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एक नजर मे सावन पुर्णिमा
सावन का महीना रिमझिम फुहारों और हरियाली से मन को आनंदित कर देता है। इसी महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है भारत में रक्षाबंधन के त्योहार के रूप में।
बेहद उल्लासपूर्ण तरीके से मनाए जाने वाले इस त्योहार की सबसे खास बात है भाई-बहन के पवित्र रिश्तों की मिठास। यह पूरे भारत में मनाया जाता है। असल में श्रावण पूर्णिमा देश में हर प्रांत में अलग-अलग रूपों में मनायी जाती है।
श्रावण पूर्णिमा को दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम, उत्तर भारत में रक्षा बंधन और गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है। हमारे त्योहारों की यही विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है।
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सावन पुर्णिमा व्रत कथा (sawan purnima vrat katha)
सावन व्रत की प्राचीन कथा के अनुसार एक नगर था। उसमें तुंगध्वज नाम का राजा राज्य करता था। तुंगध्वज राजा को जंगल में शिकार करने का बहुत शौक था। एक दिन राजा जंगल में शिकार करने गया। शिकार करते-करते बहुत थक गया। थकान दूर करने के लिए एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया। वहां उसने देखा कि काफी सारे लोग इकट्ठे होकर सत्यनारायण भगवान की पूजा कर रहे हैं। राजा को स्वयं पर इतना अभिमान था कि न उसने भगवान को प्रणाम किया न वह कथा में गया और न ही प्रसाद लिया। प्रसाद देने पर भी न खाकर अपने नगर को लौट आया।
नगर में आकर राजा ने देखा कि दूसरे राज्य के राजा ने उसके राज्य पर हमला कर दिया है। राजा ने अपने राज्य का ऐसा हाल देखकर तुरंत समझ गया कि सत्यनारायण भगवान और उनके प्रसाद का निरादर करने से ऐसा हुआ है। अपनी भूल का आभास होते ही राजा दौड़कर वापस उसी जंगल में बरगद के पेड़ के नीचे आया जहां लोग भगवान सत्यनारायण की कथा कर रहे थे। वहां पहुंचकर राजा ने प्रसाद मांगा और अपनी भूल के लिए माफी मांगी।
पश्चाताप करते देख राजा को भगवान सत्यनारायण ने माफ कर दिया। जिसके फलस्वरूप भगवान के आशिर्वाद से उसके राज्य में सबकुछ पहले जैसा हो गया। भगवान सत्यनारायण की कृपा से राजा ने लम्बे समय तक राज्य संभाला और स्वर्गलोक को गमन कर गया। मान्यता है कि सावन पूर्णिमा की कथा को पढ़ने-सुनने मात्र से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। कहा जाता है कि यह कथा वाजपेय यज्ञ का फल देने वाली है।