दो संतोषी माता की कथाएं जिन्हे पढ़ने से मिलती है सुख-समृद्धि | santoshi mata ki katha

Rate this post

santoshi mata ki katha in hindi, santoshi mata ki katha, संतोषी माता का व्रत कथा, shukrawar vrat katha, शुक्रवार की कथा, santoshi mata ki vrat ki katha, santoshi mata ke vrat ki katha, संतोषी माता की कथा लिखी हुई

एक नजर में संतोषी माता

संतोषी माता सनातन धर्म में एक देवी हैं जो भगवान शंकर तथा देवी पार्वती की पौत्री , उनके सबसे छोटे पुत्र भगवान गणेश और गणेश जी की पत्नी ऋद्धि, सिद्धि की पुत्री, कार्तिकेय, अशोकसुन्दरी, अय्यापा, ज्योति और मनसा की भतीजी और क्षेम, लाभ की बहन तथा संतोष की देवी हैं। इनका दिवस शुक्रवार माना गया है इन्हें खीर तथा गुड़ चने का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

उपरोक्त जानकारी विकिपीडिया से ली गयी है अधिक जानकारी के लिए विकिपीडिया पेज पर जाएँ।


पहली संतोषी माता की व्रत कथा (santoshi mata ki katha)

एक बुढ़िया थी और उसका एक ही पुत्र था। बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती थी लेकिन उसे ठीक से खाना नहीं देती थी। यह सब लड़का देखता पर मां से कुछ भी कह नहीं पाता था। काफी सोच-विचारकर एक दिन लड़का मां से बोला- मां, मैं परदेस जा रहा हूं।´मां ने बेटे जाने की आज्ञा दे दी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- मैं परदेस जा रहा हूं, अपनी कुछ निशानी दे दे।´बहू बोली- `मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी। इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई।

पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार और बढ़ते गए। एक दिन बहू दु:खी हो मंदिर चली गई, वहां बहुत-सी स्त्रियां पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं। इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है, स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए।

खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देन। एक वक्त भोजन करना, व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी। माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया, कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है। “अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं। बहू ने कहा- हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी

अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं. रुपया भी अभी नहीं आया है। उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत मांगी, पर सेठ ने इनकार कर दिया। मां की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्जदार भी रुपया लौटा गए, अब तो साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी। घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपये दिए। पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की, पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईष्र्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना।

उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे, तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे। तो बहू पर माता ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे। तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया। संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका टैक्स राजा ने मांगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं। नौमाह बाद चांद-सा सुंदर पुत्र हुआ। अब सास, बहू तथा बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे।


दूसरी संतोषी माता की व्रत कथा (santoshi mata ki katha)

बहुत समय पूर्व की बात हैं, एक बूढी औरत थी, जिसके 7 बेटे थे। इनमें से 6 बेटे बहुत मेहनती थे औए एक बेटा, जो सभी भाइयों में सबसे छोटा था, वह आलसी था और कुछ भी नहीं कमाता था। जब वो बूढी औरत खाना बनाती तो अपने 6 बटों को अच्छे से खाना खिलाती और निकम्मे बेटे को सभी भाइयों की जूठन अर्थात् थाली में बचा हुए जूठा खाना परोस देती थी। सबसे छोटा बेटा बहुत भोला था और इस बात से अनजान भी था।

एक दिन सबसे छोटे बेटे ने अपनी पत्नि से कहा कि “देखो मेरी माँ मुझे कितना प्यार करती हैं।” इस पर उसकी पत्नि व्यंग करते हुए बोली, कि “हां क्यों नहीं, रोज सभी की जूठन जो परोस कर दे देती हैं।” इस बात को सुनकर उस बेटे ने कहा कि “ऐसा कैसे हो सकता हैं? जब तक मैं स्वयं अपनी आँखों से नहीं देख लेता, तुम्हारी इस बात पर विश्वास नहीं करूंगा।” तब पत्नि ने कहा कि “स्वयं देखने के बाद तो विश्वास करेंगे ना।”

