एक नजर में जीवन परिचय
जन्म | गरलपति रामाकृष्णा 16वीं शताब्दी |
पेशा | राजा कृष्णदेव राय के मुख्यविदूषक, कवि |
धर्म | वैष्णव |
पत्नी | शारधा |
पुत्र | भास्कर शर्मा |
निधन | 16वीं शताब्दी तेनाली, आंध्र प्रदेश |
1.सोने के आम (tenali raman stories in hindi)
समय के साथ-साथ राजा कृष्णदेव राय की माता बहुत वृद्ध हो गई थीं। एक बार वे बहुत बीमार पड़ गई। उन्हें लगा कि अब वे शीघ्र ही मर जाएंगी। उन्हें आम बहुत पसंद थे इसलिए जीवन के अंतिम दिनों में वे आम दान करना चाहती थीं, सो उन्होंने राजा से ब्राह्मणों को आमों को दान करने की इच्छा प्रकट की।
वे समझती थीं कि इस प्रकार दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी, सो कुछ दिनों बाद राजा की माता अपनी अंतिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो गईं। उनकी मृत्यु के बाद राजा ने सभी विद्वान ब्राह्मणों को बुलाया और अपनी मां की अंतिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया।
कुछ देर तक चुप रहने के पश्चात ब्राह्मण बोले, ‘यह तो बहुत ही बुरा हुआ महाराज, अंतिम इच्छा के पूरा न होने की दशा में तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल सकती। वे प्रेत योनि में भटकती रहेंगी। महाराज आपको उनकी आत्मा की शांति का उपाय करना चाहिए।
तब महाराज ने उनसे अपनी माता की अंतिम इच्छा की पूर्ति का उपाय पूछा। ब्राह्मण बोले, ‘उनकी आत्मा की शांति के लिए आपको उनकी पुण्यतिथि पर सोने के आमों का दान करना पडेगा। अतः राजा ने मां की पुण्यतिथि पर कुछ ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाया और प्रत्येक को सोने से बने आम दान में दिए।
जब तेनालीराम को यह पता चला, तो वह तुरंत समझ गया कि ब्राह्मण लोग राजा की सरलता तथा भोलेपन का लाभ उठा रहे हैं, सो उसने उन ब्राह्मणों को पाठ पढ़ाने की एक योजना बनाई।
अगले दिन तेनालीराम ने ब्राह्मणों को निमंत्रण-पत्र भेजा। उसमें लिखा था कि तेनालीराम भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहता है, क्योंकि वे भी अपनी एक अधूरी इच्छा लेकर मरी थीं।जबसे उसे पता चला है कि उसकी मां की अंतिम इच्छा पूरी न होने के कारण प्रेत-योनि में भटक रही होंगी।
वह बहुत ही दुखी है और चाहता है कि जल्दी उसकी मां की आत्मा को शांति मिले। ब्राह्मणों ने सोचा कि तेनालीराम के घर से भी बहुत अधिक दान मिलेगा, क्योंकि वह शाही विदूषक है।सभी ब्राह्मण निश्चित दिन तेनालीराम के घर पहुंच गए। ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया।
भोजन करने के पश्चात सभी दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि तेनालीराम लोहे के सलाखों को आग में गर्म कर रहा है।पूछने पर तेनालीराम बोला, ‘मेरी मां फोड़ों के दर्द से परेशान थीं।
मृत्यु के समय उन्हें बहुत तेज दर्द हो रहा था। इससे पहले कि मैं गर्म सलाखों से उनकी सिंकाई करता, वह मर चुकी थी। अब उनकी आत्मा की शांति के लिए मुझे आपके साथ वैसा ही करना पड़ेगा, जैसी कि उनकी अंतिम इच्छा थी। यह सुनकर ब्राह्मण बौखला गए। वे वहां से तुरंत चले जाना चाहते थे।वे गुस्से में तेनालीराम से बोले कि हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मां की आत्मा को शांति मिलेगी?
‘नहीं महाशय, मैं झूठ नहीं बोल रहा। यदि सोने के आम दान में देने से महाराज की मां की आत्मा को स्वर्ग में शांति मिल सकती है तो मैंअपनी मां की अंतिम इच्छा क्यों नहीं पूरी कर सकता?
‘यह सुनते ही सभी ब्राह्मण समझ गए कि तेनालीराम क्या कहना चाहता है। वे बोले, ‘तेनालीराम, हमें क्षमा करो। हम वे सोने के आम तुम्हें दे देते हैं। बस तुम हमें जाने दो।’तेनालीराम ने सोने के आम लेकर ब्राह्मणों को जाने दिया, परंतु एक लालची ब्राह्मण ने सारी बात राजा को जाकर बता दी।
यह सुनकर राजा क्रोधित हो गए और उन्होंने तेनालीराम को बुलाया। वे बोले, ‘तेनालीराम यदि तुम्हें सोने के आम चाहिए थे, तो मुझसे मांग लेते। तुम इतने लालची कैसे हो गए कि तुमने ब्राह्मणों से सोने के आम ले लिए?
