91 lokoktiyan in Hindi ~ 91 लोकोक्तियाँ

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एक नज़र में लोकोक्ति

बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँहचढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है। इनकी उत्पत्ति एवं रचनाकार ज्ञात नहीं होते।

लोकोक्तियाँ आम जनमानस द्वारा स्थानीय बोलियों में हर दिन की परिस्थितियों एवं संदर्भों से उपजे वैसे पद एवं वाक्य होते हैं जो किसी खास समूह, उम्र वर्ग या क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। इसमें स्थान विशेष के भूगोल, संस्कृति, भाषाओं का मिश्रण इत्यादि की झलक मिलती है। लोकोक्ति वाक्यांश न होकर स्वतंत्र वाक्य होते हैं। जैसे- भागते भूत को लंगोटी भली ; आम के आम गुठलियों के दाम ; सौ सोनार की, एक लोहार की ; धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।

लोकोक्ति और मुहवरों में अन्तर है। मुहावरा पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है। लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है।

लोकोक्ति का वाक्य में ज्यों का त्यों उपयोग होता है। मुहावरे का उपयोग क्रिया के अनुसार बदल जाता है लेकिन लोकोक्ति का प्रयोग करते समय इसे बिना बदलाव के रखा जाता है। हाँ, कभी-कभी काल के अनुसार परिवर्तन सम्भव है।

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लोकोक्तियाँ यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- लोक + उक्ति। लोक का अर्थ है, क्षेत्र, उक्ति का अर्थ है- ‘कही गई बात’ इस प्रकार लोकोक्ति का अर्थ है-किसी क्षेत्र विशेष में कही गई बात।


lokoktiyan in Hindi (लोकोक्तियाँ)

1. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता-अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता।

2. अधजल गगरी छलकत जाए-ओछा मनुष्य अहंकारी होता है।

3. अंधों में काना राजा-मूखों में कुछ पढ़ा लिखा व्यक्ति।

4. अरहर की ट्टटी गुजराती ताला-अनमेल साधन जुटाना।

5. अंत भला तो सब भला-अच्छे काम का परिणाम अच्छा ही होता है।

6. अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत- पहले सावधानी न बरतना बाद में व्यर्थ पछताना।

7. आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास-आवश्यक कार्य को छोड़कर अनावश्यक कार्य में उलझ जाना।

8. आँखों का अंधा नाम नयनसुख-गुण के विरुद्ध नाम होना या दोहरा लाभ।

9. अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग-मनमानी करना।

10. अपना हाथ जगन्नाथ-अपना किया हुआ काम लाभदायक होता

11. आम के आम गुठलियों के दाम-हर प्रकार से लाभ ही होना या दोहरा लाभा

12. आसमान से गिरा खजूर में अटका-किसी काम के बनने में अनेक बाधाएँ उपस्थित हो जाना।

13. आगे कुआँ पीछे खाई-सभी ओर से विपत्ति आना।

14. ओखली में सिर दिया, तो मूसल से क्या डर-कठिन कार्य करने का निश्चय कर बाधाओं के लिए तैयार रहना।

15. आँख के अंधे गाँठ के पूरे-मूर्ख धनवान।

16. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे- अपना दोष स्वीकार न करके पूछने वाले को दोषी ठहराना।

17. आगे नाथ न पीछे पगहा-किसी तरह की कोई जवाबदेही न होना।

18. एक तो करेला दूसरे नीम चढ़ा-स्वाभाविक दोषों का किसी कारण से बढ़ जाना।

19. एक सड़ी मछली सारे तालाब को गंदा करती है-एक खराब व्यक्ति सारे समाज को बदनाम कर देता है।

20. एक पंथ दो काज-एक काम से दूसरा काम भी बन जाना।

21. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली-छोटों की बड़ों से समानता नहीं हो सकती।

22. काठ की हंडिया बार-बार नहीं चढ़ती-कपटी व्यवहार हमेशा नहीं किया जा सकता।

23. कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर-समय पड़ने पर एक दूसरे की मदद करना।

24. कोऊ नृप होय हमें का हानि-किसी को पद, धन या अधिकार मिलने से हम पर कोई प्रभाव नहीं होता।

25. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा असंगत वस्तुओं का मेल बैठना, बिना सिर पैर का काम करना।

26. कोठी वाला रोए छप्पर वाला सोवे-अधिक धनी होना भी खतरे से खाली नहीं।

27. कोयले की दलाली में हाथ काले-बुरे काम से बुराई मिलना।

28. काला अक्षर भैंस बराबर- अनपढ़।

29. का बरखा जब कृषि सुखाने-काम बिगड़ने पर सहायता व्यर्थ होती है।

30. खग जाने खग ही की भाषा-चालाक ही चालाक ही बात समझता है।

31. खोदा पहाड़, निकली चुहिया-परिश्रम बहुत पर लाभ कम।

32. खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे-अपनी शर्म छिपाने के लिए व्यर्थ का काम करना।

33. गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास- अवसरवादी

34. गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज-झूठा ढोंग रचना।

35. गुरु-गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए -चेला गुरु से भी आगे बढ़ गया।

36. गधा खेत खाए जुलाहा पीटा जाए-अपराध कोई करे सजा किसी को मिले।

37. गंजेड़ी यार किसके, दम लगाई खिसके-मतलबी यार स्वार्थ साधने के बाद साथ छोड़े देते हैं।

