1. मम्मी से पूछकर !
पांचवां वर्ग। वर्ग में 25 छात्र एवं 15 छात्राएं उपस्थित। पहली घंटी का समय । इतिहास विषय। गुरुजी वर्ग में पहुचे और बोले। बच्चो ! आज तुम लोगों को मैं जापान देश का प्रसग सुना रहा हूं। जानते हो, जापान कहां हैं ? . गुरुजी ने दिवाल पर नक्शा टांगा। उसे बच्चों को दिखाया और कहा – यह रहा एशिया महादेश और इसके उत्तरी-पूर्वी कोने पर यह रहा छोटा-सा द्वीप-जिसे कहते हैं जापान । चारों ओर प्रशान्त महासागर का पानी की पानी। तो आगे सुनो, गुल्जी ने बताना जारी रखा । सन् 1945 की बात है। द्वितीय विश्व युद्ध जोरों पर था। छोटे से जापान ने अमेरिका जैसे बड़े देश की नाकों दम
कर रखा था। सो उसे घुटने टेकवाने के लिए अमेरिका ने उस पर दो एटमबम गिरा दिये। भला एटमबम के प्रहार को कौन झेल सकता है। इससे जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नामक नगर लगभग मिट्टी में मिल गये। हजारों लोग मारे गये। हजारों अपाहिज हो गये। जानते हो बच्चो ! जापान पहला देश है जो । एटमबम का शिकार बना। उसके बाद, आज तक किसी देश को एटमबम का वार
झेलना नहीं पड़ा है। उसी जापन का यह प्रसंग है। गौर से सुनो गुरुजी आगे बोले, वहां के एक पांचवे वर्ग में एक जापानी टीचर पढ़ाने पहुचे ।।
वा में जापानी छात्र-छात्राएं थीं। जापानी टीचर छात्रों को भगवान बुद्ध के बार मे बताने लगे। वे बोले भगवान बुद्ध का जन्म भारतवर्ष में हुआ था। भगवान बुद्ध ने सत्य, अहिंसा और प्रेम का संदेश दिया था। जिससे संसार का कल्याण हो सके। उनके संदेश का पालन कर मनुष्य सुख और शान्ति पाता है। हम जापानी उनके भक्त हैं। हम बौद्ध हैं। भगवान बुद्ध के हम पर बड़े उपकार हैं। उनके कारण ही हमारा जीवन सुखी और शान्तिमय है। हम उनके ऋण को चुका नहीं सकते।
इतना बताने के बाद जापानी टीचर ने अपने भोले-भाले जापानी छात्र ।। छात्राओं से कहा, अच्छा बच्चो ! एक बात सोचकर बताओ। अगर भगवान बुद्ध बन्दूक लेकर जापान देश पर चढ़ाई कर देते हैं तो तुम लोग क्या करोगे? हां, हा,। बोलो, बोलो। फौरन एक नन्हा छात्र उठ खडा हुआ। उसका चेहरा क्रोध से तमतमा रहा
था। वह गरजते हुए. बोला में इन्हें गोली मार दूगा।
गुरुजी ने कहा, बच्चो ! जापानी टीचर का पाठ यहीं खत्म हुआ। फिर उन्होंने कहा, अब तुम लोग बोलो। भारत के नौनिहालो ! देश के कर्णधारों । हम तो भगवान के भक्त हैं। हम उनकी पूजा करते हैं। मान लो, भगवान तीर-धनुष लेकर हमारी मातृभूमि भारतवर्ष पर चढ़ायी कर देते हैं तो तुम क्या करोगे ? बोलो बच्चो, बोलो, बोलो।
इस पर चारों ओर सन्नाटा छा गया। बच्चे एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
तब गुरुजी ने एक बच्चे की ओर इशारा करते हुए कहा, हां, हां ! तुम बोलो ! तुम, बोलो तुम क्या करोगे?
