4 motivational story in hindi for students- विद्यार्थीयों के लिए बेहतरीन प्रेरक कहानियाँ

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ये आर्टिकल “Motivational Stories in Hindi for Students” के बारे में है। इस आर्टिकल में, मैं आपको चार ऐसी कहानियां बताऊंगा जो आपके जीवन में प्रेरणा और उत्साह भरेगी। ये कहानियां आपके मन को साकारात्मक और नई शक्ति प्रदान करेगी। यादी आप एक विद्यार्थी है और आप अपने जीवन में कुछ नया करना चाहते हैं तो ये कहानियां आपके लिए मदद सबित हो सकती है। चलो, कहानियों को पढ़कर अपने जीवन को और भी अद्भुत बनाते हैं।

बुद्धिमान खरगोश और शेर की कहानी

एक जंगल में एक भासरुक नाम का शेर रहता था जो धीरे-धिरे जंगल के सभी प्राणियों को खा रहा था कोई भी प्राणी उससे नहीं बच सकता था।  एक दिन जंगल के प्राणियों ने यह देखा कि  धीरे-धीरे हमारे वंश समाप्त हो रहे हैं इस लिए हमें कोई उपाय करना चाहिए। 

जंगल के प्राणियों ने उस शेर के साथ बात की और कहा-

“हे जंगल के राजा आप जगल के सभी प्राणियों को धीरे धीरे नष्ट कर रहे हैं इसलिए एक ऐसा उपाय करते हैं जिससे आपकी भूक भी मिट जाये और हमारा वंश भी खत्म न हो।” 

इसपर शेर कहता है –

यह कैसे संभव है?

जंगल के प्राणियों में से एक ने कहा- 

“राजा आपको मेहनत करने की कोई जरुरत नहीं है हमारे में से एक प्राणी आपकी भूख मिटाने के लिए खुद चलकर आया करेगा।” 

तभी भासरुक शेर कहता है –

“अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं तुम सब को अपना भोजन बना लूंगा। “

इस तरह सभी प्राणियों की बारी आती और शेर उन्हें अपना भोजन बना लेता। एक दिन एक खरगोश की बारी आई। 

खरगोश ने सोचा अगर मैंने कोई उपाए नहीं किया तो यह ऐसे ही सभी प्राणियों को खाता रहेगा। जाते हुए खरगोश ने एक कुआ देखा और उसके दिमाग में एक तरकीब आयी। खरगोश जान भूझकर शेर के पास देर से गया। 

 इस ओर भासरुक शेर के मन में यह ख्याल आता है कि अगर आज कोई मेरा भोजन बनने के लिए नहीं आया तो मैं सभी प्राणियों को खा जाऊंगा।

लेकिन कुछ देर बाद वहां खरगोश आ जाता है। 

भासरुक शेर कहता है-

“छोटे से प्राणी तू इतनी देर से क्यों आया अब अपने भगवान को याद कर ले। ”

इसपर खरगोश ने एक कहानी बनाई और कहा  –

“हे जंगल के राजा हमारे मुखिया ने हमें छोटा प्राणी समझ कर और आपकी भूख सिर्फ एक खरगोश से न मिटे, इसलिए मेरे साथ तीन ओर खरगोशों को भेजा था लेकिन रास्ते में किसी दूसरे शेर ने हमें रोक लिया और कहा-

कहाँ जा रहे हो तुम अब अपने इष्ट देव को  याद कर लो क्योंकि मैं तुम्हे अपना भोजन बना लूंगा। 

मैंने कहा- 

हम अपने स्वामी दूसरे शेर का खाना बनाने के लिए जा रहे हैं। 

इसपर शेर कहता है –

अरे वो शेर मुर्ख है जो बैठे बैठे तुम्हे खाता है इसलिए मुझसे उसका मुकाबला करवाओ जो जीतेगा तुम उनका ही भोजन बनोगे। 

इस तरह उस शेर ने तीनो खरगोशों को अपने पास रख लिया और मुझे आपके पास यह सन्देश देने के लिए भेज दिया।” 

 भासरुक शेर ने कहा –

ये कौन सा शेर है जो मेरी जगह लेना चाहता है तू मुझे उसके पास ले चल। 

इस तरह खरगोश आगे आगे और शेर पीछे पीछे चलता है। खरगोश उसे उस कुए के पास ले जाता है और कहता है-

“महाराज वो इस बिल में घुसा है शेर कुए में देखता है उसे  पानी में अपनी परझाई दिखती है और वह खुर्राता है जिससे उसकी आवाज कुए में गूंजती है। शेर सोचता है ये वही शेर है जो मुझसे लड़ना चाहता है और कुए में झलांग लगा कर अपनी जान गंवा देता हैं। 

शिक्षा 

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जिसमे बुद्धि है उसमे बल है। 

अपना दोष

एक महाजन था। उसके घी और तम्बाकू का बहुत बड़ा व्यवसाय था। वह अपने व्यापार मे कभी भी अनीति नही करता था। सरल-स्वभावी व मधुरभाषी होने के कारण वह आस-पास के क्षेत्र मे जनप्रिय था। उसके एक भोला-भाला लड़का था। सेठ को एक दिन किसी कार्यवश बाहर जाना था, किन्तु मन मे चिन्ता थी कि दुकान पर कौन बैठेगा।

