जादू की कहानियां, जादू की कहानी, jadu ki kahaniyan
जादुई कुआ
एक समय की बात है एक गांव में एक जादुई कुआ था। जो भी गांव में बीमार होता उसे उस कुए का पानी पिलाया जाता और वो ठीक हो जाता। समय के साथ वह लोगों को ठीक करता चला गया। लोग बहुत दूर दूर से उसका पानी लेने आते थे। लेकिन वह कुआ अब बूढ़ा होता जा रहा था। लोग अपनी बीमारी को ठीक करने के लिए उसका पानी पीते थे लेकिन ठीक नहीं होते थे। धीरे धीरे लोगों का विश्वास उस कुए से उठ गया।
कुए को भी इस बात की चिंता थी कि वह अब लोगों की बीमारी ठीक नहीं कर पता। वह इसी बात पर हर रोज दुखी होता था। एक दिन उसके पास एक परी आयी और कहने लगी। हमारी दुनिया में पानी का अकाल पड़ रहा है। पेड़ पौधे पानी को तरस रहे हैं इसलिए क्या तुम हमें अपना पानी हमारी दुनिया में ले जाने दोगे। कुए ने कहा क्यों नहीं।
इतना कहते ही परी ने जादू किया और कुए में एक नली आ गयी वह नली सीधी उनकी दुनिया में जा रही थी और पानी खींच रही थी। अब परियों की दुनिया में पानी पहुंच रहा था तालाब भी भर चुके थे। यह देख परियों की रानी बहुत खुश हुई और कुए के पास जादू से पहुंच गयी। परियों की रानी को कुए को उनकी मदद करते देख बहुत प्रसन्नता हुई। लेकिन परियों ने देखा की वह बूढ़ा हो रहा है। इसलिए परियों ने उसे अपने जादू से जवान बना दिया।
अब जो भी उसका पानी पिता उसकी बीमारी तुरंत दूर हो जाती। सभी उस कुए पर ज्यादा विश्वास करने लगे।
शिक्षा
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करते रहना चाहिए।
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किसान और जादुई बतख
एक किसान के पास एक जादुई बतख थी। वह रोज एक सोने का अंडा देती थी। किसान सोने के अंडे को बाजार में बेच देता था। इससे उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी। थोड़े ही दिनों में किसान अमीर हो गया। उसने एक विशाल मकान बनवाया। इसमें वह अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ आनन्द से रहने लगा।
बहुत दिनों तक इसी प्रकार चलता रहा। एक दिन किसान ने सोचा, यदि मैं इस बतख के शरीर से सारे अंडे निकाल लूँ, तो मालामाल हो जाऊँगा।
किसान ने एक बड़ा-सा चाकू लिया और बतख का पेट चीर डाला। परंतु बतख के पेट में से उसे एक भी अंडा नही मिला। किसान को अपनी गलती पर बड़ा दुःख हुआ। वह पछताने लगा। उसकी हालत पागलों जैसी हो गयी। बतख मर गयी थी। उसे बतख से रोज एक सोने का अंडा मिलता था अब उसे वह कभी नही मिल सकता था।
शिक्षा -लालच बुरी बला है।
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जादुई थाली
