने मजहब के नाम हुए
मोक्ष-कामना झांक रही है सिंहासन के दर्पण में
सन्यासी के चिमटे हैं अब संसद के आलिंगन में

तूफानी बदल छाये हैं नारों के बहकावों के
हमने अपने इष्ट बना डाले हैं चिन्ह चुनावों के
ऐसी आपा धापी जागी सिंहासन को पाने की
मजहब पगडण्डी कर डाली राजमहल में जाने की

जो पूजा के फूल बेच दें खुले आम बाजारों में
मैं ऐसे ठेकेदारों के नाम बताने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

कोई कलमकार के सर पर तलवारें लटकाता है
कोई बन्दे मातरम के गाने पर नाक चढ़ाता है
कोई-कोई ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई गंगा-यमुना अपने घर में भरने लगता है

कोई तिरंगे झण्डे को फाड़े-फूंके आजादी है
कोई गाँधी जी को गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोंप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में
कोई ढाँचे का गिरना यू. एन. ओ. में ले जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है

लेकिन सौ गाली होते ही शिशुपाल कट जाते हैं
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है
तो बगुला भगतों की टोली हंसों को खा जाती है
इनको कोई सजा नहीं है दिल्ली के कानूनों में
न जाने कितनी ताकत है हर्षद के नाखूनों में

जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तब माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब-जब भी जयचंदों का अभिनन्दन होने लगता है
तब-तब साँपों के बंधन में चन्दन रोने लगता है

जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते हैं
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते हैं
सिंहों को ‘म्याऊं’ कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है

कहते हैं यदि सच बोलो तो प्राण गँवाने पड़ते हैं
मैं भी सच्चाई गा-गाकर शीश कटाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

‘भय बिन होय न प्रीत गुसांई’ – रामायण सिखलाती है
राम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है
जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं
तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं

केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
और कला की नगरी मुंबई लोहू में सन जाती है

राजमहल के सारे दर्पण मैले-मैले लगते हैं
इनके ख़ूनी पंजे दरबारों तक फैले लगते हैं
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है

पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
ऊधम सिंह अब भी जीवित है ये समझाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

घाटी के दिल की धड़कन

घाटी के दिल की धड़कन
काश्मीर जो खुद सूरज के बेटे की रजधानी था
डमरू वाले शिव शंकर की जो घाटी कल्याणी था
काश्मीर जो इस धरती का स्वर्ग बताया जाता था
जिस मिट्टी को दुनिया भर में अर्ध्य चढ़ाया जाता था
काश्मीर जो भारतमाता की आँखों का तारा था
काश्मीर जो लालबहादुर को प्राणों से प्यारा था
काश्मीर वो डूब गया है अंधी-गहरी खाई में
फूलों की खुशबू रोती है मरघट की तन्हाई में

ये अग्नीगंधा मौसम की बेला है
गंधों के घर बंदूकों का मेला है
मैं भारत की जनता का संबोधन हूँ
आँसू के अधिकारों का उदबोधन हूँ
मैं अभिधा की परम्परा का चारण हूँ
आजादी की पीड़ा का उच्चारण हूँ

इसीलिए दरबारों को दर्पण दिखलाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

बस नारों में गाते रहियेगा कश्मीर हमारा है
छू कर तो देखो हिम छोटी के नीचे अंगारा है
दिल्ली अपना चेहरा देखे धूल हटाकर दर्पण की
दरबारों की तस्वीरें भी हैं बेशर्म समर्पण की

काश्मीर है जहाँ तमंचे हैं केसर की क्यारी में
काश्मीर है जहाँ रुदन है बच्चों की किलकारी में
काश्मीर है जहाँ तिरंगे झण्डे फाड़े जाते हैं
सैंतालिस के बंटवारे के घाव उघाड़े जाते हैं
काश्मीर है जहाँ हौसलों के दिल तोड़े जाते हैं
खुदगर्जी में जेलों से हत्यारे छोड़े जाते हैं

अपहरणों की रोज कहानी होती है
धरती मैया पानी-पानी होती है
झेलम की लहरें भी आँसू लगती हैं
गजलों की बहरें भी आँसू लगती हैं

मैं आँखों के पानी को अंगार बनाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

