hindi moral stories for class 8 |
1. गुणों की इज्जत (very short stories in hindi with moral for class 8)
एक आदमी हलवाई की दुकान पर गया और दोने में गुलाब-जामुन लेकर चला । उसको रेशमी रुमाल से ढक लिया। दोना मन ही मन में सोचने लगा इस दुनिया में मेरे जैसा भाग्यशाली कोई नहीं है । मुझे रेशमी वस्त्र से ढका गया है।
वह आदमी अपनी हवेली में पहुंचा। चौथी मंजिल में एक सुन्दर टेबल पर उस दोने को रखा। दोना फूल गया, अभिमान करने लगा-अहो! मेरी कैसी इज्जत हो रही है। मुझे बैठने के लिए कैसा सुन्दर आसन मिला है। राजा-महाराजाओं की भांति मेरा स्वागत हो रहा है। सभी लोग मुझे उच्च दृष्टि से निहार रहे है। प्रिय बच्चों की तरह मुझे यहां हाथों में लाया गया है।
किन्तु उस अभिमानी दोने को यह क्या पता था कि यह इज्जत प्रतिष्ठान स्वागत उसका हो रहा है अथवा गुलाब जामुन का । गुलाब जामुन के बिना दोने की क्या कीमत है। कुछ ही देर बाद दोने में से गुलाब-जामुन तश्तरी मे लिए गये। दोना बेकार होते ही उस व्यक्ति ने दोने को नीचे फेंक दिया और उसे कुत्ते चाटने लगे।
दोने को भान हुआ, आँखे खुली, अहंकार का नशा उतरा। वास्तव में शरीर की कोई इज्जत नहीं है। यदि शरीर रूपी दोने में सद्गुण रूपी गुलाब जामुन होगे, तो उसकी पूछ होगी, इज्जत होगी एवं प्रतिष्ठा होगी। जहां वह जायेगा, वहां उसका सत्कार होगा।
शिक्षा (Moral Of 8th Class Story)
यदि शरीर रूपी दोने में सद्गुण रूपी गुलाब जामुन होगे तो उसकी पूछ होगी, इज्जत होगी। अगर दोनों रूपी शरीर में गुलाब जामुन रूपी गुण नहीं होंगे तो शरीर की कोई इज्जत नहीं है।
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2. बनिये की वाचालता (moral story for class 8 in hindi)
एक बनिया था। यह बातें बनाने में बड़ा वाचाल था। जहां कीचड़ नहीं वहाँ समुद्र बना देता था । सुई का मूसल बनाना तो उसके लिए खेल जैसा था। छोटे छोटे गांवों में वह माल बेचने जाता था। जब वापस घर जाता तो अपनी पत्नी के आगे बड़ी-बड़ी बातें बनाता।
“आज तो तेरा सुहाग अमर रहना ही था, अन्यथा मैं तो परलोक पहुंच जाता”-वह कहता। सेठानी पूछती-“पतिदेव ! ऐसा क्या संकट आ गया था?”
सेठ-“कल मार्ग में चार चोर मिले। उन्होंने मुझे लूटना चाहा। किन्तु मैंने वीरता के साथ उनसे संग्राम किया । किसी को हाथ से मारा, तो किसी को पैरों से और सबको भमा दिया।” इस प्रकार वह बनियां निरन्तर अपनी प्रशंसा करता और कहता रहता कि आज पांच मिले, आज सात मिले।
सेठानी बड़ी विवेकशील एवं समझदार थी। उसने सोचा-पतिदेव तो बड़े कायर है और मेरे सामने बड़ी-बड़ी डींगें हांकते हैं। एक दिन इनकी परीक्षा करनी चाहिए कि वास्तविक स्थिति क्या है। सेठानी ने सेठ से सब पूछ लिया कि माप किधर से जाते हैं और किधर से आते हैं ?
