सांप मेंढक कहानी (Panchatantra Stories in Hindi)
यह सोचकर उसने यह उपाय किया कि वह एक तालाब के पास जाकर उदास सा मुंह बनाकर बैठ गया। तालाब के एक मेंढक ने उसे देखा और पूछने लगा – “क्या बात आज तुम कुछ खा पी नहीं रहे।” सांप ने कहा – “मित्र मेरे उदास होने और यहाँ आने का एक ही कारण है।”
मेंढक ने कारन पूछा तब सांप ने एक कहानी बनाई और कहा – “मित्र मैं जब एक मेंढक को अपना भोजन बनाने के लिए उसका पीछा कर रहा था, तब वह मेंढक जाकर कुछ ब्राह्मणो के बिच में चला गया और वह गायब हो गया। मुझे बहुत गुस्सा आ गया और गुस्से में मैंने ब्राह्मण के लड़के के पैर के अंघूठे में काट लिया जिससे उसकी तुरंत मृत्यु हो गयी। ब्राह्मण ने यह देख कहा तूने मेरे पुत्र को बिना कारण मार दिया है इसलिए मैं तुझे शापदे रहा हूँ कि तुझे मेंढकों का वाहन बनकर उनकी सेवा करनी होगी और जो वो दान में दें वही भोजन में खाना होगा बाकि कुछ तुम खा नहीं पाओगे।”
यह सुनकर मेंढक अपने राजा जलपाद के पास गया और पूरी बात सुनाई। राजा ने अपने मंत्रियों की सलाह से उस सांप को अपना वाहन बना लिया।सांप ने मेंढ़को को अपने सिर से लेकर पूंछ तक बिठाकर सैर करवाई और अलग अलग चालों से प्रसन्न किया। मेंढको का राजा उससे बहुत प्रसन्न हुआ। एक दिन वहां एक दूसरा हट्टा-कट्टा सांप आता है और उस सांप को कहता है -“अरे मुर्ख तू क्यों अपने भोजन को पीठ पर बैठा कर घूम रहा है।” सांप कहता है- “मित्र यह बात मैं भी जानता हूँ इसलिए समय की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।”
कुछ समय बाद सांप कहने लगा- महाराज मैं बहुत थक गया हूँ इसलिए मुझे भोजन देने की कृपया करें। मेंढकों के राजा ने सोचा कि अगर इसको भोजन नहीं दिया तो यह हमें सवारी करने नहीं देगा। यह सोचकर मेंढको के राजा ने उसे छोटे छोटे मेंढकों खाने की आज्ञा दी। वह हर रोज ऐसा ही करता जब सांप थक जाता तो उसे मेंढकों का भोजन दिया जाता। इस तरह उसने मेंढकों का नाम निशान मिटा दिया।
शिक्षा
बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो मान-अपमान की चिंता छोड़ कर अपना स्वार्थ सिद्ध करता है।