पहले तो बच्चा सोच में पड़ गया फिर हिचकचाते हुए बोला, ‘मम्मी से पूछ कर बताऊंगा।
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2. अंगूर खट्टे है (moral stories in hindi for class 5)
एक भूखी लोमड़ी खाने की तलाश में इधर-उधर भटक रही थी। भटकते-भटकते उसे वह एक ऐसी जगह जा पहुंची जहाँ उसके सामने बहतु सारा अंगूर पेड़ की उचाईयों में लगा था। अंगूर को देखकर उसके मुँह में पानी आ गया। लोमड़ी सोचने लगी, “वह कि तने स्वादि स्ट अंगूर है इन्हे खाकर मज़ा आ जाएगा। मई पूरा अंगूर खा जाउंगी।”
यह सोचने के बाद वह छलांग लगाती है ताकि वह कू दकर अंगूर को खा सके । लेकि न अंगूर ऊपर था। लोमड़ी ने फि र छलांग लगाया लेकि न फि र भी वह उस अंगूर तुक नहींपहंचु सकी। ऐसे में वह और ज़ोर से छलांग लगाने लगी।
लोमड़ी ने सारा ज़ोर लगा दि या लेकि न फि र भी वह अंगूर तुक नहींपहंचु सकी। बार-बार कोशि श करने बावजूब भी वह अंगूर तुक नहींपहंचु सकी। अंत में हार मानकर वह वह से जाने लगी। जाते-जाते उसने कहा, “अंगूर खट्टे है।”
इस कहानी के माध्यम से हमें यह बताया जा रहा है की जब हम कि सी चीज़ को पसंद करते है तो उसे पाने के लि ए तरह-तरह के कोशि श करते है। लेकि न जब हम उसे प्राप्त नहींकर पाते तो उसकी बुराई करने लगते है।
पहले लोमड़ी अंगूर को स्वादि स्ट कहती है। लेकि न जब वह उसे हासि ल नहींकर पाती तो वह अंगूर खट्टे है कहकर वह से चले जाती है।
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3. एक से भले दो (moral stories in hindi for class 5)
किसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था एक बार किसी कार्यवश ब्राह्मण को किसी दूसरे गांव जाना था। उसकी माँ ने उस से कहा कि किसी को साथ ले ले क्यूँ कि रास्ता जंगल का था ब्राह्मण ने कहा माँ! तुम डरो मत,मैं अकेला ही चला जाऊंगा क्यों कि कोई साथी मिला नहीं है।
माँ ने उसका यह निश्चय जानकर कि वह अकेले ही जा रहा है पास की एक नदी से माँ एक केकड़ा पकड़ कर ले आई और बेटे को देते हए बोली कि बेटा अगर तुम्हारा वहां जाना आवश्यक है तो इस केकड़े को ही साथ के लिए लेलो एक से भले दो यह तुम्हारा सहायक सिध्द होगा
पहले तो ब्राह्मण को केकड़ा साथ लेजाना अच्छा नहीं लगा, वह सोचने लगा कि केकड़ा मेरी क्या सहायता कर सकता है। फिर माँ की बात को आज्ञारूप मान कर उसने पास पड़ी एक डिब्बी में केकड़े को रख लिया यह डब्बी कपूर की थी। उसने इस को अपने झोले में डाल लिया और अपनी यात्रा के लिए चल पड़ा।
कुछ दूर जाने के बाद धूप काफी तेज हो गई। गर्मी और धूप से परेशान होकर वह एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा पेड़ की ठंडी छाया में उसे जल्दी ही नींद भी आ गई।
उस पेड़ के कोटर में एक सांप भी रहता था। ब्राह्मण को सोता देख कर वह उसे डसने के लिए कोटर से बाहर निकला। जब वह ब्राह्मण के करीब आया तो उसे कपूर की सुगंध आने लगी वह ब्राहमण के बजाय झोले में रखे केकड़े वाली डिब्बी की तरफ हो लिया
उसने जब डब्बी को खाने के लिए झपट्टा मारा तो डिब्बी टूट गई जिस से केकड़ा बाहर आ गया और डिब्बी सांप के दांतों में अटक गई केकड़े ने मौका पाकर सांप को गर्दन से पकड़ कर अपने तेज नाखूनों से कस लियासांप वहीं पर ढेर हो गया उधर नींद खुलने पर ब्राहमण ने देखा की पास में ही एक सांप मारा पड़ा है।
उसके दांतों में डिबिया देख कर वह समझ गया कि इसे केकड़े ने ही मारा है। वह सोचने लगा कि माँ की आज्ञा मान लेने के कारण आज मेरे प्राणों की रक्षा हो गई, नहीं तो यह सांप मुझे जिन्दा नहीं छोड़ता इस लिए हमें अपने बड़े. माता पिता और गरु जनों की आज्ञा का पालन जरूर करना चाहिए।
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4. मूर्ख बाज (moral stories in hindi for class 5)
एक गांव में रामधन नाम का एक आदमी रहता था। उसे चूजों से बहुत प्यार था। वह अक्सर अपनी हथेली में चूजा लेकर घूमा करता था एक दिन एक बाज न जाने कहां से उड़ता हुआ आया और उसके हाथ से चूजे को झपटकर उड़ गया। रामधन बेचारा मन मसोसकर रह गया।
