कार्तिक मास की तीन पौराणिक कहानियां | kartik maas ki kahani

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पहली कार्तिक मास की कहानी 

कार्तिक स्नान एक बुढिया माई थी जों चातुर्मास में पुष्कर स्नान किया करती थी । उसके एक बेटा और बहु थे । सास ने बहु को फलाहार बनाने को कहा तो बहु ने खाली टिफिन ही रख दिया  । बेटा माँ को पहुचाने के लिए पुष्कर गया । रास्ते में माँ से बोला माँ फलाहार कर लो जहाँ पानी मिला वही फलाहार  करने बेठ गई तो भगवान की कृपा से खाली टिफिन फलो से भर गया , माँ ने फलाहार कर  लिया । पुष्कर माँ के रहने के लिए झोपडी बना कर बेटा वापस घर  आ गया ।

रात्रि में श्रावण मास आया और बोला बुढिया माई दरवाजा खोल तब बुढिया माई ने पूछा आप कौन है ? मैं श्रावणमास  , बुढिया ने तुरंत दरवाजा खोल दिया । बुढिया माई  ने शिव पार्वती की पूजा अर्चना की बेलपत्र से  अभिषेक किया ।  जाते समय श्रावणमास ने बुढिया माई को आशीर्वाद दिया और  झोपडी की एक दीवार सोने की हो गई ।

भाद्रपद मास आया उसने भी दरवाजा खोलने को कहा , बुढियामाई  ने दरवाजा खोला सत्तु बना कर कजरी तीज मनाई  । भाद्रपदमास ने बुढिया माई कोआशीवाद दियाऔर झोपडी की दूसरी दीवार भी सोने की  हो गई ।

फिर आशिवन मास आया और उसने भी दरवाजा खोलने को कहा , बुढिया माई ने दरवाजा खोला , पितरो का तर्पण कर ब्राह्मण भोज करा कर श्राद्ध किया  । नव रात्रि में माँ दुर्गा को अखंड ज्योति  जलाकर प्रसन्न किया सत्य की विजय दिवस के रूप में बुराई का अंत की ख़ुशी में  दशहरा मनाया । आशिवन मास ने जाते समय प्रसन्न होकर तीसरी दिवार भी बहुमूल्य रत्नों से जडितकर दी और बुढिया माई को सदैव प्रसन्न रहने का आशीर्वाद दिया।

इन सब के बाद  कार्तिक मास आया उसने भी दरवाजा खोलने को कहा । बुढियामाई  ने दरवाजा खोला अति प्रसन्न मन से कार्तिक स्नान किया दीपदान कर दीवाली , गोरधन पूजा , भईया दूज ,गोपाष्टमी , आवला नवमी मनाई । कार्तिक मास ने जाते समय आशीर्वाद दिया और झोपडी के स्थान पर महल बन गया । बुढियामाई  गरीबो की सेवा कर भजन कीर्तन में अपना समय व्यतीत करने लगी । बेटा अपनी माँ को लेने आया तो माँ और झोपडी को पहचान न सका तो पड़ोसियों से पूछा । उन्होंने बताया तो बेटा माँ के चरणों में गिरकर बोला माँ घर चलो । सारे सामान के साथ घर ले आया ।

सासु माँ  के ठाठ देखकर  बहु के मन में लालच आ गया और उसने अपनी माँ को भी पुष्कर छोडकर आने को कहा तो उसका पति अपनी सास को भीपुष्कर छोड़ आया ।परन्तु बहूँ की  माँ की धर्म कर्म में बिलकुल रूचि नहीं थी वह चार समय भोजन करती और दिन भर सोती चारो मास आये और चले गये जाते समय झोपडी गिर गई और बहु की माँ गधी की योनि में चली गई क्यों की औरत लक्ष्मी का रूप है और लक्ष्मी की तरह चंचल होना चाहिए भगवान की पूजा और अतिथि का समान और दान पूण्य करना चाहिए ।

बहु ने कहा अब माँ को ले आवो ,जब जवाई सास को लेने गया तो कही न मिली , लोगो से पूछने पर लोगो ने बताया की तेरी सास धर्म कर्म कुछ न करती थी खाती थी और सोती थी जिससे वह गधी योनी  में चली गई । जवाई गधी योनी  [ सास ] को बांध  कर घर ले आया  उसकी पत्नी ने पूछा मेरी माँ कहा है तब पति ने कहा तेरे लालच की वजह से तेरी माँ गधी योनी में आ गई ।

