अच्छा भूत (bhutiya kahani )
कुफरी में स्कीइंग का लुफ्त उठाने और पूरा दिन मौज मस्ती करने के पश्चात कुमार, कामना, प्रशान्त और पायल शाम को शिमला की ओर बीएमडब्लू में जा रहे थे।,
सर्दियों के दिन, जनवरी का महीना, शाम के छ: बजे ही गहरी रात हो गई थी।
गोल घुमावदार रास्तों में अंधकार को चीरती, पेडों के झुरमुठ के बीच कार चलती जा रही थी।
सैलानी ही इस समय सडकों पर कार चलाते नजर आ रहे थे। टूरिस्ट टैक्सियां भी वापिस शिमला जा रही थी।
कुफरी की ओर इक्का दुक्का कारें ही जा रही थी। बातों के बीच चारों शिमला की ओर बढ रहे थे। लगभग आधा सफर कट गया था
कार स्टीरियो की तेज आवाज में हंसी ठिठोली करते हुए सफर का आनन्द उठाते हुए समय का पता नही चल रहा था।
झटके मारते हुए कार क्यों चला रहे हो?” प्रशान्त ने झटकती हुई कार में झूलते हुए कुमार से पूछा।
“प्रशान्त भाई, मैं तो कार ठीक चला रहा हूं, मालूम नही, यह अचानक से झटके क्यों खा रही है?” कुमार ने झटके खाती कार को संभालते हुए कहा।
“कार को थोडा साईड करके देख लेते हैं। “हो सकता है, कि डीजल में कचरा आ गया हो, थोडी रेस दे कर देखता हूं, कि कार रिदम में आ जाए।
“ कुमार ने क्लच दबाते हुए कार का ऐक्सीलेटर दबाया, लेकिन कोई खास कामयाबी नही मिली, कार झटके खाती हुई रूक गई।
“अब क्या करे?” चारों के मुख से एक साथ निकला। सभी सोचने लगे, कि काली रात के साए में कुछ भी नजर नही आ रहा था,
सोने पे सुहागा तो धुन्ध ने कर दी थी। धीरे धीरे धुन्ध बढ रही थी। ठंडक भी धीमे धीमे बढ रही थी। कार सडक की एक साईड पर खडी थी।
इक्का दुक्का कार, टैक्सी आ जा रही थी। “प्रशान्त बाहर निकल कर मदद मांगनी पडेगी। कार में बैठे रहने से कुछ नही होगा।
कार तो हम चारों का चलाना आता है, लेकिन कार के मैकेनिक गिरी में चारों फेल है। शायद कोई कार या टैक्सी से कोई मदद मिल जाए।
“ कह कर कुमार कार से बाहर निकला। एक ठंडे हवा के तेज झोके ने स्वागत किया। शरीर में झुरझरी सी फैल गई।
प्रशान्त भी कार से बाहर निकला। पायल और कामना कार के अंदर बैठे रहे। ठंड बहुत अधिक थी
दिल्ली निवासियों कुमार और प्रशान्त की झुरझरी निकल रही थी। दोनों की हालात दयनीय होने लगी।
“थोडी देर खडे रहे तो हमारी कुल्फी बन जाएगी।“ कुमार ने प्रशान्त से कहा।
“ठीक कह रहे हो, लेकिन कर भी क्या सकते है।“ प्रशान्त ने जैकेट की टोपी को ठीक करते हुए कहा।
“लिफ्ट मांग कर शिमला चलते है, कार को यहीं छोडते है। सुबह शिमला से मैकेनिक ले आएगें।“ कुमार ने सलाह दी।
“ठीक कहते हो।“ रात का समय था। गाडियों की आवाजाही नगण्य थी। काफी देर बाद एक कार आई।
उनको कार के बारे में कुछ नही मालूम था, वैसे भी कार में पांच सवारियां थी। कोई मदद नही मिली।
दो तीन कारे और आई, लेकिन सभी में पूरी सवारियां थी, कोई लिफ्ट न दे सका। एक टैक्सी रूकी।
ड्राईवर ने कहा, जनाब मारूती, होंडा, टोएटा की कार होती तो देख लेता, यह तो बीएलडब्लू है, मेरे बस की बात नही है।
एक काम कर सकते हो, टैक्सी में एक सीट खाली है, पति, पत्नी कुफरी से लौट कर शिमला जा रहे हैं।
