एक समय की बात है समुद्र के किनारे टिटिहरी और टिटहरे का जोड़ा रहता था। टिटिहरी ने गर्भ धारण किया हुआ था। जब टिटिहरी का प्रसव काल आया तो उसने टिटहरे से कहा –
“प्रिय! मेरा प्रसव काल नजदीक आ रहा है कृपया करके तुम कोई ऐसा सुरक्षित स्थान ढूंढिए जहाँ मैं निश्चिन्त होकर अंडे दे सकूँ।”
इसपर टिटहरे ने कहा –
“प्रिय! तुम इस सूंदर समुद्र के किनारे ही निश्चिंत होकर अंडे दो यहाँ तुम्हे कोई परेशानी नहीं होगी।”
टिटिहरी ने कहा –
“यहाँ महीने में चार दिन बहुत तेज ज्वार(पानी की लहरें ) आती हैं जो हाथी को भी बहा ले जाये इसलिए आप कोई सुरक्षित स्थान ढूंढिए।”
टिटहरे ने जवाब दिया –
हा… हा…. हा…. समुद्र की इतनी क्या हिम्मत जो मेरे बच्चों को नुकसान पहुंचाए।”
समुद्र सोचता है कि शायद इस टिटहरे में कोई खास शक्ति है जिसके घमंड में यह बोल रहा है। अगर मैं इसके अंडे बहा ले जाऊं तो देखता हूँ यह क्या कर पायेगा।
टिटिहरी समुद्र के किनारे ही अंडे दे देती है। जब दोनों खाना ढूंढ़ने के लिए कहीं बाहर गए होते हैं तो समुद्र अपनी लहरों के साथ अण्डे बहा कर ले जाता है। जब टिटिहरी आकर देखती है तो अंडे वहां नहीं दीखते और टिटहरे से कहती है –
“अरे मुर्ख ! मैंने तुझे पहले ही कहा था कि समुद्र अपनी लहरों के साथ अंडो को बहा ले जायेगा पर तू नहीं माना।
शिक्षा
शत्रु का बल जाने बिना उससे कभी भी शत्रुता नहीं करनी चाहिए।