बड़े बड़े विद्वानों ,ब्राह्मण ,ऋषि ,मुनियों से पूछने पर उन्होंने बताया की तेरी सास  के स्नान किये पानी से स्नान करने पर उसे मनुष्य योनि मिलेगी । तब बहु ने ऐसा ही किया और उसकी माँ पुन: मनुष्य योनि में आ गई । हे ! राधा – दामोदर भगवान जेसा बुढिया माई को दिया वैसा सबको देना कहता न , सुनता न , हूकारा भरता न म्हारा सारा परिवार न।


दूसरी कार्तिक मास की कहानी 

किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी और वह कार्तिक का व्रत रखा करती थी। उसके व्रत खोलने के समय कृष्ण भगवान आते और एक कटोरा खिचड़ी का रखकर चले जाते। बुढ़िया के पड़ोस में एक औरत रहती थी। वह हर रोज यह देखकर ईर्ष्या करती कि इसका कोई नहीं है फिर भी इसे खाने के लिए खिचड़ी मिल ही जाती है। एक दिन कार्तिक महीने का स्नान करने बुढ़िया गंगा गई. पीछे से कृष्ण भगवान उसका खिचड़ी का कटोरा रख गए। पड़ोसन ने जब खिचड़ी का कटोरा रखा देखा और देखा कि बुढ़िया नही है तब वह कटोरा उठाकर घर के पिछवाड़े फेंक आई।

कार्तिक स्नान के बाद बुढ़िया घर आई तो उसे खिचड़ी का कटोरा नहीं मिला और वह भूखी ही रह गई। बार-बार एक ही बात कहती कि कहां गई मेरी खिचड़ी और कहां गया मेरा खिचड़ी का कटोरा। दूसरी ओर पड़ोसन ने जहाँ खिचड़ी गिराई थी वहाँ एक पौधा उगा जिसमें दो फूल खिले. एक बार राजा उस ओर से निकला तो उसकी नजर उन दोनो फूलों पर पड़ी और वह उन्हें तोड़कर घर ले आया। घर आने पर उसने वह फूल रानी को दिए जिन्हें सूँघने पर रानी गर्भवती हो गई. कुछ समय बाद रानी ने दो पुत्रों को जन्म दिया। वह दोनो जब बड़े हो गए तब वह किसी से भी बोलते नही थे लेकिन जब वह दोनो शिकार पर जाते तब रास्ते में उन्हें वही बुढ़िया मिलती जो अभी भी यही कहती कि कहाँ गई मेरी खिचड़ी और कहाँ गया मेरा कटोरा।

बुढ़िया की बात सुनकर वह दोनो कहते कि हम है तेरी खिचड़ी और हम है तेरा बेला हर बार जब भी वह शिकार पर जाते तो बुढ़िया यही बात कहती और वह दोनो वही उत्तर देते। एक बार राजा के कानों में यह बात पड़ गई। उसे आश्चर्य हुआ कि दोनो लड़के किसी से नहीं बोलते तब यह बुढ़िया से कैसे बात करते हैं। राजा ने बुढ़िया को राजमहल बुलवाया और कहा कि हम से तो किसी से ये दोनों बोलते नहीं है, तुमसे यह कैसे बोलते है?  बुढ़िया ने कहा कि महाराज मुझे नहीं पता कि ये कैसे मुझसे बोल लेते हैं।

मैं तो कार्तिक का व्रत करती थी और कृष्ण भगवान मुझे खिचड़ी का बेला भरकर दे जाते थे। एक दिन मैं स्नान कर के वापिस आई तो मुझे वह खिचड़ी नहीं मिली। जब मैं कहने लगी कि कहां गई मेरी खिचड़ी और कहाँ गया मेरा बेला? तब इन दोनो लड़को ने कहा कि तुम्हारी पड़ोसन ने तुम्हारी खिचड़ी फेंक दी थी तो उसके दो फूल बन गए थे। वह फूल राजा तोड़कर ले गया और रानी ने सूँघा तो हम दो लड़को का जन्म हुआ। हमें भगवान ने ही तुम्हारे लिए भेजा है।


तीसरी कार्तिक मास की कहानी 

एक नगर में एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी रहते थे। वे रोजाना सात कोस दूर गंगा,यमुना स्नान करने जाते थे। इतनी दूर आने-जाने से ब्राह्मणी थक जाती थी तब ब्राह्मणी कहती थी कि हमारे एक बेटा होता तो कितना अच्छा रहता। बेटे के बहू आती तो हमे घर वापस जाने पर खाना बना हुआ मिलता और बहू घर का काम भी कर देती।

