एक बार एक नगर में मित्र शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। एक दिन ठण्डी-ठंडी हवा चलने के साथ धीमी-धीमी बारिश हो रही थी। तभी वह एक गांव में यज्ञ पशु की भिक्षा मांगने के लिए एक गांव में गया। एक यजमान से उसने भिक्षा में एक बकरा प्राप्त किया।
बकरा मित्रशर्मा के साथ जाने को तैयार नहीं था इसलिए उसने बकरे को अपने कंधे पर लाद लिया और अपने गांव की और चलने लगा चलते हुए वह एक वन में पंहुचा। जहाँ तीन झलिये उसे कन्धे पर बकरा लादे हुए देख कर कहते हैं –
“अरे! सुनो इस ब्राह्मण को हम तीनो मिलकर ठगते हैं और बकरे को उसके पास से ले कर आराम से अपनी पेट पूजा करेंगे।”
यह कहकर वो तीनो सलह बना लेते हैं।
ब्राह्मण को उनमे से एक रास्ते में मिलता है और कहता है – “हे ब्राह्मण तुम ये मूर्खता क्यों कर रहे हो, अपनी पीठ पर कुत्ते को लाद कर शान से ले जा रहे हो। ऐसा कहा जाता है कि कुत्ता एक ऐसा जानवर है जिसे स्पर्श नहीं करना चाहिए।”
ब्राह्मण गुस्से से कहता है – “अरे मुर्ख तू अँधा है क्या ? क्या तुझे मेरे पीठ पर लदा हुआ यह बकरा कुत्ता नजर आ रहा है। “
इसपर वह झलिया कहता है – “माफ़ कीजिये महाराज मुझे यह बकरा कुत्ता नजर आ रहा था।”
यह सुनकर ब्राह्मण आगे बढ़ जाता है। थोड़ी ही दूर जाने पर उसे दूसरा झलिया मिलता है और मित्रशर्मा से कहता है – “अरे मुर्ख तुम इस मरे हुए बझड़े को अपने कंधे पर लाद कर कहाँ ले जा रहे हो ?”
मित्रशर्मा को बहुत गुस्सा आ जाता है और गुस्से में वह कहता है- “अरे मुर्ख क्या तू भी अँधा है जो इस बकरे को मरा हुआ बाझड़ा बता रहा है।”
झलिया कहता है – “भगवान माफ़ कीजिये मैंने अज्ञानतावश ये कहा।”
ब्राह्मण थोड़ा ओर आगे चलता है और उसे एक और झलिया मिलता है और कहता है- “अरे ब्राह्मण तुम ये क्या कर रहे हो गधे को अपने कंधे पर लाद कर ले जा रहे हो, यह तुम्हे शोभा नहीं देता।”
ब्राह्मण को इतना गुस्सा आ जाता है कि वह उस बकरे को निचे फेंक देता है और अपने घर की तरफ भाग जाता है। तीनो झलिये उसे मिलकर मार कर खा जाते हैं।
शिक्षा
नए नौकरों के काम से, अतिथियों के मीठी बातों से, स्त्रियों के झूठे रोने से और झलियों की कपटी बातों से संसार में कौन नहीं ठगा गया।