कुछ दिनों बाद एक त्यौहार आया और घर में विभिन्न प्रकार के व्यंजन और लड्डू, आदि बनाये गये। अपनी पत्नि द्वारा कही गयी बात की सच्चाई को परखने के लिए सबसे छोटा बेटा तबियत ख़राब होने का बहाना करके रसोई में गया और वहीं ज़मीन लेट गया और मुंह पर एक पतला कपड़ा ढँक लिया ताकि वह सब देख सकें। सभी भाई रसोई में भोजन ग्रहण करने आये। उसकी माँ ने सभी 6 भाइयो को लड्डू और अन्य व्यंजन बहुत ही प्रेम पूर्वक परोसे और जब उन सभी ने भोजन कर लिया और वे चले गये, तब उन 6 भाइयों की थाली में से बचे हुए भोजन को इकठ्ठा करके माँ ने सबसे छोटे बेटे की थाली परोसी और लड्डू का जो भाग बचा था, उन्हें मिलाकर एक लड्डू बनाकर छोटे बेटे की थाली में रख दिया। छोटा बेटा इस पूरे क्रियाकलाप पर नज़र रखे हुए था। इसके बाद उसकी माँ ने उसे आवाज लगाई कि बेटे उठ जाओ, तुम्हारे सारे भाई भोजन करके चले गये हैं, तुम कब भोजन करोगे, उठो और भोजन ग्रहण कर लो। तब वह उठा और बोला कि “माँ तुम मुझे सबकी जूठन परोसती हो, मुझे इस प्रकार का भोजन नहीं करना हैं, मैं घर छोड़कर जा रहा हूँ।” तब उसकी माँ ने भी कह दिया कि “ठीक हैं, यदि जाते हो तो जाओ और अगर कल जाने वाले हो तो आज ही चले जाओ”। माँ के मुंह से इस प्रकार के कटु वचन सुनकर बेटा बोला कि “हाँ, मैं आज ही जा रहा हूँ और अब कुछ बनकर ही घर लौटूंगा।”

यह कहकर वो घर से जाने ही वाला था, कि तभी उसे अपनी पत्नि का स्मरण हुआ। उसकी पत्नि गायों के तबेले में गोबर के कंडे बना रही थी। वह तबेले में गया और अपनी पत्नि से बोला कि “मैं कुछ समय के लिए दूसरे देश जा रहा हूँ, तुम यहीं रहो और अपने कर्तव्यों का पालन करो। मैं कुछ समय बाद धन कमाकर वापस लौट आऊंगा।” तब उसकी पत्नि ने कहा कि “आप बेफिक्र होकर जाइये और अपने काम में अपना ध्यान लगाइए। जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं आपका यहीं रहकर इन्तज़ार करूंगी। परन्तु अपनी कोई निशानी मुझे दे जाइये।” तब उसने कहा कि “मेरे पास तो कुछ भी नहीं हैं, सिवाय इस अंगूठी के, तुम इसे मेरी निशानी के रूप में रख लो और अपनी भी कोई निशानी मुझे दो।” तब उसकी पत्नि ने कहा कि “मेरे पास तो कुछ भी नहीं हैं। तब उसके हाथ गोबर से भरे हुए थे तो उसने उसके पति की कमीज़ पर पीठ पर अपने गोबर से भरे हाथों की छाप छोड़ दी और कहा कि यही मैं निशानी के तौर पर आपको देती हूँ।

इसके बाद वह दूसरे देश धन कमाने के उद्देश्य से चला गया। चलते – चलते वह बहुत दूर तक आ गया। तब उसे एक बहुत बड़े व्यापारी [Merchant] की दुकान दिखाई दी। वह उस दुकान पर गया और बोला कि सेठजी, मुझे आप अपने यहाँ काम पर रख लीजिये। उस समय सेठ को भी एक आदमी की आवश्यकता थी। सेठ ने उसे काम पर रख लिया। वह वहाँ नौकरी करने लगा और कुछ ही दिनों में उसने खरीदी, बिक्री, हिसाब – किताब और अन्य सभी काम भी बहुत ही अच्छे से संभाल लिए। उस सेठ के यहाँ और भी नौकर थे, वे सभी और स्वयं सेठ भी यह सब देखकर बहुत हैरान थे कि यह व्यक्ति कितना बुद्धिमान और होशियार हैं। उसके काम को देखकर 3 महीनों में ही सेठ ने उसे अपने व्यापार में बराबरी का साझेदार [Partner] बना लिया और अगले 12 वर्षों में वह बहुत ही प्रसिद्ध व्यापारी बन गया और अब सेठ ने पूरे कारोबार की बागडोर उसके हाथ में दे दी और खुद दुसरे देश चला गया।

