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एक नजर मे गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति है। आदिगुरु परमेश्वर शिव दक्षिणामूर्ति रूप में समस्त ऋषि मुनि को शिष्यके रूप शिवज्ञान प्रदान किया था। उनके स्मरण रखते हुए गुरुपूर्णिमा मानाया याता है। गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों।
इसको भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दू, जैन और बोद्ध धर्म के अनुयायी उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह पर्व हिन्दू, बौद्ध और जैन अपने आध्यात्मिक शिक्षकों अधिनायकों के सम्मान और उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के हिन्दू माह आषाढ़ की पूर्णिमा (जून-जुलाई) मनाया जाता है। इस उत्सव को महात्मा गांधी ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचन्द्र सम्मान देने के लिए पुनर्जीवित किया। ऐसा भी माना जाता है कि व्यास पूर्णिमा वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
उपर दी गयी जानकारी विकिपीडिया से ली गयी है।
guru purnima quotes in hindi
लक्ष्मी पूजें सम्पति मिले , गुरू को पूजें ज्ञान !
माता पिता को पूजें सब मिले, हो जाए भव पार
वाणी शीतल चन्द्रमा, मुख-मण्डल सूर्य समान,
गुरु चरनन त्रिलोक है, गुरु अमृत की खान।
सही क्या है गलत क्या है ये सबक पढ़ाते हैं,
झूठ क्या है और सच क्या है ये बात समझाते हैं,
जब सूझता नहीं कुछ भी हमको, तब राहों को सरल बनाते हैं।
गुरु को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण
शिष्य और गुरु जगत में, केवल दो ही वर्ण।
गुरु आपके उपकार का
कैसे चुकाऊं मैं मोल
लाख कीमती धन भला
गुरु हैं मेरे अनमोल
विद्यालय है मंदिर मेरा, गुरु मेरे भगवान् हैं
हमारे हृदय में नित उनके लिए सम्मान है
नई राह दिखा कर हमको, सभी संशय मिटाता है
ज्ञान के सागर से भरा, बस वही गुरु कहलाता है
गुरु की महिमा है अगम, गाकर तरता शिष्य।
गुरु कल का अनुमान कर, गढ़ता आज भविष्य।
जीवन का पथ जहां से शुरू होता है
वो राह दिखाने वाला ही गुरु होता है
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा।
गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।
गुरुवर आपके उपकार का,
कैसे चुकाऊं मैं मोल,
लाख कीमती धन भला,
गुरु है मेरा अनमोल
करता करे ना कर सके,
गुरु करे सब होय
सात द्वीप नौ खंड में गुरु से बड़ा ना कोय
गुरु को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण
शिष्य और गुरु, जगत में दो ही हैं वर्ण
अक्षर-अक्षर हमें सिखाते शब्द-शब्द का अर्थ बताते
कभी प्यार से कभी डाँट से, जीवन जीना हमें सिखाते
माटी से मूरत गढ़े,
सद्गुरु फूंके प्राण।
कर अपूर्ण को पूर्ण गुरु,
भव से देता त्राण।।
आपसे सीखा और जाना, और आपको ही अपना सच्चा गुरु माना,
सीखा है सब आपसे हमने, कलम का मतलब भी आपसे है जाना
आरुणि की गुरुभक्ति से, हमने शिक्षा पाई है।
और कबीर जैसे महान संत ने भी गुरु की महिमा गाई है।।
गुरु की महिमा है अगम, गाकर तरता शिष्य,
गुरु कल का अनुमान कर, गढ़ता आज भविष्य।
उसके जीवन का अध्याय शुरू नहीं होता है,
जिसके जीवन में एक सच्चा गुरु नहीं होता है।
क्या दूं गुरु-दक्षिणा
मन ही मन मैं सोचूं,
चुका न पाऊं ऋण मैं तेरा
अगर जीवन भी अपना दे दूं