किसी गांव में साईराम नाम का एक साधु रहा करता था। बड़ा ही भला आदमी था। अपने साथ बुराई करने वालों के साथ भी वो हमेशा भलाई ही करता था। गांव के किनारे एक छोटी सी कुटिया में अकेला ही रहता, अपने घर आने वालों की खूब खातिरदारी करता, ध्यान रखता और अच्छा अच्छा खाना खिलाता था।
गर्मियों के दिन थे, खूब गर्मी पड़ रही थी और लू चल रही थी। एक आदमी दोपहर में कहीं जा रहा था लेकिन ज्यादा गर्मी होने और लू लगने से वह साईराम की कुटिया के बाहर ही बेहोश होकर गिर पड़ा। साईराम ने जैसे ही देखा कि उस की कुटिया के बाहर कोई बेहोश पड़ा है तो वो उसे तुरंत अंदर ले गया और उसकी सेवा में लग गया। पानी पिलाया, सर पर गीला कपड़ा रखा और हाथ के पंखे से काफी देर तक हवा की, तब जाकर उसे होश आया।
होश आने पर उस आदमी ने साईराम से कहा की मैं बहुत भूखा हूँ, कृपया करके कुछ खाने को दे दीजिए। साईराम ने कहा ठीक है मुझे थोड़ा सा समय दीजिए। कुछ ही मिनट में साईराम ने बहुत बढ़िया बढ़िया ताजे पकवान खाने के लिए परोस दिए। उसने ताबड़तोड़ खाना खाया और फटाफट सारे पर पकवान चट कर गया। वह आदमी एक चोर था जो दोपहर में सुनसान देखकर चोरी करने के लिए निकला था। खाना खाने के बाद चोर को इस बात की हैरानी हुई कि साईराम ने इतनी जल्दी खाना कैसे तैयार कर लिया।
उसने साईराम से पूछा – महाराज जी यह बताइए आपने इतने कम समय में खाना कैसे तैयार कर लिया? साईराम ने चोर को बताया कि मेरे पास एक चमत्कारी थाली है। इस थाली की मदद से मैं पल भर में जो भी जी चाहे खाने के लिए बना सकता हूँ। चोर ने हैरान होकर पूछा – क्या आप मुझे वह थाली दिखा सकते हैं? मैं यह सब अपनी आंखों से देखना चाहता हूँ।
साईराम अंदर गया, एक थाली लाकर चोर के आगे रखी और कहा – मुझे केले चाहियें । थाली तुरंत केलों से भर गई। चोर हैरान रह गया और उसके मन में थाली के लिए लालच पैदा हो गया। उसने साधु से पूछा – मान्यवर क्या मैं आज रात आपकी कुटिया में रुक सकता हूं? साधु एकदम से राजी हो गया। जब साधु गहरी नींद में सो रहा था तो चोर ने थाली उठाई और वहां से चंपत हो गया।
थाली चुराकर चोर सोच रहा था कि अब तो मेरी मौज ही मौज है, जो भी जी चाहे थाली से मांग लूंगा। उसने थाली अपने घर में रखी और थाली से कहा मुझे टंगड़ी कबाब चाहिए। मगर थाली में कुछ नहीं आया। फिर उसने कहा मुझे मलाई चाप चाहिए। थाली अभी खाली थी। चोर ने कहा सेब ला के दो। थाली में फिर भी कुछ नहीं आया। चोर को जितनी भी खाने की चीजों के नाम याद थे उसने सब बोल डालें लेकिन थाली खाली की खाली ही रही।
चोर तुरंत भागता हुआ थाली लेकर साधु के पास गया और बोला – महात्मा, भूल से मैं आपका बर्तन अपने साथ ले गया। मुझे माफ कीजिए अपना बर्तन वापस ले लीजिए।
