यहां पर हमने दूर के ढोल सुहावने जैसी लोकोक्ति पर एक शिक्षाप्रद कहानी आपके लिए प्रस्तुत की है.
कहानी शुरू होती है रजनी और उसकी सासू मां से. रजनी की सासू मां के दो बेटे थे एक शहर में रहता था सरकारी नौकरी करता था दूसरा गांव में खेती बाड़ी करता था.
सासू मां बोली – छोटी बहू तुम समझती क्यों नहीं बड़े शहर में रहने के कारण विवेक के खर्चे बहुत ज्यादा है यहां गांव में क्या है कम में भी सबका गुजारा हो जाता है. वहां उन लोगों को ज्यादा राशन पानी की जरूरत रहती है इसलिए भेज देती हूं.
रजनी बोली माताजी बड़ा शहर है तो खर्चे भी बड़े हैं लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा बड़े भाई साहब का पद है और उनकी कोई छोटी-मोटी नौकरी तो है नहीं, बैंक मैनेजर है वह तो उनके पास किस बात की कमी, ले देकर दो बच्चे हैं. वह खुद इतना कमाते हैं कि अपने परिवार के साथ-साथ हम सब का भरण पोषण भी अच्छी तरह से कर सकते हैं.
व तो बड़ी भाभी और भाई साहब की आदत है हर समय खर्चों का रोना रोने की जबकि सबसे ज्यादा मजे में वही है. वहां शहर में उनका गेहूं, चावल, घी, तेल किसी चीज का खर्चा ही नहीं है. सब आप ही यहां से उनके लिए भेजती रहती है वहां उन्हें कुछ खरीदना ही नहीं पड़ता.
उनका तो पैसा बचता और है, खर्चा कहां होता है. यहां हम बच्चों का पेट काट काटकर कैसे खर्चा चलाते हैं हम ही जानते हैं लेकिन आप क्यों समझने लगी हमारी परेशानी. आपको तो बड़े भाई साहब भाभी की परेशानी दिखती है यहां मेरे पति दिन-रात खेतों में हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं तब जाकर यह फसल तैयार होती है.
वैसे अपने मन की बात बताऊं आपको माजी जेठानी जी इतनी सुकुमार हैं वह यह सब गेहूं चावल साफ भी कर पाती होंगी या फिर यूं ही उठा कर इधर-उधर कर देती होंगी.
रजनी ने अपने मन की बात साफ-साफ ना कहकर इशारों में समझाई. क्या मतलब है तुम्हारा छोटी बहू! हमारा बेटा बड़ा शहर चला गया तो उसका हिस्सा खत्म हो गया मेरे दोनों बेटों का खेती में बराबर का हिस्सा है.
यदि खेती में बराबर का हिस्सा है तो मेहनत भी बराबर की हो वहां सिर्फ मेरा पति ही क्यों पीसे और मौज सब उड़ाए. हिस्सा है तो अपना हिस्सा ले जाए लेकिन यहां मेरे पति ही अकेले क्यों पीसे वह तो शहर में मजे की जिंदगी जी रहा है, सब कुछ किया कराया मिल रहा है.
उनके पास कोई कमी नहीं है वह तो आपके सामने बड़े शहर के खर्चो का रोना रोते रहते हैं. इतना सब कुछ होते हुए कभी आपके लिए एक ढंग की साड़ी लेकर आई है जेठानी जी. जब भी लेकर आती है अपनी उतरन लाती है. आपके हमारे लिए और यहां तक कि इनके और बच्चों के लिए अपने बच्चों की उतरन लाती है. यहां आपको बताती है कि यह सब खरीद कर लाई है.
मैं इतनी भी नासमझ नहीं कि नए पुराने का पहचान ना कर सकूं और फिर आजकल सोशल मीडिया पर सब नजर आता है.
आखिर कहते हैं ना दूर के ढोल सुहावने होते हैं वही हाल रजनी की सासू मां का भी है, बड़ा बेटा विवेक और छोटा बेटा कृष्णा है. जहां बड़ा बेटा विवेक पढ़ने लिखने में होशियार था वही छोटा बेटा कृष्णा पढ़ने लिखने में कमजोर था.
विवेक पढ़ लिखकर शहर चला गया वहां उसकी सरकारी नौकरी लग गई और कृष्णा मैट्रिक तक की पढ़ाई करके गांव में रहकर खेती करने लगा. समय के साथ दोनों की शादी ब्याह और बच्चे भी हो गए. बड़े बेटे के सिर्फ दो बेटे थे और छोटे के सिर्फ तीन बेटियां ही बेटियां थी.