सेठानी दूसरे दिन पुरुष के कपड़े पहन कर मार्ग में जा बैठी। कुछ समय बाद जूतों को घसीटता धीरे-धीरे आता हुआ वह सेठ दिखायी दिया। सेठानी ने उसे जोर से ललकारा और दो थप्पड़ लगाकर बोली-“इधर लाओ यह पोटला।” सेठ रोता-रोता बोला-“यह लो पोटला, किन्तु मेहरबानी करके मुझे मारो मत।”
सेठानी बोली-“बैठ जाओ यहां पर, जब तक मैं आँखों से ओझल न हो जाऊं तब तक यहां से उठना मत।” सेठानी सेठ का सारा सामान लेकर घर लौट आई। वह सेठ धीरे-धीरे चलता हुआ घर पहुंचा। सेठानी बोली “पतिदेव! आज तो रात बहुत चली गई। इतनी देर कैसे कर दी ?” सेठ बोला-“आज की बात तो पूछो मत, घर पर जीवित पहुंच गया, यह तेरे सौभाग्य का ही प्रताप है।
मार्ग में आते-आते आज पच्चीस चोरों से मुठभेड़ हो गई। मैंने किसी को हाथों से, किसी को दांतों से, सबको पछाड़ दिया । किन्तु सामान का पोटला वे जरूर ले गये।” सेठानी गुस्से से लाल-पीली होकर बोली- सेठजी ! आपको फिजूल की बात बनाने में तनिक भी संकोच नहीं होता। कभी कहते हैं चार चोर मिले, कभी पांच, कभी पचीस। कहाँ मिलते है चोर, आज तो मैं मिली थी आपको। यह लीजिए आपका पोटला। भविष्य में ऐसे ढोंग रचकर मेरे आगे से डींगे हांकने की आवश्यकता नहीं है।”
शिक्षा (Moral Of 8th Class Short Story)
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3. वचन का प्रभाव (story of 8 class in hindi)
मानसिंह नाम का एक ठाकुर था। नौकरी की तलाश में वह सेठ माणकचंद जौहरी की दुकान पर जा पहुंचा। सेठ ने कहा-‘किसलिए आये हो?’ ठाकुर ने कहा नौकरी के लिए।’ परस्पर कुछ प्रश्नोत्तर हुए। सेठ को नौकर की आवश्यकता नहीं थी, फिर भी उसने उसको नीतीश समझकर नौकरी पर रख लिया, किन्तु उसे कुछ भी काम नहीं संभाला गया। ठाकुर बोला-‘सेठ साहब ! मैं मुफ्त में रोटी खाने वाला नहीं हूं।
मुझे कोई काम सौंपा जाये। सेठ ने कहा-‘मुझे पानी पिलाया करो और जहां कहीं बाहर जाना पड़े तो पानी की झारी हमेशा साथ रखा करो। बस, इस काम का पूरा पूरा ध्यान रखना।’ एक दिन सेठजी किसी यात्रा के लिए रवाना हुए। साथ में अनेक मुनीम थे। मानसिंह भी पानी की झारी लिये सेठ के पीछे-पीछे चल पड़ा। पानी पिलाने के लिए वह प्रतिक्षण तैयार रहता था।
मार्ग लम्बा होने के कारण पानी की झारी खाली हो गयी। मानसिंह विचार में पड़ गया कि अब क्या करूं? सेठ साहब अवश्य प्यासे हैं किन्तु झारी खाली होने से पानी नहीं मांग रहे हैं। हाय! धिक्कार है मेरे जीवन को कि जो एक कार्य मुझे सौंपा गया वह भी पूरा नहीं कर सका।
हराम का नमक खाना ठीक नहीं है। इतने में एक छोटा-सा गांव दिखाई दिया। मानसिंह पानी लेने के लिए बड़ी तेज गति से वहां पहुंचा और पानी के विषय में पूछा। गांव के लोगों ने कहा-‘ठाकुर साहब! यहां दूध मिलना तो सरल है पर पानी मिलना बड़ा कठिन हैं।’ ठाकुर-‘क्या यहां पर कोई कुआं या बावड़ी नहीं है ?’ लोगों ने कहा बावड़ी है तो सही, पानी भी उसका मीठा है, किन्तु वहां जाने वाला वापस नहीं आता है। बावड़ी का संरक्षक राक्षस सब को मार देता है। इस गांव में जल की पूरी तंगी है। किसी का भी जीवन आराम में नहीं है।’
