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एक नजर मे साईं बाबा
साईं बाबा का जन्म कब और कहाँ हुआ था एवं उनके माता-पिता कौन थे ये बातें अज्ञात हैं। किसी दस्तावेज से इसका प्रामाणिक पता नहीं चलता है। स्वयं शिरडी साईं ने इसके बारे में कुछ नहीं बताया है। हालाँकि एक कथा के रूप में यह प्रचलित है कि एक बार श्री साईं बाबा ने अपने एक अंतरंग भक्त म्हालसापति को, जो कि बाबा के साथ ही मस्जिद तथा चावड़ी में शयन करते थे, बतलाया था कि “मेरा जन्म पाथर्डी (पाथरी) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
मेरे माता-पिता ने मुझे बाल्यावस्था में ही एक फकीर को सौंप दिया था।” जब यह चर्चा चल रही थी तभी पाथरी से कुछ लोग वहाँ आये तथा बाबा ने उनसे कुछ लोगों के सम्बन्ध में पूछताछ भी की। उनके जन्म स्थान एवं तिथि की बात वास्तव में उनके अनुयायियों के विश्वास एवं श्रद्धा पर आधारित हैं। शिरडी साईं बाबा के अवतार माने जाने वाले श्री सत्य साईं बाबा ने अपने पूर्व रूप का परिचय देते हुए शिरडी साईं बाबा के प्रारंभिक जीवन सम्बन्धी घटनाओं पर प्रकाश डाला है जिससे ज्ञात होता है कि उनका जन्म २८ सितंबर १८३५ में तत्कालीन हैदराबाद राज्य के पाथरी नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
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साईं बाबा व्रत कथा (sai baba vrat katha)
कोकिला बहन और उनके पति महेशभाई शहर में रहते थे। दोनों में एक-दूसरे के प्रति प्रेम-भाव था, परन्तु महेशभाई का स्वभाव झगड़ालू था। दूसरी तरफ कोकिला बहन बहुत ही धार्मिक स्त्री थी, भगवान पर विश्वास रखती। धीरे-धीरे उनके पति का धंधा-रोजगार ठप हो गया. कुछ भी कमाई नहीं होती थी। महेशभाई अब दिन-भर घर पर ही रहते और अब उन्होंने गलत राह पकड़ ली। अब उनका स्वभाव पहले से भी अधिक चिड़चिड़ा हो गया।
एक दिन दोपहर को एक वृद्ध महाराज दरवाजे पर आकार खड़े हो गए। चेहरे पर गजब का तेज था और आकर उन्होंने दाल-चावल की मांग की। कोकिला बहन ने दल-चावल दिए और दोनों हाथों से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया। वृद्ध ने कहा साईं सुखी रखे। कोकिला बहन ने कहा महाराज सुख मेरी किस्मत में नहीं है और अपने दुखी जीवन का वर्णन किया। महाराज ने श्री साईं के व्रत के बारें में बताया 9 गुरुवार फलाहार या एक समय भोजन करना, हो सके तो बेटा साईं मंदिर जाना, घर पर साईं बाबा की 9 गुरुवार पूजा करना। साईं व्रत करना और विधि से उद्यापन करना भूखे को भोजन देना, साईं बाबा तेरी सभी मनोकामना पूर्ण करेंगे, साईं बाबा पर अटूट श्रद्धा रखना जरूरी है।
कोकिला बहन ने भी गुरुवार का व्रत लिया। 9 वें गुरुवार को गरीबों को भोजन कराया। उनके घर से कलह दूर हुए। घर में बहुत ही सुख-शांति हो गई। महेशभाई का स्वभाव ही बदल गया। उनका रोजगार फिर से चालू हो गया। थोड़े समय में ही सुख-समृधि बढ़ गई। दोनों पति-पत्नी सुखी जीवन बिताने लगे।
एक दिन कोकिला बहन के जेठ-जेठानी सूरत से आए। बातों-बातों में उन्होंने बताया कि उनके बच्चे पढ़ाई नहीं करते, इसलिए परीक्षा में फेल हो गए हैं। कोकिला बहन ने 9 गुरुवार की महिमा बताई और कहा कि साईं बाबा की भक्ति से बच्चे अच्छी तरह अभ्यास कर पाएंगे। लेकिन इसके लिए साईं बाबा पर विश्वास रखना जरूरी है. साईं सबकी सहायता करते हैं। उनकी जेठानी ने व्रत की विधि बताने के लिए कहा। कोकिला बहन ने कहा उन्हें वह सारी बातें बताईं, जो खुद उन्हें वृद्ध महाराज ने बताई थी।
सूरत से उनकी जेठानी का थोड़े दिनों में पत्र आया कि उनके बच्चे साईं व्रत करने लगे हैं और बहुत अच्छे तरह से पढ़ते हैं। उन्होंने भी व्रत किया था। इस बारे में उन्होंने लिखा कि उनकी सहेली की बेटी शादी साईं व्रत करने से बहुत ही अच्छी जगह तय हो गई। उनके पड़ोसी का गहनों का डिब्बा गुम हो गया था, जो अब वापस मिल गया है। ऐसे कई अद्भुत चमत्कार हुए था। कोकिला बहन ने समझा कि साईं बाबा की महिमा अपार है।