हरछठ या हलषष्ठी व्रत की दो प्रचलित कथाएं जिन्हें पढ़ने से मिलती है सुख समृद्धि।

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एक नजर में हरछठ या हलषष्ठी व्रत

हरछठ पूजा ( हलषष्ठी) यह त्यौहार भादों कृष्ण पक्ष की छठ को मनाया जाता है। इसी दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। यह व्रत पुत्र अवाम पुत्रवती दोनों महिलाएं करती है इसके अलावा गर्भवती और संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालीं महिलाएं भी इस व्रत को करती है छत्तीसगढ़ में महिलाएं बृहद रूप में इसकी पूजा करती है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश मे भी महिलाएं इस पूजा को करती हैं ।

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पहली हरछठ व्रत कथा (harchat vrat katha)

मथुरा के राजा कंस अपनी बहन देवकी को विवाह उपरांत विदा करने जा रहे थे तो आकाशवाणी के वचन सुन कि देवकी का आठवाँ गर्भ तेरी मृत्यु का कारण बनेगा, जानकार बहन-बहनोई को कारागार में डाल दिया और वसुदेव-देवकी के छह पुत्रों को एक-एक कर कंस ने मार डाला । जब सातवें बच्चे के जन्म का समय नजदीक आया तो देवर्षि नारद जी वसुदेव-देवकी से मिलने पहुंचे और उनके दुख का कारण जानकार देवकी को हलषष्ठी देवी के व्रत रखने की सलाह दी। देवकी ने नारद जी से हलषष्ठी व्रत की महिमा व कथा पूछी तो नारद ने पुरातन कथा कहना प्रारम्भ किया कि-

चन्द्रव्रत नाम का एक राजा हुआ, जिनकों एक ही पुत्र था । राजा ने राहगीरों के लिए एक तालाब खुदवाया किन्तु उसमे जल न रहा सुख गया। राहगीर उस रास्ते गुजरते और सूखे तालाब को देखकर राजा को गाली देते थे। इस खबर को सुनकर राजा दुखित हुआ कि मैंने तालाब खुदवाया, मेरा धन व धर्म दोनों ही व्यर्थ गया। उसी रोज रात राजा को स्वप्न में वरुण देव ने दर्शन देकर कहा कि यदि तुम अपने पुत्र का बलि तालाब मे दोगे तो जल भर जाएगा। सुबह राजा ने स्वप्न में कही बात दरबार मे सुनाया और कहा कि मेरा धन व धर्म भले ही व्यर्थ हो जाए पर मै अपने पुत्र का बलि नहीं दूंगा।

यह बात लोगों से होता हुआ राजकुमार तक पहुंचा तो वह सोचने लगा कि यदि मेरी बलि से तालाब में पानी आ जाए तो लोगों का भला होगा, यह सोंचकर राजकुमार अपनी बलि देने तालाब में बैठ गया। अब वह तालाब पानी से लबालब भर गया, जल के जीव-जंतुओं से तालाब परिपूर्ण हो गया। एकलौते पुत्र के बलि हो जाने से राजा दुखी होकर वन को चला गया ।

वहाँ पाँच स्त्रियाँ व्रत कर रही थी जिसे देखकर राजा ने कौन सा व्रत और क्यों कर रही हो पूछने पर स्त्रियों ने हलषष्ठी व्रत की सम्पूर्ण विधि –विधान बतलाई। उसे सुनकर राजा वापिस नगर को गया और अपनी रानी के साथ उस व्रत को किया । व्रत के प्रभाव से राजपुत्र तालाब से जीवित बाहर निकल आया । राजा परिवार सहित हलषष्ठी माता के जयकार कर सुख पूर्वक निवास करने लगा।

अब नारदजी ने देवकी से हलषष्ठी व्रत की अन्य कथा कहना शुरू किया कि- उज्जैन नगरी में दो सौतन रहती थी। एक का नाम रेवती तथा दूसरी का नाम मानवती । रेवती को कोई संतान न था,जबकि मानवती के दो पुत्र थे। रेवती अपने सौत के बच्चों को देखकर हमेशा सौतिया डाह से जलती रहती और उनके पुत्रों को मारने का जतन ढूंढती रहती थी। एक दिन उन्होने मानवती को बुलाकर कहा कि-बहन आज तुम्हारे मायके से कुछ राहगीर मुझसे मिले थे उन्होने बताया कि तुम्हारे पिताजी बहुत बीमार है और वह तुम्हें देखना चाहता है।