साईराम बिल्कुल नाराज नहीं हुआ। बर्तन लेकर साईराम ने उसी समय कई अच्छे पकवान बर्तन से देने को कहा और बर्तन में तुरंत वह आ गए।
साईराम ने चोर को एक बार फिर बढ़िया खाना खिलाया। चोर फिर हैरान हो गया और अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाया। उसने साधु से पूछा- महाराज जब यह बर्तन मेरे पास था तब इसने कोई काम नहीं किया। मैंने इससे बहुत सारे पकवान मांगे मगर इसने मुझे कुछ नहीं दिया।
साधु ने कहा – भाई देखो जब तक मैं जिंदा हूं तब तक यह बर्तन किसी और के काम नहीं आ सकता, मेरे मरने के बाद ही कोई और इसे उपयोग कर पाएगा।
बर्तन के चमत्कार का भेद पाकर चोर मन ही मन बहुत खुश हुआ, सोच रहा था कि अब तो मैं इस महात्मा का खात्मा करके बर्तन का फायदा उठाऊंगा।
अगले दिन चोर फिर साधु के घर आया और साथ में घर से खीर बनाकर लाया। वह बोला – महाराज आपने मेरी इतनी सेवा की है। मुझे दो बार बहुत लाजवाब स्वादिष्ट पकवान खिलाए हैं इसलिए मैं भी आपकी कुछ सेवा करना चाहता हूँ। मैं आपके लिए खीर लाया हूँ। कृपया आप स्वीकार कर लीजिए। साधु ने बिना किसी संकोच के चोर की दी हुई खीर खाई और चोर को धन्यवाद किया। कहा – तुम्हारी खीर बहुत ही स्वादिष्ट बनी है। चोर खीर में जहर मिला कर लाया था।
खीर खिलाकर चोर वापस अपने घर चला गया। रात होने पर वापस साधु की कुटिया में आया, थाली को फिर से चुराने के लिए। उसे पक्का यकीन था की जहर से अब तक तो साधु का काम तमाम हो चुका होगा। चोर जैसे ही थाली की ओर बढ़ा तो उसे किसी चीज से ठोकर लगी। आवाज सुनकर साईराम ने आंखें खोली और उठकर चारपाई पर बैठ गया। बोला – कौन है भाई?
चोर की हैरानी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। वह बड़ी हैरानी से बोला – महाराज आप अभी तक जीवित हैं?
साधु बोला – क्यों भाई तुमने यह कैसे सोच लिया कि मैं जीवित नहीं हूँ?
चोर ने कहा – मैंने दोपहर में आपको जो खीर खिलाई थी उसमें बहुत तेज जहर मिला हुआ था। मैं तो यही सोच रहा था कि ज़हर के असर से आप मर चुके होंगे।
साधु ने कहा – देखो भाई मैं निस्वार्थ भाव से लोगों की खूब सेवा करता हूँ और सच्ची निष्ठा से भगवान का जप भी करता हूँ, साथ ही योगाभ्यास भी करता हूँ। इसलिए मुझे यह आशीर्वाद प्राप्त है की कितना भी तेज जहर क्यों ना हो मैं उसे आसानी से पचा सकता हूँ। किसी भी जहर का मुझ पर कोई असर नहीं होगा।
चोर ने निराश होकर कहा – महाराज मैं तो आपको मार कर आप के पतीले का लाभ लेना चाहता था लेकिन मेरी यह इच्छा पूरी नहीं हुई।
संत ने कहा – भाई मैं इसमें क्या कर सकता हूँ, तुम्हारी किस्मत ही अच्छी नहीं है। बोलो अगर भूख लगी हो तो खाने का प्रबंध करूँ?
