श्री कृष्ण जी एक नजर में
निवासस्थान |
वृंदावन, द्वारका, गोकुल, वैकुंठ |
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जीवनसाथी |
राधा ,रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, नग्नजित्ती, लक्षणा, कालिंदी, भद्रा |
माता-पिता | देवकी (माँ) और वासुदेव (पिता), यशोदा (पालक मां) और नंदा बाबा (पालक पिता) |
भाई-बहन | बलराम, सुभद्रा |
Krishna story in Hindi ~ श्रीकृष्ण की कहानियां
सुदाम और श्रीकृष्ण (sudama and krishna story in hindi)
श्री कृष्ण और सुदामा आश्रम में शिक्षा ग्रहण करते थे और युवा अवस्था में थे। एक दिन आश्रम में लकड़ियां समाप्त हो गयी और गुरुमाता परेशान होने लगी। गुरुमाता ने श्रीकृष्ण और सुदामा के साथ उनके अन्य साथियों को अपने पास बुलाया और आज्ञा दी कि बच्चो आश्रम में लकड़ियां समाप्त हो गयी है आप लोग जगल जाओ और लकड़ियां लाओ। गुरु माता ने उन्हें एक पोटली देकर कहा अगर भूख लगे तो इसमें से चने निकल कर बराबर बाँट कर खा लेना।
श्रीकृष्ण और सुदामा पोटली लेकर आज्ञा मान कर लकड़ियां लेने के लिए जंगल में चले गए। सभी जंगल में पहुँच कर लकड़ियां इकठ्ठी करने लगे। लगभग सभी ने लकड़ियां इकठ्ठी कर ली थी। लेकिन श्याम हो गयी थी साथ में ही मौसम बहुत ज्यादा खराब होने लगा था। मौसम इतना खराब हो गया की बारिश होने लगी और तूफान भी बड़ी जोर से आने लगा। तूफान और बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।
तो श्रीकृष्ण और सुदामा ने सोचा कि हम एक पेड़ पर चढ़ जाते हैं जिससे हम बारिश में भीगने से बच जायेंगे। दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ दोनों पेड़ पर तो चढ़ गए लेकिन वह भीगने से नहीं बचे। बारिश भी अधिक तेज होने लगी थी। बहुत ज्यादा रात हो गयी लेकिन बारिश नहीं रुकी। दोनों ठण्ड के मारे कांप रहे थे। तभी सुदामा को याद आया कि गुरु माता ने हमे चने की पोटली दी थी। सुदामा ने मन ही मन सोचा कि श्रीकृष्ण को याद नहीं है कि गुरुमाता ने हमे चनो की पोटली दी थी।
सुदामा चने चुपके चुपके खा रहा था श्रीकृष्ण को चनो के चबाने के आवाज आ रही थी। तभी कृष्ण जी बोल पड़े। अरे सुदामा गुरुमाता ने हमे जो चने की पोटली दी है उसमे से मेरा हिस्सा लाओ। सुदामा हैरान हो गये और कृष्ण से कहने लगे। अरे मित्र मुझे लगता है वो चने कहीं गिर गए। श्री कृष्ण यह सुनते ही चुप हो गए वह जानते थे कि सुदामा चने खा रहा है लेकिन उन्होंने सुदामा को कुछ नहीं कहा।
लेकिन समय बीतता चला गया और उन्ही चनो की वजह से सुदामा बहुत ही दरिद्र यानी बहुत गरीब हो गए शायद वही चने सुदामा की गरीबी का कारण बने। आप क्या मानते है कमेंट जरूर करें।
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krishna story in hindi – गोवेर्धन पूजा (govardhan puja)
अभी श्रीकृष्ण बाल अवस्था में थे। नगर में बहुत चहल पहले थी उधर श्रीकृष्ण आश्चर्य में थे कि आखिर आज कौन सा त्यौहार है जिस कारण नगर में चार चाँद लग गए हैं। श्रीकृष्ण और दाऊ भैया घूमते हुए उस स्थान पर जा पहुंचे जहाँ पूजा करने की त्यारियां हो रही थी। श्री कृष्ण आश्चर्य से पूछ लेते हैं कि आखिर नगर में इतनी जोर शोर से किस त्यौहार की तयारी चल रही है। उस स्थान पर एक महान ऋषि भी आये हुए थे जो उस रास्ते से जा रहे थे जिसमे वह नगर रस्ते में पड़ता था। नगर वासियों ने ऋषि को देख वहां बुला लिया। जो उस समय वहां उपस्थित थे। श्रीकृष्ण की यह बात सुन लोग जवाब देते हैं कि आज इंद्र देव के पूजा की त्यारियां चल रही हैं।