पिता कि बीमारी को सुनकर मानवती दुखी हुई। रेवती कहने लगी कि बहन तुम शीघ्र अपने पिता से मिलने चली जा, तुम्हारे आने तक मै बच्चों का ध्यान रखूंगी। सौत के बात को सच मान और अपने पुत्रों को रेवती के हाथों सुरक्षित देकर मानवती पिता से मिलने मायके चली गई। अब रेवती बच्चों को मारने का अच्छा मौका जान कर उन दोनों बच्चों को मारकर जंगल में फेंक आयी। इधर मानवती जब मायके पहुंची तो पिता को स्वस्थ देखकर पिता से अपनी सौत की कही बातों को कह कुशल-क्षेम पूछती है।

अब मानवती के माता-पिता ने अनहोनी के संदेह से पुत्री को जाने को कहती है,किन्तु मानवती के माता ने कहा कि पुत्री आज हलषष्ठी माता का व्रत का दिन है अत: तुम भी पुत्रों की दीर्घायु की कामना से यह व्रत कर आज के जगह कल चली जाना । माता की सलाह मान मानवती पुत्रों की स्वास्थ कामना से हलषष्ठी माता का व्रत धारण कर दूसरे दिन अपने घर जाने को निकली। रास्ते में वही जंगल पड़ा और वहाँ अपने बच्चों को खेलते देख उनसे पूछती है कि तुम लोग यहाँ कैसे पहुंचे।

तब पुत्रों ने बताया कि आपके चली जाने पर हमारी दूसरी माता रेवती ने मारकर यहाँ फेंक दी थी कि तभी एक दूसरी स्त्री ने हमें फिर से जिंदा कर गई। अब मानवती को समझते देर न लगी कि यह सब माता हलषष्ठी की कृपा से संभव है और माता की जयकार करती हुई घर को गई। नगर में मानवती के पुत्रों को पुनः जीवित देख और माता हलषष्ठी की महिमा जान सभी स्त्रियाँ हलषष्ठी व्रत करने लगी।

नारदजी ने देवकी से हलषष्ठी व्रत की और कथा कहना प्रारम्भ किया कि- दक्षिण में एक सुंदर नगर है वहाँ एक बनिया अपनी भार्या के साथ रहता था। दोनों पति-पत्नी स्वभाव से बहुत अच्छे व संस्कारी थे। बनिया की पत्नि गर्भवती होती संतान को जन्म देती थी, किन्तु भाग्यवश उनके संतान कुछ समयोपरांत मर जाते थे।

इस प्रकार एक-एक करके बनिया की पत्नि के छः संतान मृत्यु को प्राप्त हो गया । इस कारण दोनों पति-पत्नी बहुत दुखी होकर मरने की उद्देश्य लेकर घर से वन की ओर चले गए। वहाँ जंगल में एक साधु से उनकी भेंट हुई तो उन्होने साधु से अपनी व्यथा कह सुनाई। साधु ने ध्यान लगाकर देखा की बनिया के संतान कहाँ है। साधु ध्यान में यम, कुबेर, वरुण, इंद्रादि लोक में ढूंढा किन्तु जब वहाँ बनिया के बच्चे नहीं दिखा, तो साधु ब्रह्म लोक को गए। वहाँ साधु ने बनिया के सारे संतान को देख कर उन्हे अपने माता-पिता के पास लौटने का आग्रह किया। बच्चों ने वापिस लौटने से मना करते हुए कहा कि मुनिवर इससे पूर्व हम कई बार जन्म ले चुके हैं। हम किस-किस माता-पिता को याद रख उनके पास जाएँ।