उसकी पत्नि के साथ उसके सास और ससुर अर्थात् बेटे के माता – पिता बहुत बुरा बर्ताव करने लगे। घर के सभी कामों का बोझ उसकी पत्नि पर डाल दिया और इसके साथ ही उसे जंगल में लकड़ियाँ लेने भी भेजते थे। इसके अलावा उसके लिए जो रोटी बनती थी, वह अनाज की नहीं, बल्कि भूसे  की होती थी और पीने का पानी उसे टूटे हुए नारियल के कवच में दिया जाता था। उसके दिन इतनी कठिनाइयों में बीत रहे थे।

एक दिन जब वह लकड़ियाँ चुनकर जंगल से अपने घर की ओर लौट रही थी तो उसने कुछ औरतों को संतोषी माता का व्रत करते हुए देखा। वह वहाँ खड़ी हो गयी और माता की कथा सुनने लगी। इसके बाद उसने वहाँ उपस्थित औरतों से पूछा कि “बहनों, आप यह किस भगवान का व्रत कर रही हैं और इससे आपको क्या फल प्राप्त होगा? इसे करने के नियम क्या हैं? अगर आप मुझे इस बारे में बताएंगी तो आपकी बड़ी कृपा होगी और मैं भी इस व्रत को करुँगी।”

तब उनमें से एक औरत बोली कि “हम सभी यहाँ माँ संतोषी का व्रत और पूजा कर रहे हैं।

 

    • इस व्रत को करने से सारी विपत्तियाँ और संकट टल जाते हैं, धन की प्राप्ति होती हैं और सारी परेशानियाँ दूर होती है।

    • अगर घर में सुख होतो मन भी शांत और प्रसन्न रहता हैं,

    • बांझ [Barren] औरत को संतान की प्राप्ति होती हैं, अगर पति अपनी पत्नि को छोड़कर कहीं चला गया हो तो तुरंत लौट आता हैं,

    • अविवाहित लड़कियों को अपना मनचाहा वर मिलता हैं,

    • यदि कोर्ट में कोई मामला लम्बे समय से चल रहा हो तो उसका फैसला जल्द ही हमारे हक में होता हैं,

    • अगर घर में कलह और झगड़ें होते हो तो घर में शांति और सुख आता हैं,

    • जमीन – जायदाद मिलती हैं,

    • बीमारियाँ दूर हो जाती हैं और जो भी चाहो, माँ संतोषी उसे पूरा करती हैं, इस बात में कोई शक नहीं हैं। ”

तब उसने पूछा कि इस व्रत को करने की विधी क्या हैं? अगर आप मुझे इसके बारे में बताएंगी तो आपकी बड़ी कृपा होगी।

 

    • सवा आने का गुड़ और चना लो पुराने समय में मुद्रा के रूप में आने चलन में थे औए 16 आने मिलकर 1 रुपया बनता था] अगर आप चाहे तो सवा रूपये का भी खरीद सकते हैं, जैसी आपकी क्षमता और इच्छा, श्रद्धा, भक्ति हो, उसके अनुसार खरीदें।

    • 16 शुक्रवार तक हर शुक्रवार व्रत रखें और इस कथा को सुने या पढ़े। इसमें बीच में किसी प्रकार की रूकावट नहीं आना चाहिए।

    • अगर आपको कथा सुनने हेतु कोई श्रोता न मिले तो आप अपने सामने घी का दीपक जलाए अथवा एक पात्र में पानी भरकर अपने सामने रखें। ऐसा तब तक करें, जब तक आपकी मनोकामना पूरी न हो जाएँ।

    • अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर इस व्रत का उद्यापन करें।

3 महीनो के अन्दर माँ संतोषी आपकी इच्छा पूरी कर देंगी। अगर आपका भाग्य आपके साथ नहीं हैं, फिर भी माता की कृपा से आपकी इच्छाएं पूरी हो जाएगी। जब आपकी इच्छा पूरी हो जाये, तभी इसका उद्यापन किया जाता हैं, बिना इच्छा पूरी हुए उद्यापन नहीं करना चाहिए।

 

    • उद्यापन के दिन ढाई किलो ग्राम ग्राउंडेड काजू, खीर और चने की सब्जी बनाना चाहिये और इससे 8 बालकों को भोजन कराना चाहिए।

    • जहाँ तक संभव हो, ये 8 बालक परिवार के ही सदस्य हो तो अच्छा हैं, वे देवर या जेठ के बालक हो सकते हैं या फिर कोई अन्य रिश्तेदार के बालक।