ब्राह्मणी की बात सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि तूने बात तो सही कही है, चल मैं तेरे लिए बहू ला ही देता हूं। ब्राह्मण ने कहा कि एक पोटली में आटा डाल कर कुछ मोहरे रख दे। ब्राह्मण के कहे अनुसार ब्राह्मणी ने पोटली बांध कर दे दी पोटली लेकर ब्राह्मण चला गया।

ब्राह्मण अभी कुछ दूर गया ही था कि उसे यमुना के किनारे बहुत ही सुंदर लड़कियां दिखाई दी। वे रेत में घर बना कर खेल रही थी। उनमें से एक लड़की ने कहा कि मैं अपना घर नहीं बिगाडूंगी मुझे तो रहने के लिए ये घर चाहिए। लड़की की बात सुनकर ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा की बहू बनाने के लिए यही लड़की सही रहेगी।

जब वह लड़की जाने लगी तो ब्राह्मण भी उसके पीछे पीछे उसके घर तक चला गया। वहां जाकर ब्राह्मण ने कहा बेटी, अभी कार्तिक मास चल रहा है इसलिए मैं किसी के घर खाना नहीं खाता। मैं आटा लेकर आया हूं तुम अपनी मां से पूछो कि क्या वह मेरे लिए आटा छानकर चार रोटी बना देगी? यदि वह मेरा आटा छान कर रोटी बनाएगी तो ही मैं रोटी खाऊंगा।

लड़की ने जाकर अपनी मां से सारी बात कह दी। मां ने कहा – ठीक है, जाकर बाबा से कह दे कि वह अपना आटा दे दे मैं रोटी बना दूंगी। जब वह आटा छानने लगी तो आटे में से मोहरे निकली। वह सोचने लगी कि जिस के आटे में इतनी मोहरे है उसके घर में कितनी मोहरे होंगी। जब ब्राह्मण खाना खाने बैठा तो लड़की की मां ने कहा – बाबा आप अपने लड़के की सगाई करने जा रहे हो।

तब ब्राह्मण ने कहा कि मेरा बेटा तो काशी में पढ़ने गया हुआ है लेकिन यदि तुम कहो तो खांड कटोरे से विवाह करके तेरी बेटी को अपने साथ ले जाऊं। लड़की की मां ने कहा – ठीक है बाबा और खांड कटोरे से शादी करके ब्राह्मण के साथ भेज दिया। ब्राह्मण ने घर आकर कहा रामू की मां दरवाजा खोलकर देख मैं तेरे लिए बहू लेकर आया हूं।

ब्राह्मणी बोली दुनिया ताने मारती थी अब आप भी मारने लगे। हमारे तो सात जन्म तक कोई बेटा बेटी नहीं है तो बहू कहां से आएगी। ब्राह्मण ने कहा कि तू दरवाजा खोल कर तो देख। जब ब्राह्मणी ने दरवाजा खोला तो सामने बहू को खड़ी देखा। उसने बहु का स्वागत किया और आदर सत्कार से अंदर ले गई।

अब ब्राह्मण और ब्राह्मण स्नान करने जाते तो बहू घर का सारा काम करके और खाना बना कर रखती। वह उनके कपड़े धोती और रात को पैर भी दबाती। इस तरह काफी समय बीत गया। ब्राह्मणी ने अपनी बहू से कहा कि बहू कभी भी चूल्हे की आग मत बुझने देना और मटके का पानी खत्म मत होने देना। 1 दिन चूल्हे की आग बुझ गई।

तब बहु भागी-भागी अपनी पड़ोसन के पास गई और कहां कि मेरे चूल्हे की आग बुझ गई है मुझे थोड़ी आग चाहिए। मेरे साथ ससुर सुबह चार बजे से गए हुए हैं वह थके, हारे आएंगे इसलिए मुझे उनके लिए खाना बनाना है। तब पड़ोसन ने कहा कि तू तो बावली है, तुझे यह दोनों मिलकर पागल बना रहे हैं, इनके कोई बेटा नहीं है।बहू ने कहा – नहीं, ऐसा मत बोलो, इनका बेटा तो बनारस काशी में पढ़ने गया हुआ है।

तब पड़ोसन ने कहा कि यह तुझे झूठ बोल कर लाऐ है इनके कोई बेटा नहीं है। अब बहू पड़ोसन की बातों में आ गई और कहने लगी कि अब आप ही बताओ मैं क्या करूं। पड़ोसन ने कहा कि करना क्या है, जब तुम्हारे सास ससुर आए तो जली-फुँकी रोटियां बना कर देना और बिना नमक की दाल बना कर देना। खीर की कड़छी दाल में और दाल की कड़छी खीर में डाल देना।

