3 कक्षा के छात्रों के लिए नैतिक कहानियां | moral stories in hindi for class 3

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1. शेखीबाज़ मक्खी (moral stories in hindi for class 3)

moral stories in hindi for class 3
शेखीबाज़ मक्खी

एक था जंगल। उस जंगल में एक शेर भोजन करके आराम कर रहा था। इतने में एक मक्खी उड़ती-उड़ती वहाँ आ पहुँची। शेर ने दो-तीन दिनों से स्नान नहीं किया था। इसलिए मक्खी शेर के कान के एकदम पास भिन-भिन-भिन करने लगी। शेर को बहुत मुश्किल से नींद आई थी। उसने पंजा उठाया। मक्खी उड़ गई … लेकिन फिर से शेर के कान के पास भिन-भिन शुरू हो गई। अब शेर को गुस्सा आया।

 

वह दहाड़ा-अरे मक्खी , दूर हट। वरना तुझे अभी जान से मार डालूँगा। मक्खी ने धीरे से कहा- छि… छि… ! जंगल के राजा के मुँह से ऐसी भाषा कहीं शोभा देती है?

 

शेर का गुस्सा बढ़ गया। उसने कहा – एक तो मुझे सोने नहीं देती, ऊपर से मेरे सामने जवाब देती है! चुप हो जा… वरना अभी…

 

 

मक्खी बोली – वरना क्या कर लोगे? मैं। क्या तुमसे डर जाऊँगी? मैं तो तुमसे भी लड़ सकती हूँ। हिम्मत हो तो आ जाओ…!

 

 शेर आग बबूला हो उठा। उसने कान के पास पंजा मारा। मक्खी तो उड़ गई पर कान ज़रा छिल गया। मक्खी उड़कर शेर की नाक पर बैठी तो उसने मक्खी को फिर पंजा मारा। मक्खी उड़ गई। अबकी बार शेर की नाक छिल गई।

 

मक्खी कभी शेर के माथे पर बैठती, कभी गाल पर, तो कभी गर्दन पर।

 

शेर पंजा मारता जाता और खुद को घायल करता जाता… मक्खी तो फट से उड़ जाती। अंत में शेर ऊब गया, थक गया। वह बोला – मक्खी बहन, अब मुझे छोड़ो। मैं हारा और तुम जीतीं, बस।

 

 

मक्खी घमंड में चूर होकर उड़ती- उड़ती आगे बढ़ी। सामने एक हाथी मिला। मक्खी ने कहा अरे हाथी… मुझे प्रणाम कर… मैंने जंगल के राजा शेर को हराया है। इसलिए जंगल में अब मेरा राज चलेगा। हाथी ने सोचा, इस पागल मक्खी से बहस करने में समय कौन बर्बाद करे।

 

हाथी ने सँडु ऊपर उठाकर मक्खी को प्रणाम किया और आगे बढ़ गया। सामने से आ रही लोमड़ी ने यह सब देखा। लोमड़ी मंद-मंद मुस्कराने लगी। इतने में मक्खी ने लोमड़ी से कहा – अरे ओ लोमड़ी, चल मुझे प्रणाम कर! मैंने जंगल के राजा शेर और विशालकाय हाथी को भी हरा दिया है।

 

लोमड़ी ने उसे प्रणाम किया। फिर धीरे से बोली –

 

धन्य हो मक्खी रानी, धन्य हो! धन्य है आपका जीवन और धन्य हैं आपके माता-पिता। लेकिन मक्खी रानी, उधर वह मकड़ी दिखाई दे रही है न, वह आपको गाली दे रही थी। उसकी ज़रा खबर लो न! यह सुनकर मक्खी गुस्से से लाल हो उठी।

मक्खी बोली – उस मकड़ी को तो मैं चुटकी बजाते खत्म कर देती हूँ।

 

 