महाराज, मैं लालची नहीं हूं, अपितु मैं तो उनकी लालच की प्रवृत्ति को रोक रहा था। यदि वे आपकी मां की पुण्यतिथि पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं, तो मेरी मां की पुण्यतिथि पर लोहे की गर्म सलाखें क्यों नहीं झेल सकते? ‘राजा तेनालीराम की बातों का अर्थ समझ गए।
उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाया और उन्हें – भविष्य में लालच त्यागने को कहा
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2. जादुई कुए (tenali ramakrishna stories in hindi)
एक बार राजा कृष्णदेव राय ने अपने गृहमंत्री को राज्य में अनेक कुएं बनाने का आदेश दिया। गर्मियां पास आ रही थीं इसलिए राजा चाहते थे कि कुएं शीघ्र तैयार हो जाएं ताकि लोगों को गर्मियों में थोड़ी राहत मिल सके।
गृहमंत्री ने इस कार्य के लिए शाही कोष से बहुत-सा धन लिया। शीघ्र ही राजा के आदेशानुसार नगर में अनेक कुएं तैयार हो गए। इसके बाद एक दिन राजा ने नगर भ्रमण किया और कुछ कुओं का स्वयं निरीक्षण किया।
अपने आदेश को पूरा होते देख वे संतुष्ट हो गए। गर्मियों में एक दिन नगर के बाहर से कुछ गांव वाले तेनालीराम के पास पहुंचे, वे सभी गृहमंत्री के विरुद्ध शिकायत लेकर आए थे। तेनालीराम ने उनकी शिकायत सुनी और उन्हें न्याय प्राप्त करने का रास्ता बताया।
तेनालीराम अगले दिन राजा से मिले और बोले, ‘महाराज! मुझे विजयनगर में कुछ चोरों के होने की सूचना मिली है। वे हमारे कुएं चुरा रहे हैं। इस पर राजा बोले, ‘क्या बात करते हो, तेनाली! कोई चोर कुएं को कैसे चुरा सकता है?’ महाराज! यह बात आश्चर्यजनक जरूर है, परंतु सच है। वे चोर अब तक कई कुएं चुरा चुके हैं।’
तेनालीराम ने बहुत ही भोलेपन से कहा। उसकी बात को सुनकर दरबार में उपस्थित सभी दरबारी हंसने लगे।महाराज ने कहा, ‘तेनालीराम, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है। आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो? तुम्हारी बातों पर कोई भी व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता।
‘महाराज! मैं जानता था कि आप मेरी बात पर विश्वास नहीं करंगे इसलिए मैं कुछ गांव वालों को साथ साथ लाया हूं। वे सभी बाहर खड़े हैं। यदि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है तो आप उन्हें दरबार में बुलाकर पूछ लीजिए।
वे आपको सारी बात विस्तारपूर्वक बता दंगे। राजा ने बाहर खड़े गांव वालों को दरबार में बुलवाया। एक गांव वाला बोला, ‘महाराज! गृहमंत्री द्वारा बनाए गए सभी कुएं समाप्त हो गए हैं, आप स्वयं देख सकते हैं।
राजा ने उनकी बात मान ली और गृहमंत्री, तेनालीराम, कुछ दरबारियों तथा गांव वालों के साथ कुओं का निरीक्षण करने के लिए चल दिए। पूरे नगर का निरीक्षण करने के पश्चात उन्होंने पाया कि राजधानी के आस-पास के अन्य स्थानो तथा गांवों में कोई कुआं नहीं है।
राजा को यह पता लगते देख गृहमंत्री घबरा गया। वास्तव में उसने कुछ कुओं को ही बनाने का आदेश दिया था। बचा हुआ धन उसने अपनी सुख-सुविधाओं पर व्यय कर दिया। अब तक राजा भी तेनालीराम की बात का अर्थ समझ चुके थे।
वे गृहमंत्री पर क्रोधित होने लगे, तभी तेनालीराम बीच में बोल पड़ा, ‘महाराज! इसमें इनका कोई दोष नहीं है। वास्तव में वे जादुई कुएं थे, जो बनने के कुछ दिन बाद ही हवा में समाप्त हो गए। अपनी बात समाप्त कर तेनालीराम गृहमंत्री की ओर देखने लगा।
गृहमंत्री ने अपना सिर शर्म से झुका लिया।राजा ने गृहमंत्री को बहुत डांटा तथा उसे सौ और कुएं बनवाने का आदेश दिया। इस कार्य की सारी जिम्मेदारी तेनालीराम को सौंपी गई।
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3. उधार का बोझ (short tenali raman stories in hindi)
एक बार किसी वित्तीय समस्या में फंसकर तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय से कुछ रुपए उधार लिए थे। समय बीतता गया और पैसे वापस करने का समय भी निकट आ गया, परंतु तेनाली के पास पैसे वापस लौटाने का कोई प्रबंध नहीं हो पाया था, सो उसने उधार चुकाने से बचने के लिए एक योजना बनाई।
एक दिन राजा को तेनालीराम की पत्नी की ओर से एक पत्र मिला। उस पत्र में लिखा था कि तेनालीराम बहुत बीमार हैं।तेनालीराम कई दिनों से दरबार में भी नहीं आ रहा था इसलिए राजा ने सोचा कि स्वयं जाकर तेनाली से मिला जाए। साथ ही राजा को भी संदेह हुआ कि कहीं उधार से बचने के लिय तेनालीराम की कोई योजना तो नहीं है।राजा तेनालीराम के घरपहुंचे।
वहां तेनालीराम कम्बल ओढ़कर पलंग पर लेटा हुआ था। उसकी ऐसी अवस्था देखकर राजा ने उसकी पत्नी से कारण पूछा।वह बोली, ‘महाराज, इनके दिल पर आपके दिए हुए उधार का बोझ है। यही चिंता इन्हें अंदर ही अंदर खाए जा जा रही है और शायद इसी कारण ये बीमार हो गए।
‘राजा ने तेनाली को सांत्वना दी और कहा, ‘तेनाली, तुम परेशान मत हो। तुम मेरा उधार चुकाने के लिए नहीं बंधे हुए हो। चिंता छोड़ो और शीघ्र स्वस्थ हो जाओ।’यह सुन तेनालीराम पलंग से कूद पड़ा और हंसते हुए बोला, ‘महाराज, धन्यवाद।
यह क्या है, तेनाली? इसका मतलब तुम बीमार नहीं थे। मुझसे झूठ बोलने का तुम्हारा साहस कैसे हुआ?’ राजा ने क्रोध में कहा। नहीं-नहीं, महाराज, मैंने आपसे झूठ नहीं बोला। मैं उधार के बोझ से बीमार था।
आपने जैसे ही मुझे उधार से मुक्त किया, तभी से मेरी सारी चिंता खत्म हो गई और मेरे ऊपर से उधार का बोझ हट गया। इस बोझ के हटते ही मेरी बीमारी भी जाती रही और मैं अपने को स्वस्थ महसूस करने लगा। अब आपके आदेशानुसार मैं स्वतंत्र, स्वस्थ व प्रसन्न हूं।’हमेशा की तरह राजा के पास कहने के लिए कुछ न था, वे तेनाली की योजना पर मुस्करा पड़े।
4. कुए की शादी (tenali raman stories in hindi language)
एक बार राजा कृष्णदेव राय और तेनालीराम के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया। तेनालीराम रूठकर चले गए। आठ-दस दिन बीते, तो राजा का मन उदास हो गया। राजा ने तुरंत सेवकों को तेनालीराम को खोजने भेजा। आसपास का पूरा क्षेत्र छान लिया, पर तेनालीराम का कहीं अता-पता नहीं चला।
अचानक राजा को एक तरकीब सूझी। उसने सभी गांवों में मुनादी कराई कि राजा अपने राजकीय कुएं का विवाह रचा रहे हैं इसलिए गांव के सभी मुखिया अपने-अपने गांव के कुओं को लेकर राजधानी पहुंचे।
जो आदमी इस आज्ञा का पालन नहीं करेगा, उसे जुर्माने में एक हजार स्वर्ण मुद्राएं देनी होंगी। मुनादी सुनकर सभी परेशान हो गए। भला कुएं भी कहीं लाए-ले जाए जा सकते हैं। जिस गांव में तेनालीराम भेष बदलकर रहता था, वहां भी यह मुनादी सुनाई दी। गांव का मुखिया परेशान था।
तेनालीराम समझ गए कि उसे खोजने के लिए ही महाराज ने यह चाल चली है।तेनालीराम ने मुखिया को बुलाकर कहा, ‘मुखियाजी, आप चिंता न करें, आपने मुझे गांव में आश्रय दिया हैं इसलिए आपके उपकार का बदला मैं चुकाऊंगा।
मैं एक तरकीब बताता हूं कि आप आसपास के मुखियाओं को इकट्ठा करके राजधानी की ओर प्रस्थान करें। सलाह के अनुसार सभी राजधानी की ओर चल दिए। तेनालीराम भी उनके साथ थे। राजा को उनकी बात समझते देर नहीं लगी कि यह तेनालीराम की तरकीब है।
राजा ने पूछा सच-सच बताओ कि तुम्हें यह अक्ल किसने दी है?राजन! थोड़े दिन पहले हमारे गांव में एक परदेशी आकर रुका था, उसी ने हमें यह तरकीब बताई हैं, आगंतुक ने जवाब दिया। सारी बात सुनकर राजा स्वयं रथ पर बैठकर राजधानी से बाहर आए और ससम्मान तेनालीराम को दरबार में वापस लाए। गांव वालों को भी पुरस्कार देकर विदा किया।
राजधानी के बाहर पहुंचकर वे एक जगह पर रुक गए। एक आदमी को मुखिया का संदेश देकर राजदरबार में भेजा। वह आदमी दरबार में पहुंचा और तैनालीराम को राय के अनुसार बोला, ‘महाराज! हमारे गांव के कुएं विवाह में शामिल होने के लिए राजधानी के बाहर डेरा डाले हैं।
आप मेहरबानी करके राजकीय कुएं को उनकी अगवानी के लिए भेजें ताकि हमारे गांव के कुएं ससम्मान दरबार के सामने हाजिर हो सकें। राजा को उनकी बात समझते देर नहीं लगी कि यह तेनालीराम की तरकीब है। राजा ने पूछा सच-सच बताओ कि तुम्हें यह अक्ल किसने दी है? राजन!
