एक बार एक नगर में जीर्णधन नाम का एक बनिया रहता था। एक बार उसके मन में विदेश जाने की इच्छा हुई। धन की कमी होने के कारन वह अपनी पुश्तैनी लोहे से बनी अपनी तराजू किसी सेठ के घर जमा करवा कर विदेश चला गया। मनमाने तरीके से विदेश घूमने पर बाद में वह अपने नगर में वापिस लोटा और सेठ से जाकर कहा –
“अरे सेठ ! हमारी जमा की हुई तराजू वापिस दे दो।”
सेठ कहता है –
“अरे जीर्णधन जी, माफ़ करना आपके द्वारा दी गई तराजू चूहे खा गए।”
जीर्णधन ने कहा –
“अरे सेठ, कोई बात नहीं तुम्हारा इसमें कोई दोष नहीं है संसार में कोई ऐसी चीज नहीं है जो हमेशा रहे।”
कुछ दिन बाद सुबह के समय जीर्णधन सेठ से आकर कहता है-
“सेठ मैं नहाने के लिए नदी के किनारे जा रहा हूँ, तुम अपने लड़के को मेरे साथ नहाने के लिए भेज दो।”
सेठ ने अपने पुत्र को जीर्णधन के साथ नहाने के लिए भेज दिया। दोनों ने नदी किनारे जा कर स्नान किया और जीर्णधन ने सेठ के पुत्र को बड़ी चालाकी से नदी किनारे वाली गुफा में छिपा दिया और बड़ा सा पत्थर उसके द्वार पर लगा दिया और घर लोट आया। बहुत देर से सेठ के पुत्र के घर न जाने पर वह पूछता है –
“हे जीर्णधन ! मेरा पुत्र कहाँ है ?”
जीर्णधन ने कहा –
“नदी किनारे से तुम्हारे पुत्र को बाज़ उठा कर ले गया।”
सेठ ने कहा –
“अरे झूठे, बाज़ भी कभी बच्चों को उठा कर ले जाते हैं।”
जीर्णधन ने कहा –
“अरे ! जैसे बाज़ बच्चों को उठा कर नहीं ले जा सकते उसी प्रकार चूहे तराजू को नहीं खा सकते।”
इस तरह वह लड़ते झगड़ते हुए राजदरबार में पहुंचे और सेठ ने ऊँची आवाज में कहा-
महाराज ! महाराज ! इसने मेरे पुत्र को चुरा लिया है।
इसपर धर्माधिकारी कहता है –
“अरे बनिए ! तू इस के पुत्र को लोटा दे। “
जीर्णधन ने कहा –
“अरे धर्माधिकारी जी, जब हम नदी किनारे स्नान कर रहे थे उसी समय बाज़ उसे उठा कर ले गया।”
यह सुनकर धर्माधिकारी कहता है –
“क्या बाज़ भी किसी बच्चे को ऐसे उठा कर ले जाता है ?”
जीर्णधन कहता है –
“हाँ बिलकुल वैसे ही जैसे लोहे की तराजू चूहें खा सकते हैं।”
दरबार के सभी लोग बनिए की चतुराई समझ गए और हंसकर उन्होंने बनिए को तराजू दिलवाई और सेठ को उसका पुत्र दिलवाया।
शिक्षा
पंडित शत्रु अच्छा है पर मुर्ख मित्र अच्छा नहीं।