उनसे पूछ तो, तो एक बैठ कर शिमला तक पहुंच जाऔगे। वहां से मैकेनिक लेकर ठीक करवा सकतो हो। टैक्सी में बैठे पति, पत्नी ने इजाजत दे दी।
कुमार टैक्सी में बैठ कर शिमला की ओर रवाना हुआ। प्रशान्त कार में बैठ गया। प्रशान्त पायल और कामना बातें करते हे समय व्यतीत कर रहे थे।
धुन्ध बढती जा रही थी। थोडी देर बाद प्रशान्त पेशाब करने के लिए कार से उतरा। कामना, पायल कार में बैठे बोर हो गई थी।,
मौसम का लुत्फ उठाने के लिए दोनों बाहर कार से उतरी। कपकपाने वाली ठंड थी।
“कार में बैठो। बहुत ठंड है। कुल्फी जम जाएगी।“ प्रशान्त ने दोनों से कहा।
“बस दो मिन्ट मौसम का लुत्फ लेने दो, फिर कार में बैठते हैं।“ पायल और कामना ने प्रशान्त को कहा। “भूतिया माहौल है। कार में बैठते है।“ प्रशान्त ने कहा।
प्रशान्त की बात सुन कर पायल खिलखिला कर हंस दी। “भूतिया माहौल नही, मुझे तो फिल्मी माहौल लग रहा है।
किसी भी फिल्म की शूटिंग के लिए परफेक्ट लोकेशन है। काली अंधेरी रात, धुन्ध के साथ सुनसान पहाडी सडक।
हीरो, हीरोइन का रोमांटिक मूड, सेनसुएस सौंग। कौन सा गीत याद आ रहा है।“
“तुम दोनों गाऔ। मेरा रोमांटिक पार्टनर तो मैकेनिक लेने गया है।“ कामना ने ठंडी आह भर कर कहा।
तीनों हंस पडे। तीनों अपनी बातों में मस्त थे। उनको मालूम ही नही पडा, कि कोई उन के पास आया है।
एक शख्स जिसने केवल टीशर्ट, पैंट पहनी हुई थी, प्रशान्त के पास आ कर बोला “आपके पास क्या माचिस है?”
इतना सुन कर तीनों चौंक गए। जहां तीनों ठंड में कांप रहे थे, वही वह शख्स केवल टीशर्ट और पैंट पहने खडा था, कोई ठंड नही लग रही थी उसे।
प्रशान्त ने उसे ऊपर से नीचे तक गौर से देख कर कहा। “आपको ठंड नही लग रही क्या?”
उसने प्रशान्त के इस प्रश्न का कोई उत्तर नही दिया बल्कि बात करने लगा “आप भूतिया माहौल की अभी बातें कर रहे थे।
क्या आप भूतों में विश्वास करते हैं? क्या आपने कभी भूत देखा है?”
“नही, दिल्ली में रहते है, न तो कभी देखा है और न कभी विश्वास किया है, भूतों पर।“ प्रशान्त ने कह कर पूछा, “क्या आप विश्वास करते है?“
“हम पहाडी आदमी है, हर पहाडी भूतों को मानता है। उन का अस्तित्व होता है।“
उस शख्स की भूतों की बाते सुन कर कामना और पायल से रहा नही गया। उनकी उत्सुक्ता बढ गई।,
“भाई, कुछ बताऔ, भूतों के बारे में। फिल्मी माहौल हो रखा है, कुछ बात बताऔ।“,
उस शख्स ने कहा “देखिए, हम तो मानते है। आप जैसा कह रहे हैं, कि शहरों में भूत नजर नही आते, हो सकता है, नजर नहीं आते होगें
मगर पहाडों में तो हम अक्सर देखते रहते है। “कहां से आते है भूत और कैसे होते हैं, कैसे नजर आते है।“ प्रशान्त ने पूछा।
उस शख्स के हाथ में सिगरेट थी, वह सिगरेट को हाथों में घुमाता हुआ बोला “भूत हमारे आपके जैसे ही होते हैं। वे रौशनी में नजर नही आते है।“
“होते कौन है भूत, कैसे बनते है?“ पायल ने पूछा। “यहां पहाडों के लोगों का मानना है, कि जो अकस्मास किसी दुर्घटना में मौत के शिकार होते है