38. घर की मुर्गी दाल बराबर-मुफ्त मिली वस्तु का मूल्य नहीं होता है।

39. घर खीर तो बाहर भी खीर-अपना घर संपन्न हो तो बाहर भी सम्मान मिलता है।

40. घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध-अपने घर पर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा नहीं होती।

41. चार दिन चाँदनी फिर अंधेरी रात-खुशी के दिन कम होते

42. चिराग तले अंधेरा-अपनी बुराई नहीं दिखती।

43. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए-बहुत कंजूस होना

44. चोर-चोर मौसेरे भाई-एक से स्वभाव वाले

45. चोर के पैर नहीं होते-पापी सदा भयभीत रहता है।

46. चोर की दाढ़ी में तिनका-अपराधी व्यक्ति हमेशा सशंकित रहता है।

47. जल में रहकर मगर से बैर- आश्रय देने वाले से बैर करना या ताकतवर से दुश्मनी करना।

48. चौबे गए छब्बे बनने दुबे बन कर आए-अधिक लाभ के लिए किए गये काम में हानि होना।

49. छछूदर के सिर में चमेली का तेल-व्यक्ति को कोई ऐसी वस्तु प्राप्त हो जाए जिसके योग्य वह न हो।

50. छाती पर मूंग दलना-कोई ऐसा काम होना जिससे आपको व दूसरे को कष्ट पहूँचे।

51. जंगल में मोर नाचा किसने देखा-योग्यता एवं वैभव का ऐसे स्थान पर प्रदर्शन, जहाँ कद्र करने वाला न हो।

52. जब तक साँस तब तक आस-मरने तक व्यक्ति को अच्छे परिणाम की आशा रहती है।

53. जड़ काटते जाना और पानी देते रहना -ऊपर से प्रेम दिखाना, अप्रत्यक्ष में हानि पहुँचाते रहना।

54. जैसी करनी वैसी भरनी -किए का फल भोगना पड़ेगा।

55. जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई- जिसने दु:ख नहीं भोगा, वह दु:खी जनों का कष्ट नहीं समझ सकता।

56. जिसकी लाठी उसकी भैंस-बलवान की ही विजय होती है।

57. जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय-जिसकी रक्षा भगवान करते हैं। उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

58. तते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर-आय के अनुसार खर्च करना।

159. तिल का ताड़ बनाना-बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कहना।

60. तुम डाल-डाल हम पात-पात-अधिक चालाक होना।

161. दूध का जला छाछ को फूंक-फूंक कर पीता है- एक बार धोखा खाने पर व्यक्ति भविष्य में सदा सतर्क रहता है।

62. दूर के ढोल सुहावने लगते हैं-हर वस्तु दूर से अच्छी लगती

63. दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया- रुपया ही सब कुछ

64. दूध का दूध पानी का पानी-ठीक-ठीक न्याय करना।

65. धोबी का कुता न घर का न घाट का-कहीं का न रहना।

66. नौ नकद न तेरह उधार-अधिक उधार के स्थान पर कम नकद अच्छा है।

67. न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी-झंझट वाले मामले को जड़ से खत्म कर देना।

68. न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी- कार्य करने के लिए कोई असाधारण बहाना।

69. नेकी कर कुएँ में डाल -उपकार करने के बाद किसी को कहना नहीं चाहिए।

70. नाम बड़े और दर्शन छोटे-प्रसिद्धि के अनुसार गुण न होना।

71. नौ दिन चले ढाई कोस-कार्य की बहुत धीमी गति होना।

72. पर उपदेश कुशल बहुतेरे-दूसरे को उपदेश देना, स्वयं गुणों से वंचित रहना।

73. पिया चाहे तो सुहागिन-चाहने वालों की इच्छा ही सर्वोपरि होती है।

74. बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा-दु:खी व्यक्ति ही किसी के दु:ख को जान सकता है।

75. बिन माँगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख-माँगना अच्छा नहीं।

76. बड़ों के कान होते हैं, आँख नहीं-बड़े लोग सुनकर ही निर्णय करते हैं।

77. बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद-मूर्ख आदर करना नहीं जानता।

78. बेकार से बेगार भली-निठल्ले बैठने से कुछ करना बेहतर है।

79. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय-गलत कार्य करने से सदा हानि होती है।

80. बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी-आने वाला दु:ख आकर ही रहता है।

81. बद अच्छा बदनाम बुरा-बदनामी बुरी चीज है।

82. भागते भूत की लंगोटी ही सही-जो मिल जाए, वह काफी

83. मन चंगा तो कठौती में गंगा-शुद्ध मन में भगवान रहते हैं।

84. मुँह में राम बगल में छुरी-ऊपर से दोस्ती अंदर से शत्रुता।

85. मान न मान मैं तेरा मेहमान-जदादस्ती किसी के गले पड़ना।

86. रस्सी जल गई, पर ऐंठ न गई-रईसी जाने के बाद भी शेखी नहीं गई।

87. लातों के भूत बातों से नहीं मानते-बदमाश सजा से ही मानता

88. लेना एक न देना दो -बिना मतलब।

89. सिर मुंडाते ही ओले पड़े-कार्य शुरू करते ही विघ्न का पड़ जाना। |

90. हाथ कंगन को आरसी क्या-प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं।

91. होनहार बिरवान के होत चिकने पात-होनहार व्यक्तियों का बचपन में ही पता चल जाता है।

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