काश्मीर है जहाँ गर्द में चन्दा-सूरज- तारें हैं
झरनों का पानी रक्तिम है झीलों में अंगारे हैं
काश्मीर है जहाँ फिजाएँ घायल दिखती रहती हैं
जहाँ राशिफल घाटी का संगीने लिखती रहती हैं
काश्मीर है जहाँ विदेशी समीकरण गहराते हैं
गैरों के झण्डे भारत की धरती पर लहरातें हैं

काश्मीर है जहाँ देश के दिल की धड़कन रोती है
संविधान की जहाँ तीन सौ सत्तर अड़चन होती है
काश्मीर है जहाँ दरिंदों की मनमानी चलती है
घर-घर में ए. के. छप्पन की राम कहानी चलती है
काश्मीर है जहाँ हमारा राष्ट्रगान शर्मिंदा है
भारत माँ को गाली देकर भी खलनायक जिन्दा है
काश्मीर है जहाँ देश का शीश झुकाया जाता है
मस्जिद में गद्दारों को खाना भिजवाया जाता है

गूंगा-बहरापन ओढ़े सिंहासन है
लूले – लंगड़े संकल्पों का शासन है
फूलों का आँगन लाशों की मंडी है
अनुशासन का पूरा दौर शिखंडी है

मै इस कोढ़ी कायरता की लाश उठाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

हम दो आँसू नहीं गिरा पाते अनहोनी घटना पर
पल दो पल चर्चा होती है बहुत बड़ी दुर्घटना पर
राजमहल को शर्म नहीं है घायल होती थाती पर
भारत मुर्दाबाद लिखा है श्रीनगर की छाती पर
मन करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर
भारत के बेटे निर्वासित हैं अपनी ही धरती पर

वे घाटी से खेल रहे हैं गैरों के बलबूते पर
जिनकी नाक टिकी रहती है पाकिस्तानी जूतों पर
काश्मीर को बँटवारे का धंधा बना रहे हैं वो
जुगनू को बैसाखी देकर चन्दा बना रहे हैं वो
फिर भी खून-सने हाथों को न्योता है दरबारों का
जैसे सूरज की किरणों पर कर्जा हो अँधियारों का

कुर्सी भूखी है नोटों के थैलों की
कुलवंती दासी हो गई रखैलों की
घाटी आँगन हो गई ख़ूनी खेलों की
आज जरुरत है सरदार पटेलों की

मैं घाटी के आँसू का संत्रास मिटाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

जब चौराहों पर हत्यारे महिमा-मंडित होते हों
भारत माँ की मर्यादा के मंदिर खंडित होते हों
जब क्रश भारत के नारे हों गुलमर्गा की गलियों में
शिमला-समझौता जलता हो बंदूकों की नालियों में

अब केवल आवश्यकता है हिम्मत की खुद्दारी की
दिल्ली केवल दो दिन की मोहलत दे दे तैय्यारी की
सेना को आदेश थमा दो घाटी ग़ैर नहीं होगी
जहाँ तिरंगा नहीं मिलेगा उनकी खैर नहीं होगी

जिनको भारत की धरती ना भाती हो
भारत के झंडों से बदबू आती हो
जिन लोगों ने माँ का आँचल फाड़ा हो
दूध भरे सीने में चाकू गाड़ा हो

मैं उनको चौराहों पर फाँसी चढ़वाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ ||

अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
चाँद-सितारे टांक लिये हैं खून लिपि दीवारों ने
इसीलियें नाकाम रही हैं कोशिश सभी उजालों की
क्योंकि ये सब कठपुतली हैं रावलपिंडी वालों की
अंतिम एक चुनौती दे दो सीमा पर पड़ोसी को
गीदड़ कायरता ना समझे सिंहो की ख़ामोशी को

हमको अपने खट्टे-मीठे बोल बदलना आता है
हमको अब भी दुनिया का भूगोल बदलना आता है
दुनिया के सरपंच हमारे थानेदार नहीं लगते
भारत की प्रभुसत्ता के वो ठेकेदार नहीं लगते
तीर अगर हम तनी कमानों वाले अपने छोड़ेंगे
जैसे ढाका तोड़ दिया लौहार-कराची तोड़ेंगे