हम जन्म-मृत्यु और गर्भ के चक्कर से अब मुक्त हैं अतः अब नहीं जाना चाहते। तब साधु ने बनिया को दीर्घजीवी संतान प्राप्ति का उनसे उपाय पूछा। उन आत्माओं ने कहा कि यदि बनिया और उनकी पत्नि माता हलषष्ठी का व्रत रख पूजन, कथा श्रवण कर अपने पुत्र को व्रतोपरांत जल से भीगा कपड़ा(पोता) लगाए तो उनका वह बालक दीर्घजीवी होगा। उन आत्माओं से इस प्रकार सुन साधु ध्यान से वापिस आकर बनिया से हलषष्ठी व्रत, कथा, नियम आदि को बताया। साधु से इस विधि-विधान को सुन दोनों पति-पत्नी घर को गए।

समयोपरांत जब हलषष्ठी व्रत का दिन आया तो उन्होने व्रत रखा व संतान प्राप्ति का वर मांगा । माता हलषष्ठी की कृपा से अब बनिया की पत्नि गर्भवती हुई और एक सुंदर संतान को जन्म देती है। अगले व्रत पर उन्होने साधु के बताए अनुसार अपने पुत्र को पोता मारती है माता की कृपा से अब उनके संतान दीर्घ आयु को प्राप्त किया। बनिया का परिवार प्रसन्ता पूर्वक जीवन यापन करने लगा।

एक बार राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अत्यंत शोक-संतप्त भाव से कहा – “हे देवकी नंदन ! सुभद्रा अपने पुत्र अभिमन्यु के मरणोपरांत, शोक संतप्त है व अभिमन्यु की भार्या उत्तरा के गर्भ की संतान भी, ब्रह्माअस्त्र के तेज से दग्ध हो रही है, क्योंकि दुष्ट अश्वत्थामा ने गर्भ को निश्तेज कर दिया। द्रौपति भी अपने पाँच पुत्रों के मारे जाने से अति दुखी है। अत: इस महादुःख से उत्थान हेतु कोई उपाय बताएं।”

तब श्री कृष्ण जी ने कहा –राजन ! यदि उत्तरा मेरे बताये इस अपूर्व व्रत को करे तो गर्भ का निश्तेज शिशु पुनर्जीवित हो जाएगा । यह व्रत जो भाद्रपद की कृष्ण पक्ष षष्ठी पर, भगवान शिव-पार्वती, गणेश व स्वामी कार्तिकेय की विधि विधान द्वारा पूजन, पुत्र-पौत्र की अल्पायु व् शोक के महादुःख से मुक्ति प्रदाता है।

इस व्रत के संदर्भ में श्री कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को कथा बतलाते हैं कि- पूर्वकाल में सुभद्र नाम का राजा था, जिनकी रानी का नाम सुवर्णा थी। राजा-रानी को एक हस्ती नामक पुत्र था। एक बार राजपुत्र हस्ती धाय माँ के साथ गंगाजी स्नान करने गया। बाल स्वभाव वश हस्ती जल में खेलने लगा। तभी एक ग्राह ने उसे खिचते हुए जल के अंदर ले गया। इसकी सूचना धाय माँ ने जाकर रानी सुवर्णा से कह सुनाया।

इस पर रानी ने क्रोधवश धाय के पुत्र को धधकते हुए आग में डाल दी । पुत्र शोक से व्याकुल धाय माँ निर्जन वन को चली गई और वन में एक सुनसान मंदिर के पास रहने लगी। वन में सूखा तृण, धान्य, महुआ आदि जो मिलता खाती और मंदिर में विराजित शिव-पार्वती, गणेशजी की पूजन कर दिन व्यतीत करने लगी।

इधर नगर में एक अदभूत घटना घटित हुआ कि धाय माँ का पुत्र आग कि भट्टी से जीवित निकल आया और खेलने लगा। यह खबर पूरे नगर में फैलते हुए राजा-रानी के पास पहुंचा तो उन्होने इस घटना के विषय में पुरोहितों से पूछा, तभी सौभाग्य से वंहा दुर्वासा ऋषि पहुंचे। राजा-रानी ने ऋषि का पूजन कर धाय पुत्र के जीवित हो जाने का कारण पूछा । तो दुर्वासाजी ने कहा कि राजन आपके डर से धाय जंगल में एकांत हो कर व्रत की ,यह सब उसी व्रत का प्रभाव है। अब राजा-रानी सभी नगर वासियों के साथ दुर्वासाजी की अगुवाई में उस जंगल में धाय के पास उस व्रत के विषय में अधिक जानकारी पूछा ।