यह कहते हुए मक्खी मकड़ी की तरफ झपटी और मकड़ी के जाले में फँस गई। मक्खी जाले से छूटने की ज्यों-ज्यों कोशिश करती गई त्यों-त्यों और भी अधिक फँसती गई… अंत में वह थक गई, हार गई। यह देखकर लोमड़ी मंद-मंद मुस्कराती हुई वहाँ से चलती बनी।

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2. चाँद वाली अम्मा (moral stories in hindi for class 3)

moral stories in hindi for class 3
चाँद वाली अम्मा
 

तुम शरारत तो करती ही होगी? कौन-कौन सी शरारत करती हो। इन चीजों का इस्तेमाल तुम कोई शरारत करने के लिए कैसे करोगी?

 

 

झाडू पंख कागज़ गुब्बारा बहुत समय पहले की बात है। एक बूढ़ी अम्मा थी। बिल्कुल अकेली। उसका अपना कोई न था। घर का कामकाज उसे खुद ही करना पड़ता। सुबह उठकर कुएँ से पानी लाना, खाना बनाना आदि।

 

उसके साथ एक परेशानी थी। वह रोज़ सुबह उठकर जब घर में झाडू लगाती तब तक तो सब ठीक रहता पर जैसे ही वह आँगन में जाती और झाड़ लगाने के लिए झुकती, तभी आसमान आकर उसकी कमर से टकराता।।

 

अम्मा उसे घूरकर देखती तो वह थोडा हट जाता। फिर वह जैसे ही दुबारा झुकती, आसमान फिर अपनी हरकत दोहराता।

 

एक दिन, दो दिन, तीन दिन। लगातार यही क्रम चलता रहा। अम्मा झाडू लगाए और आस मान उसे तंग करे।

 

एक दिन कुएँ पर पानी भरने को लेकर अम्मा का किसी और से झगड़ा हो गया। अम्मा ज़रा गुस्से में थी। वह झाड़ उठाकर आँगन में गई और जैसे ही झुकी, आसमान ने अपनी आदत के अनुसार उसे फिर छेड़ा।

 

अम्मा ने आव देखा न ताव और कसकर एक झाडू आसमान को दे मारी। आसमान झट हट गया। पर वह भी अपनी आदत से मजबूर था। दूसरी बार फिर अम्मा के झुकते ही टक्कर मारने लगा। अम्मा ने फिर पूरी ताकत से उस पर वार किया।

 

आसमान को शरारत सूझी। इस बार उसने झाड़ पकड़ ली। उधर अम्मा भी झाडू पकड़े थी। रस्साक शी शुरू हो गई। झाडू का ऊपर वाला हिस्सा आसमान पकड़े हुए था तो नीचे वाला अम्मा, दोनों छोड़ने को तैयार नहीं थे। अम्मा चिल्लाई – छेड़ मेरा झाडू ! मेरे पास एक यही झाड़ है।

 

तब भी आसमान ने नहीं छोड़ा। बूढी अम्मा कब तक रस्साकशी करती …… थक गई।

 

आसमान ने झाडू खींचना नहीं छोड़ा। अब वह झाडू के साथ ऊपर उठने लगा। उसके साथ-साथ झाडू पकड़े हए अम्मा भी ऊपर जाने लगी। वह चिल्लाई – मुझे नीचे छोड़ दे!

 

आसमान ने कहा – अम्मा, अब मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। ले चलूँगा ऊपर। वहीं झाडू लगाना।

 

अम्मा अब झाड़ नहीं छोड़ सकती थी, क्योंकि वह बहुत ऊपर पहुँच चुकी थी। तभी उसे वहाँ चाँद दिख गया। झट अम्मा ने पैर बढ़ाया और चाँद पर चढ़ गई, पर झाड़ नहीं छोड़ी। आसमान को फिर शरारत सूझी। उसने सोचा – अम्मा तो चाँद पर चढ़ गई है। यदि चाँद उसकी मदद करेगा तो मैं हार जाऊँगा। इसे यहीं रहने दूँ।

 