यह सुन श्रीकृष्ण बोलते हैं – अच्छा … लेकिन इंद्र देव की पूजा क्यों की जाती है आखिर वो हमारे लिए क्या करते हैं ?लोगों ने बोला – वह समय-समय पर बारिश कर इस धरती को उपजाऊ बनाते हैं, फैसले उगती हैं, पशु पक्षियों की प्यास मिटती है और हमारी हर एक पानी से जुडी हुई समस्या ख़त्म हो जाती है।
श्रीकृष्ण कहते हैं – इसमें इंद्र की पूजा करने की क्या जरुरत है क्योंकि यह उनका कर्तव्य है कि वह समय समय पर बारिश कर इस धरती को उपजाऊ बनाये। हमे पूजा अपने इष्ट देव या देवी की करनी चाहिए और इष्ट देव या देवी वह होती है जिससे हमारी जीविका चलती है। जिस प्रकार किसान की जीविका उसकी फसल होती है। उसका इष्ट देव अन्न देवता होता है और व्यापारी की जीविका धन होता है या व्यापर होता है उसकी इष्ट देवी लक्ष्मी होती है। इसी प्रकार हमारी जीविका दूध, दही, माखन आदि है। तो हमारी इष्ट देवी गाय माता हुई। हमे गाय माता की पूजा करनी चाहिए।
सभी लोग श्रीकृष्ण की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं और उनकी बाते वह महान ऋषि भी सुन रहे थे।
श्रीकृष्ण ने ऋषि से पूछा – क्या आप मेरी बात से समहत हैं गुरुदेव ?
ऋषि तुरंत बोल पड़े – हे महान आत्मा आप अवश्य ही पिछले जन्म के कोई सिद्ध पुरुष होंगे मैं आपके चरणों में नमन करते हूँ क्योंकि इतनी सी उम्र में इतना सारा ज्ञान किसी पुण्य आत्मा के पास ही हो सकता है। आपकी बातें मुझे बिलकुल सही लगी।
महान ऋषि ने आदेश दिया कि इंद्र की पूजा छोड़ सभी गौ माता की पूजा करते हैं इसलिए सभी महान पर्वत गोवर्धन के चरणों में चलो। वही पूजा होगी ऋषि के आदेशानुसार सारे नगरवासी गोवेर्धन पर्वत की ओर निकल पड़े और पूजा शुरू होने लगी। पूजा से प्रसन्न होकर गोवर्धन पर्वत ने नगर वासियों को दर्शन दिए और भोग लगाया।
सारी बातें इंद्रदेव को पता चल गई कि धरती पर अब उनकी पजा नहीं की जाएगी। उन्हें क्रोध आ गया। क्रोध में आकर उन्होंने अपने वज्र और वाहन निकाले। बिना सोचे समझे इतनी बारिश और तूफान प्रकट कर दिया कि पूरा नगर पानी से भर गया।
अब नगरवासियों और पशुओं की जान खतरे में थे श्रीकृष्ण ने पुरे गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठा लिया। पर्वत इतना बड़ा था कि सभी नगर वासी उसके निचे आकर अपनी जान बचा पाए। इंद्र ने पूरा जोर लगा दिया लेकिन नगरवासियों का बाल बाका न कर पाए और हार गए। उन्होंने श्रीकृष्ण को पहचान उनसे माफ़ी मांगी और उनका घमंड तोडा। तब से लेकर आज तक हम गोवेर्धन पूजा मनाते आ रहे हैं।
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krishna story in hindi – कालिया नाग (krishna on kaliya naag)
जो भी पशु पक्षी यमुना नदी के उस कुंड के ऊपर या आस पास से गुजरता वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता। कारण था कालिया नाग का वह भयकर विश जिसके कारण कोई भी पास से गुजरने वाला मनुष्य या जानवर अपनी जान से हाथ धो बैठता। वहां का पानी भी नीला पड़ चूका था। बिचारे निर्दोष पशु पक्षी उस जल को पिने वहां जाते तो उनकी मृत्यु हो जाती भला उनका क्या दोष।