आँख मिलाओ दुनिया के दादाओं से
क्या डरना अमरीका के आकाओं से
अपने भारत के बाजू बलवान करो
पाँच नहीं सौ एटम बम निर्माण करो

मै भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने निकला हूँ |
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन निकला हूँ ||

मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है 

चर्चा है अख़बारों में
टी. वी. में बाजारों में
डोली, दुल्हन, कहारों में
सूरज, चंदा, तारों में
आँगन, द्वार, दिवारों में
घाटी और पठारों में
लहरों और किनारों में
भाषण-कविता-नारों में
गाँव-गली-गलियारों में
दिल्ली के दरबारों में

धीरे-धीरे भोली जनता है बलिहारी मजहब की
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की

मैं होता हूँ बेटा एक किसानी का
झोंपड़ियों में पाला दादी-नानी का
मेरी ताकत केवल मेरी जुबान है
मेरी कविता घायल हिंदुस्तान है

मुझको मंदिर-मस्जिद बहुत डराते हैं
ईद-दिवाली भी डर-डर कर आते हैं
पर मेरे कर में है प्याला हाला का
मैं वंशज हूँ दिनकर और निराला का

मैं बोलूँगा चाकू और त्रिशूलों पर
बोलूँगा मंदिर-मस्जिद की भूलों पर
मंदिर-मस्जिद में झगडा हो अच्छा है
जितना है उससे तगड़ा हो अच्छा है

ताकि भोली जनता इनको जान ले
धर्म के ठेकेदारों को पहचान ले
कहना है दिनमानों का
बड़े-बड़े इंसानों का
मजहब के फरमानों का
धर्मों के अरमानों का
स्वयं सवारों को खाती है ग़लत सवारी मजहब की |
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||

बाबर हमलावर था मन में गढ़ लेना
इतिहासों में लिखा है पढ़ लेना
जो तुलना करते हैं बाबर-राम की
उनकी बुद्धि है निश्चित किसी गुलाम की

राम हमारे गौरव के प्रतिमान हैं
राम हमारे भारत की पहचान हैं
राम हमारे घट-घट के भगवान् हैं
राम हमारी पूजा हैं अरमान हैं
राम हमारे अंतरमन के प्राण हैं
मंदिर-मस्जिद पूजा के सामान हैं

राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना
राम त्याग हैं भोग नहीं हैं सुन लेना
राम दया हैं क्रोध नहीं हैं जग वालो
राम सत्य हैं शोध नहीं हैं जग वालों
राम हुआ है नाम लोकहितकारी का
रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का

दर्पण के आगे आओ
अपने मन को समझाओ
खुद को खुदा नहीं आँको
अपने दामन में झाँको
याद करो इतिहासों को
सैंतालिस की लाशों को

जब भारत को बाँट गई थी वो लाचारी मजहब की |
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||

आग कहाँ लगती है ये किसको गम है
आँखों में कुर्सी हाथों में परचम है
मर्यादा आ गयी चिता के कंडों पर
कूंचे-कूंचे राम टंगे हैं झंडों पर
संत हुए नीलाम चुनावी हट्टी में
पीर-फ़कीर जले मजहब की भट्टी में

कोई भेद नहीं साधू-पाखण्डी में
नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में
अब निर्वाचन निर्भर है हथकंडों पर
है फतवों का भर इमामों-पंडों पर
जो सबको भा जाये अबीर नहीं मिलता
ऐसा कोई संत कबीर नहीं मिलता

जिनके माथे पर मजहब का लेखा है
हमने उनको शहर जलाते देखा है
जब पूजा के घर में दंगा होता है
गीत-गजल छंदों का मौसम रोता है
मीर, निराला, दिनकर, मीरा रोते हैं
ग़ालिब, तुलसी, जिगर, कबीरा रोते हैं

भारत माँ के दिल में छाले पड़ते हैं
लिखते-लिखते कागज काले पड़ते हैं
राम नहीं है नारा, बस विश्वाश है
भौतिकता की नहीं, दिलों की प्यास है
राम नहीं मोहताज किसी के झंडों का
सन्यासी, साधू, संतों या पंडों का

राम नहीं मिलते ईंटों में गारा में
राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में
राम मिलें हैं वचन निभाती आयु को
राम मिले हैं घायल पड़े जटायु को
राम मिलेंगे अंगद वाले पाँव में
राम मिले हैं पंचवटी की छाँव में

राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में
राम मिलेंगे बजरंगी के सीने में
राम मिले हैं वचनबद्ध वनवासों में
राम मिले हैं केवट के विश्वासों में
राम मिले अनुसुइया की मानवता को
राम मिले सीता जैसी पावनता को

राम मिले ममता की माँ कौशल्या को
राम मिले हैं पत्थर बनी आहिल्या को
राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में
राम मिले शबरी के झूठे बेरों में

मै भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ
मै भी गंगाजल की कसम उठाता हूँ
मेरी भारत माँ मुझको वरदान है
मेरी पूजा है मेरा अरमान है
मेरा पूरा भारत धर्म-स्थान है
मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है

घाटी में संघर्ष विराम

केसर घाटी में आतंकी शोर सुनाई देता है
हिजबुल लश्कर के नारों का जोर सुनाई देता है
मलय समीरा मौसम आदमखोर दिखायी देता है
लालकिले का भाषण भी कमजोर दिखायी देता है
भारत गाँधी गौतम का आलोक था
कलिंग विजय से ऊबा हुआ अशोक था
अब ये जलते हुए पहाड़ों का घर है
बारूदी आकाश हमारे सर पर है
इन कोहराम भरी रातों का ढ़लना बहुत जरुरी है
घोर तिमिर में शब्द-ज्योति का जलना बहुत जरुरी है
मैं युगबोधी कलमकार का धरम नहीं बिकने दूंगा
चाहे मेरा सर कट जाये कलम नहीं बिकने दूंगा
इसीलिए केवल अंगार लिए फिरता हूँ वाणी में
 आंसू से भीगा अखबार लिए फिरता हूँ वाणी में।

ये जो भी आतंकों से समझौते की लाचारी है
ये दरबारी कायरता है आपराधिक गद्दारी है
ये बाघों का शरण-पत्र है भेड़, शियारों के आगे
वटवृक्षों का शीश नमन है खरपतवारों के आगे
हमने डाकू तस्कर आत्मसमर्पण करते देखे थे
सत्ता के आगे बंदूकें अर्पण करते देखे थे
लेकिन अब तो सिंहासन का आत्मसमर्पण देख लिया
अपने अवतारों के बौने कद का दर्पण देख लिया
जैसे कोई ताल तलैया गंगा-यमुना को डांटे
एक तमंचा मार रहा है एटम के मुँह पर चाटें
जैसे एक समन्दर गागर से चुल्लू भर जल मांगे
ऐसे घुटने टेक रहा है सूरज जुगनू के आगे
ये कैसा परिवर्तन है खुद्दारी के आचरणों में
संसद का सम्मान पड़ा है चरमपंथ के चरणों में
किसका खून नहीं खोलेगा पढ़-सुनकर अखबारों में
सिंहों की पेशी करवा दी चूहों के दरबारों में
हिजबुल देश नहीं हत्यारी टोली है
साजिश के षड्यंत्रों की हमजोली है
जब तक इनका काम तमाम नहीं होता
उग्रवाद से युद्धविराम नहीं होता
दृढ़ संकल्पों की पतवार लिये फिरता हूँ वाणी में
चंदरबरदायी ललकार लिये फिरता हूँ वाणी में
इसीलिए केवल अंगार लिये फिरता हूँ वाणी में ।