चोर बड़ा शर्मिंदा हुआ, बोला – महाराज मैं तो आपको धोखे से मारना चाहता था मगर फिर भी आपने मुझसे नफरत नहीं की। उल्टा आप तो मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार कर रहे हैं। यह बात मुझे बहुत ही अजीब सी लग रही है।
साधु ने कहा – भाई इसमें क्या अजीब बात है, अच्छाई करना मेरी आदत है बुराई करना तुम्हारी आदत है। तुम बुराई करना नहीं छोड़ पा रहे मैं अच्छाई करना नहीं छोड़ सकता। तुम अपनी आदत से लाचार हो मैं अपनी आदत से लाचार हूँ।
कहानी से शिक्षा :- इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है की हमारी परिस्थितिया चाहे जैसी भी हो लेकिन कभी अपनी अच्छाई का मार्ग नही छोड़ना चाहिए ।
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रस्सी का जादू
एक गांव में एक किसान रहता था। किसान के तीन बेटे थे और तीन बहुएं थीं। किसान के पास थोड़ी बहुत जमीन थी जिस में मेहनत कर के किसान की रोजी रोटी चलती थी। एक साल सूखे के कारण फसल नहीं हुई । किसान ने सोचा शहर में जाकर मेहनत मजदूरी कर के रोटी का जुगाड़ किया जाए। किसान अपने परिवार को साथ लेकर शहर की तरफ चल दिया। दिन में जब धूप तेज हो गई तो किसान ने सोचा कुछ देर के लिए किसी पेड़ के नीचे बैठा जाए।
वे एक घनी छाया वाले बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए। किसान ने सोचा कि खाली बैठने से भला कोई काम कर लिया जाए। उसने अपने एक बेटे से कहा कि तुम जाकर जूट ले आओ। दूसरे बेटे से कहा तुम कहीं से सब्जी ले आओ। तीसरे बेटे से कहा तुम कहीं से खाने का बाकी सामान ले आओ। किसान ने अपनी बहुओं को भी काम पर लगा दिया। एक को कहा तुम पानी ले आओ ।
दूसरी से कहा तुम लकड़ी ले आओ। तीसरी से कहा तुम आटा गूंध लो। सब अपने अपने काम पर लग गए। जूट आने पर किसान रस्सी बनाने में लग गया। जिस पेड़ के नीचे वे बैठे थे उस पेड़ में एक दानव रहता था। दानव यह सब कुछ देख रहाथा। उसे रस्सी के बारे में कुछ समझ नहीं आई। वह पेड़ से नीचे उतरा और किसान से पूछने लगा आप इस रस्सी से क्या करोगे? किसान कुछ नहीं बोला अपना काम करता रहा। दानव ने फिर किसान से पूछा :आप यह रस्सी क्यूँ बना रहे हैं।
किसान ने कहा तुम्हें बांधने के लिए। यह सुन कर दानव डर गया और बोला आप को जो कुछ भी चाहिए मैं देने को तैयार हूँ। आप मुझे छोड़ दीजिए। यह सुन कर किसान ने कहा मुझे अभी एक बक्सा सोने का भरा हुवा देदो तो में तुम्हें छोड़ दूंगा। दानव उसी समय एक बक्सा सोने से भरा हुवा ले आया और किसान से बोला ये लो सोने से भरा बक्सा और यहाँ से चले जाओ। किसान ने सोने का बक्सा लिया और गांव की तरफ चल दिया।
किसान के दिन अच्छे कटने लग गए। किसान के ठाट बाट देख कर उसके पडोसी ने इसके बारे में जानना चाहा तो किसान ने सारा किस्सा पडोसी किसान को बतादिया। पडोसी किसान लालच में आ गया। उस ने भी यह तरकीब अपनाने की सोची। वह अपने सारे परिवार के साथ चल दिया। उसी पेड़ के नीचे वह भी जा बैठा जिस पेड़ में दानव रहता था। पडोसी किसान ने अपने बेटे से कहा कि तुम कहीं से जूट ले आओ।दूसरे बेटे से कहा तुम कहीं से सब्जी ले आओ। तीसरे बेटे से कहा तुम खाने का बाकी सामान ले आओ।