लडके ने कहा-पिताजी ! चिंता करने की जरूरत नही है, दुकान को मैं संभाल लूंगा । आप मुझे वस्तुओं के भाव बता दें।

पिता ने कहा-पुत्र ! अपनी दुकान पर घी और तम्बाकू दो ही चीज है। दोनों के एकभाव है। पर एक बात विशेष याद रखना, जब तक खुले हुए टीन खत्म न हो जायें, दूसरे टीन मत खोलना ।

पुत्र को शिक्षा देकर पिता गांव चला गया। पुत्र दुकान पर आया। चारों तरफ नजर दौड़ाई। एक तरफ घी के टीन पड़े थे और एक तरफ तम्बाकू के टीन। दोनों ओर एक-एक टीन आधे खाली थे। उसने सोचा-पिताजी कितने मूर्ख हैं, एक भाव की वस्तु के लिए दो टीन रोक रहे है।

उसने घी का  टीन उठाया और तम्बाकू वाले टीन में उसे उड़ेल दिया। इतने में घी का ग्राहक आया। उसने उसमें से घी दिखाया। ग्राहक ने कहा-घी में तम्बाकू कैसे? हमें असली घी चाहिए। वह गुस्से में आकर बोला-यह तो असली घी है, लेना हो तो लीजिए, वरना चले जाइये यहाँ से!

थोड़ी देर बाद तम्बाकू का ग्राहक आया और पूछा-सेठ साहब कहां है? वह बोला-सेठ की क्या आवश्यकता है, मैं बैठा हूँ  उनका लड़का । क्या चाहिए? ग्राहक बोला-तम्बाकू लेने आया हूं। उसने उसी टीन में से लाकर दिखा दी। ग्राहक ने कहा -मूर्ख! यह क्या तंबाकू है? वह बोला-मूर्ख मैं क्यों, मुर्ख तुम हो, लेना हो तो लो वरना आगे चलो। यहां अंट-संट बोलने की जरूरत नहीं।

इस प्रकार अनेक ग्राहक आये। उनको वही दिखाया जाता था सब । बासी हाथ लौट गये। दूसरे दिन पिता आया। पुत्र से दुकान का हाल पूछा तो वह गरज पड़ा-पिताजी! आपने सब ग्राहकों को बिगाड़ रखा है। जो भी आता है मुझे मूर्ख व गधा कहता है। मैं आपका पुत्र मूर्ख क्यों ? मूर्ख वे है। पिता ने कहा पुत्र ! तूने ग्राहकों को माल अच्छी तरह नहीं दिखाया होगा। चलो दुकान पर चलें।

पुत्र ने कहा-पिताजी! एक समझदारी तो आपकी भी मुझे अच्छी नहीं लगी। घी और तम्बाकू दोनों का एक भाव है, फिर भी आपने अलग-अलग टीन रोक रखे थे। मैंने उनको मिलाकर एक टीन खाली कर रख दिया। पिता ने हंसते हुए लाडले बेटे से कहा-बेटे ! जाओ, उस एक टीन को भी कूड़ा-खाना में डालकर खाली कर आओ और तुम अपना दोष देखो। वास्तव में ग्राहक मूर्ख नही हैं, मूर्ख तुम हो।

शिक्षा

जो व्यक्ति स्वयं की त्रुटि को नही देखता है उसका कभी भी सुधार नहीं हो सकता। अतः सब आत्मदोषदर्शी बनें इसी में सबका भला है।

गुरु और शिष्य

वर्षा ऋतु का समय था। चारों तरफ बादल उमड़ रहे थे। किसान लोग खेतों में जा रहे थे। स्थान-स्थान पर गड्ढों में पानी भर रहा था। मेंढक टर-टर्र कर रहे थे। कहीं-कहीं पानी में से निकलकर छोटे-छोटे मेंढक कूद-फांद रहे थे। उस समय किसी कार्य से गुरु और शिष्य कहीं जा रहे थे। अचानक असावधानी से गुरु के पैरों तले मेंढक आ गया और वह मर गया।

शिष्य ने हाथ जोड़कर गुरु से निवेदन किया और प्रायश्चित्त लेने के लिए प्रार्थना की । गुरु ने सुना-अनसुना कर दिया। कुछ भी बोले नहीं। दोनों अपने स्थान पर पहुंच गए। शिष्य आया । नमस्कार कर बोला-गुरुदेव ! उसका प्रायश्चित करना है। यह सुनते ही गुरु क्रोध में लाल हो गये, रोषपूर्ण वक्र दृष्टि से शिष्य को देखने लगे।

शिष्य ने सोचा, अभी कहना उपयुक्त नहीं था क्योंकि गुरुजी कार्य में व्यस्त हैं । सायंकाल प्रतिक्रमण के समय याद दिलाना उपयुक्त होगा। वह उठा और अपने स्थान पर चला गया।

