मंगला गौरी व्रत कथा (2023)| Mangla gauri vrat katha

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एक नजर मे मंगला गौरी व्रत

मां मंगला गौरी को आदि शक्ति माता पार्वती का ही मंगल रूप माना जाता हैं। विशेष तौर पर मंगला गौरी व्रत मध्यप्रदेश, पंजाब, बिहार, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हिमाचलप्रदेश में प्रचलित है। 

श्रावण मास भगवान शिव को प्रिय है और इस दौरान आने वाला यह व्रत सुख और सौभाग्य से जुड़ा होने के कारण इसे सुहागिन महिलाएं करती हैं। इस व्रत-उपवास को करने का उद्देश्य अखंड सुहाग का वरदान पाना तथा संतान को सुखी जीवन की कामना करना है। श्रावण में आने वाला हर मंगलवार का दिन देवी पार्वती को अत्‍यंत प्रिय होने कारण ही इन दिनों माता गौरी का पूजन किया जाता है और इसे मंगला गौरी व्रत कहा जाता है।

उपर दी गयी जानकारी hindi.webdunia.com से ली गई है।


मंगला गौरी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि एक शहर में एक धर्मपाल नाम से एक व्यापारी रहता था। उसके पास अपार धन-संपत्ति थी और उसकी पत्नी भी सुंदर व सुशील थी, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं होने से वो दोनों काफी दुखी रहते थे।  वह दोनों अपनी संतान को पाने के लिए हमेशा से माता गौरी की उपासना करते थे।

कुछ दिनों बाद माता गौरी ने प्रसन्न होकर व्यापारी धर्मपाल से वरदान मांगने को कहा व्यापारी और उसकी पत्नी मैं अपने लिए संतान का वर मांगा। तब माता गौरी ने कहा कि मैं तुम्हें संतान का वरदान तो दे दूंगी, लेकिन वह अल्पायु यानि मात्र 16 साल तक ही जीवित रह सकता है। 16 साल बाद तुम्हारे संतान की मृत्यु सांप के काटने से हो जाएगी। व्यापारी और उसकी पत्नी इस बात से थोड़ा चिंतित होने के बाद भी संतान सुख की इच्छा माता गौरी के साथ की।

माता गौरी के वरदान स्वरूप व्यापारी धर्मपाल को एक पुत्र प्राप्त हुआ, जिसका नाम उसने चिरायु रखा। जैसे-जैसे साल बीतने लगे, धर्मपाल और उसकी पत्नी को अपने संतान की बढ़ती उम्र के साथ उसके मृत्यु का डर सताने लगा। इसलिए उन दोनों ने कई विद्वानों से जाकर इस संबंध में बात की। एक विद्वान ने उन्हें अपने पुत्र का विवाह 16 साल के 1 वर्ष पूर्व ही करने की सलाह दी,  विद्वान के कहे अनुसार धर्मपाल ने अपने पुत्र चिरायु का विवाह 16 साल पूर्ण होने के 1 वर्ष पहले ही कर दिया।

जिस स्त्री से उसका विवाह कराया गया,  वह स्त्री अपने पति के लिए सुख शांति और अपने अखंड सौभाग्य के लिए माता गौरी का व्रत करती थी। उस स्त्री के व्रत से प्रसन्न होकर माता गौरी ने धर्मपाल की बहू को अखंड सौभाग्य का वरदान दिया, जिसके बाद चिरायु अपने नाम के अनुसार चिरंजीवी हुआ। तब से हर महिला अपने सुहाग के मंगल कामना के लिए मंगला गौरी व्रत करती हैं।

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