एक बार एक बहुत ताकतवर और जानदार, तगड़ा बैल जंगल में अपना चारा ढूंढते हुए जंगल में शान से घूम रहा था। घूमते हुए वह एक तालाब के करीब पंहुचा।
वहीँ तालाब के किनारे सियार और सियारन का जोड़ा बैठा था जो अपने भोजन के लिए मेंढक पकड़ कर अपना गुजरा करते थे। सियारन ने उस बैल को देखकर सियार को कहा-
“स्वामी! उस बैल को देखिये, उसके कंधे पर जो मांस लटक रहा है वह कुछ ही देर में निचे गिर जायेगा इसलिए आप उसके पीछे जाईये वह कभी न कभी जरूर गिरेगा और हमें खाने के लिए शानदार भोजन मिलेगा जो आज तक नहीं मिला और उसे खाकर हम तृप्त हो जायेंगे।”
सियार कहता है –
“प्रिय! तुम व्यर्थ में ही ऐसी बातें कर रही हो क्या पता यह कभी गिरे भी या नहीं। आखिर कब तक मैं इसका पीछा करूँगा, इसलिए आराम से यहीं बैठ कर हम मेंढक पकड़ कर अपना भोजन खाएंगे और अगर मैं यहाँ से गया तो कोई दूसरा सियार आकर यहाँ बैठ जायेगा और हमें यह भोजन भी प्राप्त नहीं होगा।”
सियारन ने उत्तर दिया –
“मुझे नहीं पता था कि तुम इतने आलसी और कायर हो। जो थोड़े ही धन से संतुष्ट हो जातें हैं, वह अपना थोड़े धन को भी गवां देते हैं।”
यह बात सुनकर सियार और सियारनी उसके पीछे घूमने लगते हैं। उन्हें बैल के पीछे घूमते हुए दस पंद्रह दिन बित हैं पर वह कहाँ गिरने वाला था।
शिक्षा
अगर अपने निश्चित रोजगार को छोड़कर अनिश्चित रोजगार के पीछे भागता है जो वह कभी नहीं पा सकता उसका निश्चित रोजगार भी समाप्त हो जाता है।