सूर्य अस्त हुथा। प्रतिक्रमण करने के लिए सभी संतगण उद्यत हुए। आलोचना लेने के लिए गुरु के समक्ष वह शिष्य आया। दिवस सम्बन्धी अपने दोष-कार्य की आलोचना करके बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर वह बोला-पूज्यवर ! आज मार्ग में आपके पैरों से मेंढक की हत्या हो गयी थी। उसकी आप भी आलोचना कर लें।

गुरुजी अब अपने कर्तव्य को भूल गये। गुस्से में विवेकहीन बन गये और अपना डण्डा लेकर शिष्य के पीछे झपटे। उसे पकड़ने के लिए दौड़े और बोले जरा इधर आ, तुझे बताऊं मेंढक की हत्या कैसे हुई और कैसे होती है।

शिष्य आगे और गुरु पीछे-पीछे उपाश्रय में दौड़ने लगे। गुरु को इस तरह आवेश में देखकर शिष्य कहीं छिप गया। उपाश्रय में गहरा अंधेरा था। खम्भे भी बहुत थे। अचानक एक खम्भे से गुरुजी टकरा गये और गिरते ही उनका देहांत हो गया। उनकी वह आत्मा शरीर को छोड़कर चण्डकौशिक सर्प के रूप में उत्पन्न हुई।

क्रोध के कारण उनकी संयम-साधना सफल न हो सकी और उनको तिर्यञ्चगति में जन्म धारण करना पड़ा । 

शिक्षा

अतः किसी भी स्थिति में क्रोध करना श्रेयस्कर नहीं है।

परिश्रम का फल

बहुत दिनो की बात है, फूलपुर नाम काएक गांव था। उस गांव में सभी लोगो मे आपस में बड़ा प्रेम था। मुसीबत पड़ने पर सभी एक दूसरे की सहायता करते थे। गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती व पशुपालन था।

एक बार दुर्भाग्य से वहा अकाल पड़ा। वर्षा न होने से फसलें सब नष्ट हो गयीं। नदी, नाले व तालाब सूख गये। सभी लोग भूखे मरने लगे।  इकट्ठा किया हुआ अनाज सब खत्म हो गया। आदमी तो क्या पशु-पक्षी तक सभी बेहाल हो गये। लोग पीने के पानी के लिये भी तरसने लगे। ऐसे में मुखिया ने पंचायत बुलायी और सबसे सलाह मांगी। कोई भी सही सलाह न दे पाया।

रामू नाम के एक किसान ने कुआं खोदने की सलाह दी ताकि पीने के पानी की समस्या को ठीक किया जा सके। कोई भी उसकी इस बात से सहमत न था। सभी को लग रहा था कि यह बहुत मेहनत का काम है और जरूरी भी नहीं कि जहां कुआं खोदा जाये वहां पानी निकल ही आये। रामू को पूरा विश्वास था कि यदि सभी लोग मिलकर परिश्रम करें तो कुआं अवश्य खोदा जा सकता है।

पर कोई उसका साथ देने को तैयार न था। अन्तत: पंचायत बिना कोई निर्णय लिये ही उठ गयी पर रामू ने हिम्मत न हारी। रामू के मित्र शामू ने उसका साथ देने का निर्णय किया। दोनों मित्र कुदालें व फावड़े लेकर गांव के  मदिर में पहुंचे। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की और वहीं मंदिर के किनारे ही कुआ खोदने का निश्चय किया।

अपने हृदय में ईश्वर के प्रति असीम श्रद्धा व विश्वास लिये उन्होंने कार्य आरम्भ किया। वे दोनों कड़ा परिश्रम करते रहे। उन्होंने न रात को रात समझा, न दिन को दिन, बस मेहनत करते रहे। बहुत थक जाने पर थोड़ा विश्राम कर लेते और फिर जुट जाते।

गांव के लोग उन्हें मूर्ख कहते रहे पर दोनों मित्र अपनी ही धुन में लगन और मेहनत से कुआं खोदते रहे। सूरज की चिलचिलाती धूप भी उन्हें उनके निश्चय से डिगा नहीं पायी।

उनके शरीर से धारों-धार पसीना बहता रहा, हाथों में छाले पड़ गये पर वे अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहे और आखिर वह दिन भी आ गया कि फावड़ा मारते ही जल की धारा फूट पड़ी।

खुशी के मारे उनकी आंखों में आंसू आ गये और गले रुंध गये। उन्होंने ईश्वर को लाख लाख धन्यवाद दिया। उनकी मेहनत सफल हो गयी थी। गांववालों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। कल तक जो उनका मजाक उड़ाते थे आज उनके सिर लज्जा से झुक गये।

रामू और शामू ने दिखा दिया था कि लक्ष्य के प्रति दृढ विश्वास लेकर यदि कड़ी मेहनत और लगन से काम किया जाये तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

शिक्षा

“मेहनत का फल मीठा होता है।”

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