एक दिन श्री कृष्ण जंगल में अपने मित्रो के साथ गेंद से खेलते हुए इतना व्यस्त हो गए कि उनको पता ही नहीं चला कि कब वह उस कुंड के पास पहुँच गए। इतना तो ठीक था लेकिन श्रीकृष्ण ने जोर से गेंद में अपना बल्ला मारा गेंद सीधा कुंड में जा गिरी। मित्र इस बात से अनजान कि उस कुंड में भयंकर कालिया नाग रहता है, हट करने लगे कि तुमने गेंद गिराई है तो तुम ही नदी से वो गेंद निकाल कर लाओगे । श्री कृष्ण सब जानते थे और उन्होंने गेंद भी जान भुजकर अंदर गिराई थी क्योंकि उन्हें कालिया नाग को वहां से भगाना था। कृष्ण मित्रों के हट करने पर ख़ुशी ख़ुशी नदी में कूदने के लिए नदी के किनारे एक पेड़ पर चढ़ गए। पास में ही एक नगरवासी गाय चरा रहा था। वह चिल्लाता हुआ पहुंचा कान्हा इस कुंड में मत कूदो। कृष्ण जी थोड़ा रुके और उसकी बात सुनने लगे।
वह कहने लगा – लला इस कुंड में मत कूदो इसमें भयकर कालिया नाग रहता है।
लेकिन उसकी बात न मानते हुए वह कुंड में कूद गए और उस स्थान पर जा पहुंचे जहाँ कालिया नाग की रहने की जगह थी। कालिया नाग उस समय निद्रा में था लेकिन उसकी रानियाँ द्वार पर खड़ी थी। कृष्ण जी को आता देख रानियों ने कहा – हे नन्हे बालक कोमल तन वाले तुम यहाँ क्यों आ गए हो और कालिया नाग के विश से तुम कैसे जीवित रह गए जो इतना भयकर है कि पास से गुजरने वाले को भी मृत्यु प्राप्त हो जाये। आप कौन हैं?
श्रीकृष्ण कहने लगे – मैं यह जनता हूँ कि तुम्हारे स्वामी के विश से निर्दोष प्राणियों की जान चली जाती है और पानी विषैला हो रहा है इसलिए तुम उनसे कहो कि कहीं और अपना डेरा बनाये।
कृष्ण जी इतना बोल ही रहे थे कि कालिया नाग की आंख खुल जाती है। श्रीकृष्ण उन्हें देखते हैं वह इतना डरवाना दस फनो वाला मुँह से जहरीला धुआं निकालता, आंखे खून जैसी लाल, इतना विशाल और डरावना कि कोई आम आदमी देखे दो मर ही जाये। जोर जोर से बोलने लगा किस दुष्ट ने मेरी नींद में विघ्न डाला। श्री कृष्ण सामने ही खड़े थे।
कालिया कहने लगा- बालक तेरा इतना साहस कि कालिया नाग के आगे सही सलामत खड़ा है चल हम तुम्हे माफ़ करते हैं इसका फायदा उठाते हुए अपनी जान बचा और चला जा।
श्री कृष्ण कहने लगे – जाना तो तुम्हे पड़ेगा क्योंकि तुमने इतने पाप किये हैं निर्दोष प्राणियों की जान ली है। पानी दूषित किया है। जिसके कारण अनेकों जीवों की जान चली गयी। इसलिए चले जाओ।
कालिया कहता है – इतना साहस लेकिन फिर भी मैं तुम्हे बालक समझता हुआ छोड़ देता हूँ इसलिए चले जाओ।
श्रीकृष्ण जी कहते हैं – मुर्ख तुम्हे जाना होगा।
कालिया नहीं मानता है और श्रीकृष्ण की और प्रहार करता है। लेकिन श्रीकृष्ण ने उनकी साथ बालपन में इतने साहस के साथ युद्ध किया कि कोई बलवान और शक्तियों वाला देवता भी न कर पाए। देखते ही देखते युद्ध भयंकर रूप धारण करने लगा। लेकिन कालिया नाग थक कर चूर चूर चूर हो गया। त्राहिमाम-त्राहिमाम करते वह श्रीकृष्ण से माफ़ी मांगने लगा।
श्रीकृष्ण ने कहा – कालिया तुम्हारी रानियों के सुहाग को देखते हुए मैं तुम्हारे प्राण बक्श देता हूँ। लेकिन तुम यहाँ से दूर किसी दूसरे कुंड को अपना स्थान बनाओ।
