प्रसिद्ध मीरा बाई की कहानीयां | meerabai story in hindi

4.7/5 - (4 votes)

meera bai story, meera story in hindi, mirabai ki kahani, meera bai story in hindi, mirabai story in hindi, story of mira bai in hindi, mira bai story in hindi

एक नजर मे मीरा बाई

मीराबाई का जन्म सन 1498 ई॰ में पाली के कुड़की गांव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। चित्तौड़गढ़ के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। मीरा के पति का अंतिम संस्कार चित्तोड़ में मीरा की अनुपस्थिति में हुआ। पति की मृत्यु पर भी मीरा माता ने अपना श्रृंगार नहीं उतारा, क्योंकि वह गिरधर को अपना पति मानती थी।

उपर दी गयी जानकारी विकिपीडिया से ली गयी है

मीरा बाई और जहर का प्याला कहानी

रा के पति की मृत्यु एक युद्ध के दौरान हो गई। पति की मृत्यु के बाद जब ससुराल वालों ने मीरा को सती होने के लिए कहा तो मीरा बोली, मेरे पति को श्रीकृष्ण हैं। मीरा पति की मृत्यु के बाद भी मंदिर जाने लगी और भजन-गीत गाकर नाचने लगी। इस पर उसके ससुराल वालों ने मीरा पर व्यभिचारिणी होने का आरोप लगाकर भरी सभा में मीरा को विष का प्याला देकर पीने को कहा। मीरा भी श्रीकृष्ण का नाम लेते हुए विष को पी गई। सबको लगा कि अब मीरा जीवित नहीं बचेगी। लेकिन विष का प्याला मीरा के लिए अमृत बन गया। श्रीकृष्ण की कृपा से मीरा पर विष का कोई प्रभाव नहीं हुआ। 

ससुराल में कई यातनाएं सहने के बाद जब यातनाएं बरदाश्त से बाहर हो गई, तो मीरा महल छोड़कर कई जगह तीर्थ करते हुए वृंदावन पहुंच गई। इधर मीरा के महल छोड़कर चले जाने से राज में उपद्रव होने लगे। ब्राह्मणों ने कहा कि यदि मीरा वापस लौट आएगी तो सब ठीक हो जाएगा। 

मीरा की खोज के लिए दो सैनिक भी भेजे गए थे, उन्होंने मीरा को साथ लौटने की विनती की, लेकिन मीरा ने मना कर दिया। सैनिक बोले यदि आप हमारे साथ जीवित नहीं लौटी तो हम भी वापस नहीं लौटेंगे, हमारे परिवार के बारे में सोचिए। 

मीरा ने सैनिकों से कहा यदि मैं तुम्हारे आने से पहले ही संसार छोड़ गई होती, तो क्या तुम खाली हाथ वापस लौट जाते। सिपाही बोले तब तो लौटना ही थी। इतना सुनते ही मीरा ने एकतार वाला यंत्र, एक तारा उठा लिया और श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगी। मीरा की आंखों से प्रेम के आंसू बहने लगे और उसी समय मीरा श्रीकृष्ण की मूर्ति में समा गई। 


मीरा बाई और अकबर की कहानी

भक्तिशाखा की महान संत और कवियित्री मीराबाई जी के कृष्ण भक्ति के लिए उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। श्री कृष्ण की प्रेम रस में डूबकर मीराबाई जी द्धारा रचित पद, कवतिाएं और भजनों को समस्त उत्तर भारत में गाया जाने लगा। वहीं जब मीराबाई जी का श्री कृष्ण के प्रति अद्भुत प्रेम और उनके साथ हुई चमत्कारिक घटनाओं की भनक मुगल सम्राट अकबर को लगी, तब उसके अंदर भी मीराबाई जी से मिलने की इच्छा जागृत हुई।

दरअसल, अकबर ऐसा मुस्लिम मुगल शासक था, जो कि हर धर्म के बारे में जानने के लिए उत्साहित रहता था, हालांकि मुगलों की मीराबाई के परिवार से आपसी रंजिश थी, जिसके चलते मुगल सम्राट अकबर का श्री कृष्ण की अनन्य प्रेमिका मीराबाई से मिलना मुश्किल था।

लेकिन मुगल सम्राट अकबर, मीराबाई के भक्ति भावों से इतना अधिक प्रेरित था, कि वह भिखारी के वेश में उनसे मिलने गया और इस दौरान अकबर ने मीराबाई के श्री कृष्ण के प्रेम रस में डूब भावपूर्ण भजन, कीर्तन सुने, जिसे सुनकर वह मंत्रमुग्ध हो गया और मीराबाई को एक बेशकीमती हार उपहार स्वरुप दिया।

वहीं कुछ विद्धानों की माने तो मुगल सम्राट अकबर की मीराबाई से मिलने की खबर मेवाड़ में आग की तरह फैल गई, जिसके बाद राजा भोजराज ने मीराबाई को नदी में डूबकर आत्महत्या करने का आदेश दे डाला।

जिसके बाद मीराबाई ने अपने पति के आदेश का पालन करते हुए नदी की तरफ प्रस्थान किया, कहा जाता है कि जब मीराबाई नदी में डूबने जा रही थी, तब उन्हें श्री कृष्णा साक्षात् दर्शन हुए, जिन्होंने न सिर्फ उनके प्राणों की रक्षा की, बल्कि उन्हें राजमहल छोड़कर वृन्दावन आकर भक्ति करने के लिए कहा, जिसके बाद मीराबाई, अपने कुछ भक्तों के साथ श्री कृष्ण की तपोभूमि वृन्दावन चली गईं और अपने जीवन का ज्यादातर समय वहीं बिताया।

Leave a Comment