जो घाटी में खड़े हुयें हैं हत्यारों की टोली में
खूनी छींटे छिड़क रहे हैं आँगन द्वार रंगोली में
जो पैरों से रौंद रहे हैं भारत की तस्वीरों को
गाली देते हैं ग़ालिब को तुलसी, मीर, कबीरों को
उनके पैरों बेड़ी जकड़ी जाना शेष अभी भी है
उनके फन पर ऐड़ी- रगड़ी जाना शेष अभी भी है
जिन लोगों ने गोद लिया है जिन्ना की परिपाटी को
दुनिया में बदनाम किया है पूजित पावन माटी को
जिन लोगों ने कभी तिरंगे का सम्मान नहीं सीखा
अपनी जननी जन्मभूमि का गौरवगान नहीं सीखा
जिनके कारण अपहरणों की स्वर्णमयी आजादी है
रोज गौडसे की गोली के आगे कोई गाँधी है
जिन लोगों का पाप खुदा भी माफ़ नहीं कर सकते हैं
जिनका दामन सात समन्दर साफ़ नहीं कर सकते हैं
जो दुश्मन के हित के पहरेदार बताएं जाते हैं
जो सौ – सौ लाशों के जिम्मेदार बताये जाते हैं
जो भारत के गुनाहगार हैं फांसी के अधिकारी हैं
आज उन्हीं से शांतिवार्ता करने की तयारी है
जिन लोगों ने संविधान पर थूका है
और हिन्द का अमर तिरंगा फूंका है
दिल्ली उनसे हाथ मिलाने वाली है
ये भारत के स्वाभिमान को गाली है
इस लाचारी को धिक्कार लिये फिरता हूँ वाणी में
तीखे शब्दों की तलवार लिये फिरता हूँ वाणी मे
इसीलिए केवल अंगार लिये फिरता हूँ वाणी में ।

हर संकट का हल मत पूछो, आसमान के तारों से
सूरज किरणें नहीं मांगता नभ के चाँद-सितारों से
सत्य कलम की शक्ति पीठ है राजधर्म पर बोलेगी
वर्तमान के अपराधों को समयतुला पर तोलेगी
पांचाली के चीर हरण पर जो चुप पाए जायेंगे
इतिहासों के पन्नों में वे सब कायर कहलायेंगे
बंदूकों की गोली का उत्तर सद्भाव नहीं होता
 हत्यारों के लिए अहिंसा का प्रस्ताव नहीं होता
ये युद्धों का परम सत्य है सारा जगत जानता है
लोहा औरलहू जब लड़ते हैं तो लहू हारता है
जोखूनी दंशों को सहने वाला राजवंश होगा
 या तो परम मूर्ख होगा या कोई परमहंस होगा
आतंकों से लड़ने के संकल्प कड़े करने होंगे
हत्यारे हाथों से अपने हाथ बड़े करने होंगे
कोई विषधर कभी शांति के बीज नहीं बो सकता है
एक भेडिया शाकाहारी कभी नहीं हो सकता है
हमने बावन साल खो दिए श्वेत कपोत उड़ाने में
खूनी पंजों के गिद्धों को गायत्री समझाने में
एक बार बस एक बार इन अभियानों को झटका दो
लाल चौक में देशद्रोहियों को सूली पर लटका दो
हर समझौता चक्रव्यूह बन जाता है
बार-बार अभिमन्यु मारा जाता है
अब दिल्ली सेना के हाथ नहीं बांधे
अर्जुन से बोलो गांडीव धनुष साधे
घायल घाटी का उपचार लिए फिरता हूँ वाणी में
बोस-पटेलों की दरकार लिए फिरता हूँ वाणी में
इसीलिए केवलअंगार लिए फिरता हूँ वाणी में ।

शिव-शंकर जी की धरती ने कितना दर्द सहा होगा
जब भोले बाबा के भक्तों का भी खून बहा होगा
दिल दहलाती हैं करतूतें रक्षा करने वालों की
आँखों में आंसू लाती हैं हालत मरने वालों की
काश्मीर के राजभवन से आज भरोसे टूट लिये
लाशों के चूड़ी कंगन भी पुलिसबलों ने लूट लिये
ये जो ऑटोनोमी वाला राग अलापा जाता है
गैरों के घर भारत माँ का दामन नापा जाता है
ये जो कागज के शेरों की तरह दहाडा जाता है
गड़े हुए मुर्दों को बारम्बार उखाड़ा जाता है
इस नौटंकी का परदा हट जाना बहुत लाजमी है
जाफर जयचंदों का सर कट जाना बहुत लाजमी है
कोई सपना ना देखे हम देश बाँट कर दे देंगे
हाथ कटाए बैठे हैं अब शीश काटकर दे देंगे
शेष बचा कश्मीर हमारे श्रीकृष्ण की गीता है
सैंतालिस में चोरी जाने वाली पावन सीता है
अगर राम का सीता को वापस पाना मजबूरी है
 तो पाकिस्तानी रावण का मरना बहुत जरुरी है
धरती-अम्बर और समन्दर से कह दो
दुनिया के हर पञ्च सिकन्दर से कह दो
कोई अपना खुदा नहीं हो सकता है
काश्मीर अब जुदा नहीं हो सकता है
अपना कश्मीरी अधिकार लिए फिरता हूँ वाणी में
अपनी भारत माँ का प्यार लिए फिरता हूँ वाणी में
इसीलिए केवल अंगार लिए फिरता हूँ वाणी में।

