महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार | mahatma gandhi thoughts on education in hindi

3.7/5 - (10 votes)

महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार, महात्मा गांधी के शैक्षिक विचारों का वर्णन करें, mahatma gandhi thoughts on education in hindi, mahatma gandhi thoughts on education in hindi, mahatma gandhi thoughts in hindi, gandhiji quotes in hindi

महात्मा गांधी परिचय एक नजर में

मोहनदास करमचन्द गांधी (जन्म: 2 अक्टूबर 1869 – निधन: 30 जनवरी1948) जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम दिलाकर पूरे विश्व में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें संसार में साधारण जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है।

यह जानकारी विकिपीडिया से ली गयी है। ज्यादा जानने के लिए क्लिक करें

महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार

नई दुनिया के निर्माण के लिए शिक्षा भी नए प्रकार की होनी चाहिए।


जब तक विनम्रता और सीखने की इच्छा न हो तब तक कोई ज्ञान अर्जित नहीं किया जा सकता।


चरित्र के बिना ज्ञान केवल बुराई को शक्ति देता है।


अपने प्रयोजन में दृढ विश्वास रखने वाला एक सूक्ष्म शरीर भी इतिहास के रुख को बदल सकता है।


चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए।


जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता | दुःख के बिना सुख नहीं होता।


अपने ज्ञान के प्रति ज़रुरत से अधिक यकीन करना मूर्खता है। यह याद दिलाना ठीक होगा कि सबसे मजबूत कमजोर हो सकता है और सबसे बुद्धिमान गलती कर सकता है।


यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती है।


कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं।


शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बालक के शरीर का विकास हो क्योंकि उनके अनुसार स्वस्थ शरीर मे ही स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है


शिक्षा के माध्यम से बालक में सत्य,अहिंसा,ब्रमचर्य, अस्वाद, अपरिग्रह ओर निर्भरता आदि गुणों का विकास होना चाहिए।


शिक्षक मुख्य होता है यह शिक्षा को समाज का आदर्श , ज्ञान का पुन्य और सत्य आचरण करने वाला होना चाहिये।


विद्यार्थी को अनुशासित रहना चाहिए , अनुशासन तथा ब्रमचर्य का पालन करना चाहिए


विद्यालय ऐसे होने चाहिए जहाँ शिक्षक सेवा भाव से पूर्ण निष्ठा के साथ , शिक्षण करें।


विदेशी भाषा के माध्यम से सही शिक्षा संभव नहीं है।


‘‘शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक तथा मनुष्य मे निहित शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक श्रेष्ठतम शक्तियों का अधिकतम विकास है।’’


साक्षरता न तो शिक्षा का अन्त है न प्रारम्भ। यह मात्र एक साधन है, जिसके द्वारा स्त्री एवं पुरूष को शिक्षित किया जा सकता है।


शिक्षा स्वावलंबी हो- यानि खर्च का वहन अध्यापकों एवं छात्रों द्वारा किए गए उत्पादन कार्यों से किया जाए।


‘‘तुम्हारी शिक्षा सर्वथा बेकार है, यदि उसका निर्माण सत्य और पवित्रता की नींव पर नहीं हुआ है।


विद्यार्थियों के आचरण को सर्वाधिक प्रभावित अध्यापक का आचरण करता है।

Leave a Comment

Shares