थोड़े दिन पहले हमारे गांव में एक परदेशी आकर रुका था, उसी ने हमें यह तरकीब बताई हैं, आगंतुक ने जवाब दिया।सारी बात सुनकर राजा स्वयं रथ पर बैठकर राजधानी से बाहर आए और ससम्मान तेनालीराम को दरबार में वापस लाए। गांव वालों को भी पुरस्कार देकर विदा किया।
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5. कुत्ते की दुम सीधी (hindi story of tenali rama)
एक दिन राजा कृष्णदेव राय के दरबार में इस बात पर गरमा-गरम बहस हो रही थी कि मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है या नहीं। कुछ का कहना था कि मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है। कुछ का विचार था कि ऐसा नहीं हो सकता, जैसे कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं हो सकती।
राजा को एक विनोद सूझा। उन्होंने कहा, ‘बात यहां पहुंची कि अगर कुत्ते की दुम सीधी की जा सकती है, तो मनुष्य का स्वभाव भी बदला जा सकता है, नहीं तो नहीं बदला जा सकता। राजा ने फिर विनोद को आगे बढ़ाने की सोची, बोले, ‘ठीक है, आप लोग यह प्रयत्न करके देखिए।
राजा ने दस चुने हुए व्यक्तियों को कुत्ते का एक-एक पिल्ला दिलवाया और छह मास के लिए हर मास दस स्वर्ण मुद्राएं देना निश्चित किया। इन सभी लोगों को कुत्तों की दुम सीधी करने का प्रयत्न करना था। इन व्यक्तियों में एक तेनालीराम भी था। शेष नौ लोगों ने इन छह महीनों में पिल्लों की दुम सीधी करने की बड़ी कोशिशें कीं।एक ने पिल्ले की पूंछ के छोर को भारी वजन से दबा दिया ताकि इससे दुम सीधी हो जाए।
दूसरे ने पिल्ले की दुम को पीतल की एक सीधी नली में डाले रखा। तीसरे ने अपने पिल्ले की पूछ सीधी करने के लिए हर रोज पूंछ की मालिश करवाई।छठे सज्जन कहीं से किसी तांत्रिक को पकड़ लाए, जो कई तरह से उटपटांग वाक्य बोलकर और मंत्र पढ़कर इस काम को करने के प्रयत्न में जुटा रहा।
सातवें सज्जन ने अपने पिल्ले की शल्य चिकित्सा यानी ऑपरेशन करवाया। आठवां व्यक्ति पिल्ले को सामने बिठाकर छह मास तक प्रतिदिन उसे भाषण देता रहा कि पूंछ सीधी रखो भाई, सीधी रखो।नौवां व्यक्ति पिल्ले को मिठाइयां खिलाता रहा कि शायद इससे यह मान जाए और अपनी पूंछ सीधी कर ले।
पर तेनालीराम पिल्ले को इतना ही खिलाता जितने से वह जीवित रहे। उसकी पूंछ भी बेजान-सी लटक गई, जो देखने में सीधी ही जान पड़ती थी।छह मास बीत जाने पर राजा ने दसों पिल्लों को दरबार में उपस्थित करने का आदेश दिया। नौ व्यक्तियों ने हट्टे-कट्टे और स्वस्थ पिल्ले पेश किए।
जब पहले पिल्ले की पूंछ से वजन हटाया गया तो वह एकदम टेढ़ी होकर ऊपर उठ गई। दूसरी की दुम जब नली में से निकाली गई वह भी उसी समय टेढ़ी हो गई। शेष सातों पिल्लों की पूंछे भी टेढ़ी ही थीं। तेनालीराम ने अपने अधमरा-सा पिल्ला राजा के सामने कर दिया।
उसके सारे अंग ढलक रहे थे।तेनालीराम बोला, ‘महाराज, मैंने कुत्ते की दुम सीधी कर दी है।”दुष्ट कहीं के!’ राजा ने कहा, ‘बेचारे निरीह पशु पर तुम्हें दया भी नहीं आई? तुमने तो इसे भूखा ही मार डाला। इसमें तो पूंछ हिलाने जितनी शक्ति भी नहीं है।
महाराज, अगर आपने कहा होता कि इसे अच्छी तरह खिलायापिलाया जाए तो मैं कोई कसर नहीं छोड़ता, पर आपका आदेश तो इसकी पूंछ को स्वभाव के विरुद्ध सीधा करने का था, जो इसे भूखा रखने से ही पूरा हो सकता था। बिलकुल ऐसे ही मनुष्य का स्वभाव भी असल में बदलता नहीं है।हां, आप उसे काल-कोठरी में बंद करके, उसे भूखा रखकर उसका स्वभाव मुर्दा बना सकते हैं।
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6. मुर्ख (tenali ramakrishna stories hindi)
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय होली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाते थे। इस अवसर पर हास्य-मनोरंजन के कई कार्यक्रम होते थे। हर कार्यक्रम के सफल कलाकार को पुरस्कार भी दिया जाता था। सबसे बड़ा पुरस्कार ‘महामूर्ख’ की उपाधि पाने वाले को दिया जाता था।
कृष्णदेव राय के दरबार में तेनालीराम सबका मनोरंजन करते थे। वे बहुत तेज दिमाग के थे। उन्हें हर साल का सर्वश्रेष्ठ हास्यकलाकर का पुरस्कार तो मिलता ही था, ‘महामूर्ख’ का खिताब भी हर साल वही जीत ले जाते। दरबारी इस कारण से उनसे जलते थे।
उन्होंने एक बार मिलकर तेनालीराम को हराने की युक्ति निकाली। इस बार होली के दिन उन्होंने तेनालीराम को खूब छककर भांग पिलवा दी। होली के दिन तेनालीराम भांग के नशे में देर तक सोते रहे। उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा दोपहर हो रही थी।
वे भागते हुए दरबार पहुंचे। आधे कार्यक्रम खत्म हो चुके थे। कृष्णदेव राय उन्हें देखते ही डपटकर पूछ बैठे, ‘अरे मूर्ख तेनालीरामजी, आज के दिन भी भांग पीकर सो गए?’ राजा ने तेनालीराम को ‘मूर्ख कहा, यह सुनकर सारे दरबारी खुश हो गए।
