- चाणक्य
“जीवन के कठोर सत्य”
- चाणक्य
“बुरे राज्य की अपेक्षा किसी प्रकार का राज्य न होना अच्छा है”
- चाणक्य
“दुष्ट मित्रों के बजाय मित्र न होना अच्छा है”
- चाणक्य
“दुष्ट शिष्यों की जगह शिष्य न होना अधिक अच्छा है”
- चाणक्य
“और दुष्ट पत्नी का पति कहलाने से अच्छा है कि पत्नी न हो”
- चाणक्य
“शासन-व्यवस्था से संपन्न राज्य में ही रहना चाहिए”
- चाणक्य
“और मित्र भी सोच-विचारकर ही बनाने चाहिए”
- चाणक्य
“गुरु को भी चाहिए कि परखकर शिष्य बनाए”
- चाणक्य
“तथा दुष्ट स्त्री को पत्नी बनाने की अपेक्षा अच्छा है कि विवाह ही न किया जाए”
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