किसी नगर में एक बार कुम्हार रहा करता था। एक बार वह नशे में ठोकर खाकर टूटे हुए धारधार घड़े के ऊपर जा गिरा। जिससे टूटे हुए खड़े की कोर उसके माथे में जा घुसी और वह लहूलुहान हो गया बड़ी मुश्किल से उठकर किसी तरह अपनी मलहम पट्टी करवाई। लेकिन किसी कारन से उसका वह जख्म बिगड़ गया और फ़ैल गया। भाग्य वश बहुत दिन बाद उसका जख्म तो ठीक हो गया लेकिन उसका निशान उसके माथे पर रह गया।
एक समय उस राज्य में काल पड रहा था वह भूखा प्यासा व्याकुल होकर बहुत से राज सेवकों के साथ दुसरे राज्य में जाकर किसी राजा का सेवक बन गया। उस राजा ने उस कुम्हार के माथे पर घाव देखा और सोचा- “शायद यह कोई शूरवीर आदमी होगा, किसी युद्ध में लड़ते हुए उसके माथे पर यह निशान पड़ गया होगा।” इसके बाद राजा उसकी राजपूतों से भी ज्यादा इज्जत करने लगा। सभी राजपूत भी उससे जलने लगे परन्तु राजा के डर से उससे कुछ कहते नहीं थे।
एक दिन जब युद्ध का मौका आया तब राजा सभी शूरवीरों का सम्मान करने लगा, लड़ाई के घोड़े त्यार होने लगे, रथ तैयार होने लगे, हाथियों को तैयार किया जाने लगा। तब बड़ा पद दिए हुए कुम्हार को राजा ने अलग बुलाया और पूछा – “हे राजपूत क्या तुम्हारे माथे पर यह घाव हथियारों से लगा है ?”
कुम्हार कहता है -“महाराज! यह किसी हथियार का घाव नहीं बल्कि मैं शराब पीकर अपने घर में रखे हुए टूटे घड़े पर गिर पड़ा जिससे नुकीला घड़े का टुकड़ा मेरे सर में घुस गया। जिससे यह निशान पड़ गया।” यह सुनकर राजा ने कहा – “मुर्ख कुम्हार तूने मेरे साथ छल किया है इसलिए तू यहाँ से चला जा। इसपर कुम्हार कहता है – “महाराज ऐसा मत कीजिये आप युद्ध में मेरा सहस देखना।” राजा कहता है – “भले ही तुझमे युद्ध के सभी गुण हैं परन्तु तू फिर भी कुम्हार ही है।” यह कहकर राजा ने उसे अपने राज्य से निकल दिया।
शिक्षा
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि अपने स्वार्थ के लिए कभी-कभी झूठ का सहारा भी लेना चाहिए।