पशुपति व्रत कथा (2023) | pashupati vrat katha

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एक नजर मे पशुपति

चूंकि भगवान शिव इंसानों के साथ-साथ पशुओं व सभी जीव और वनस्पतियों के भी स्वामी हैं। यही कारण है शिव जी को पशुपतिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। शिव जी के प्रमुख प्रख्यात शिव के नामों में से एक पशुपति भी हैं। अगर पशुपति का विच्छेद किया जाए तो इसका अर्थ है पशु का पति यानि पशुओं का पालनकर्ता।


पशुपति व्रत कथा (pashupati vrat katha)

शिव महापुराण और रूद्र पुराण में कई बार वर्णन आता है कि जो भक्त पशुपतिनाथ जी की कथा का श्रवण करता है , श्रवण मात्र से उसके सारे पापों का अंत हो जाता है, उसे असीम आनंद की प्राप्ति होती है और वह शिव का अत्यधिक प्रिय बन जाता है।

एक समय की बात है जब शिव चिंकारा का रूप धारण कर निद्रा ध्यान में मग्न थे। उसी वक्त देवी-देवताओं पर भारी आपत्ति आन पड़ी, और दानवों और राक्षसों ने तीन लोक में, स्वर्ग में त्राहि-त्राहि मचा दी तब देवताओं को भी यह स्मरण था कि इस समस्या का निदान केवल शंकर ही कर सकते हैं।

इसलिए वह शिव को वाराणसी वापस ले जाने के प्रयत्न करने के लिए शिव के पास गए। परंतु जब शिव ने सभी देवी देवताओं को उनकी और आते हुए देखा तो शिव ने नदी में छलांग लगा दी। छलांग इतनी तीव्र थी कि उनके सिंग के चार टुकड़े हो गए।

इसके पश्चात भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से पशुपतिनाथ जी की पूजा और व्रत करने का विधान आया।

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