या फिर जिनका कत्ल कर दिया जाता है, वे भूत बनते है।“ उस शख्स ने कहा। “क्या वे किसो को नुकसान पहुंचाते है, मारपीट करते हैं?” प्रशान्त ने पूछा।
“अच्छे भूत किसी को कुछ नुकसान पहुंचाते है। अच्छा मैं चलता हूं। सिगरेट मेरे पास है। आप के पास माचिस है, तो दीजिए, सिगरेट सुलगा लेता हूं।
“ उस शख्स ने कहा। प्रशान्त ने लाईटर निकाल कर जलाया। उस शख्स ने सिगरेट सुलगाई। लाईटर की रौशनी में सिर्फ सिगरेट नजर आई
वह शख्स गायब हो गया। लाईटर बंद होते ही वह शख्स नजर आया। तीनों के मुख से एक साथ निकला – भूत।
तीनों, प्रशान्त, पायल और कामना का शरीर अकड गया और बेसुध होकर एक दूसरे पर गिर पडे।
अकडा शरीर, खुली आंखें लगभग मृत्य देह के सामान तीनों मूर्क्षित थे। वह शख्स कुछ दूरी पर खडा सिगरेट पी रहा था।
तभी वहां आर्मी का ट्रक गुजरा। उसने ट्रक को रूकने का ईशारा किया। ट्रक ड्राईवर उसे देख कर समझ गया, कि वह कौन है।,
ट्रक से आर्मी के जवान उतरे और तीनों को ट्रक पर डाला और शिमला के अस्पताल में भरती कराया।
कुछ देर बाद कुमार कार मैकेनिक के साथ एक टैक्सी में आया। अकेली कार को देख परेशान हो गया, कि तीनों कहां गये।
वह शख्स, जो कुछ दूरी पर था, कुमार को बताया, कि ठंड में तीनों की तबीयत खराब हो गई, आर्मी के जवान उन्हें अस्पातल ले गये हैं।,
कह कर वह शख्स विपरीत दिशा की ओर चल दिया। मैकेनिक ने कार ठीक की और कुछ देर बाद शिमला की ओर रवाना हुए।
कुमार सीधा अस्पताल गया। डाक्टर से बात की। डाक्टर ने कहा कि तीनों को सदमा लगा है। वैसे घबराने की कोई आवश्कता नही है
लेकिन सदमें से उभरने में समय लगेगा। कुमार को कुछ समझ नही आया, कि उन्होनें क्या देखा, कि इतने सदमे में आ गए।
अगली सुबह आर्मी ऑफिसर अस्पताल में तीनों को देखने आया। कुमार से कहा – “आई एम कर्नल अरोडा, मेरी यूनिट ने इन तीनों को अस्पातल एडमिट कराया था।“
कुमार ने पूछा – “मुझे कुछ समझ में नही आ रहा, कि अचानक से क्या हो गया?“
कर्नल अरोडा ने कुमार को रात की बात विस्तार से बताई, कि वह शख्स भूत था, जिसे देख कर तीनों सदमें में चले गए और बेसुध हो गए।
वह एक अच्छा भूत था। अच्छे भूत किसी का नुकसान नही करते। उसने तीनों की मदद की। हमारे ट्रक को रोका और कुमार के वापिस आने तक भी रूका रहा।
शाम तक तीनों को होश आ गया। दो दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिली और सभी दिल्ली वापिस गए, लेकिन सदमें से उभरने में लगभग तीन महीने लग गए।
आज सात साल बीत गए उस घटना को। चारों कभी भी घूमने रात को नही निकलते। नाईट लाईफ बंद कर दी।
घर से ऑफिस और ऑफिस से घर, बस यही रूटीन है उन का। उस घटना को याद करके आज भी उनका बदन ठंडा होने लगता है।
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ब्रह्मा राक्षस (bhutiya kahani )