मां की मोहब्बत बड़े बेटे के परिवार की तरफ अधिक थी क्योंकि वह लोग जब भी आते थे मां के लिए साड़ियां बगैरा लाते और मां गदगद हो जाती. यहां गांव में छोटा बेटा बहू सब कुछ करते हुए भी उनकी नजरों में तूच्छ थे.
जहां बड़े बेटे के बच्चों को सासू मां भाग भाग कर खिलाती उसी जगह रजनी की तीनों बेटियों को बिल्कुल नजरअंदाज कर देती. यह सब देखकर रजनी को बहुत बुरा लगता था वह पति से भी बताती लेकिन वह सीधा साधा व्यक्ति रजनी को ही समझा देता – “रजनी जो जिसकी किस्मत में होगा वही मिलेगा तुम परेशान मत हुआ करो”.
रजनी देखती थी कि भाई साहब की सरकारी नौकरी होते हुए भी उसकी सासूमां घर की हर चीज मै उनका ज्यादा से ज्यादा हिस्सा लगाती. उसे भी कोई परेशानी नहीं थी वह जानती थी कि दोनों बेटों का बराबर का हिस्सा है लेकिन मेहनत अकेला उसका पति करता है.
दूसरी और वह लोग तो हर चीज से बच निकलते मां को कभी अपने साथ शहर नहीं ले जाते लेकिन फिर भी मां उधर ही ज्यादा झुकाव रखती थी. इस बार रजनी ने सोच लिया था कि वह सासु मां को जेठानी जी के साथ शहर भेज कर ही रहेगी कम से कम वह भी तो उनकी सच्चाई जाने.
इस बार जेठ जेठानी घर आए तो रजनी ने कहा भाई साहब माताजी को आए दिन सांस की तकलीफ होती है, आप इन्हें शहर ले जाए और किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा कर वही रखकर इलाज करवाएं.
रजनी की यह बात सुनकर जेठानी जी का मुंह बन गया लेकिन वह बोले – हां हां हमारी अम्मा है हम क्यों नहीं दिखाएंगे. तुम उनका सामान पैक कर दो अम्मा हमारे साथ शहर जा रही है.
जेठानी जी की अकेले रहने की आदत थी, उन्हें तो सासु मां का शहर जाना खल गया.
जेठानी बोली सुनिए जी बहुत बड़े डॉक्टर के पास ले जाने की जरूरत नहीं है उनकी फीस बहुत ज्यादा है. बड़े शहर के बड़े खर्चे हैं हम लोग कैसे पूरे करें. अगर माता जी कुछ जमा जोड़कर लाई हो तो बात बन सकती है. इस बार छोटे का इंजीनियरिंग में दाखिल करवाना है.
जेठानी का पति बोला मैं भी तो यही सोच कर लाया हूं रीना माताजी ने जरूर इतने सालों में कुछ तो जमा जोड़ा होगा इसी बहाने निकलवा लेंगे. वैसे भी वह कृष्णा से ज्यादा मुझे चाहती है तभी तो हमेशा राशन पानी सब भेज कर हमारे खर्चे बचाती रहती है जबकि उन्हें तो पता भी नहीं कि वह राशन पानी हमारे किसी काम का नहीं. हम तो उसे बेचकर बाजार का बिल्कुल साफ सुथरा बना बनाया राशन लाते हैं.
यह गांव के अनपढ़ लोग हमेशा ऐसे ही भोले-भाले रहेंगे और हम जैसे होशियार पढ़े लिखे उन्हें बेवकूफ बनाते रहेंगे यह कहकर विवेक हंसने लगा.
सासू मां उनके कमरे के आगे से गुजर रही थी तो उनके कानों में यह सब बात पड़ गई और वह बोली चलो आज सच्चाई अपने कानों से सुन ली वरना रजनी बेचारी हर बार समझाती थी मुझे और मैं ही निपट मूर्ख थी जिसे सही गलत अच्छा बुरा में फर्क नहीं पता था.
कहां मेरा हीरे सा बेटा-बहू कृष्णा और रजनी जिन्हें मैं हमेशा गिरी निगाह से देखती रही और कहा तुम शहर के पढ़े-लिखे सरकारी अफसर जो सिर्फ स्वार्थी और लालची हैं जिसने अपने लालच के वशीभूत होकर अपनी जन्म देने वाली मां तक को नहीं छोड़ा.