    • यदि ऐसा नहीं हैं तो आस – पड़ौस के बालकों को भी भोजन कराया जा सकता हैं। उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार भोजन कराइए, उन्हें कपडे या अन्य कोई उपहार दीजिये और माता को प्रिय सभी रिवाजों का पालन कीजिये। बस ये ध्यान रखना हैं कि उस दिन कोई भी खट्टा न खाए।

इस प्रकार इस विधी को सुनकर छोटे बेटे की पत्नि वहाँ से चली गयी और जंगल से लायी गयी लकड़ियों को बाजार में बेचकर, उन रुपयों से उसने गुड़ और चना ख़रीदा और माँ संतोषी का व्रत रखना प्रारंभ कर दिया। इसके बाद वह आगे बढ़ी तो रास्ते में उसे एक मंदिर दिखाई दिया तो उसने वहाँ लोगों से पूछा कि ये किस भगवान का मंदिर हैं? तब लोगों ने उसे बताया कि ये माँ संतोषी का मंदिर हैं। यह सुनकर वह मंदिर के अन्दर पहुंची और माता के चरणों में गिरकर बहुत ही दुखी मन से प्रार्थना करने लगी कि “हे माँ, मैं एक अशिक्षित और इस व्रत से अनजान महिला हूँ और इस व्रत को कैसे रखा जाता हैं, इसके बारे में ज्यादा नहीं जानती हूँ। फिर भी हे माँ, आप मेरे दुखों को दूर कीजिये, मैं आपकी शरण में आई हूँ।”

माता को उस स्त्री पर दया आ गयी और एक शुक्रवार बीता और अगले शुक्रवार को ही किसी व्यक्ति द्वारा उसके पति का पत्र उसे प्राप्त हुआ और तीसरे शुक्रवार को उसके पति ने उसके लिए धन भेजा। यह सब देखकर उस स्त्री के बड़े जेठ और जेठानी और उनकी संताने मुंह बनाने लगे और ताने  देने लगे कि इतने समय पश्चात् ही सही अब धन आने लगा हैं और अब उसकी इज्ज़त बढ़ जाएगी।

इस प्रकार पत्र और धन आदि प्राप्त होने पर वह खुश तो हुई और माता के मंदिर गयी और माता के चरणों में गिरकर कहने लगी कि हे मातेश्वरी, मैंने आपसे धन – धान्य, आदि की इच्छा कब की? मैं तो अपने पति को वापस पाना चाहती हूँ और उनके साथ अपना जीवन बिताना चाहती हूँ, कृपया आप उन्हें मेरे पास वापस भेज दे।

इस बात पर माता बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने कहा कि “उठो बेटी और घर जाओ, तुम्हारा पति भी तुम्हारे पास लौट आएगा। इतना सुनकर वह प्रसन्न हो गयी और ख़ुशी – खुशी घर लौट आई और अपने काम करने लगी।”

माता ने सोचा कि इस भोली स्त्री से तो मैंने ऐसा कह दिया, परन्तु इसका पति तो इसे भूल चुका हैं। तब माता ने उस व्यक्ति के सपने में आकर उसे अपनी पत्नि का स्मरण कराया कि पुत्र तुम्हारे माता – पिता और अन्य परिवार जन तुम्हारी पत्नि को बहुत कष्ट दे रहे हैं। इस पर वह व्यक्ति बोला कि हे माता, यहाँ मेरा इतना बड़ा कारोबार हैं, इतनी जल्दी इसे कैसे समेटूं और किस प्रकार घर जाऊ। तब माँ ने कहा कि “तुम सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर मेरा [माँ संतोषी का] श्रद्धा पूर्वक नाम लेकर घी का दिया जलाना और दुकान में जाकर बैठ जाना। तुम्हारे दायित्वों का भुगतान हो जाएगा और तुम्हारे गोदामों में रखा सामान भी बिक जाएगा और शाम तक तुम्हारे पास धन का अम्बार खड़ा हो जाएगा।”

वह सुबह उठा, उसने बिल्कुल वैसे ही किया। उसके सारे दायित्वों का भुगतान हो गया और उसके देनदार उसे पैसा चुका गये। इस प्रकार शाम तक वह सभी जवाबदारियों से मुक्त हो गया और उसके पास ढेर सारा धन इकठ्ठा हो गया। इस सम्पूर्ण समय में वह लगातार मन ही मन माँ संतोषी के नाम का जाप कर रहा था और इस प्रकार के चमत्कार के लिए माता को धन्यवाद अर्पित कर रहा था। अपने पास इकठ्ठे हुए धन से उसने परिवार के लिए सामान आदि खरीदा और तुरंत ही घर की ओर निकल पड़ा।