मै मरते लोकतन्त्र का बयान हूँ 

मेरा गीत चाँद है ना चाँदनी
न किसी के प्यार की है रागिनी
हंसी भी नही है माफ कीजिये
खुशी भी नही है माफ कीजिये
शब्द – चित्र हूँ मैं वर्तमान का
आइना हूँ चोट के निशान का
मै धधकते आज की जुबान हूँ
मरते लोकतन्त्र का बयान हूँ

कोइ न डराए हमे कुर्सी के गुमान से
और कोइ खेले नही कलम के स्वाभिमान से
हम पसीने की कसौटियों के भोजपत्र हैं
आंसू – वेदना के शिला- लेखों के चरित्र हैं
हम गरीबों के घरों के आँसुओं की आग हैं
आन्धियों के गाँव मे जले हुए चिराग हैं

किसी राजा या रानी के डमरु नही हैं हम
दरबारों की नर्तकी के घुन्घरू नही हैं हम
सत्ताधीशों की तुला के बट्टे भी नही हैं हम
कोठों की तवायफों के दुपट्टे भी नही हैं हम
अग्निवंश की परम्परा की हम मशाल हैं
हम श्रमिक के हाथ मे उठी हुई कुदाल हैं
ये तुम्हारी कुर्सियाँ टिकाऊ नही हैं कभी
औ हमारी लेखनी बिकाऊ नही है कभी
राजनीति मे बडे अचम्भे हैं जी क्या करें
हत्यारों के हाथ बडे लम्बे हैं जी क्या करें
आज ऐरे गैरे- भी महान बने बैठे हैं
जाने- माने गुंडे संविधान बने बैठे हैं

आज ऐसे – ऐसे लोग कुर्सी पर तने मिले
जिनके पूरे – पूरे हाथ खून मे सने मिले
डाकु और वर्दियों की लाठी एक जैसी है
संसद और चम्बल की घाटी एक जैसी है
दिल्ली कैद हो गई है आज उनकी जेब मे
जिनसे ज्यादा खुद्दारी है कोठे की पाजेब मे

दरबारों के हाल- चाल न पूछो घिनौने हैं
गद्दियों के नीचे बेइमानी के बिछौने हैं
हम हमारा लोकतन्त्र कहते हैं अनूठा है
दल- बदल विरोधी कानूनो को ये अंगूठा है
कभी पन्जा , कभी फूल, कभी चक्कर धारी हैं
कभी वामपन्थी कभी हाथी की सवारी हैं

आज सामने खडे हैं कल मिलेंगे बाजू मे
रात मे तुलेंगे सूटकेशों की तराजू मे
आत्मायें दल बदलने को ऐसे मचलती हैं
ज्यों वेश्यांये बिस्तरों की चादरें बदलती हैं
उनकी आरती उतारो वे बडे महान हैं
जिनकी दिल्ली मे दलाली की बडी दुकान है

ये वो घडियाल हैं जो सिन्धु मे भी सूखें हैं
सारा देश खा चुके हैं और अभी भूखे हैं
आसमा के तारे आप टूटते देखा करो
देश का नसीब है ये फूटते देखा करो
बोलना छोडो खामोशी का समय है दोस्तो
डाकुओं की ताजपोशी का समय है दोस्तो

काला धन 

मै अदना सा कलमकार हूँ घायल मन की आशा का
मुझको कोई ज्ञान नहीं है छंदों की परिभाषा का
जो यथार्थ में दीख रहा है मैं उसको लिख देता हूँ
कोई निर्धन चीख रहा है मैं उसको लिख देता हूँ
मैंने भूखों को रातों में तारे गिनते देखा है
भूखे बच्चों को कचरे में खाना चुनते देखा है
मेरा वंश निराला का है स्वाभिमान से जिन्दा हूँ
निर्धनता और काले धन पर मन ही मन शर्मिंदा हूँ

