भारत के मंदिर आस्था का स्थान या टेक्नोलोजी का नमूना

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हमारा भारत देश अपनी खूबसूरती ओर विविधताओं के साथ साथ मंदिरों के लिए भी जाना जाता है हमारे भारत मे असंख्य मंदिर हैं। यह मंदिर खूबसूरती और धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं लोगो की धार्मिक भावनाएं इन मंदिरों से जुड़ी हुयी हैं। हमारे देश मे एक से एक पौराणिक मंदिर मौजूद हैं। जो कई हजार साल पहले बनाए गए थे।

इन मंदिरों की खास बात यह है कि यह बहुत ही खूबसूरत, आस्था का केंद्र और बहुत से लोगों के लिए पर्यटन स्थल हैं। अगर इन मंदिरों की बनावट को ध्यान से देखा जाये तो इसमे कोई संशय नहीं है कि आपको इनमे बेहतरीन डिजाइन और कलकारी दिखाई देगी।

लेकिन अगर आप थोड़ा सा नजरिया बदल कर यह सोचेंगे कि यह उस समय जब सिर्फ छेनी और हथोड़ा ही होते थे तब यह डिजाइन और कलाकृतियाँ कैसे बनाई गईं होगी। साथ ही कुछ मंदिरों मे तो एसे डिजाइन हैं जो बिना आज कि आधुनिक मशीनरी के बनाना असंभव है।

यह बात थोड़ी रहस्यमयी भी हो जाती है कि उस समय जब सारा काम छैनी और हथोड़े से किया जाता था तब इन्हे कैसे बनाया गया होगा। एसा भी नहीं है कि इन मंदिर की कलाकृतियों मे थोड़ी भी गलती हो। सभी काम बिलकुल सटीक तरीके से किया गया है। जो हर किसी के मन मे एक रहस्य पैदा करता है।

हम कुछ मंदिरों के उदाहरण लेकर आगे बढ़ते हैं:

होयसलेश्वर मंदिर

होयसलेश्वर मंदिर जिसे हलेबिडु मंदिर भी कहा जाता है , 12वीं शताब्दी का हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है । यह भारत के कर्नाटक राज्य के एक शहर और होयसला साम्राज्य की पूर्व राजधानी हैलेबिदु में सबसे बड़ा स्मारक है । मंदिर एक बड़ी मानव निर्मित झील के किनारे पर बनाया गया था, और होयसल साम्राज्य के राजा विष्णुवर्धन द्वारा प्रायोजित किया गया था।  इसका निर्माण 1121 सीई के आसपास शुरू हुआ और 1160 सीई में पूरा हुआ। 14वीं शताब्दी की शुरुआत में, हलेबिडु को दो बार बर्खास्त किया गया और मुस्लिम सेनाओं द्वारा लूट लिया गया।

इस मंदिर की वास्तुकला को अगर आप ध्यान से देखें तो आप यह नहीं कह पाएंगे कि यह काम सिर्फ छैनी और हथोड़े से किया गया होगा। एसा लगता है कि इन्हे आधुनिक मशीनों बिना बनाना नामुमकिन है। कुछ तस्वीरें देखिये।

यह फोटो विकिपीडिया से ली गयी है।

यह इस मंदिर मे मौजूद नंदी कि तस्वीर है। इसे ध्यान से देखिये नंदी पर जो फिनिशिंग कि गयी है और यह हजारों सालों से एसे ही है क्या यह किसी छैनी और हथोड़े द्वारा कि गयी होगी और जो डिटेल नंदी को ब्ननाए मे दी गयी है क्या वो सिर्फ छैनी और हथोड़े से संभव है। एक और तस्वीर देखें-

यह फोटो विकिपीडिया से ली गयी है।

मंदिर के गर्भ गृह मे बने इन स्तंभों को देखिये क्या आपको लगता है कि यह उस समय के ओजरों से बनाए गए होंगे। बिलकुल नहीं बल्कि इनको देखकर लगता है कि यह किसी खराद यानि लेथ मशीन मे बनाए गए हों आपकी क्या राय है कमेंट मे बताएं। एक ओर मंदिर का उदाहरण देखने से पहले एक और हैरान करने वाली तस्वीर देखते हैं।

यह फोटो विकिपीडिया से ली गयी है।

यह तस्वीर इस मंदिर के नक्शे की है। आप देख रहें है कि यह कितना वेल स्टकचर्ड है। यह कैसे उस समय की तकनीक के हिसाब से यह बहुत उन्नत है ओर यह विचार करने लायक बात है कि बिना किसी ड्रोन तकनीक के यह नक्शा कैसे तैयार किया गया होगा।

कैलाश मंदिर

कैलाश (मंदिर) संसार में अपने ढंग का अनूठा वास्तु जिसे मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) (757-783 ई0) में निर्मित कराया था। यह एलोरा (जिला औरंगाबाद) स्थित लयण-श्रृंखला में है।

अन्य लयणों की तरह भीतर से कोरा तो गया ही है, बाहर से मूर्ति की तरह समूचे पर्वत को तराश कर इसे द्रविड़ शैली के मंदिर का रूप दिया गया है। अपनी समग्रता में २७६ फीट लम्बा , १५४ फीट चौड़ा यह मंदिर केवल एक चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है। इसके निर्माण के क्रम में अनुमानत: ४० हज़ार टन भार के पत्थारों को चट्टान से हटाया गया।

हैरानी की बात है कि बिना किसी टेक्नोलोजी के यह मंदिर सिर्फ उस समय के औजारों से कैसे बना होगा? इस तस्वीर को देखिये –

यह फोटो विकिपीडिया से ली गयी है।

इस स्तम्भ की डिटेल ओर बनावट को देखकर क्या आपको लगता है कि यह यह उस समय के ओजारो के उपयोग से बना होगा? इस मंदिर के जिओमेट्रिकल शेप उस समय की तकनीक के हिसाब से बहुत ही उन्नत थी।

यह तो सिर्फ दो मंदिरों के उदाहरण है बहुत से एसे मंदिर है जो बर्बाद हो गए या कर दिये गए और कुछ मंदिर मौजूद भी हैं।

यह बात सोचने लायक है कि हमारे पुरवाजों के पास शायद कोई उन्नत तकनीक मौजूद रही होगी और हमे प्राप्त न हो सकी। इसका कारण शायद भारत मे लूट करने आए मुगल और अंग्रेज़ रहें होंगे क्योंकि इन्होने ही हमारे देश कि धार्मिक जगहों को नुकसान पहुंचाया था और शायद हमारी टेक्नालजी अपने साथ ले कर खुद विकसित हुये और हम पिछड़े हुये रहा गए। आपका इसपर क्या विचार है कि क्या हमारे पुरवजों के पास कोई खास तकनीक थी? कृपया कमेंट मे अपने विचार जरूर रखें।

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