उन्होंने भी राजा की हां में हां मिलाई और कहा, ‘आपने बिलकुल ठीक कहा, तेनालीराम मूर्ख ही नहीं महामूर्ख हैं।’ जब तेनालीराम ने सबके मुंह से यह बात सुनी तो वे मुस्कराते हुए राजा से बोले, ‘धन्यवाद महाराज, आपने अपने मुंह से मुझे महामूर्ख घोषित कर आज के दिन का सबसे बड़ा पुरस्कार दे दिया।
तेनालीराम की यह बात सुनकर दरबारियों को अपनी भूल का पता चल गया, पर अब वे कर भी क्या सकते थे? क्योंकि वे खुद ही अपने मुंह से तेनालीराम को महामूर्ख ठहरा चुके थे। हर साल की तरह इस साल भी तेनालीराम ‘महामूर्ख’ का पुरस्कार जीत ले गए।
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7. मटके में मुँह (Hindi story of Tenali Rama)
एक बार महाराज कृष्णदेव राय किसी बात पर तेनालीराम से नाराज हो गए। गुस्से में आकर उन्होंने तेनालीराम से भरी राजसभा में कह दिया कि कल से मुझे दरबार में अपना में अपना मुंह मत दिखाना। उसी समय तेनालीराम दरबार से चला गया।
दूसरे दिन जब महाराज राजसभा की ओर आ रहे थे तभी एक चुगलखोर ने उन्हें यह कहकर भड़का दिया कि तेनालीराम आपके आदेश के खिलाफ दरबार में उपस्थित है। बस यह सुनते ही महाराज आग-बबूला हो गए। चुगलखोर दरबारी आगे बोला- आपने साफ कहा था कि दरबार में आने पर कोड़े पड़ेंगे, इसकी भी उसने कोई परवाह नहीं की।
अब तो तेनालीराम आपके हुक्म की भी अवहेलना करने में जुटा है।राजा दरबार में पहुंचे। उन्होंने देखा कि सिर पर मिट्टी का एक घड़ा ओढ़े तेनालीराम विचित्र प्रकार की हरकतें कर रहा है। घड़े पर चारों ओर जानवरों के मुंह बने थे।तेनालीराम! ये क्या बेहुदगी है। तुमने हमारी आज्ञा का उल्लंघन किया हैं, महाराज ने कहा।
दंडस्वरूप कोड़े खाने के तैयार हो जाओ।मैंने कौनसी आपकी आज्ञा नहीं मानी महाराज?’घड़े में मुंह छिपाए हुए तेनालीराम बोला- ‘आपने कहा था कि कल मैं दरबार में अपना मुंह न दिखाऊं तो क्या आपको मेरा मुंह दिख रहा है। हे भगवान! कहीं कुम्भकार ने फूटा घड़ा तो नहीं दे दिया।
यह सुनते ही महाराज की हंसी छूट गई। वे बोले- ‘तुम जैसे बुद्धिमान और हाजिरजवाब से कोई नाराज हो ही नहीं सकता। अब इस घड़े को हटाओ और सीधी तरह अपना आसन ग्रहण करो।’
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8. बड़ा कौन (Tenali rama ki kahani)
एक बार राजा कृष्णदेव राय महल में अपनी रानी के पास विराजमान थे। तेनालीराम की बात चली, तो बोले सचमुच हमारे दरबार में उस जैसा चतुर कोई और नहीं है इसलिए अभी तक तो कोई उसे हरा नहीं पाया है।सुनकर रानी बोली, आप कल तेनालीराम को भोजन के लिए महल में आमंत्रित करें। मैं उसे जरूर हरा दूंगी।
राजा ने मुस्कुराकर हामी भर ली। अगले दिन रानी ने अपने अपने हाथों से स्वादिष्ट पकवान बनाए। राजा के साथ बैठा तेनालीराम उन पकवानों की जी-भरकर प्रशंसा करता हुआ खाता जा रहा था। खाने के बाद रानी ने उसे बढ़िया पान का बीड़ा भी खाने को दिया।तेनालीराम मुस्कराकर बोला, ‘सचमुच, आज जैसा खाने का आनंद तो मुझे कभी नहीं आया!’तभी रानी ने अचानक पूछ लिया, ‘अच्छा तेनालीराम एक बात बताओ।
राजा बड़े हैं या मैं? अब तो तेनालीराम चकराया। राजा-रानी दोनों ही उत्सुकता से देख रहे थे कि भला तेनालीराम क्या जवाब देता है।अचानक तेनालीराम को जाने क्या सूझी, उसने दोनों हाथ जोड़कर पहले धरती को प्रणाम किया, फिर एकाएक जमीन पर गिर पड़ा।
रानी घबराकर बोली, ‘अरे-अरे, यह क्या तेनालीराम? तेनालीराम उठकर खड़ा हुआ और बोला ‘महारानीजी, मेरे लिए तो आप धरती हैं और राजा आसमान! दोनों में से किसे छोटा, किसे बड़ा कहूं कुछ समझ में नहीं आ रहा है!वैसे आज महारानी के हाथों का बना भोजन इतना स्वादिष्ट था वि उन्हीं को बड़ा कहना होगा इसलिए मैं धरत को ही दंडवत प्रणाम कर रहा था।’सुनकर राजा और रानी दोनों की हंसी छूट गई।
रान बोली ‘सचमुच तुम चतुर हो तेनालीराम। मझे जिता दिया, पर हारकर भी खद जी गए। इस पर महारानी और राजा कृष्णदेव राय के साथ तेनालीराम भी खिल-खिलाक हंस दिए।
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9. तेनाली रामा की समझदारी (tenali raman story hindi)
एक बार राज दरबार में नीलकेतु नाम का यात्री राजा कृष्णदेव राय से मिलने आया। पहरेदारों ने राजा को उसके आने की सूचना दी। राजा ने नीलकेतु को मिलने की अनुमति दे दी।यात्री एकदम दुबलापतला था। वह राजा के सामने आया और बोला- ‘महाराज, मैं नीलदेश का नीलकेतु हूं और इस समय मैं विश्वभ्रमण की यात्रा पर निकला हूं।
सभी जगहों का भ्रमण करने के पश्चात आपके दरबार में पहुंचा हूं। राजा ने उसका स्वागत करते हुए उसे शाही अतिथि घोषित किया। राजा से मिले सम्मान से खुश होकर वह बोला’महाराज! उस जगह को जानता हूं, जहां पर खूब सुंदर-सुंदर परियां रहती हैं।
मैं अपनी जादुई शक्ति से उन्हें यहां बुला सकता हूं।नीलकेतु की बात सुन राजा खुश होकर बोले, ‘इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए?’ उसने राजा कृष्णदेव को रात्रि में तालाब के पास आने के लिए कहा और बोला कि उस जगह मैं परियों को नृत्य के लिए बुला भी सकता हूं।