यह कहानी एक ऐसे राक्षस की है जिसे आप लोग जानते होगे या नही यह मुझे पता नहीं हैं उस राक्षस का नाम है ब्रह्म राक्षस। भूत-प्रेतों मैं भी कई योनियाँ होती हैं। अनेक नाम होते हैं। जैसे की भूत-प्रेत पिसाच,राक्षस,डायन,चुड़ैल,आदि बहुत से नाम होते हैं। तो दोस्तों मैं आपका समय बर्बाद न करते हुए अपनी कहानी पर आता हूँ हमारे गांव मैं एक ब्राह्मण रहते है। जिनका नाम है। नत्थी लाल लोग उन्हें शर्मा जी शर्मा जी कहकर बुलाते हैं। उनके घर से कुछ दूर खेत था उस खेत पर एक बहुत बड़ा पीपल खड़ा था। वह पीपल बहुत पुराना था। कुछ समय बाद उन्होंने उस खेत पर घर बनवाने की सोची पहले वाला घर बहुत छोटा होने की वजह से उन्होंने खेत पर घर बनवाने की सोची उन्होंने उस पीपल को काट कर अपना घर बनवा लिया।
कुछ दिन तो ठीक ठाक चला पर कुछ दिन बाद शर्मा जी बड़े पड़े परेशान रहने लगे वह कभी वह पूजा करते थे कभी नहीं तो उनकी बीवी ने उनके बदले स्वभाव को देख उनसे पुछा की तुम पूजा भी नहीं करते आज कल बदले-बदले से रहते हो कभी बच्चो को डांटते रहते हो तुम्हे हुआ क्या है। पंडित जी के चेहरे पर पर मुस्कान आई और वह कहने लगे मेरे घर को तोड़ कर अपना घर तो बना लिया है। और इसे क्या पूजा करने की कह रही हो सब कुछ मैं ही हूँ मैं मैं ही भगवान् हूँ। इसे पूजा करने की कोई जरूरत नहीं हैं। वो कभी दांत मीसते कभी बड़े प्यार से बोलते कभी आंखें लाल तो कभी सही हो जाते थे।
उनकी बीवी को शक हो गया की ज़रूर किसी भूत-प्रेत का साया है और वो बाते ऐसे करते हैं जैसे की वो दो लोग हों। तब पंडितानी ने उनको बिठा कर आसन लगा कर हनुमान चालीसा पढने लगी वो सोच रही थी अगर कोई भूत-प्रेत होगा तो भाग जायेगा पर पंडित जी पर उसका कोई असर नहीं पड़ा वह एक टक लगाये देखे जा रहे थे। उसने काफी मंत्र पढ़े गायत्री मंत्र । तभी पंडित जी की आंखें लाल हुई और कहने लगे मैं किसी से नहीं डरने वाला और तू क्या समझ रही है मैं इसे ऐसे नहीं छोड़ने वाला तब तक उसका छोटा बच्चा वहां आ गया मम्मी पंडित जी ने उसे ऐसे जोर से पकड़ के खींचा और ऐसा लग रहा था की उसके सिर को कच्चा ही चबा जाएगा
पंडितानी ने कहा बच्चे को छोड़ दो इसने क्या तुम्हारा बिगाड़ा है उसे छोड़ दो पंडितानी ने विनती की बड़े नम्र भाव से कहा कि उसे छोड़ दो तो उसने उस बच्चे को छोड़ दिया और कहा कि मैंने तुम्हारे इस नम्र भाव कि बजह से इसे भी छोड़ रखा है नहीं तो मैं इसे कब का मार चुका होता उसने फिर पुछा तुम कौन हो और मेरे पति को तुमने क्योँ बस मैं कर रखा है।
आप हमसे क्या चाहते हो आप हो कौन तब उसने कहा अगर अपना भला चाहती हो तो पीपल के पेड़ लगाओ जितने भी हो सकें पेड़ लगाओ फिर मैं बताऊँगा कि मैं कौंन हूँ और फिर मैं चला जाऊँगा तब पंडित जी की बीवी ने एक सौ एक पेड़ पीपल के लगाये एक दिन उसकी पत्नी ने देखा की आज पंडित जी सुबह उठकर पूजा पाठ कर के आ चुके हैं।
तब पंडितानी से पंडित जी बोले मैं तुम्हारे पति को आज छोड़ के जा रहा हूँ तुम सदा सुखी रहो तुम्हारे आचार-विचार बहुत अच्छे हैं। मैं ब्रह्म राक्षस हूँ वैसे मैं किसी को नहीं छोड़ता और न ही किसी से डरता हूँ मैं ब्रह्म राक्षस हूँ-ब्रह्म राक्षस हा हा हा। तुम्हारे पति ने मेरे पीपल को काट दिया था जिस पर मैं हजारों सालों से रह रहा था। मुझे गुस्सा तो आया पर मैं तुम्हारी अच्छाई के कारण मैंने इन्हें छोड़ दिया जा रहा हूँ तुम्हारे पति को छोड़कर तब पंडित
