एक बार एक वृक्ष पर चिड़िया का परिवार रहा करता था। एक दिन वह सुखपूर्वक वृक्ष की डाल पर अपने घोसले में बैठी थी। तभी आसमान से धीरे धीरे बारिश होने लगी और ठंठी हवा चलने लगी। उसी समय ठण्ड के मारे एक बंदर कांपता हुआ, अपने दान्त घटघटाता हुआ उस वृक्ष के निचे आकर बैठ गया। बंदर को इस हालत में देखकर चिड़िया को दया आ गई और बंदर से कहने लगी-
“अरे मुर्ख ! तू इंसान जैसी बुद्धि वाला होने पर भी अपना घर क्यों नहीं बनाता।”
यह सुनकर बंदर ने क्रोध में आकर कहा –
“तो चुप क्यों नहीं रहती ? अरे ! इस चिड़िया की हिम्मत तो देखो, यह मेरी हंसी उड़ा रही है ?
चिड़िया बंदर को उपदेश देती रही। बंदर को ठंठ लग रही थी जिससे उसे अधिक गुस्सा आया और बंदर पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद वह चिड़िया से कहता है –
“तेरी इतनी हिम्मत।”
यह कहता हुआ बंदर उसके घोसले के टुकड़े-टुकड़े कर डालता है। इस तरह सुखी चिड़िया के परिवार को मुर्ख बंदर उजाड़ देता है।
शिक्षा
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी ऐरे-गैरों को उपदेश नहीं देना चहिये। क्योंकि सीख सज्जनो के लिए गुणकारी होती है दुर्जनों के लिए नहीं।