तब धाय ने कहा कि राजन मैं पुत्र शोक से दुखित हो कर यंहा रहने लगी और यंहा व्रत ग्रहण कर भगवान शिव-पार्वती, गणेशजी व स्वामी कार्तिकेय का पूजन कर सूखा तृण, धान्य, महुआ आदि खाकर रहने लगी। तब रात को मेरे स्वप्न में शिव परिवार के दर्शन हुए और तुम्हारा पुत्र जीवित हो जायेगा वरदान दिया। अब रानी ने व्रत की विधि –विधान को पूछा तो दुर्वासाजी ने हलषष्ठी व्रत की सम्पूर्ण विधि –विधान बतलाया। राजा-रानी ने हलषष्ठी व्रत की महिमा जानकार व्रत को किया। व्रत के प्रभाव से राजपुत्र हस्ती ग्राह के चंगुल से छूट कर खेलते हुए नगर आया ।

अपने पुत्र को पाकर राजा-रानी सुखी हुआ और धाय भी पुत्र के साथ प्रसन्न होकर निवास करने लगी। वही बालक हस्ती आगे चलकर परम प्रतापी हुआ और अपने नाम से हस्तिनापुर को बसाया।

इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से हलषष्ठी व्रत की महिमा का ज्ञान देते हुए कहा कि हलषष्ठी व्रत कथा पहले नारद जी से सुन मेरी माता देवकी ने इस व्रत को सबसे पहले किया जिसके प्रभाव से उनके आनेवाले संतान की रक्षा हुई। अब भगवान श्री कृष्ण से सुन युधिष्ठिर ने इस व्रत को उत्तरा द्वारा करवाया, व्रत के प्रभाव से उत्तरा का अश्वत्थामा द्वारा नष्ट हुआ गर्भ पुनः जीवित हो गया तथा प्रसव पश्चात बालक का जन्म हुआ, जो कालांतर में राजा परीक्षित नाम से प्रसिद्ध हुआ।


दूसरी हरछठ व्रत कथा (harchat vrat katha)

एक गर्भवती ग्वालिन थी साथ ही उसका प्रसव का समय बहुत नजदीक था प्रसव के कारण ग्वालिन पीड़ा से गुजर रही थी साथ ही उसका ध्यान दूध दही बेचने में भी था

ऐसा इसलिए क्योकि समय पर दूध दही अगर नही बिकता तो वह ख़राब हो जाते है इसी कारण ग्वालिन प्रसव के पीड़ा से गुजरने के बावजूद अपना दूध दही बेचने को जाती है

दूध दही बेचने जाते हुए रस्ते में अत्यधिक ग्वालिन को दर्द या प्रसव पीड़ा होने लगता है ऐसे समय में झरबेरी की ओट पर सहारा लेकर ग्वालिन ने एक शिशु को जन्म दिया

इस बच्चे को ग्वालिन झरबेरी के पेड़ के पास छोड़कर अपना दूध दही बेचने निकल गई लेकिन संयोग ऐसा जिस दिन ग्वालिन ने शिशु को जन्म दिया उसी दिन हलषष्ठी/हरछठ था

ग्वालिन ने गाय और भैंस का दूध मिला दिया उसके बाद जिस गाँव में दूध बेचने गई थी उन्हें यही कहा भैंस का दूध है इस तरह से ग्वालिन ने मिलावट वाले दूध को भैंस का दूध बताकर बेच दिया

झरबेरी के पेड़ के पास ग्वालिन का बच्चा जो अकेला था वही पर पास में एक किसान अपना खेत हल से जोत रहा था हल में बांधे गए बैल अचानक से भड़क गए और ग्वालिन के बच्चे पर हमला कर उसे मृत्यु द्वार तक पहुंचा दिए

इस घटना के बाद से ही हलषष्ठी/हरछठ की कथा लोकप्रिय है साथ ही हलषष्ठी/हरछठ का पर्व मनाया जाने लगा

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