जी अचानक सही हो गए तब पंडित जी की बीवी की आँखों से आशु निकल पड़े। तो दोस्तों अगर बुरे के साथ अगर तुम अगर अच्छा करोगे हो तो एक दिन वह भी अच्छा हो जाता है।
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भूतिया खजाना (bhutiya kahani )
हाँ, एक बात और इस कहानी को आगे बढ़ाने के पहले मैं आप लोगों को बता दूँ कि इस कहानी में कितनी सत्यता है यह मैं नहीं कह सकता क्योंकि यह कहानी भी मैं अपने गाँव-जवार में सुनी है और गँवई जनता की माने तो इस घटना को घटे लगभग 70-80 साल हो गए होंगे।
पहले गाँवों में कुछ बनिया फेरी करने आते थे (आज भी आते हैं पर कम मात्रा में)। कोई छोटी-मोटी खाने की चीजें बेचता था तो कोई शृंगार के सामान या धनिया-मसाला आदि। ये लोग एक दउरी (एक पात्र) में इन सामानों को रखकर गाँव-गाँव घूमकर बेंचते थे। आज तो जमाना बदल गया है और गाँवों में भी कई सारी दुकानें खुल गई हैं और अगर कोई बाहर से बेंचने भी आता है तो ठेले पर सामान लेकर या साइकिल आदि पर बर्फ, आइसक्रीम आदि लेकर।
हाँ तो यह कहानी एक ऐसे ही बनिये से संबंध रखती है जो गाँव-गाँव घूमकर मूँगफली, गुड़धनिया, मसलपट्टी आदि बेंचता था। इस बनिए का नाम रामधन था। रामधन सूनी पगडंडियों, बड़े-बड़े बगीचों आदि से होकर एक गाँव से दूसरे गाँव जाता था। रामधन रोज सुबह-सुबह मूँगफली, गुड़धनिया आदि अपने दउरी (पात्र) में रखता और किसी दूसरे गाँव में निकल जाता। एक गाँव से दूसरे गाँव होते हुए मूँगफली, गुड़धनिया बेंचते हुए वह तिजहरिया या कभी-कभी शाम को अपने गाँव वापस आता। जब वह अपनी दउरी उठाए चलता और बीच-बीच में बोला करता, “ले गुड़धनिया, ले मूंगफली।
एकदिन की बात है। गरमी का मौसम था और दोपहर का समय। लू इतनी तेज चल रही थी कि लोग अपने घरों में ही दुबके थे। इसी समय रामधन अपने सिर पर दउरी उठाए हमारे गाँव से पास के गाँव में खेतों (मेंड़) से होकर चला। कहीं-कहीं तो इन मेंड़ों के दोनों तरफ दो-दो बिगहा (बिघा) केवल गन्ने के ही खेत रहते थे और अकेले इन मेड़ों से गुजरने में बहुत डर लगता था। कमजोर दिल आदमी तो अकेले या खर-खर दुपहरिया या शाम को इन मेंड़ों से गुजरना क्या उधर जाने की सोचकर ही धोती गीली कर देता था।
हमारे गाँव से वह पास के जिस गाँव में जा रहा था उसकी दूरी लगभग 1 कोस (3 किमी) है और बीच में एक बड़ी बारी (बगीचा- इसे हमलोग आज भी बड़की बारी के नाम से पुकारते हैं) भी पड़ती थी। यह बारी इतनी घनी थी कि दोपहर में भी इसमें अंधेरा जैसा माहौल रहता था। इस बगीचे में आम के पेड़ों की अधिकता थी पर इस बारी के बीच में एक बड़ा बरगद का पेड़ भी था।
रामधन इस बगीचे में पहुँचकर अपनी दउरी को उतारकर एक पेड़ के नीचे रख दिया और सोचा कि थोड़ा सुस्ताने (आराम करने) के बाद आगे बढ़ता हूँ। वह वहीं एक पेड़ की थोड़ी ऊपर उठी जड़ को अपना तकिया बनाया और अपने गमछे को बिछा कर आराम करने लगा। उसको पता ही नहीं चला कि कब उसकी आँख लग गई (नींद आ गई)। अचानक उसे लगा कि बगीचे में कहीं बहुत तेज आँधी उठी है और डालियों आदि के टकराने से बहुत शोर हो रहा है। वह उठकर बैठ गया और डालियों की टकराहट वाली दिशा में देखा।
