बीरबल
घोड़ों का एक व्यापारी कुछ घोड़ों को लेकर अरब देश से आया और शहंशाह अकबर से मिला। बादशाह को घोड़े पसंद आ गए और उन्होंने सारे घोड़े .खरीद लिए और सौदागर से कहा, “तुम हमारे लिए और अरबी घोड़े लाओ। तुम अरब से आए हो, इसलिए पेशगी के तौर पर हम तुम्हें हजार रुपये दे रहे हैं।”
सौदागर बहुत ही प्रसन्न हुआ और वापस अरब लौट गया। सौदागर के चले जाने के बाद बीरबल को मालूम हुआ कि वह व्यापारी पेशगी लेकर अपने देश चला गया और बादशाह ने उसका नाम-पता भी नहीं पूछा। उन्हीं दिनों शहंशाह अकबर बीरबल से बोले, “बीरबल,हमारे राज्य में वैसे तो मूर्ख बहुत ही कम हैं, फिर भी जो मूर्ख हैं, उनके नाम हम जानना चाहते हैं।
इस राज्य में कितने मूर्ख हैं, उनकी गिनती करने का काम हम तुम्हें सौंपते हैं, बीरबल।” “आपका हुक्म सिर-आंखों पर, हुजूर।” बीरबल इतना कहकर मूों की गिनती करने के लिए निकल गए।
दो दिन के बाद बीरबल दरबार में आए और मूर्खों की एक सूची बादशाह को दी। उस सूची में बादशाह सबसे ऊपर अपना नाम देखकर भड़क उठे और बीरबल से इसका कारण पूछा। बीरबल सिर झुकाकर बोले, “जहांपनाह, अरब देश से जो व्यापारी आया था,आपने उसका नाम-पता पूछे बिना ही उसे हजार रुपये पेशगी में दे दिए।
यदि वह व्यापारी घोड़े नहीं लाया तो आप उसका क्या बिगाड़ लेंगे? आप तो उसका नाम-पता नहीं जानते। क्या यह मूर्खता भरा काम नहीं है?’ शहंशाह अकबर को बीरबल की बात बहुत पसंद आई।
वह अपनी गलती पर मन-ही-मन पछताने लगे लेकिन वह थे तो एक शहंशाह। अकड़ते हुए बोले, “यदि वह व्यापारी घोड़े लेकर आ गया तब….?” बीरबल ने जवाब में कहा, “जहांपनाह, फिर मैं आपके नाम के स्थान पर उस व्यापारी का नाम लिख दूंगा।”
शहंशाह अकबर यह सुनकर अचानक ही हंस पड़े। । हाजिर जवाब बीरबल भला गलत कैसे हो सकते थे।.
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