धर्म बुद्धि और पाप बुद्धि मित्रों की कहानी | panchatantra stories in hindi

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 किसी नगर में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्र थे जो गरीब थे। एक समय पापबुद्धि ने सोचा, मैं बहुत दरिद्र हूँ, इसलिए इस धर्मबुद्धि के साथ  प्रदेश जाकर वहां से धन कमाकर उसे ठगूंगा और धनवान बन जाऊंगा। 

पापबुद्धि ने धर्म बुद्धि से इस विषय पर चर्चा की। धर्मबुद्धि उसके विचार से प्रसन होकर अपने बड़ों की आज्ञा लेकर देशान्तर की यात्रा पर निकल पड़ा। वहां जाकर धर्मबुद्धि के साथ उसने बहुत धन कमाया। कुछ समय बाद वह धन कमाकर ख़ुशी ख़ुशी अपने घर लौटने लगे। रस्ते में जाते हुए अपने  घरों से कुछ दुरी पर पापबुद्धि धर्मबुद्धि से कहता है –

“मित्र ! हमने बहुत अधिक धन कमा लिया है इसलिए इसे घर ले जाना ठीक नहीं क्या पता कोई चोर इसे चुरा कर ले जाये, इसलिए हम इसमें से थोड़ा धन ही घर ले जायेंगे और बाकि धन को हम जगल में गाड़ देंगे और जरुरत पड़ने पर थोड़ा-थोड़ा निकालते रहेंगे। 

धर्मबुद्धि ने पापबुद्धि के कहे अनुसार वैसा ही किया। एक दिन पापबुद्धि आधी रात में उस धन को निकाल कर और गड्ढे को बंद करके अपने घर लोटा और धर्मबुद्धि से कहने लगा –

“मित्र ! अब हमारे पास धन ख़त्म हो गया है इसलिए हम उस गड्ढे में से धन निकाल कर लाते हैं। 

धर्मबुद्धि ने कहा –

“मित्र ! ऐसा ही करो। “

दोनों उस स्थान पर जाकर देखते हैं कि वहां से धन चोरी हो गया है। 

इसपर पापबुद्धि कहता है –

“अरे धर्मबुद्धि, तुम्हारे सिवा यह धन किसी ने नहीं निकला, इसलिए तुम मुझे मेरा धन लोटा दो, नहीं तो मैं राजदरबार में फरियाद करूँगा।”

धर्मबुद्धि ने कहा –

“अरे मुर्ख ! मैंने यह धन नहीं निकाला, मैं धर्मबुद्धि हूँ, मैं चोरी नहीं  कर सकता। 

वे दोनों न्यायधीश के पास चले गए। जब न्यायधीश ने धर्मबुद्धि से पूछा कि “क्या तुम्हारा कोई गवाह है जो यह कहे कि तुम निर्दोष हो।”

तब धर्मबुद्धि ने कहा कि “मेरा कोई गवाह नहीं है लेकिन अगर मैं सच्चा हूँ तो वहां एक बरगद का वृक्ष है जो मेरा गवाह बनेगा।” 

पापबुद्धि ने डर के मारे सोचा कि अगर उस पेड़ ने सच में गवाही दे दी तो मैं फंस जाऊंगा और न्यायधीश मुझे दंड देंगे,  पापबुद्धि ने अपने घर जाकर चोरी की सारी बात अपने पिता से कह दी और अपने पिता को उस पेड़ के खोखले में जाकर बैठने को कहा और पापबुद्धि ने कहा- 

“अगर न्याधीश पूछेगा कि चोरी किसने कि तो आप धर्मबुद्धि का नाम ले देना।”

अगले न्यायधीश दोनों को लेकर उस पेड़ पास पहुंचे और पेड़ से पूछा –

“हे ! बरगद के पेड़ बता इनमे से किसने चोरी की है ?”

बरगद में छिपा पापबुद्धि का पिता कहता है –

“चोरी धर्मबुद्धि ने की है।”

इसपर धर्मबुद्धि ने सोचा कि यह दुष्ट पेड़ झूठ बोल रहा है इसलिए मैं इसको आग लगा दूंगा। धर्मबुद्धि ने सुखी लकड़ियां इकट्ठी करके उस पेड़ के चारों तरफ आग लगा दी। तभी उस पेड़ की खोखले में से पापबुद्धि का पिता चिल्लाता हुआ निकला आग से उसका आधा शरीर जल गया और न्यायधीश के सामने यह भी स्पष्ट हो गया कि यह चोरी पापबुद्धि ने ही की है सजा तौर पर पापबुद्धि को पेड़ पर उल्टा लटका दिया। 

 

शिक्षा 

 दूसरों को कष्ट पहुंचाकर प्रसन होता हुआ व्यक्ति अपने विनाश की गिनती नहीं करता। 

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