उधर उसकी पत्नि जंगल से लकड़ियाँ चुनकर लौट रही थी और वह रास्ते में माँ संतोषी के मंदिर में कुछ देर विश्राम करने के लिए रुकी। यह उसका प्रतिदिन का नियम था। वहाँ धुल उड़ने लगी तो उसने पूछा की माँ, ये अचानक धूल क्यों उड़ने लगी। तब माताजी ने कहा की “बेटी, तेरा पति वापस आ रहा हैं। अब तुम इस लकड़ी के तीन गठ्ठे [Bundles] बनाओ, जिसमे से एक नदी किनारे रखो, दूसरा मंदिर में रखो और तीसरा अपने सिर पर रखकर जाओ। इस लकड़ी के गठ्ठे को देखकर तुम्हारे पति की इच्छा मंदिर में रुककर कुछ नाश्ता करने की होगी और फिर वह उसकी माँ के पास जाएगा। इसके बाद तुम अपने माथे पर लकड़ी का गठ्ठा लिए घर पहुंचना और अपनी सास को आवाज देना कि ये लकड़ी ले लो, भूसे की रोटी दो, नारियल के टुकड़े में पानी दो। इस प्रकार उसे 3 बार आवाज लगाना। यह सुनकर तुम्हारी सास आएगी और बोलेगी कि देखो बहु कौन आया हैं?

माँ संतोषी के कहे अनुसार उस स्त्री ने वैसा ही किया और जैसा माँ ने कहा था, ठीक वैसा ही हुआ। उसका पति मंदिर में आकर रुका, कुछ नाश्ता किया और सभी से प्रेम पूर्वक मिलते हुए घर की ओर चल दिया। इस प्रकार वह घर पहुंचा। उसकी पत्नि भी घर पहुंची और माता के आदेशनुसार अपनी सास को 3 बार आवाज दी कि लकड़ी का गठ्ठा ले लो, भूसे की रोटी दो और नारियल के टुकड़े में पानी दे दो। यह सुनते ही सास बाहर आकर बोली कि बहु तुम इस प्रकार क्यों कह रही हो, देखो, तुम्हारा पति आ गया हैं। अन्दर आओ और अच्छे गहने, कपड़े और भोजन ग्रहण करो। इस प्रकार की आवाजे सुनकर उसका पति घर से बाहर आया और उसके हाथ में निशानी स्वरुप दी गयी अंगूठी देखकर अपनी माँ से पूछा कि माँ, ये औरत कौन हैं? तब उसकी माँ बोली कि यह तुम्हारी पत्नि हैं, जब से तुम गये हो, यह पूरे गाँव में पागल की तरह घुमती रहती हैं, घर का कोई काम नही करती, दिन में 4 बार आकर खाना खाती हैं और आज तुम्हारे सामने होने पर इस प्रकार से भूसे की रोटी, आदि मांग कर नाटक कर रही हैं। अपनी माता की इस प्रकार की बातें सुनकर वह बहुत व्यथित हुआ और दुसरे घर जाकर रहने लगा। उसने सारा सामान उस दूसरे घर में रखा और देखते ही देखते एक ही दिन में वह घर महल की तरह चमकने लगा। वह अपनी पत्नि के साथ वहाँ ख़ुशी ख़ुशी रहने लगा।

इस दौरान शुक्रवार आया और उसकी पत्नि ने 16 शुक्रवार पूरे होने पर उद्यापन की बात कही तो वह ख़ुशी से इसके लिए राजी हो गया। इसके लिए उस स्त्री ने अपने जेठ के बालकों को निमंत्रण दिया। उन्होंने इसे स्वीकार तो कर लिया, परन्तु उसकी जेठानियों ने अपने बालकों से कहा कि तुम लोग वहाँ जाकर खट्टे खाने की मांग करना और खट्टी चीज खाना, जिससे उद्यापन सफल न हो पाए।