ऐसा सोचकर उसने झाड़ छोड़ दिया। अम्मा झाड़ सहित चाँद पर रह गई। वह इतनी थक गई थी कि झाड़ पकड़े-पकड़े ही चाँद पर बैठ गई। आसमान ऊपर चला गया। उस दिन से आज तक बूढ़ी अम्मा झाडू पकड़े चाँद पर बैठी है।

 

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3. जब मुझको साँप ने काटा (moral stories in hindi for class 3)

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जब मुझको साँप ने काटा

एक दिन मैंने अपने अहाते में एक छोटा-सा साँप रेंगते देखा। वह धीरे-धीरे रेंग रहा था। मुझको देखाते ही वह भागा और वहीं पर पड़े हुए नारियल के एक खोल में घुसकर छिप गया। मैंने पत्थर का एक टुकड़ा उठाया और उससे नारियल के खोल का मुँह बंद कर दिया। उसे लेकर मैं नानी के पास दौड़ गया।

 

मैंने कहा – नानी, देखो, मैंने साँप पकड़ा है। नानी चीख उठी – साँप! वह इतना घबरा गई कि लगीं जोर-जोर से चीखने-पुकारने। नाना ने सुना तो अंदर । दौड़े आए। जब उन्हें पता चला कि नारियल के खोल के अंदर साँप है तो उन्होंने मेरे हाथ से उसे छीनकर दूर फेंक दिया। नन्हा साँप बाहर निकल आया और रेंगता हुआ पास की झाड़ी में गायब हो गया।

 

नाना ने मुझसे कहा – खबरदार, फिर कभी साँप के पास मत जाना। साँप बहुत खतरनाक होता है।

 

उसी दिन शाम को मैं एक बर्र को पकड़ने की कोशिश कर रहा था कि उसने काट खाया। बड़ी जोर से दर्द उठा। मुझे दर्द से कराहते देख कर नानी ने सोचा कि मुझे साँप ने काट लिया है। मैंने दौड़कर नानी को उँगली दिखाई। उन्होंने जल्दी से नाना को पुकारा।

 

नाना तुरंत दौड़े आए और मेरी उँगली को देखा। जहाँ बर्र ने काटा था, वहाँ नीला निशान पड़ गया था। वह चट मुझे गोद में उठाकर बाहर भागे। बाग और धान के खेतों को पार करके भागते-भागते वह अपने घर से दूर एक छोटी-सी झोपड़ी के सामने जाकर रुके। वहाँ पहुँचते ही उन्होंने आवाज़ लगाई। पीतल के बर्तन में पानी लाया और मेरे सामने बैठकर मंत्र पढ़ने लगा।

 

मैं चाहता तो बहुत था कि उस बूढे को बता दूँ कि मझे साँप ने नहीं, बरं ने काटा है। पर मेरे नाना मुझे कसकर पकड़े रहे और मुझे बोलने ही नहीं दिया। जैसे ही मैं कुछ कहने को मुँह खोलता, वह डाँटकर कहते – चुप! डर के मारे मैं चुप हो जाता। हमारे पीछे-पीछे हमारी नानी भी कई लोगों के साथ वहाँ आ पहुँची। सब लोग उदास खाड़े देखते रहे।

 

तब तक मेरी उँगली का दर्द जा चुका था। फिर भी मुझे वहाँ जबरदस्ती बैठकर झाड़-फूंक करवानी पड़ रही थी। कुछ मिनट बाद बूढ़ा आदमी उठा। उसने उसी बर्तन के पानी से मेरी उँगली धोई और मुझे पिलाया भी। उसने मुझे बोलने से मना कर दिया ताकि दवा का पूरा असर हो। फिर वह नाना से बोला – जय हो भगवान की! अब बच्चा खतरे से बाहर है। अच्छा हुआ, आप समय रहते मेरे पास ले आए। बड़े जहरीले साँप ने काटा था।

 

सब लोगों ने बूढ़े को उसके अद्भुत इलाज के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। घर लौटने के बाद नाना ने उसके लिए बहुत-सी चीजें भेंट में भेजीं।