मैं शबनम चंदन के गीत नहीं गाता
अभिनंदन वंदन के गीत नहीं गाता
दरबारों के सत्य बताता फिरता हूँ
काले धन के तथ्य बताता फिरता हूँ

जहाँ हुकूमत का चाबुक कमजोर दिखाई देता है
काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।

जिनके सर पर राजमुकुट है वो सरताज हमारे हैं,
जो जनता से निर्वाचित हैं नेता आज हमारे हैं,
इसीलिए अब दरबारों से केवल एक निवेदन है,
काले धन का लेखा-जोखा देने का आवेदन है,
क्योंकि भूख गरीबी का एक कारण काला धन भी है,
फुटपाथों पर पली जिंदगी का हारा सा मन भी है,
सिंहासन पर आने वालो अहंकार में मत झूलो,
काले धन के साम्राज्य से आँख मिलाना मत भूलो,
भूख प्यास का आलम देखो जाकर कालाहान्डी में,
माँ बेटी को बेच रही है दिन की एक दिहाड़ी में,
झोपड़ियों की भूख प्यास पर कलमकार तो चीखेगा,
मजदूरों के हक़ की खातिर मुट्ठी ताने दीखेगा,
पूरी संसद काले धन पर मौन साधकर बैठी है,
शुक्र करो के जनता अब तक हाथ बांधकर बैठी है,
झोपड़ियों को सौ-सौ आँसू रोज रुलाना बन्द करो,
सेंसैक्स पर नजरें रखकर देश चलाना बन्द करो,
जिस दिन भूख बगावत वाली सीमा पर आ जाती है
उस दिन भूखी जनता सिंहासन को भी खा जाती है।

मैं झुग्गी झोपड़ पट्टी का चारण हूँ
मैला ढोने वालों का उच्चारण हूँ
आँसू का अग्निगन्धा सम्बोधन हूँ
भूखे मरे किसानों का उद्बोधन हूँ
संवादों के देवालय को सब्जी मंडी बना दिया
संसद में केवल कोलाहल शोर सुनाई देता है।

आज व्यवस्था का चाबुक कमजोर दिखाई देता है।
काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।।

काला धन वो धन है जिसका टैक्स बचाया जाता है
अक्सर ये धन सात समन्दर पार छुपाया जाता है
काले धन की अर्थव्यवस्था पूरा देश रुलाती है
झोपड़ पट्टी के बच्चों को खाली पेट सुलाती है
ये निर्धन के हिस्से की इमदादों को खा जाती है
मनरेगा के, अन्त्योदय के वादों को खा जाती है
बॉलीवुड की आधी दुनिया काले धन पर जिंदा है
चुपके-चुपके चोरी-चोरी दो नंबर का धंधा है
जब व्हाइट पैसे से बनती थी तो फिल्में काली थी
नैतिकता की संपोषक थी शुभ संदेशों वाली थी
काले धन की फ़िल्मी दुनिया इन्द्रधनुष रंगों में है,
पर दुनिया में जगह हमारी नंगों-भिखमंगों में है
काले धन के बल पर गुंडे निर्वाचित हो जाते हैं
भोली-भाली भूखी जनता में चर्चित हो जाते हैं
खनन माफिया काले धन के बल पर ऐंठे-ऐंठे हैं
स्विस बैंकों की संदूकों के तालों में जा बैठे हैं।

राजमहल के दर्पण मैले-मैले हैं
नौकरशाही के पंजे जहरीले हैं
शासकीय सुविधा बँट गयी दलालों में
क्या ये ही मिलना था पैंसठ सालों में
सैंतालिस में हम आजाद हुए थे आधी रजनी को
भोर नहीं आई अँधियारा घोर दिखाई देता है।
काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।

हम काले धन वालों का धन-धाम नहीं पा सकते हैं
इनकी भूख हिमालय सी है ये खानें खा सकते हैं
इनके काले तारों से तो नीलाम्बर डर सकता है
इनकी भूख मिटाने में तो सागर भी मर सकता है
अपनी माँ भारत माता से नाता तोड़ चुके हैं ये
मीर जाफरों जयचन्दों को पीछे छोड़ चुके हैं ये।