रामधन के लिए भूतों की लड़ाई या खेल आम बात थी। उसे बराबर सुनसान रास्तों, झाड़ियों, घने-घने बगीचों आदि से होकर अकेले जाना पड़ता था अगर वह डरने लगे तो उसका धंधा ही चौपट हो जाए। उसका पाला बहुत बार भूत-प्रेत, चुड़ैलों आदि से पड़ा था पर किसी ने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा था। वह अपने आप को बहुत बहादुर समझता था और इन भूत-प्रेतों को आम इंसान से ज्यादे तवज्जों नहीं देता था।
रामधन ने लेटे-लेटे ही अचानक देखा कि एक बड़ा ही भयंकर और विशालकाय प्रेत इस पेड़ से उस पेड़ पर क्रोधित होकर कूद रहा है और इसी कारण से उन दोनों पेड़ की डालियाँ बहुत वेग से चरर-मरर की आवाज करते हुए नीचे-ऊपर हो रही हैं। रामधन को और कुतुहल हुआ और अब वह और सतर्क होकर उस भूत को देखने लगा। अरे रामधन को लगा कि अभी तो यह प्रेत अकेले था अब यह दूसरा कहाँ से आ गया। अच्छा तो यह बात है. अब रामधन को सब समझ में आ गया। दरअसल बात यह थी कि यहाँ भूतों का खेल नहीं भयंकर झगड़ा चल रहा था।
रामधन अब उठकर बैठ चुका था और अब भूतों के लड़ने की प्रक्रिया भी बहुत तेज हो चुकी थी। भूत एक दूसरे के जान के प्यासे हो गए थे। इन भूतों की लड़ाई में कई डालियाँ भी टूट चुकी थीं और उस बगीचे में बवंडर उठ गया था। अंत में रामधन ने देखा कि एक विकराल बड़े भूत ने एक कमजोर भूत को पकड़ लिया है और बेतहासा उसे मारे जा रहा है। अब धीरे-धीरे करके भूत अदृश्य भी होते जा रहे थे। अब वहाँ वही केवल तीन टांगवाली भूतनी ही बची थी और वह भयंकर विकराल भूत।
अब रामधन भी उठा क्योंकि इन भूतों की लड़ाई में लगभग उसके 1 घंटे निकल चुके थे। रामधन ने ज्यों ही अपनी दउरी उठाना चाहा वह उठ ही नहीं रही थी। रामधन को लगा कि अचानक यह दउरी इतनी भारी क्यों हो गई? उसने दुबारा कोशिश की और फिर तिबारा पर दउरी उठी नहीं, वह पसीने से पूरा नहा गया और किसी अनिष्ठ की आशंका से काँप गया। उसने मन ही मन हनुमान जी नाम लिया पर आज उसे क्या हो गया। वह समझ नहीं पा रहा था। आजतक तो वह कभी डरा नहीं था पर आज उसे डर सताने लगा। उसके पूरे शरीर में एक कंपकंपी-सी उठ रही थी और उसके सारे रोएँ तीर-जैसे एकदम खड़े हो गए थे।
अचानक उसे उस बगीचे में किसी के चलने की आवाज सुनाई दी। ऐसा लग रहा था कि कोई मदमस्त हाथी की चाल से उसके तरफ बढ़ रहा है। रामधन को कुछ दिख तो नहीं रहा था पर ऐसा लग रहा था कि कोई उसकी ओर बढ़ रहा है। उसके पैरों के नीचे आकर सूखी पत्तियाँ चरर-मरर कर रही थीं। अब रामधन ने थोड़ा हिम्मत से काम लिया और भागना उचित नहीं समझा। उसने मन ही मन सोचा कि आज जो कुछ भी हो जाए पर वह यहाँ से भागेगा नहीं। अचानक उस दैत्याकार अदृश्य प्राणी के चलने की आवाज थम गई। अब रामधन थोड़ा और हिम्मत करके चिल्लाया, “कौन है? कौन है? जो कोई भी है…सामने क्यों नहीं आता है?”