 

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4. कब आऊँ (moral stories in hindi for class 3)

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कब आऊँ
 

 

अवंती ने एक छोटी-सी रंगाई की दुकान खोली और गाँववासियों के लिए कपड़ा रंगना शुरू कर दिया। सब लोग उसकी रंगाई की प्रशंसा करने लगे। धीरे-धीरे उस की दुकान चल निकली। अवंती की प्रशंसा सुनकर एक सेठ को बहुत ईर्ष्या महसूस होने लगी जा पहुँचा।

 

दरवाजे के अंदर घुसते ही सेठ बुलंद आवाज में बोला- अवंती, जारा यह कपडा तो अच्छी तरह से रंग दो। मैं देखना चाहता हूँ तुम्हारा हुनर कैसा है। तुम्हारी काफी तारीफ़ सुनी थी, इसीलिए आया हूँ।

 

अवंती ने सेठजी से पूछा – सेठ जी इस कपड़े को आप किस रंग में रंगवाना चाहते हैं?

 

सेठ ने कहा- रंग? रंग के बारे में मेरी कोई खास पसंद तो है नहीं, पर मुझे हरा, पीला, सफ़ेद, लाल, नारंगी, नीला, आसमानी, काला और बैंगनी रंग कतई अच्छे नहीं लगते। समझे कि नहीं?

 

अवंती ने जवाब दिया – समझ गया हूँ, अच्छी तरह समझ गया हूँ। मैं ज़रूर आपकी पसंद की रंगाई कर दूंगा!

 

अवंती ने सेठ का मंसूबा भांपते हुए उसके हाथ से कपड़े का टुकड़ा ले लिया। सेठ ने खुश होकर कहा- अच्छा, तो इसे लेने में किस दिन आऊँ ?

 

अवंती ने कपड़े को अलमारी बंद करके उसमें ताला लगा दिया और सेठ से बोला – आप इसे लेने सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार को छोड़कर किसी भी दिन आ सकते हैं।

 

सेठ समझ गया कि उसकी चाल उल्टी पड़ चुकी है अतः भलाई धीरे से खिसक लेने में ही है। फिर उस सेठ ने दोबारा अवंती की दुकान में घुसने की हिम्मत नहीं की।

 

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5. मीरा बहन और बाघ (moral stories in hindi for class 3)

मीरा बहन का जन्म इंग्लैंड में हुआ था। गांधी जी के विचारों का उन पर इतना असर हुआ कि वे अपना घर और अपने माता-पिता को छोड़कर भारत आ गईं और गांधी जी के साथ काम करने लगीं।

 

 

आजादी के पाँच साल बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक पहाड़ी गाँव, गेवली में गोपाल आश्रम की स्थापना की। उस आश्रम में मीरा बहन का बहुत सारा समय पालतू पशुओं की देखभाल में बीतता था लेकिन गेंवली गाँव के आसपास के जंगलों में बाघ जैसे खतरनाक जानवर भी रहते थे।

 

पहाड़ी गाँवों में अक्सर बाघ का डर बना रहता है। जंगल कटने के कारण शिकार की तलाश में बाघ कभी-कभी गाँव तक पहुँच जाता है। गेंवली गाँव में एक बार यही हुआ। एक बाघ ने गाँव में घुसकर एक गाय को मार डाला। सुबह होते ही यह खबर पूरे गाँव में फैल गई। गाँव के लोग डरे कि यह बाघ कहीं फिर से आकर दूसरे पालतू जानवरों

 

और किसी आदमी को ही अपना शिकार न बना ले। गाँव के लोग गोपाल आश्रम गए और उन लोगों ने मीरा बहन को अपनी चिंता बताई।

 

गाँव के लोगों ने अंत में तय किया कि बाघ को कैद कर लिया जाए। उसे कैद करने के लिए उन्होंने एक पिजड़ा बनाया। पिंजड़े के अंदर एक बकरी बाँधी। योजना यह थी कि बकरी का मिमियाना सुनकर बाघ पिंजड़े की तरफ़ आएगा।