नीलकेतु की बात मानकर राजा रात्रि में घोड़े पर बैठकर तालाब की ओर निकल गए।तालाब के किनारे पहुंचने पर पुराने किले के पास नीलकेतु ने राजा कृष्णदेव का स्वागत किया और बोला- महाराज! मैंने सारी व्यवस्था कर दी है। वे सब परियां किले के अंदर हैं।राजा अपने घोड़े से उतर नीलकेतु के साथ अंदर जाने लगे। उसी समय राजा को ।
शोर सुनाई दिया। देखा तो राजा की सेना ने नीलकेतु को पकड़कर बांध दिया था। – यह सब देख राजा ने पूछा- ‘यह क्या हो रहा है? तभी किले के अंदर से तेनालीराम बाहर निकलते हुए बोले- ‘महाराज! मैं आपको बताता हूं?’तेनालीराम ने राजा को बताया- ‘यह नीलकेतु एक रक्षामंत्री है और महाराज… किले के अंदर कुछ भी नहीं है।
यह नीलकेतु तो आपको जान से मारने की तैयारी कर रहा है। राजा ने तेनालीराम को अपनी रक्षा के लिए धन्यवाद दिया और कहा- ‘तेनालीराम यह बताओ, तुम्हें यह सब पता कैसे चला?’तेनालीराम ने राजा को सच्चाई बताते हुए कहा- ‘महाराज आपके दरबार में जब नीलकेतु आया था, तभी मैं समझ गया था।
फिर मैंने अपने साथियों से इसका पीछा करने को कहा था, जहां पर नीलकेतु आपको मारने की योजना बना रहा था। तेनालीराम की समझदारी पर राजा कृष्णदेव ने खुश होकर उन्हें धन्यवाद दिया।
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10. तेनाली का मरियल घोडा (tenaliram hindi story)
राजा कृष्णदेव राय का घोड़ा अच्छी नस्ल का था इसलिए उसकी कीमत ज्यादा थी। तेनालीराम का घोड़ा मरियल था। तेनालीराम उसे बेचना चाहते थे, पर उसकी कीमत बहुत ही कम थी।
वे चाहकर भी बेच नहीं पाते थे।एक दिन राजा कृष्णदेव राय और तेनालीराम अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर सैर को निकले। सैर के दौरान राजा ने तेनालीराम के घोड़े की मरियल ।
चाल देखकर कहा, ‘कैसा मरियल घोड़ा है तुम्हारा, जो कमाल मैं अपने घोड़े के साथ दिखा सकता हूं, वह तुम अपने घोड़े के साथ नहीं दिखा सकते। तेनालीराम ने राजा को जवाब दिया, ‘महाराज जो मैं अपने घोड़े के साथ कर सकता हूं वह आप अपने घोड़े के साथ नहीं कर सकते। राजा मानने को जरा भी तैयार नहीं थे। दोनों के बीच सौ-सौ स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लग गई। दोनों आगे बढ़े।
सामने ही तुंगभद्रा नदी पर बने पुल को वे पार करने लगे। नदी बहुत गहरी और पानी का प्रवाह तेज था। उसमें कई जगह भंवर दिखाई दे रहे थे।एकाएक कई जगह भंवर दिखाई दे रहे थे।एकाएक तेनालीराम अपने घोड़े से उतरे और उसे पानी में धक्का दे दिया।उन्होंने राजा से ।
कहा, ‘महाराज अब आप भी अपने घोड़े के साथ ऐसा ही करके दिखाइए। मगर राजा अपने बढ़िया और कीमती घोड़े को पानी में कैसे धक्का दे सकते थे। उन्होंने तेनालीराम से कहा, ‘न बाबा न, मैं मान गया कि मैं अपने घोड़े के साथ यह करतब नहीं दिखा सकता, जो तुम दिखा सकते हो।
‘इस पर राजा ने तेनालीराम को सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दीं।पर तुम्हें यह विचित्र बात सूझी कैसे?’ राजा ने तेनालीराम से पूछा।महाराज, मैंने एक पुस्तक में पढ़ा था कि बेकार और निकम्मे मित्र का यह फायदा होता है कि जब वह नहीं रहे, तो दुख नहीं होता। तेनालीराम की यह बात सुनकर राजा ठहाका लगाकर हंस पड़े।
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11. तेनाली की चुटिया (short story of tenali rama in hindi)
एक दिन बातों-बातों में राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से पूछा, ‘अच्छा, यह बताओ कि किस प्रकार के लोग सबसे अधिक मूर्ख होते हैं और किस प्रकार के सबसे अधिक सयाने? तेनालीराम ने तुरंत उत्तर दिया, ‘महाराज! ब्राह्मण सबसे अधिक मूर्ख और व्यापारी सबसे अधिक सयाने होते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है?’ राजा ने कहा।
मैं यह बात साबित कर सकता हूं’, तेनालीराम ने कहा। कैसे?’ राजा ने पूछा।“अभी जान जाएंगे आप, जरा । राजगुरु को बुलवाइए। राजगुरु को बुलवाया गया।तेनालीराम ने कहा, ‘महाराज, अब मैं अपनी बात साबित करूंगा, लेकिन इस काम में आप दखल नहीं देंगे। आप यह वचन दें, तभी मैं काम आरंभ करूंगा। राजा ने तेनालीराम की बात मान ली।
तेनालीराम ने आदरपूर्वक राजगुरु से कहा, ‘राजगुरुजी, महाराज को आपकी चोटी की आवश्यकता है। इसके बदले आपको मुंहमांगा इनाम दिया जाएगा। राजगुरु को काटो तो खून नहीं। वर्षों से पाली गई प्यारी चोटी को कैसे कटवा दें? लेकिन राजा की आज्ञा कैसे टाली जा सकती थी।उसने कहा, ‘तेनालीरामजी, मैं इसे कैसे दे सकता हूं।
“राजगुरुजी, आपने जीवनभर महाराज का नमक खाया है। चोटी कोई ऐसी वस्तु तो है नहीं, जो फिर न आ सके। फिर महाराज मुंहमांगा इनाम भी दे रहे हैं…।’राजगुरु मन ही मन समझ गया कि यह तेनालीराम की चाल है।तेनालीराम ने पूछा, ‘राजगुरुजी, आपको चोटी के बदले क्या इनाम चाहिए? राजगुरु ने कहा, ‘पांच स्वर्ण मुद्राएं बहुत होंगी।
