पुष्प की अभिलाषा (2023) | pushp ki abhilasha

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एक नजर मे कविता के लेखक

माखनलाल चतुर्वेदी (4 अप्रैल 1889-30 जनवरी 1968) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए।

इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा वे सच्चे देशप्रेमी थे और 1921–22 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। उनकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है, इसलिए वे सच्चे अर्थों में युग-चारण माने जाते हैं।

ऊपर दी गई जानकारी विकिपीडिया से ली गई है

पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के
                  गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
                  बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
                  पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
                  चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
                  उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
                  जिस पथ जावें वीर अनेक

– माखनलाल चतुर्वेदी

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