 

पिंजड़े का दरवाजा इस प्रकार खुला हुआ बनाया गया था कि बाघ के अंदर घुसते ही वह दरवाजा झटके से बंद हो जाए। शाम होने तक पिंजड़े को ऐसी जगह पर रख दिया गया जहाँ बाघ अक्सर दिखाई देता था। यह | जगह मीरा बहन के गोपाल आश्रम से ज्यादा दूर नहीं थी।

 

रात बीती। सुबह की रोशनी होते ही लोग पिंजड़ा देखने निकल पड़े। उन्होंने दूर से देखा कि पिंजड़े का दरवाजा बंद है। वे यह सोचकर बहुत खुश हुए कि बाघ ज़रूर पिंजड़े में फँस गया होगा

 

लेकिन जब वे पिंजरे के पास पहुँचे तो क्या देखते हैं – पिंजरे में बाघ नहीं था!

लोग चकित थे – बाघ के अंदर गए बिना पिंजड़ा बंद कैसे हो गया? लोग मीरा बहन के पास पहुँचे। लोगों ने सोचा कि गोपाल आश्रम पास में ही था, इसलिए शायद मीरा बहन को मालूम हो कि रात में क्या हुआ।

 

पूछने पर मीरा बहन बोली –देखो भाई, मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैं सोचती रही कि आखिर बाघ को धोखा देकर हम क्यों फँसाएँ। इसलिए मैं गई और पिंजरे का दरवाजा बंद कर आई

 

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6. सबसे अच्छा पेड़ (moral stories in hindi for class 3)

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सबसे अच्छा पेड़
 

तीन भाई थे। एक दिन सुबह के समय तीनों नए घरों की तलाश में निकल पड़े। गरम- गरम धूप में वे सड़क पर चलते चले गए। थोड़ी देर में आम का एक बड़ा पेड़ आया। उसके नीचे ठंडी छाँह थी। तीनों भाई उसके नीचे आराम करने लगे। पेड़ के पके आम तोड़-तोड़कर वे मीठा-मीठा रस चूसने लगे।

 

बड़े भाई ने कहा – भाई मुझे तो यही जगह पसंद है। आम के पेड़ से बढ़कर क्या हो सकता है? आम कच्चे होंगे, तो हम अचार बनाएँगे। और जब वे पक जाएँगे, तो हम मीठे-मीठे आम खाएँगे। कुछ आम हम बाद में खाने के लिए सुखाकर रख लेंगे।

 

पहले भाई ने आम के पेड़ के नीचे एक झोपड़ी बनाई और वह वहीं ठहर गया। लेकिन उसके भाई वहाँ नहीं ठहरे, वे आगे चल पड़े।चलते-चलते उन्हें केले के कुछ पेड़ मिले। तभी आसमान से एक काला बादल गुज़रा।

 

टप-टप……. पानी बरसने लगा। दोनों भाइयों ने केले का एक-एक पत्ता काट लिया, उसके साए में उन पर पानी नहीं गिरा। जरा देर में बादल चला गया। बारिश रुक गई।

 

दूसरे भाई ने कहा – बड़ी भूख लगी है। मुझे भी – तीसरे भाई ने कहा। दोनों ने केले का एक पत्ता चीरा, उन्होंने एक-एक टुकड़े पर खाना परोसा और दोनों ने भरपेट खाना खाया। – इसके बाद एक-एक केला भी खाया।

 

दूसरे भाई ने कहा – मैं तो यहीं घर बनाऊँगा। केले के पेड़ से अच्छा .). क्या होगा, बढ़िया केले खाने को मिलेंगे। उनकी सब्जी बनाएँगे। कुछ केले हम बेच देंगे। उनके पैसे से हम चावल खरीद लेंगे और केले के पत्ते भी काम आएंगे।

 

इसीलिए दूसरे भाई ने वहीं अपनी झोपड़ी बना ली। मगर तीसरा भाई आगे बढ़ता चला गया। चलते-चलते उसे नारियल का एक पेड़ मिला। पेड़ बड़ा लंबा और पतला था। तीसरे भाई ने कहा – कैसी प्यास लगी है!