काले धन का साम्राज्य कानून तोड़ते देखा है
प्रशासनिक व्यवस्था के नाखून तोड़ते देखा है
सचिवालय इनकी सेवा में खड़ा दिखाई देता है
हसन अली भी संविधान से बड़ा दिखाई देता है
इनके बाप विदेशी खातों की सूची में बैठे हैं
ये भारत में गद्दाफी के मार्कोस के बेटे हैं
गॉड पोर्टिकल खोजा है
फ्रॉड पोर्टिकल खोजो
जो काले धन के मालिक हैं उनका आज और कल खोजो

जो काले धन के मालिक हैं नाम बताओ डर क्या है
उनको उनके कर्मों का अंजाम बताओ डर क्या है
उनके नाम छिपाना तो संवैधानिक गद्दारी है
संविधान की रक्षा करना सबकी जिम्मेदारी है
दुनिया भर के आगे हाथ पसारोगे
लेकिन काले धन की जंग नकारोगे
झोली लेकर और घूमना बंद करो
अमरीका के चरण चूमना बन्द करो
भारत को कर्जा मिलता है भारत के काले धन से

पश्चिम की दादागीरी का दौर दिखाई देता है।
काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।।

दोनों सत्ता और विपक्षी चुप्पी साधे बैठे हैं
आँखों पर गंधारी जैसी पट्टी बांधे बैठे हैं
इसीलिए अब चौराहों पर सब परदे खोलूँगा मैं
चाहे सूली पर टंग जाऊँ मन का सच बोलूँगा मैं
हो ना हो ये काले धन के खातेदार तुम्हारे हैं
या तो कोष तुम्हारा है या रिश्तेदार तुम्हारे हैं

कलम सत्य की धर्मपीठ है शिवम् सुन्दरम् गाती है
राजा भी अपराधी हो तो सीना ठोक बताती है
इसीलिए दिल्ली की चुप्पी आपराधिक ख़ामोशी है
वित्त मंत्रालय की कुर्सी कालेधन की दोषी है
मंत्रिमण्डल गुरु द्रोण सा पुत्र मोह का दोषी है
जो काले धन का मालिक है देश द्रोह का दोषी है

एफ डी आई लाने की जो कोशिश करती है दिल्ली
भारत को गिरवी रखने की कोशिश करती है दिल्ली
उससे आधी कोशिश अपना धन लाने में कर लेते
भूख गरीबी से लड़ लेते खूब खजाने भर लेते
काला धन वापस आता तो खुशहाली आ सकती थी
धन के सूखे मरुस्थलों में हरियाली आ सकती थी

लाख करोड़ों अपना दुनिया भर में है
लाख करोड़ों काला धन इस घर में है
इससे आधा भी जिस दिन पा जायेंगे
हम दुनिया की महाशक्ति बन जायेंगे
काले धन वाले बैठे हैं सोने के सिंहासन पर
भूखा बचपन उनके चारों ओर दिखाई देता है।
काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।।

काले धन पर चैनल भी आवाज उठाते नहीं मिले,
कोई स्टिंग ब्लैक मनी का राज दिखाते नहीं मिले
काश! खोजते वो नम्बर जो ब्लैक मनी तालों के हैं,
ऐसा लगता है चैनल भी काले धन वालों के हैं

काले धन पर सत्ता और विपक्षी दोनों गले मिलो
भूखी मानवता की खातिर एक मुक्कमल निर्णय लो
संसद में बस इतना कर दो छोडो सभी बहानों को
राष्ट्र संपदा घोषित कर दो सारे गुप्त खजानों को
काला धन घर में भी है उसकी रफ़्तार मंद कर दो
हज़ार पाँच सौ के नोटों का फ़ौरन चलन बंद कर दो
नकद रूपये में क्रय विक्रय की परम्परा को बंद करो
बिना चेक के लेन देन की परम्परा को बंद करो
किसके लॉकर में क्या है डिक्लेरेसन करवाओ
कितने सोने का मालिक है एफिडेविट भरवाओ
फिर बैंको के एक एक लॉकर को खुलवाकर देखो
किसने कितना सच बोला है सब कुछ तुलवाकर देखो
केवल चौबीस घंटे में कालाधन बाहर आएगा
केवल ये कानून वतन से भ्रष्टाचार मिटवायेगा

जिस दिन भारत की संसद ऐसा कानून बनाएगी।
लोकपाल की कोई जरूरत शेष नहीं रह जायेगी।।

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