पांच स्वर्ण मुद्राएं राजगुरु को दे दी गईं और नाई को बुलावाकर राजगुरु की चोटी कटवा दी गई। अब तेनालीराम ने नगर के सबसे प्रसिद्ध व्यापारी को बुलवाया। तेनालीराम ने व्यापारी से कहा, ‘महाराज को तुम्हारी चोटी की आवश्यकता है। सब कुछ महाराज का ही तो है, जब चाहें ले लें, लेकिन बस इतना ध्यान रखें कि मैं एक गरीब आदमी हूं’, व्यापारी ने कहा।
तुम्हें तुम्हारी चोटी का मुंहमांगा दाम दिया जाएगा, तेनालीराम ने कहा। सब आपकी कृपा है लेकिन…, व्यापारी ने कहा। क्या कहना चाहते हो तुम’, तेनालीराम ने पूछा। जी बात यह है कि जब मैंने अपनी बेटी का विवाह किया था, तो अपनी चोटी की लाज रखने के लिए पूरी पांच हजार स्वर्ण मुद्राएं खर्च की थीं।
पिछले साल मेरे पिता की मौत हुई, तब भी इसी कारण पांच हजार स्वर्ण मुद्राओं का खर्च हुआ और अपनी इसी प्यारी-दुलारी चोटी के कारण बाजार से कम से कम पांच हजार स्वर्ण मुद्राओं का उधार मिल जाता है’, अपनी चोटी पर हाथ फेरते हुए व्यापारी ने कहा। इस तरह तुम्हारी चोटी का मूल्य पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राएं हुआ। ठीक है, यह मूल्य तुम्हें दे दिया जाएगा।
पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राएं व्यापारी को दे दी गईं। व्यापारी चोटी मुंडवाने बैठा। जैसे ही नाई ने चोटी पर उस्तरा रखा, व्यापारी कड़ककर बोला, ‘संभलकर, नाई के बच्चे। जानता नहीं, यह महाराज कृष्णदेव राय की चोटी है। राजा ने सुना तो आग-बबूला हो गया।
इस व्यापारी की यह मजाल कि हमारा अपमान करे? उन्होंने कहा, ‘धक्के मारकर निकाल दो इस सिरफिरे को।’ व्यापारी पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राओं की थैली को लेकर वहां से भाग निकला।कुछ देर बाद तेनालीराम ने कहा, ‘आपने देखा महाराज, राजगुरु ने तो पांच स्वर्ण मुद्राएं लेकर अपनी चोटी मुंड़वा ली।
व्यापारी पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राएं भी ले गया और चोटी भी बचा ली। आप ही कहिए, ब्राह्मण सयाना हुआ कि व्यापारी?’राजा ने कहा, “सचमुच तुम्हारी बात ठीक निकली।
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12. तेनाली और कंजूस सेठ (tenaliram ki kahani)
राजा कृष्णदेव राय के राज्य में एक कंजूस सेठ रहता था। उसके पास धन की कोई कमी न थी, पर एक पैसा भी जेब से निकालते समय उसकी नानी मर जाती थी। एक बार उसके कुछ मित्रों ने हंसी-हंसी में एक कलाकार से अपना चित्र बनवाने के लिए उसे राजी कर लिया।
उसके सामने वह मान तो गया, पर जब चित्रकार उसका चित्र बनाकर लाया तो सेठ की हिम्मत न पड़ी कि चित्र के मूल्य के रूप में चित्रकार को सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दे।यों वह सेठ भी एक तरह का कलाकार ही था।
चित्रकार को आया देखकर सेठ अंदर गया और कुछ ही क्षणों में अपना चेहरा बदलकर बाहर आया। उसने चित्रकार से कहा, ‘तुम्हारा चित्र जरा भी ठीक नहीं बन पड़ा। तुम्हीं बताओ, क्या यह चेहरा मेरे चेहरे से जरा भी मिलता है? चित्रकार ने देखा, सचमुच चित्र सेठ के चेहरे से जरा भी नहीं मिलता था।
तभी सेठ बोला, ‘जब तुम ऐसा चित्र बनाकर लाओगे, जो ठीक मेरी शक्ल से मिलेगा, तभी मैं उसे खरीदूंगा। दूसरे दिन चित्रकार एक और चित्र बनाकर लाया, जो हूबहू सेठ के उस चेहरे से मिलता था, जो सेठ ने पहले दिन बना रखा था। इस बार फिर सेठ ने अपना चेहरा बदल लिया और चित्रकार के चित्र में कमी निकालने लगा।
चित्रकार बड़ा लज्जित हुआ। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस तरह की गलती उसके चित्र में क्यों होती है?अगले दिन वह फिर एक नया चित्र बनाकर ले गया, पर उसके साथ फिर वही हुआ। अब तक उसकी समझ में सेठ की चाल आ चुकी थी।
वह जानता था कि यह मक्खीचूस सेठ असल में पैसे नहीं देना चाहता, पर चित्रकार अपनी कई दिनों की मेहनत भी बेकार नहीं जाने देना चाहता था। बहुत सोच-विचार कर चित्रकार तेनालीराम के पास पहुंचा और अपनी समस्या उनसे कह सुनाई।
कुछ समय सोचने के बाद तेनालीराम ने कहा, ‘कल तुम उसके पास एक शीशा लेकर जाओ और कहो कि आपकी बिलकुल असली तस्वीर लेकर आया हूं। अच्छी तरह मिलाकर देख तेनालीराम ने कहा, ‘कल तुम उसके पास एक शीशा लेकर जाओ और कहो कि आपकी बिलकुल असली तस्वीर लेकर आया हूं। अच्छी तरह मिलाकर देख। लीजिए।
कहीं कोई अंतर आपको नहीं मिलेगा। बस, फिर अपना काम हुआ ही समझो। अगले दिन चित्रकार ने ऐसा ही किया।वह शीशा लेकर सेठ के यहां पहुंचा और उसके सामने रख दिया।
‘लीजिए, सेठजी, आपका बिलकुल सही चित्र। गलती की इसमें जरा भी गुंजाइश नहीं है। चित्रकार ने अपनी मुस्कराहट पर काबू पाते हुए कहा। लेकिन यह तो शीशा है,सेठ ने झुंझलाते हुए कहा।