 

टप… एक नारियल ज़मीन पर टपक पड़ा। तीसरे भाई ने अपना चाकू निकाला। खार-खार..  नारियल की जटाएँ साप हो गई। फिर उसने नारियल के छिलके में छोटा-सा छेद किया और उसका ठंडा-मीठा पानी पीया। नारियल के पेड़ की छोटी-सी छाँह!

 

तीसरा भाई उसी छाँह में बैठ गया और सोचने लगा – आम का पेड़ बहुत बढ़िया होता है और आम भी बड़ा अच्छा फल है। केले का पेड़ बड़े काम का होता है और केला खाने में अच्छा होता है।

 

पेड़ नीम का भी अच्छा है। उसकी दातुन बड़ी अच्छी रहती है। घर में कोई बीमार हो, तो लोग नीम की टहनियाँ दरवाजे पर लटका देते हैं। मेरे पास नीम का पेड़ हो, तो मैं उसकी टहनियाँ बेच सकता हूँ और पेड़ मुझे ठंडी छाँह भी देगा और अगर कहीं मेरे पास रबड़ का पेड़ होता, तो मैं अपना चाकू निकाल कर पेड़ की छाल में एक लंबा चीरा लगा देता। चीरे के तले में एक प्याला रख देता।

 

पेड़ के दुधिया रस को मैं प्याले में भर लेता। रस को पकाकर मैं रबड़ बना लेता। रबड़ में बेच देता। रबड़ से लोग गुब्बारे, टायर और तरह-तरह की चीजें बना लेते। अच्छे पेड़ों की क्या कमी है! नारियल के पेड़ की ही सोचो।

 

नारियल की जटाओं को काटकर मैं मोटी डोरियाँ बना सकता हूँ और डोरियों से मैं मजबूत चटाइयाँ भी बना सकता हूँ। रस्सियों और चटाइयों को मैं शहर के बाजार में बेच सकता हूँ। मैं नारियल का पानी पी सकता हूँ। मैं नारियल की गरी खा सकता हूँ और कुछ गरी सुखाकर मैं खोपरा भी तैयार कर सकता हूँ, खोपरे को पेर कर मैं गोले का तेल निकाल सकता हूँ।

 

गोले का तेल साबुन और कितनी ही चीजें बनाने के काम आता है। नारियल के छिलके को साफ करके कटोरे और प्याले बना सकता हूँ। ठीक तो है, मेरे लिए तो यही पेड़ सबसे अच्छा है। मैं तो इसी के नीचे घर बनाऊँगा।

 

इसलिए तीसरे भाई ने नारियल के तले अपनी कुटिया बनाई और मजे से रहने लगा। तुम्हारे लिए कौन-सा पेड़ सबसे अच्छा है?

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7. टिपटिपवा (moral stories in hindi for class 3)

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टिपटिपवा
 

एक थी बुढ़िया। उसका एक पोता था। पोता रोज रात में सोने से पहले दादी से कहानी सुनता। दादी रोज उसे तरह-तरह की कहानियाँ सुनाती।

 

एक दिन मूसलाधार बारिश हुई। ऐसी बारिश पहले कभी नहीं हुई थी। सारा गाँव बारिश से परेशान था। बुढ़िया की झोपड़ी में पानी जगह-जगह से टपक रहा था – टिपटिप-टिपटिप। इस बात से बेखबर पोता दादी की गोद में लेटा कहानी सुनने के लिए मचल रहा था। बुढ़िया खीझकर बोली – अरे बचवा, का कहानी सुनाएँ? ई टिपटिपवा से जान बचे तब न!