वह अपनी आदत के अनुसार चूजे को ‘बिना हथेली में रखे कहीं नहीं जाता था। अत: फिर से दूसरा चूजा हथेली में रखकर घूमने लगा। चार दिन बाद फिर से वही बाज दुसरे चूजे को भी उसकी हथेली से ले उड़ा। रामधन इस हादसे से अत्यंत दुखी हो गया। परन्तु वह अपनी आदत से लाचार था।
एक सप्ताह के बाद वह पुनः अपनी हथेली पर एक और चूजा लेकर निकला। लेकिन इस बार वह सतर्क था। उसने अपने दूसरे हाथ की तर्जनी में तेजधार का एक ब्लेड बांध रखा था। वह अभी कुछ दूर चला ही था कि सामने से बाज को अपनी हथेली की ओर झपटते देखा।
उसने तुरंत अपनी हथेली को थोड़ा नीचे करते हुए ब्लेड बंधी ऊंगली को ऊपर कर दिया जिससे ब्लेड बाज के पेट को फाडता चला गया। उसकी अंतड़ी बाहर लटकने लगीं। अचानक उस मूर्ख बाज ने उसे चूजे की अंतड़ी समझकर जोर से खींचा लेकिन पलक झपकते ही वह स्वयं जमीन पर गिरकर तड़पने लगा।
रामधन ने उस दिन अपनी चालाकी से चूजे को बचा लिया लेकिन बाज अपनी मुर्खता से अपनी जान गवां बैठा। बच्चों, सोच समझकर काम करने से रामधन ने अपने शत्रु को नष्ट करने में सफलता पाई जबकि बिना विचार किए कार्य करने में बाज का नाश हो गया।
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5. परिश्रम का फल (moral stories in hindi for class 5)
बहुत दिनो की बात है, फूलपुर नाम का एक गांव था। उस गांव में सभी लोगों में आपस में बड़ा प्रेम था। मुसीबत पड़ने पर सभी एक दूसरे की सहायता करते थे। गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती व पशुपालन था। एक बार दुर्भाग्य से वहा अकाल पड़ा। वर्षा न होने से फसलें सब नष्ट हो गयी। नदी, नाले व तालाब सूख गये। सभी लोग भूखों मरने लगे।
संचित किया हुआ अनाज सब खत्म हो गया। आदमी तो क्या पशु-पक्षी तक सभी बेहाल हो गये। लोग पीने के पानी के लिये भी तरसने लगे। ऐसे में मुखिया ने पंचायत बुलाई और सबसे सलाह मांगी। कोई भी सही सलाह न दे पाया।
रामू नाम के एक किसान ने कुआं खोदने की सलाह दी ताकि पीने के पानी की समस्या का निराकरण किया जा सके। कोई भी उसकी इस बात से सहमत न था। सभी को लग रहा था कि यह बहुत मेहनत का काम है और जरूरी भी नहीं कि जहां कुआं खोदा जाये वहां पानी निकल ही आये।
राम को पूरा विश्वास था कि यदि सभी लोग मिलकर परिश्रम करें तो कुआं अवश्य खोदा जा सकता है। पर कोई उसका साथ देने को तैयार न था। अन्ततः पंचायत बिना कोई निर्णय लिये ही उठ गयी पर रामू ने हिम्मत न हारी।
रामू के मित्र शामू ने उसका साथ देने का निर्णय किया। दोनों मित्र कदालें व फावडे लेकर गांव के मदिर में पहुंचे। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की और वहीं मंदिर के किनारे ही कुआ खोदने का निश्चय किया।
अपने हृदय में ईश्वर के प्रति असीम श्रद्धा व विश्वास लिये उन्होंने कार्य आरम्भ किया। वे दोनों कड़ा परिश्रम करते रहे। उन्होंने न रात को रात समझा, न दिन को दिन, बस मेहनत करते रहे।
बहुत थक जाने पर थोडा विश्राम कर लेते और फिर जुट जाते। गांव के लोग उन्हें मूर्ख कहते रहे पर दोनों मित्र अपनी ही धुन में लगन और मेहनत से कुआं खोदते रहे।
सूरज की चिलचिलाती धूप भी उन्हें उनके निश्चय से डिगा नहीं पायी। उनके शरीर से धारों-धार पसीना बहता रहा, हाथों में छाले पड़ गये पर वे अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहे और आखिर वह दिन भी आ गया कि फावड़ा मारते ही जल की धारा फूट पड़ी। खुशी के मारे उनकी आंखों में आंसू आ गये और गले रुंध गये।
उन्होंने ईश्वर को लाख लाख धन्यवाद दिया। उनकी मेहनत सफल हो गयी थी। गांववालों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। कल तक जो उनका मजाक उड़ाते थे आज उनके सिर लज्जा से झुक गये।
रामू और शामू ने दिखा दिया था कि लक्ष्य के प्रति दृढ विश्वास लेकर यदि कड़ी मेहनत और लगन से काम किया जाये तो असम्भव को भी सम्भव बनया जा सकता है। किसी ने सच कहा है कि “मेहनत का फल मीठा होता है।”
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