आपकी असली सूरत शीशे के अलावा बना भी कौन सकता है? जल्दी से मेरे चित्रों का मूल्य एक हजार स्वर्ण मुद्राएं निकालिए’ चित्रकार बोला। सेठ समझ गया कि यह सब तेनालीराम की सूझबूझ का परिणाम है। उसने तुरंत एक हजार स्वर्णमुद्राएं चित्रकार को दे दीं। तेनालीराम ने जब यह घटना महाराज कृष्णदेव राय को बताई तो वे खूब हंसे।
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13. जाड़े की मिठाई (tenali rama ki kahani)
एक बार राजमहल में राजा कृष्णदेव राय के साथ तेनालीराम और राजपुरोहित बैठे थे। जाड़े के दिन थे। सुबह की धूप सेंकते हुए तीनों बातचीत में व्यस्त थे, तभी एकाएक राजा ने कहा- ‘जाडे का मौसम सबसे अच्छा मौसम होता है। खूब खाओ और सेहत बनाओ।
खाने की बात सुनकर पुरोहित के मुंह में पानी आ गया। बोला”महाराज, जाड़े में तो मेवा और मिठाई खाने का अपना ही मजा है, अपना ही आनंद है।”अच्छा बताओ, जाड़े की सबसे अच्छी मिठाई कौन-सी है?’ राजा कृष्णदेव राय ने पूछा।पुरोहित ने हलवा, मालपुए, पिस्ते की बर्फी आदि कई मिठाइयां गिना दीं।राजा कृष्णदेव राय ने सभी मिठाइयां मंगवाईं और पुरोहित से कहा- ‘जरा खाकर बताइए, इनमें सबसे अच्छी कौन-सी है?’ पुरोहित को सभी मिठाइयां अच्छी लगती थीं।
किस मिठाई को सबसे अच्छा बताता? तेनालीराम ने कहा, ‘सब अच्छी हैं, मगर वह मिठाई यहां नहीं मिलेगी। कौन-सी मिठाई?’ राजा कृष्णदेव राय ने उत्सुकता से पूछा- ‘और उस मिठाई का नाम क्या है?”नाम पूछकर क्या करेंगे महाराज। आप आज रात को मेरे साथ चलें, तो मैं वह मिठाई आपको खिलवा भी दूंगा। राजा कृष्णदेव राय मान गए।
रात को साधारण वेश में वे पुरोहित और तेनालीराम के साथ चल पड़े। चलते-चलते तीनों काफी दूर निकल गए। एक जगह दो-तीन आदमी अलाव के सामने बैठे बातों में खोए हुए थे। ये तीनों भी वहां रुक गए। इस वेश में लोग राजा को पहचान भी न पाए। पास ही कोल्हू चल रहा था।तेनालीराम उधर गए और कुछ पैसे देकर गरम-गरम गुड़ ले लिया। गुड़ लेकर वे पुरोहित और राजा के पास आ गए।
अंधेरे में राजा और पुरोहित को थोड़ा-थोड़ा गरम-गरम गुड़ देकर बोले- ‘लीजिए, खाइए, जाड़े की असली मिठाई।’ राजा ने गरम-गरम गुड़ खाया तो बड़ा स्वादिष्ट लगा।राजा बोले, ‘वाह, इतनी बढ़िया मिठाई, यहां अंधेरे में कहां से आई? तभी तेनालीराम को एक कोने में पड़ी पत्तियां दिखाई दीं। वह अपनी जगह से उठा और कुछ पत्तियां इकट्ठी कर आग लगा दी।
फिर बोला, “महाराज, यह गुड़ है। “गुड़… और इतना स्वादिष्ट!”महाराज, जाड़ों में असली स्वाद गरम चीज में रहता है। यह गुड़ गरम है इसलिए स्वादिष्ट है। यह सुनकर राजा कृष्णदेव राय मुस्कुरा दिए। पुरोहित अब भी चुप था।
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14. चोरी पकड़ी (tenali raman stories in hindi)
एक बार राजा कृष्णदेव राय के राज्य विजयनगर में लगातार चोरी होनी शुरू हुई। सेठों ने आकर राजा के दरबार में दुहाई दी, ‘महाराज हम लूट गए बरबाद हो गए। रात को ताला तोड़कर चोर हमारी तिजोरी का सारा धन उड़ा ले गए।’राजा कृष्णदेव राय ने इन घटनाओं की जांच कोतवाल से करवाई, पर कुछ भी हाथ नहीं लगा।
वे बहुत चिंतित हुए। चोरी की घटनाएं होती रहीं। चोरों की हिम्मत बढ़ती जा रही थी। अंत में राजा ने दरबारियों को लताड़ते हुए कहा, ‘क्या आप में से कोई भी ऐसा नहीं, जो चोरों को पकड़वाने की जिम्मेदारी ले सके?’सारे दरबारी एक- दूसरे का मुंह देखने लगे। तेनालीराम ने उठकर कहा, ‘महाराज यह जिम्मेदारी मैं लूंगा। वहां से उठकर तेनालीराम नगर के एक प्रमुख जौहरी के यहां गया।
उसने अपनी योजना उसे बताई और घर लौट गया। उस जौहरी ने अगले दिन अपने यहां आभूषणों की एक बड़ी प्रदर्शनी लगवाई। रात होने पर उसने सारे आभूषणों को एक तिजोरी मेंरखकर ताला लगा दिया।आधी रात को चोर आ धमके। ताला तोड़कर तिजोरी में रखे सारे आभूषण थैले में डालकर वे बाहर आए।
जैसे ही वे सेठ की हवेली से बाहर जाने लगे सेठ को पता चल गया, उसने शोर मचा दिया।आस-पास के लोग भी आ जुटे। तेनालीराम भी अपने सिपाहियों के साथ वहां आ धमके और बोले, ‘जिनके हाथों में रंग लगा हुआ है, उन्हें पकड़ लो।’ जल्द ही सारे चोर पकड़े गए।
अगले दिन चोरों को दरबार में पेश किया गया। सभी के हाथों पर लगे रंग देखकर राजा ने पूछा, ‘तेनालीरामजी यह क्या है? महाराज हमने तिजोरी पर गीला रंग लगा दिया था ताकि चोरी के इरादे से आए चोरों के शरीर पर रंग चढ़ जाए और हम उन्हें आसानी से पकड़ सकें।
राजा ने पूछा, ‘पर आप वहां सिपाहियों को तैनात कर सकते थे।’महाराज इसमें उनके चोरों से मिल जाने की संभावना थी। यह सुनकर राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम की खूब प्रशंसा की।
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15. कीमती उपहार (tenaliram hindi story)