ठाकुर मानसिंह बड़ी हिम्मत करके बावड़ी की ओर रवाना हुआ। बावड़ी निर्मल जल से लबालब भरी थी। ऊपर कमल छाए हुए थे। पानी अमृत जैसा मीठा था । वह बावड़ी में गया, पानी पिया। झारी भरकर ज्यों ही बाहर आने लगा, त्योंही विकराल रूप धारण किए हुए राक्षस ने उसे ललकारा-‘अरे, ठहरना, पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दे, फिर पानी लेकर जाना।’
हाथ में एक लम्बी हड्डी लटका कर बोला-‘देख, यह शस्त्र मेरे हाथ में कैसा सुन्दर लगता है ?’ मानसिंह ने मधुर स्वर में कहा, राक्षसदेव ! यह शस्त्र आपके हाथ में बहुत ही अच्छा लगताहै। इस शस्त्र को मैं इन्द्रदेव का वज्र कहूं या वासुदेव के चक्र की उपमा से अलंकृत करूं, इसके लिए मेरे पास कोई उपमा भी नहीं है।’
ठाकुर का उत्तर सुनकर राक्षस बहुत ही प्रसन्न हुआ और बोला- मैं तुम्हारे मीठे वचन से प्रभावित हूँ, वरदान मांगों।’ ठाकुर ने कहा-‘यहां पानी के बिना लोग क्यों तरस रहे है?
राक्षस-‘मैं सबसे यही प्रश्न करता हूं जो तुमसे किया है, पर यहां के लोग जुबान के बहुत कठोर और कड़वे हैं, उत्तर ऐसा अश्लील देते हैं कि मेरा दिल खट्टा हो जाता है।’ ठाकुर-‘आप मेरे निवेदन को मान किसी को भी पानी के लिए न तरसाएं, बस यही वरदान मांगता हूं।’
ठाकुर की अमृतमयी वाणी सुनकर राक्षस बोला- ‘अच्छा जाओ, तुमको यह वर देता हूं।’ गांव में आकर ठाकुर ने समय घटना-चक्र से लोगों को अवगत किया और कहा-‘आप लोगों का संकट टल गया है किन्तु अपशब्दों का प्रयोग किसी के भी प्रति नहीं होना चाहिए।’ स्थानीय लोगों ने ठाकुर साहब का बहुत बहुत सम्मान किया। भोजन के लिए निवेदन और आग्रह करने लगे, किन्तु ठाकुर कहां मानने वाला था, वह तो शीघ्र झारी लेकर सेठजी के पास जा पहुंचा।
शिक्षा (Moral Of The 8th Class Story)
4. संग्रह (hindi story with moral for class 8)
राजा भोज सभा में बैठे थे। इतने में उनके सामने एक शहद की मक्खी आई। वह दोनों पांव मलकर सिर पर लगाने लगी। राजा भोज ने यह देखकर उपस्थित विद्वानों से प्रश्न किया-“मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मक्खी कोई फरियाद लेकर आयी है। क्या आपमें से कोई बतला सकता है कि यह क्या फरियाद कर रही है?”
भोज का प्रश्न सुनकर सभी पंडित आश्चर्य के झूले में झूलने लगे। आखिर एक मनीषी ने कहा-“राजन् ! यह मक्खी कुछ ही दिनों पहले मेरे पास आई थी और फरियाद करने लगी।”
मैंने कहा-“तुम राजा के पास जाओ वहां बराबर न्याय होगा। इसलिए आपके पास आई है। “राजा-“विज्ञवर ! यह तो बताओ इसकी क्या फरियाद है ?”