फिर उसने अपनी बहुओं को भी कहा कि तुम पानी ले आओ।तुम लकड़ी ले आओ और तुम आटा गूंध लो। पर किसी ने भी पडोसी किसान की नहीं सुनी सब अपने में ही मस्त थे। आखिर में किसान खुद ही सारा काम करके रस्सी बनाने में लग गाया। दानव यह सब कुछ देख रहा था। कुछ देर में दानव किसान के पास आया और बोला- तुम यह रस्सी किस लिए बना रहे हो। किसान ने सोचा दानव डर गया है।
किसान हँसते हुए बोला तुम डर गए हो! यह रस्सी में तुम्हें बांधने के लिए ही बना रहा हूँ। इसपर दानव जोर से हंसा और बोला -तुम्हारा अपना परिवार तो तुम से नहीं डरता है में तुम से क्या डरूंगा। पहले अपने परिवार को बांध लो फिर किसी को बांधना। यह कह कर दानव पेड़ में चला गया। लालची किसान अपना सा मुंह ले कर गांव को लौट गया। इस लिए आदमी को चाहिए कि वह पहले अपने परिवार को आज्ञा करी बनाए फिर दूसरे से कोई उमीद करे।
जादुई चक्की
प्राचीन समय की बात है एक गांव में दो भाई रहते थे, बड़ा भाई बहुत अमीर था लेकिन छोटा भाई बहुत ही गरीब। जब दीपावली में पूरा का पूरा गांव ख़ुशी से त्यौहार मना रहा था तो छोटा भाई दुखी होकर अपने छोटे से घर में निराश होकर सोचते रहता था क्यूंकि उसके पास उसके परिवार को खिलाने के लिए भी कुछ नहीं था।
अपने परिवार के बारे में सोच कर वह अपने बड़े भाई से कुछ मदद मांगने गया तो उसके बड़े भाई और भाभी ने उसे बुरा भला सुनकर दुत्कार कर भगा दिया। वह दुखी मन से सोचते हुए वापस आ रहा था कि अब वह अपने परिवार को क्या जवाब देगा।
तभी रास्ते में उसे एक बूढ़ा आदमी मिला, उस बूढ़े आदमी में उससे पूछा तुम इतने निराश और दुखी क्यों हो, आज तो दीपावली है खुशियों का त्यौहार है तुम्हे तो खुश होकर त्यौहार मनाना चाहिए। बूढ़े आदमी में ये सब बोलने पर उसने अपनी साडी व्यथा उस बूढ़े आदमी को सुनाई।
बूढ़े आदमी ने उससे कहा बेटा तुम मेरी एक छोटी सी मदद कर दोगे क्या? ये लकड़ियों का ढेर अगर तुम मेरे घर तक पहुंचा दोगे तो मई तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ और तुम्हे अमीर आदमी बना सकता हूँ। छोटा भाई बहुत ही अच्छा आदमी था उस बूढ़े आदमी कि मदद करने तुरंत तैयार हो गया। छोटे भाई ने उस लकड़ियों के ढेर को उस बूढ़े आदमी के घर तक पहुंचा दिया।
इस पर उस बूढ़े आदमी ने छोटे भाई का धन्यवाद किया और उसे एक मालपुआ देकर कहा कि इसे लेकर जंगल में जाओ, जब तुम जंगल के बीच में पहुँच जाओगे तो वहां तुम्हे तीन बहुत ही अजीब से पेड़ दिखेंगे जिसके बगल में एक बड़ा सा चट्टान है। जैसे ही तुम उस चट्टानें के पास जाओगे तुम्हे उसके पास ही एक गुफा नजर आएगी, उसके बाद तुम्हे उस गुफा में जाना होगा।
वहां अंदर जाने के बाद गुफा में तुम्हे तीन बौने मिलेंगे, तुम ये मालपुआ उन्हें दे देना। ये मालपुआ उन्हें बहुत ही ज्यादा पसंद है और इस मालपुआ के लिए वे कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं। पर ये बात तुम्हे याद रहे उनसे तुम सीधे धन मत मांगना, तुम कहना कि मुझे पत्थर कि चक्की ही दे दो।