 

पोता उठकर बैठ गया। उसने पूछा – दादी, ये टिपटिपवा कौन है? टिपटिपवा क्या शेर-बाघ से भी बड़ा होता है?

 

 

दादी छत से टपकते हुए पानी की तरफ़ देखकर बोली – हाँ बचवा, न शेरवा के डर, न बाघवा के डर। डर त डर, टिपटिपवा के डर।

 

संयोग से मुसीबत का मारा एक बार बारिश से बचने के लिए झोपड़ी के पीछे बैठा था। बेचारा बाघ बारिश से घबराया हुआ था। बुढ़िया की बात सुनते ही वह और डर गया।

 

अब यह टिपटिपवा कौन-सी बला है? ज़रूर यह कोई बड़ा जानवर है। तभी तो बुढ़िया शेर-बाघ से ज्यादा टि पटिपवा से डरती है। इससे पहले कि बाहर आकर वह मुझ पर हमला करे, मुझे ही यहाँ से भाग जाना चाहिए।

 

बाघ ने ऐसा सोचा और झट पट वहाँ से दुम दबाकर भाग चला।

 

उसी गाँव में एक धोबी रहता था। वह भी बारिश से परेशान था। आज सुबह से उसका गधा गायब था। सारा दिन वह बारिश में भीगता रहा और जगह-जगह गधे को ढूँढता रहा लेकिन वह कहीं नहीं मिला।

 

धोबी की पत्नी बोली – जाकर गाँव के पंडित जी से क्यों नहीं पूछते? वे बड़े ज्ञानी हैं। आगे-पीछे, सबके हाल की उन्हें खबर रहती है।

 

पली की बात धोबी को जॅच गई। अपना मोटा लट्ठ उठाकर वह पंडित जी के घर की तरफ चल पड़ा। उसने देखा कि पंडित जी घर में जमा बारिश का पानी उलीच-उलीचकर फेंक रहे थे । धोबी ने बेसब्री से पूछामहाराज, मेरा गधा सुबह से नहीं मिल रहा है। ज़ारा पोथी बाँचकर बताइए तो वह कहाँ है?

 

सुबह से पानी उलीचते- । उलीचते पंडित जी थक गए, थे। धोबी की बात सुनी तो झंझला पड़े और बोले – मेरी पोथी में तेरे गधे का पता – ठिकाना लिखा है क्या, जो आ गया पूछने? अरे, जाकर ढूँढ उसे किसी गढई-पोखर में। और पंडित जी लगे फिर पानी उलीचने। धोबी वहाँ से चल दिया। चलते-चलते वह एक तालाब के पास पहुँचा। तालाब के किनारे ऊँची-ऊँची घास उग रही थी। धोबी घास में गधे को ढूँढ ने लगा।

 

किस्मत का मारा बेचारा बाघ टिपटिपवा के डर से वहीं घास में छिपा बैठा था। धोबी को लगा कि बाघ ही उसका गधा है। उसने आव देखा न ताव और लगा बाघ पर मोटा लट्ठ बरसाने। बेचारा बाघ इस अचानक हमले से एकदम घबरा गया।

 

बाघ ने मन ही मन सोचा – लगता है यही टिपटिपवा है। आखिर इसने मुझे ढूँढ़ ही लिया। अब अपनी जान बचानी है तो यह जो कहे, चुपचाप करते जाओ।

आज तूने बहुत परेशान किया है।

 

मार-मारकर मैं तेरा कचूमर निकाल दूँगा – ऐसा कहकर धोबी ने बाघ का कान पकड़ा और उसे खींचता हुआ घार की तरफ़ चल दिया। बाा बिना चूं-चपड़ किए भीगी बिल्ली बना धोबी के पीछे-पीछे चल दिया। घार पहुँचकर धोबी ने बाठा को खूटे से बाँध दिया और सो गया।

 

सुबह जब गाँव वालों ने धोबी के घर के बाहर खूटे से एक बाठा को बँधे देखा तो उनकी आँखों खुली की खुली रह गई।

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