कीमती उपहारलड़ाई जीतकर राजा । कृष्णदेव राय ने विजय उत्सव मनाया। उत्सव की समाप्ति पर राजा ने कहा’लड़ाई की जीत अकेले मेरी जीत नहीं है, मेरे सभी साथियों और सहयोगियों की जीत है।मैं चाहता हूं कि मेरे मंत्रिमंडल के सभी सदस्य इस अवसर पर पुरस्कार प्राप्त करें।
आप सभी लोग अपनी-अपनी पसंद का पुरस्कार लें, परंतु एक शर्त है कि सभी को अलग-अलग पुरस्कार लेने होंगे। एक ही चीज दो आदमी नहीं ले सकेंगे। यह घोषणा करने के बाद राजा ने उस मंडप का पर्दा खिंचवा दिया जिस मंडप में सारे पुरस्कार सजाकर रखे गए थे। फिर क्या था! सभी लोग अच्छे-से-अच्छा पुरस्कार पाने के लिए पहल करने लगे। पुरस्कार सभी लोगों की गिनती के हिसाब से रखे गए थे।
अतः थोड़ी देर की धक्का-मुक्की और छीना-झपटी के बाद सबको एकएक पुरस्कार मिल गया। सभी पुरस्कार कीमती थे। अपना-अपना पुरस्कार पाकर सभी संतष्ट हो गए। अंत में बचा सनसे कम मूल्य का पुरस्कार- एक चांदी की थाली। यह पुरस्कार उस आदमी को मिलना था, जो दरबार में सबके बाद पहुंचे यानी देर से पहुंचने का दंड।
सब लोगों ने जब हिसाब लगाया तो पता चला कि श्रीमान तेनालीराम अभी तक नहीं पहुंचे हैं। यह जानकर सभी खुश थे।सभी ने सोचा कि इस बेतुके, बेढंगे व सस्ते पुरस्कार को पाते हुए हम सब तेनालीराम को खूब चिढ़ाएंगे। बड़ा मजा आएगा। तभी श्रीमान तेनालीराम आ गए।
सारे लोग एक स्वर में चिल्ला पड़े, ‘आइए, तेनालीरामजी! एक अनोखा पुरस्कार आपका इंतजार कर रहा है।’ तेनालीराम ने सभी दरबारियों पर दृष्टि डाली।सभी के हाथों में अपने-अपने पुरस्कार थे। किसी के गले में सोने की माला थी, तो किसी के हाथ में सोने का भाला।
किसी के सिर पर सुनहरे काम की रेशम की पगड़ी थी, तो किसी के हाथ में हीरे की अंगूठी।तेनालीराम उन सब चीजों को देखकर सारी बात समझ गया। उसने चुपचाप चांदी की थाली उठा ली। उसने चांदी की उस थाली को मस्तक से लगाया और उस पर दुपट्टा ढंक दिया, ऐसे कि जैसे थाली में कुछ रखा हुआ हो।
राजा कृष्णदेव राय ने थाली को दुपट्टे से ढंकते हुए तेनालीराम को देख लिया। वे बोले, ‘तेनालीराम, थाली को दुपट्टे से इस तरह क्यों ढंक रहे हो?”क्या करूं महाराज, अब तक तो मुझे आपके दरबार से हमेशा अशर्फियों से भरे थाल मिलते रहे हैं।
यह पहला मौका है कि मुझे चांदी की थाली मिली है। मैं इस थाल को इसलिए दपट्टे से ढंक रहा हूं ताकि आपकी बात कायम रहे। सब यही समझे कि तेनालीराम को इस बार भी महाराज ने थाली भरकर अशर्फियां पुरस्कार में दी हैं। महाराज तेनालीराम की चतुराईभरी बातों से प्रसन्न हो गए। उन्होंने गले से अपना बहुमूल्य हार उतारा और कहा, ‘तेनालीराम, तुम्हारी थाली आज भी खाली नहीं रहेगी।
आज उसमें सबसे बहुमूल्य पुरस्कार होगा। थाली आगे बढ़ाओ तेनालीराम! ‘तेनालीराम ने थाली राजा कृष्णदेव राय के आगे कर दी।
राजा ने उसमें अपना बहुमूल्य हार डाल दिया। सभी लोग तेनालीराम की बुद्धि का लोहा मान गए। थोड़ी देर पहले जो दरबारी उसका मजाक उड़ा रहे थे, वे सब भीगी बिल्ली बने एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे, क्योंकि सबसे कीमती पुरस्कार इस बार भी तेनालीराम को ही मिला था।
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16. कितने कौवे (tenali raman stories in hindi)
महाराज कॄष्णदेव राय तेनालीराम का मखौल उडाने के लिए उल्टे-पुल्टे सवाल करते थे। तेनालीराम हर बार ऐसा उत्तर देते कि राजा की बोलती बन्द हो जाती। एक दिन राजा ने तेनालीराम से पूछा “तेनालीराम! क्या तुम बता सकते हो कि हमारी राजधानी में कुल कितने कौवे निवास करते है?” हां बता सकता हूं महाराज! तेनालीराम तपाक से बोले। महाराज बोले बिल्कुल सही गिनती बताना।
जी हां महाराज, बिल्कुल सही बताऊंगा। तेनालीराम ने जवाब दिया। दरबारियों ने अंदाज लगा लिया कि आज तेनालीराम जरुर फंसेगा। भला परिंदो की गिनती संभव हैं? “तुम्हें दो दिन का समय देते हैं। तीसरे दिन तुम्हें बताना हैं कि हमारी राजधानी में कितने कौवे हैं।” महाराज ने आदेश की भाषा में कहा।
तीसरे दिन फिर दरबार जुडा। तेनालीराम अपने स्थान से उठकर बोला “महाराज, महाराज हमारी राजधानी में कुल एक लाख पचास हजार नौ सौ निन्यानवे कौवे हैं। महाराज कोई शक हो तो गिनती करा लो।
राजा ने कहा गिनती होने पर संख्या ज्यादा-कम निकली तो? महाराज ऐसा, नहीम् होगा, बडे विश्वास से तेनालीराम ने कहा अगर गिनती गलत निकली तो इसका भी कारण होगा। राजा ने पूछा “क्या कारण हो सकता हैं?”
तेनालीराम ने जवाब दिया “यदि! राजधानी में कौवों की संख्या बढती हैं तो इसका मतलब हैं कि हमारी राजधानी में कौवों के कुछ रिश्तेदार और इष्ट मित्र उनसे मिलने आए हुए हैं। संख्या घट गई हैं तो इसका मतलब हैं कि हमारे कुछ कौवे राजधानी से बाहर अपने रिश्तेदारों से मिलने गए हैं। वरना कौवों की संख्या एक लाख पचास हजार नौ सौ निन्यानवे ही होगी तेनालीराम से जलने वाले दरबारी अंदर ही अंदर कुढ कर रह गए कि हमेशा की तरह यह चालबाज फिर अपनी चालाकी से पतली गली से बच निकला।