एक बार एक ब्राह्मण के घर उसके पुत्र के जन्म होने के साथ-साथ एक नकुली ने भी नेवले को जन्म दिया। ब्राह्मणी और ब्राह्मण ने नेवले को अपने पुत्र के साथ साथ ही पाला। नेवला भी ब्राह्मण के पुत्र को बहुत प्रेम करता था और वो दोनों आपस में खेलते रहते थे। किन्तु ब्राह्मण की पत्नी के मन में यह शंका बनी रहती थी कि कभी वह नेवला अपने जानवर रूप के कारन उसे काट न खाये।
एक दिन वह ब्राह्मणी अपने पति को अपने बच्चे के पास तालाब पर पानी भरने के लिए यह सोच कर गई कि कहीं नेवला उसके बच्चे को काट न खाये। जब वह पानी भरने के लिए तालाब पर चली गयी तो ब्राह्मण यह सोच कर भिक्षा मांगने के लिए चला गया कि नेवला और उसका पुत्र जन्म से ही साथ साथ हैं और एक दूसरे को अपना भाई समझते हैं। दुर्भग्य वश ब्राह्मण के जाने के बाद एक काला जहरीला भयानक सांप निचे लेटे हुए उसके पुत्र की और बढ़ने लगा।
नेवले ने उस बालक को अपना भाई मान सांप के साथ लड़ाई की और उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। नेवले के मुंह पर खून लग गया और वह यह सोचकर, तालाब कि ओर गई ब्राह्मणी की ओर बढ़ा, कि वह उसकी प्रसंसा करगी। रस्ते से ब्राह्मणी पानी लेकर आ रही थी कि नेवले को खून में लथ-पथ देख उसके मन में वही विचार आया कि कहीं नेवले ने उसके पुत्र को खा न लिया हो। ब्राह्मणी ने यह सोच कर पानी से भरा मटका नेवले के सर पर दे मारा।
जिसकी चोट नेवला पल भर भी सहन न कर पाया और वो तुरंत मर गया। ब्राह्मणी भागती हुई अपने घर पहुंची और अपने बच्चे को सही सलामत पाया और पास में ही सांप के टुकड़े-टुकड़े पाए। तब ब्राह्मणी को नेवले की वीरता का ज्ञान हुआ। ब्राह्मणी बहुत पछताई और बहुत भावुक हो गई थोड़ी ही देर में उसका पति भी वहां आ गया। अपनी पत्नी को दुखी देख वह भी दुखी हो गया परन्तु अपने बच्चे को सही सलामत देख वे खुश भी थे।
शिक्षा
बिना सोचे समझे कोई कार्य नहीं करना चाहिए। जो भी बिना सोचे समझे कार्य करता है तो उसे ब्राह्मणी जैसे दुःख का सामान करना पड़ सकता है।