कालिया श्रीकृष्ण को पहचान लेते हैं। दूसरे कुंड में जाने से पहले वह कृष्ण जी को अपने फनों पर नृत्य करवाते हैं किनारे पर सभी नगर वासी भी इकट्ठा हो जाते है जो ये दृश्य देखकर नतमस्तक हो जाते हैं। इस तरह कालिया को श्रीकृष्ण ने यमुना नदी के उस कुंड से दूसरे कुंड में भगाया और प्राणियों को बचाया।
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krishna story in hindi – पूतना वध (putna vadh)
कंस श्रीकृष्ण का वध करने की कोशिशें लगातार कर रहा था। इसी कारण उसने अपनी बहन समान पूतना को बुलाया और उसे आज्ञा दी कि आकाशवाणी के अनुसार मेरी हत्या करने वाला मधुरा में है तुम उसका वध किसी भी तरह कर आओ। पूतना भी कंस को अपना भाई मानती थी इसलिए कहने लगी आप परेशान न हों अगर मेरे प्राण देकर भी आपका शत्रु मृत्यु को प्राप्त हो तो मैं यह करुँगी।
इतना कहकर वह वहां चली जाती है। पूतना ढूढ़ते हुए आखिर माँ यशोदा के घर पहुँच जाती है। एक ब्राह्मणी का रूप धारण कर वह अंदर प्रवेश करती है और यशोदा से कहती है। मैं एक सिद्ध और तपस्वी ब्राह्मण की पत्नी हूँ और मुझे सिद्धियां प्राप्त हैं कि अगर मैं किसी भी बच्चे को आशीर्वाद दूँ तो वह किसी भी तरह से विफल नहीं हो सकता और मुझे पता चला है कि आपके घर किसी महान आत्मा ने जन्म दिया है इसलिए मैं उसे आशीर्वाद देने आयी हूँ।
बस इतना कहते ही माँ यशोदा ने अपने लला को पूतना की गोद में दे दिया और कहने लगी ये लीजिये मेरे पुत्र को आशीर्वाद दीजिये। वह इस बात से अनजान कि ब्राह्मणी का रूप धारण किये यह पूतना राक्षशी है। वह श्रीकृष्ण को पूतना की गोद में दे देती है। पूतना ब्राह्मणी का रूप बनाये उसे आशीर्वाद देने लगती है।
आशीर्वाद देते समय वह कहती है – सुनिए मुझे एक ओर सिद्धि भी प्राप्त है कि मेरे स्तनों में अमृत है अगर मैं किसी को स्तन पान करवाऊं तो वह अमर हो जाता है। यशोदा माँ कहती हैं – हाँ जरूर अगर आप ऐसा कर सकती हैं तो जरूर मेरे पुत्र को स्तनपान करवा कर अमर बना दो। पूतना श्रीकृष्ण को गोद में लिए उसे स्तन पान करवाती है। लेकिन तभी पूतना अपना विकराल, डरावना रुप धारण कर और हा… हा … करती उड़ जाती है। माँ यशोदा पर तो जैसे बिजली टूट पड़ती है। चिल्लाते हुए यशोदा माँ उसी तरफ भाग जाती है जिस तरफ पूतना श्रीकृष्ण को लेकर उड़ जाती है। माँ यशोदा आगे-आगे और नगर वासी पीछे-पीछे।
दौड़ते हुए जंगल में पहुंच जाते हैं पर पूतना का कहीं भी पता नहीं था कि वह कहाँ आसमान में गायब हो गयी थी। थोड़ी ही देर बाद वह राक्षसी आसमान से जगल में गिरी। श्रीकृष्ण सही सलामत उसकी छाती पर बैठे हुए खेल रहे थे। पूतना का आकर इतना विशाल था कि श्रीकृष्ण को उसके ऊपर से उतरना बहुत ही मुश्किल था।
जैसे तैसे करके नगरवासियों ने कान्हा को निचे उतरा और यह देख सभी हक्के बक्के थे कि इतनी बड़ी राक्षसी को कान्हा ने कैसे मारा और इतना ऊपर से निचे गिरने पर कान्हा को एक खरोच तक नहीं आयी।
अब यह भी दुविधा थी कि इतनी बड़ी राक्षशी का अंतिम संस्कार कैसे किया जाये। तभी एक समझदार व्यक्ति ने सलाह दी कि राक्षसी को कई छोटे छोटे टुकड़ों में काट इसका अंतिम संस्कार कर देते हैं। ऐसा ही हुआ। अंतिम संस्कार के बाद पूतना की आत्मा श्रीकृष्ण में समाहित हो गयी और श्रीकृष्ण ने पूतना को अपनी माँ का दर्जा दिया। क्योंकि पूतना ने कान्हा को स्तनपान करवाया था। कंस भी यह खबर सुनकर बड़ा ही अचम्भे में था।