वह पड़ोसन की सारी सीख लेकर घर आ गई जब उसके साथ ससुर घर आए तो उसने ना तो उनका आदर सत्कार किया ना ही उनके कपड़े धोए। जब उसने सास-ससुर को खाना दिया तो सास बोली बहू आज यह रोटियां जली-फुँकी क्यों है और दाल भी अलुनी है। तब बहू ने पलट कर जवाब दिया कि एक दिन ऐसा खाना खा लोगे तो कुछ बिगड़ नहीं जाएगा तुम्हारा।

सास ससुर को खरी-खोटी सुनाकर वह फिर से पड़ोसन के पास गई और बोला कि अब आगे क्या करना है। पड़ोसन ने कहा कि अब तुम सातों कोठों की चाबी मांग लेना। अगले दिन जब भी स्नान करने के लिए जाने लगे तो बहू अड़ गई कि मुझे तो सातों कोठों की चाबी चाहिए। तब ससुर ने कहा कि इसे चाबी दे दो आज नहीं तो कल इसे ही देनी है। तब सास ने बहू को चाबी दे दी।

सास ससुर के जाने के बाद जब बहू ने दरवाजे खोले तो देखा कि किसी में अन्न भरा है किसी में धन भरा है और किसी कोठे मे बर्तन पडे है। जब उसने सबसे ऊपर का सातवा कोठा खोला तो देखा कि शिव जी, पार्वती माता, गणेश जी, लक्ष्मी माता जी, पीपल पथवारी, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, तुलसा जी का बिड़वा, गंगा यमुना, व 33 कोटी देवी देवता विराजमान है। वहीं पर एक लड़का चंदन की चौकी पर बैठा माला जप रहा है।

यह सब देख कर उसने लड़के से पूछा कि तू कौन है। तब लड़का बोला कि मैं तेरा पति हूं अभी दरवाजा बंद कर दे जब मेरे माता-पिता आएंगे तब दरवाजा खोलना। यह सब देखकर बहू बहुत खुश हुई और सोलह श्रंगार कर सुंदर वस्त्र पहन कर अपने सास-ससुर का इंतजार करने लगी। उसने अपने सास-ससुर के लिए अच्छे-अच्छे पकवान बनाए।

जब उसके साथ ससुर घर पर आए तो उसने उनका आदर सत्कार किया और प्रेम पूर्वक खाना खिलाया और पैर पैर दबाने लगी पैर दबाते दबाते बहू ने कहा कि मां आप इतनी दूर गंगा यमुना स्नान करने के लिए जाती हो तो आप थक जाती हो इसलिए आप घर पर ही स्नान क्यों नहीं करती हो। यह सुन सास कहने लगी कि बेटी गंगा यमुना घर पर तो नहीं बहती है। तब उसने कहा हां मां जी बहती है चलो मैं आपको दिखाती हूं।

जब बहू ने सातवां कोठा खोल कर दिखाया तो उसमें शिव जी, पार्वती जी, गणेश जी, लक्ष्मी जी, पीपल पथवारी, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, तुलसा जी का बिड़वा, गंगा यमुना बह रही है और, 33 कोटी देवी देवता विराजमान है। वही चौकी पर बैठा एक लड़का माला जप रहा है। मां ने कहा कि बेटा तू कौन है। लड़का बोला – मां मैं तेरा बेटा हूं। तब ब्राह्मणी ने पूछा कि तू कहां से आया है।

लड़के ने जवाब दिया कि मुझे कार्तिक देवता ने भेजा है। बुढ़िया ने कहा कि बेटा यह दुनिया कैसे मानेगी कि तू मेरा बेटा है। बुढ़िया ने कुछ विद्वान पंडितों से मदद मांगी। पंडितों ने कहा कि इस पार बहू-बेटा खड़ा हो जाए और उस पार बुढ़िया खड़ी हो जाए।बुढ़िया ने चमडे की अंगिया पहनी हो और छाती में से दूध की धार निकल कर बेटे की दाढ़ी मूछ भीगे और पवन पानी से गठजोड़ा बंधे तब माने कि यह बुढ़िया का ही बेटा है।

उसने ऐसा ही किया चमड़े की अंगिया फट गई और छाती में से दूध की धार निकल कर बेटे की दाढ़ी मूछ भीग गई, पवन पानी से बहू बेटे का गठजोड़ बंध गया। यह सब देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी की खुशी का ठिकाना ना रहा। 

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