उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा | utpanna ekadashi vrat katha

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एक नजर मे उत्पन्ना एकादशी

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।


उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा (utpanna ekadashi vrat katha)

पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में मूर नाम का एक दानव था। वह बहुत ही भयानक और बलवान था। उसने अपने बल से सभी देवताओं को परास्त कर दिया था। उसकेभय से सभी देवता स्वर्ग से भागकर भगवान शिव के पास गए। भगवान शिव ने जब उनकी बातें सुनीं, तो उन्होंने इस पीड़ा को दूर करने के लिए सभी देवताओं को भगवान विष्णु के पास जाने को कहा। उनकी बात सुनकर सभी देवता क्षीरसागर गए। क्षीर सागर में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन कर रहे थे।

उनको शयन करता देख सभी देवता हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगें। उनसे अपनी पीड़ा दूर करने की अनुरोध करने लगें। दानव द्वारा सताएं गए सभी देवताओं को अपनी शरण में आए देख भगवान विष्णु ने काहे वह कौन है, जो आप लोगों को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया है। उसका क्या नाम है? उसमें कितना बल है? वह कहां रहता है? उसके साथ कौन-कौन से और भी दानव हैं? उनकी यह बात को सुनकर भगवान इंद्र ने उन्हें सभी राक्षसों का नाम और उनकी शक्ति के बारे में भी बताया। 

उन्होंने कहा कि उस राक्षस का एक महापराक्रमी मूल नाम का एक पुत्र है। उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है। उसी ने अपने पराक्रम से हम लोगों को स्वर्ग से निकाल कर बाहर कर दिया है और स्वयं ही स्वर्ग का मालिक बन बैठा है। हे प्रभु आप उस दुष्ट राक्षस को मारकर हम लोगों की पीड़ा दूर करें। यह सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि मैं उस राक्षस को मारकर आप लोगों की पीड़ा को दूर करूंगा। तब भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा कि आप लोग चंद्रावती नगर जाए। उनके इस वचन को सुनकर सभी देवता चंद्रावती नगर की ओर प्रस्थान किए।

उस समय सूर्य सेना सहित युद्ध भूमि में गजराज था। उसके भयानक गर्जना को सुनकर सभी देवता चारों दिशाओं में भागने लगें। तब भगवान विष्णु स्वयं रणभूमि में आकर उससे युद्ध  करने लगें। यह युद्ध दस हजार वर्ष तक चलता रहा। युद्ध  में थक जाने पर भगवान विष्णु बद्रिकाश्रम चले गए। वहां हेमावती नामक सुंदर गुफा थी। बता दें यह गुफा 12 योजन लंबी है। उसका एक ही द्वार है। भगवान विष्णु वहां योगनिद्रा में नजर आते हैं। 

भगवान विष्णु के सो जाने पर मुर भी उनके पीछे-पीछे उस गुफा के पास आ गया। भगवान विष्णु को सोया देख कर मुर उन्हें मारने के लिए  आगे बढ़ा। तभी भगवान विष्णु के शरीर से उज्जवल कांतिरूप वाली देवी प्रकट हुई और उन्होंने मुर को युद्ध करने के लिए ललकारा। मुर जैसे ही देवी की तरह युद्ध करने के लिए दौड़ा, उसी वक्त देवी ने उसे मौत के घाट उतार दिया। जब भगवान विष्णु योग निद्रा से उठे तब देवी ने उन्हें सारी बातें बता दी। देवी ने कहा कि उनका जन्म एकादशी के दिन हुआ है इसलिए वह उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजी जाएंगी। बता दें जिस दिन माता प्रकट हुई थी उस दिन मार्गशीर्ष की एकादशी थी।

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