माघ पूर्णिमा व्रत कथा (2023) | magh purnima vrat katha

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एक नजर मे माघ पूर्णिमा

इसे माघी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. माघी पूर्णिमा पर पवित्र स्नान करने से सूर्य और चंद्रमा ग्रह दोष से जुड़ी सभी कठिनाइयां दूर हो जाती हैं. माघ पूर्णिमा के दिन स्नान और दान का काफी महत्व होता है. इस दिन कल्पवासी प्रातः स्नान ध्यान कर गंगा माता की आरती करते हैं

माघ पूर्णिमा व्रत कथा (magh purnima vrat katha)

पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में एक ब्राह्मण रहता था, जिसका नाम धनेश्वर था। वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन गुजार रहा था। उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन भिक्षा मांगने के दौरान लोगों ने ब्राह्मण की पत्नी को बांझ कहकर ताने मारे और उसे भिक्षा देने से मना कर दिया। इस घटना से ब्राह्मण की पत्नी बहुत दुखी हुई। जिसके बाद उसे किसी ने 16 दिन तक मां काली की पूजा करने की सलाह दी।

ब्राह्मण दंपत्ति ने 16 दिनों तक मां काली का पूजन किया। दंपत्ति की पूजा से प्रसन्न होकर 16वें दिन मां काली साक्षात प्रकट हुईं और उसे गर्भवती होने का वरदान दिया। इसके साथ ही मां काली ने उस ब्राह्मणी से हर पूर्णिमा के दिन एक दीपक जलाने को कहा और धीरे-धीरे हर पूर्णिमा पर दीपक की संख्या बढ़ा देने की बात कही। साथ ही दोनों पति-पत्नी को मिलकर पूर्णिमा का व्रत रखने को भी कहा।

मां काली के कहे अनुसार ब्राह्मण पति पत्नी ने पूर्णिमा को दीपक जलाने शुरू कर दिए और व्रत रखा। जल्द ही ब्राह्मणी गर्भवती हो गई। कुछ समय बाद ब्राह्मणी ने एक पुत्र को जन्म दिया। दोनों ने अपने पुत्र का नाम देवदास रखा। लेकिन देवदास की उम्र अधिक नहीं थी। देवदास के बड़े होने पर उसे मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा दिया गया। काशी में दुर्घटनावश धोखे से उसका विवाह हो गया।

कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया, लेकिन उस दिन पूर्णिमा थी और ब्राह्मण दंपति ने उस दिन भी अपने पुत्र के लिए व्रत रखा था। जिसके चलते काल ब्राह्मण के पुत्र का कुछ नहीं बिगाड़ पाया। इस तरह पूर्णिमा के दिन व्रत करने से श्रद्धालुओं को सभी कष्टों और संकटों से मुक्ति मिलती है।

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