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krishna story in hindi – अकासुर उद्धार (akasur uddhar)
कंस निरंतर श्रीकृष्ण का वध करने की कोशिशें कर रहा था। पर एक भी कोशिश सफल नहीं हो रही थी जिसके कारण उसके मन में डर भी था और वह बौखलाया भी था। अपने मंत्रियों को कह रहा था – एक एक करके हमारे सभी शक्तिशाली योद्धा मारे जा चुके हैं अब कोई उपाय नहीं रहा। बका सुर और पूतना का भी वध हो चूका है। अब आप ही कोई सलाह दीजिये कंस के मंत्री ने सलाह दी महाराज हमारा एक शक्तिशाली योद्धा अभी बाकि है मुझे पूर्ण विश्वाश है कि इस बार यह योद्धा हमारा काम निश्चय की करेगा।
कंस खुश हो जाता है। कहता है कौन है वो क्या वो सच में कान्हा का वध कर पायेगा। मंत्री कहता है हाँ महाराज आवश्य ही वह यह काम करेगा। कंस कहता है -कौन है वो उसको शीघ्र ही बुलो। मंत्री उसको अकासुर नाम से बुलाते हैं वह तुरत दरबार में प्रकट हो जाता हैं।
वह इतना विशाल सर्प कि सैंकड़ों लोगों को एक ही बार में निगल जाए सभी उसे देख कर डर गए। कंस ने उसे अपने शत्रु के बारे में बताया और वह श्रीकृष्ण वध के लिए निकल पड़ा।
उधर श्रीकृष्ण ग्वालों के साथ गाय चराने के लिए में व्यस्त थे सैकड़ों गाय आराम से चर रही थी। चुपके से अकासुर वहां आ जाता है गाय इधर-उधर भागने लगती हैं। श्री कृष्ण और अन्य ग्वालों को भागदौड़ के कारन चोटें भी आती हैं लेकिन उनको पता नहीं चलता कि गैया ने ऐसे भागदौड़ क्योँ की। दोपहर हो गई थी श्रीकृष्ण कहने लगे – चलो मित्रों अपनी अपनी गठरियाँ खोलो और कही छांव वाली जगह तलाशो जहाँ हम दोपहर का भोजन कर सके। सभी ऐसी जगह की तलाश करने लगते हैं एक जगह एक ग्वाले को दिख जाती है। जो एक गुफा जैसी दिखाई देती है। असल में वह अकासुर का मुँह होता है जो वह खुला करके श्रीकृष्ण के अंदर आने का इंतजार कर रहा होता है।
इतना बड़ा अजगर का मुहं कि कोई समझ न पाए कि यह कोई मुँह है या गुफा। सभी अंदर चले जाते हैं इस बात से अनजान कि यह कोई गुफा नहीं अकासुर का मुँह है। सभी जब अंदर चले जाते हैं अकासुर अपना मुँह बंद कर लेता है। ग्वालों को पता नहीं चला कि आखिर यह कैसे हुआ। सभी मुँह के अंदर बंद हो जाते हैं। लेकिन श्रीकृष्ण सब जानते थे। अकासुर मुहं को जोर जोर से हिलाना शुरू कर देता है। जिससे श्रीकृष्ण को छोड़ सभी ग्वाले बेहोश हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण अपना मुँह बड़ा कर अकासुर का विशाल पहाड़ जैसे मुंह के दो टुकड़े कर देते हैं। अकासुर की मृत्यु हो जाती है और उसकी आत्मा ज्योति बाहर निकल कर श्रीकृष्ण को कहती है कि – मैं एक राजा का पुत्र था कामदेव जैसा मैं बहुत सूंदर था। मुझे अपनी सुंदरता का बहुत घमण्ड था। एक दिन मार्ग से अष्टवक्र ऋषि जा रहे थे मैं उनके टेढ़े-मेढ़े शरीर को देख आपकी हसी रोक न पाया और उनका मजाक उड़ाने लगा। मैं उनको पहचान न पाया उनको इस बात का बहुत बुरा लगा जिससे क्रोधित होकर मुझे श्राप दिया कि तु एक सांप की तरह कुरूप हो जायेगा।
जब उन्होंने श्राप दिया इसके पश्चात् मैंने उनसे पैरों में गिरकर क्षमा मांगी तो उन्होंने ने कहा श्रीकृष्ण ही तुम्हारा उद्धार करेंगे और तुम्हारी आत्मा ज्योति उनमे समाहित होकर मुक्ति प्राप्त करेगी।
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