विज्ञ-“राजन् ! यह मक्खी आपको चेतावनी देने आई है कि महाराज भोज! संग्रह करना बहुत बड़ा पाप है। संग्रहशील व्यक्ति को मेरी तरह दुःख का शिकार बनना ही पड़ता है। मैंने बड़ी निपुणता से मधु का संचय किया था।
संगृहीत मधु पर मैं मन ही मन गर्व करती थी। मैंने न तो उसका भक्षण कियाऔर न ही किसी को दान दिया। अन्त में लूटने वाले लूट ले गये और मैं हाथ मलती ही रह गई।”
शिक्षा (Moral Of 8 Class Story)
संचय करने वाला व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं हो सकता, अतः हर एक को असंग्रह की भावना विकसित करनी चाहिए।
5. काला अक्षर भैंस बराबर (moral story in hindi for class 8)
एक सेठ था। उसके घनश्याम नाम का एक पुत्र था। इकलौता पुत्र होने के कारण वह लाड़-प्यार में बिगड़ गया। सेठ ने अच्छा घर और अच्छी लड़की देखकर पुत्र का विवाह कर दिया। एक दिन घनश्याम ससुराल भोजन करने के लिए गया। सास ने विविध पकवानों द्वारा दामाद की बड़ी खातिरदारी की।
घनश्याम अपने घर जाने की तैयारी में था। इतने में सास को याद आ गया कि परदेश से पत्र आया हुआ है। मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूं, मौका अच्छा मिल गया कुंवर जी पधारे हुए हैं। सास ने कहा-” कुंवर जी ! यह पत्र आपके ससुर जी का आया हुआ है, पढ़कर सुना दीजिए।”
घनश्याम पढ़ा-लिखा नहीं था। वह चक्कर में पड़ गया और मन ही मन सोचने लगा-पत्र कैसे पढूं? मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर है। पिताजी ने मुझे पढ़ाया नहीं। उसे अपनी निरक्षरता पर बहुत दुःख हुवा और आँखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। मुंह से कुछ भी नहीं बोल सका।
सेठ की स्त्री ने सोचा-पत्र पढ़कर ये रो रहे हैं हो न हो दाल में कुछ काला है अवश्य ही मेरा सुहाग लुट गया है। यह सोचकर वह जोर-जोर से रोने लगी। उसका विलाप भरा रुदन सुनकर आसपास की स्त्रियां भी आ गई। सभी अपनी समवेदना प्रकट करने के लिए स्वर से स्वर मिलाने लग गई।
घर में कुहराम मच गया। पड़ोस के कुछ पुरुष भी आ गये। उन्होंने पूछा-“क्या बात हुई ? अभी तो पत्र आया था कि सेठ जी कुशल से हैं और अचानक क्या हो गया? क्या कोई पत्र आया है ?”
“पत्र उनको दिखाया गया। पत्र में लिखा था-“हम मजे में हैं और भगवान की कृपा से अच्छी कमाई भी हो रही है।”पत्र का सही अर्थ मालूम होते ही सब अवाक् रह गये । घर का सब वातावरण बदल गया। सबकी आकृति पर खुशी छा गई। और दामाद से पूछा गया कि आपने पत्र कैसे पढ़ा?
श्याम ने दुःख भरी भाषा में कहा-“भाइयो अगर मैं पढ़ा हुआ होता तो आंखों से आंसू क्यों निकलते? मैं तो अपने पिताजी को रो रहा हूं कि उन्होंने मुझे पढ़ाया क्यों नही।”
शिक्षा (Moral Of 8th Class Story)
अनपढ़ व्यक्ति को कदम-कदम पर दुःख उठाना पड़ता है। पढ़ा हुआ व्यक्ति ही अपने जीवन की उन्नति कर सकता है, अतः हर व्यक्ति को पढ़ाई करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
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