छोटे भाई ने गुफा अंदर जाने के बाद ठीक वैसे ही किया जैसा उस बूढ़े आदमी ने उससे कहा था। जब छोटा भाई उस लेकर जाने लगा तो एक बौने ने कहा यह कोई मामूली चक्की नहीं है, और इसे चलाने के बाद तुम जो भी मांगोगे वो तुम्हे मिल जायेगा। और इच्छा पूरी हो जाने के बाद तुम इस पर लाल कपडा दाल देना, इसके बाद इसमें से सामान निकलना बंद हो जायेगा।
छोटा भाई घर पहुँचता है, फिर वह मन में सोचने लगा क्या उस बौने ने जो कहा वो सच है? और इस बात को आजमाने के लिए वह चक्की से कुछ मांगने की सोचता है। सबसे पहले वह चावल मांगता है उसके बाद दाल, जैसे जैसे वह मांगता गया उसके सामने उन सब चीजों का ढेर लग गया।
इस तरह उसे बौने की बातों पर पूरा यकीन हो गया।इसके बाद उसने उस चक्की को लाल कपडे से ढँक दिया जैसा की उस बौने ने कहा था कि लाल कपडे से ढंकने पर सामान निकलना बंद हो जायेगा। छोटे भाई के परिवार ने उसके बाद भर पेट खाना खाया और सब ख़ुशी-ख़ुशी सो गए।
दूसरे दिन चक्की से निकले हुए बचे सामान को लेकर बाजार गया और उसे बेच आया। इसी तरह दिन बीतने लगा, उसे जितनी आवश्यकता है उतनी चक्की से मांग लेता और बचा हुआ सामान बाजार में बेच आता। वह कभी चावल, कभी घी, कभी नमक कभी मसाले अपने जरूरत के हिसाब से मांगता और बचा हुआ सामान बाजार में बेचते जाता, इस तरह धीरे-धीरे वह अमीर हो गया।
इस तरह दिन बीतते गया और जब उसके बड़े भाई को यह बात चली तो यह देख कर उसे बहुत जलन हुई, बड़े भाई यह सोचने लगा कि यह इतना अमीर कैसे हो गया। इसके बाद उसने यह बात पता लगाने की ठान लिया कि उसका छोटा भाई अमीर कैसे हुआ ? इसी उद्देश्य से वह एक रात चोरी छिपे अपने छोटे भाई के यहाँ गया और उसके घर में कहीं छिप कर देखने लगा।
रात में जब छोटा भाई चक्की से सामन मांगने लगा तो बड़े भाई ने सब देख लिया कि चक्की से जो भी चीज माँगा जाये वह उससे निकल कर सामने आ जाता है। यह देखने के बाद बड़ा भाई वापस अपने घर चला जाता है मन ही मन प्रसन्न होकर सोचने लगता है कि अगर वह चक्की उसे मिल जाये तो कितना अच्छा होगा और यही सोचते सोचते वह सो जाता है।
दूसरे दिन जब छोटा भाई सामान बेचने के लिए बाजार जाता है तो बड़ा भाई उसके घर जाकर चालाकी से घुस कर वह चक्की अपने घर चुरा लता है। चक्की मिलने के बाद वह घर आकर सोचता है, अगर मैं इस गांव में रहा तो छोटे भाई और गांव वालों को पता चल जायेगा इसलिए जब उसके हाथ में खजाना लग गया है तो वह यह गांव छोड़ दूसरे गांव में जाकर बस जायेगा। उसके बाद वह अपने पूरे परिवार के साथ गांव छोड़ कर दूसरे गांव जाने लगते हैं।
जब वे सब नाव में सवार होकर जाते रहते हैं तभी उसकी पत्नी ने उससे पूछा कि इस तरह गांव छोड़ने का मन क्यों बनाया? तब बड़े भाई ने अपनी पत्नी को साडी बातें बताई कि कैसे उसका छोटा भाई इतना अमीर हो गया और फिर उसने नाव में ही अपनी पत्नी को दिखाने के लिए चक्की को सामने रखकर नमक माँगा,
जैसे ही उसने चक्की से नमक कि मांग की नमक निकलना शुरू हो गया और नमक लगता निकलता ही रहा चूँकि जब वह छोटे भाई के यहाँ देखने गया था तो सामान निकालने का तरीका देखा था लेकिन उसे बंद करने का तरीका जल्दी-जल्दी में नहीं देखा और अपने घर चला गया था, इसलिए वह नमक का निकलना बंद नहीं कर सका और नाव नमक के बोझ के कारण नदी में ही डूबने लगा और उसका पूरा परिवार डूब गया।