एक बार के एक तालाब में कम्बुग्रीव नाम का एक कछुआ रहता था उसके साथ उसके दो परम मित्र हंस रहते थे वो अपना जीवन बहुत ही अच्छे से व्यतीत कर रहे थे। एक बार बारिश न होने के कारण जिस तालाब में कछुआ रहता था वह धीरे धीरे सूखने लगा। तभी कछुए से हंस आकर कहते हैं – “अरे मित्र ! तुम्हारा जीवन तो अब खतरे में पड़ रहा है इसलिए तुम्हे कोई उपाए करना चाहिए।”
कछुआ कहता है – “हाँ मित्र तुम सही कह रहे हो इस तालाब में अब कीचड़ के आलावा अब कुछ नहीं रहा इस कारण मेरा जीवन कठिन हो गया है। तुम मेरे लिए कोई ऐसा तालाब ढूंढो जिसमे पानी हो और मैं वहां अपना जीवन व्यतीत कर सकूँ।” दोनों हंस तालाब ढूंढ लेते हैं पर जहा वह तालाब होता है वह कछुआ चलकर नहीं पहुँच पाता।
दोनों हंसो ने तालाबों के बारे में कछुए को बताया कि वह बहुत दूर है तुम वहां चलकर नहीं पहुँच सकते। कछुआ कहता है – “मित्रो मैं एक तरीके से उस तालाब तक पहुँच सकता हूँ अगर तुम मुझे उड़ा कर ले जाओ। “ हंसों ने कहा – “मित्र ! यह कैसे संभव है ?
कछुए कहता है – “तुम दोनों अपनी चोंच में एक लकड़ी के टुकड़े को दोनों हिस्सों से पकड़ लेना मैं उसे बिच में से पकड़ लूंगा और तुम मुझे उड़ा कर ले जाना। “ हंसो ने कहा – “मित्र ! हम ऐसा ही करेंगे पर आपको उस समय चुप रहना होगा। “ कछुए ने कहा – “ठीक है जैसा तुम कहो।” दोनों हंस लकड़ी को अपने मुँह में पकड़ लेते हैं और कछुआ भी लकड़ी को मुँह में पकड़ लेता है। हंस उसको लेकर उड़ जाते हैं। उड़ते हुए बिच में एक गांव आता है
गांव के लोग हंसों और कछुए को देख कर कहते हैं – “वो देखो दो हंस अपने मुँह में कुछ अजीब चीज लटका कर ले जा रहे हैं।”पुरे गांव में हलचल मच जाती है और वहां के नागरिक उसे अलग अलग तरह वस्तु बताते हैं जिससे कछुए जो गुस्सा आ जाता है और वह बोल उठता है – “अरे मूर्खो ….. वह अपनी बात पूरी भी नहीं पाता कि निचे जा गिरता है और मृत्यु को प्राप्त होता है।
शिक्षा
“जो अपनों की बात नहीं मानता उसके साथ लकड़ी से गिरे कछुए जैसा होता है।”