उद्यापन के समय बालकों ने पेट भरकर खाना खाया, परन्तु अपनी माताओं के कहे अनुसार खट्टे की मांग करने लगे, तो उस स्त्री ने यह कहकर मना कर दिया कि ये माँ संतोषी का प्रसाद हैं और इसमें किसी को खट्टा नही खिलाया जा सकता। तब बालकों ने रुपयों की मांग की। तो उस स्त्री ने भोलेपन में बालकों को धन दे दिया और बालकों ने उसी समय इमली खरीद कर खाई। इस कृत्य से माँ संतोषी रुष्ट हो गयी, जिससे उस स्त्री के पति को राजा के सैनिक पकड़ कर ले गये। यह सब देखकर वह बहुत दुखी मन से माँ संतोषी के मंदिर गयी और कहने लगी कि माँ ये आपने क्या किया ? तब माँ ने कहा कि तुमने उद्यापन किया, परन्तु तुमने व्रत के नियम तोड़े, जिस कारण तुम्हे यह दंड मिला हैं। तब उसने कहा कि माता मैं आपका फिर से उद्यापन करूंगी और इस बार कोई भूल नहीं होगी। आप कृपया मेरे पति को वापस मेरे पास भेज दीजिये। तब माता ने कहा कि ठीक हैं, इस बार उद्यापन में कोई भूल नहीं होना चाहिए और तुम्हारा पति अभी रास्ते में ही तुम्हे मिल जाएगा।

माता के वचनों को सुनकर वह घर लौटने लगी तो रास्ते में उसे उसका पति दिखा तो उसने पूछा कि आप कैसे छूटे और अब कहाँ जा रहे हैं? तब उसके पति ने कहा कि मैंने बहुत धन कमाया हैं तो राजा ने मुझे उस पर कर [Tax] चुकाने को कहा हैं। मैं वहीं चुकाने जा रहा हूँ। सब कुछ पहले की तरह ठीक हो गया और फिर कुछ दिनों बाद शुक्रवार आया और उस स्त्री ने एक बार फिर माता का उद्यापन किया और इसके लिए अपने जेठ के बच्चों को बुलाया। तब भी उसकी जेठानियों ने बच्चों को खट्टा खाने की बात सिखाई। उद्यापन के समय बच्चों ने खट्टे खाने की मांग की तो तब उस स्त्री ने मना कर दिया और धन भी नहीं दिया और दूसरे ब्राह्मण बालकों को अपनी क्षमतानुसार भोजन कराने लगी और उन्हें एक – एक फल दिया। इससे माता संतोषी प्रसन्न हुई।

माँ संतोषी के आशीर्वाद से उसे एक बहुत ही सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ और वह रोज अपने पुत्र को लेकर मंदिर जाने लगी। तब माता ने उस स्त्री की परीक्षा लेने का सोचा और माता ने एक भयानक रूप धारण किया। माता ने गुड़ और चने से अपना पतला सा चेहरा बनाया, सिर पर एक सिंग और जिसके ऊपर मच्छर मंडरा रहे थे। ऐसा रूप धरकर वे उस स्त्री के घर पहुंची और जैसे ही उन्होंने घर की चौखट पर अपना कदम रखा, उस स्त्री की सास माताजी पर चिल्लाने लगी कि देखो कोई पापी जादूगरनी हमारे घर आ गयी हैं, बच्चों इसे यहाँ से दूर भगाओ, अन्यथा यह किसी को खा जाएगी। यह सुनकर बच्चे डर गये और उसे भगाकर डर के मारे घर के खिड़की, दरवाजे बंद करने लगे।

उस स्त्री ने घर के अन्दर से यह सब देखा – सुना और ख़ुशी से पागलों की तरह चिल्लाते हुए बाहर आई और कहने लगी कि देखो माँ संतोषी स्वयं आज हमारे घर पधारी हैं और कहने लगी कि ये वही देवी हैं, जिनके मैंने 16 शुक्रवार के व्रत रखे थे, ये माँ संतोषी हैं। इतना सुनकर सभी माता के चरणों में गिरकर माता से माफ़ी मंगाते हुए कहने लगे कि हे माँ, हम सब मुर्ख हैं, जो तुम्हे नहीं पहचान पाए, हमने आपके व्रत, पूजा में व्यवधान उत्पन्न किये, हम आपकी महिमा से अनजान थे, कृपा करके हमे क्षमा कर दीजिये। इस प्रकार माता ने सभी को माफ़ किया और सबको आशीर्वाद दिए।

इस प्रकार जैसे माँ संतोषी ने इनकी प्राथनाएँ स्वीकार की, सभी की स्वीकार करें और कथा पढ़ने वालों की भी सब मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँ।

Leave a Comment