अब सब कुछ स्पष्ट था क्योंकि एक विकराल भूत (शायद यह वही था जो दूसरे भूत को मार रहा था) रामधन के पास दृश्य हुआ पर एकदम शांत भाव से। अब वह गुस्से में नहीं लग रहा था। रामधन ने थूक घोंटकर कहा, “कौन हो तुम और क्या चाहते हो? क्यों……मुझे…..परेशाना कर रहे हो…..मैं डरता नहींsssssssss।” वह विकराल भूत बोला, “डरो मत। मैं तुम्हें डराने भी नहीं आया हूँ। मैं यहां का राजा हूँ राजा और मेरे रहते किसी के डरने की आवश्यकता नहीं। अगर कोई डराने की कोशिश करेगा तो वही हस्र करूँगा जो उस कलमुनिया भूत का किया।” अब रामधन का डर थोड़ा कम हुआ और उसने उस भूत से पूछ बैठा, “क्या किया था उस कलमुनिया भूत ने?” वह विकराल भूत हँसा और कहा, “वह कलमुनिया काफी दिनों से इस ललमुनिया (तीनटंगरी) को सता रहा था। मैंने उसे कई बार चेतावनी दी पर समझा ही नहीं और हद तो आज तब हो गई जब उसने कुछ भूत-प्रेतों को एकत्र करके मुझपर हमला कर दिया। सबको मारा मैंने और दौड़ा-दौड़कर मारा।”
रामधन ने अपनी जान बचाने के लिए उस भूत की चमचागीरी में उसकी बहुत प्रशंसा की और बोला, “तो क्या अब मैं जाऊँ?” “हाँ जाओ, पर जाते-जाते कुछ तो खिला दो, बहुत भूख लगी है और थक भी गया हूँ।”, उस विकराल भूत ने कहा। रामधन ने उस भूत से अपना पीछा छुड़ाने के लिए थोड़ा गुड़धनिया निकालकर उसे दे दिया। गुड़धनिया खाते ही वह भूत रामधन से विनीत भाव में बोला कि थोड़ा और दो ना, बहुत ही अच्छा है। मैं भी बचपन में बहुत गुड़धनिया खाता था। रामधन ने कहा कि नहीं-नहीं, अब नहीं मिलेगा, सब तूँ ही खा जाओगे तो मैं बेचूंगा क्या? भूत ने कहा कि बोलो कितना हुआ, मैं ही खरीद लेता हूँ। रामधन को अब थोड़ी लालच आ गई क्योंकि उसने सुन रखा था कि इन भूत-प्रेतों के पास अपार संपत्ति होती है अगर किसी पर प्रसन्न हो गए तो मालामाल कर देते हैं।
अब रामधन ने दउरी में से थोड़ा और गुड़धनिया निकालकर उस भूत की ओर बढ़ाते हुए बोला कि अब पैसा दो तो यह दउरी का पूरा सामान तूझे दे दूँगा। भूत ने उसके हाथ से गुड़धनिया ले लिया और खाते-खाते बोला कि मेरे पीछे-पीछे आओ। अब तो रामधन एकदम निडर होकर अपनी दउरी को उठाया और उस भूत के पीछे-पीछे चल दिया। वह भूत रामधन को लेकर उस बगीचे में एकदम उत्तर की ओर पहुँचा। यह उस बगीचे का एकदम उत्तरी छोर था। इस उत्तरी छोर पर एक जगह एक थोड़ा उठा हुआ टिला था और वहीं पास में मूँज आदि और एक छोटा नीम का पेड़ था। उस नीम के थोड़ा आगे एक छोटा-सा पलास का पेड़ा था।
उस विकराल भूत ने रामधन से कहा कि इस पलास के पेड़ के नीचे खोदो। रामधन ने कहा कि मेरे पास कुछ खोदने के लिए तो है ही नहीं। तुम्हीं खोदो। रामधन की बात सुनकर वह भूत आगे बढ़ा और देखते ही देखते वह और विकराल हो गया। उसके नख खुर्पो की तरह बड़े हो गए थे और इन्हीं नखों से वह उस पलास के पेड़ के नीचे लगा खोदने। खोदने का काम ज्यों ही खतम हुआ त्योंही रामधन ने उस गड्ढे में झाँककर देखा।
गाँव में पहुँचने के एक ही हप्ते बाद ऐसा लगा कि रामधन की लाटरी लग गई हो। उसने अपने मढ़ई के स्थान पर लिंटर बनवाना शुरू किया और धीरे-धीरे करके मूँगफली और गुड़धनिया बेंचने का धंधा बंद कर दिया।
सही कहा गया है कि देनेवाले भूतजी, जब भी देते, देते छप्पर भाड़कर।
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उस दिन खाते पीते कुछ अधिक ही देर हो गयी थी , रात के ग्यारह बज गए थे , गांव में काफी सन्नाटा हो जाता है। उस घर के छत से आवाज दे देकर बच्चे बार बार बुला रहे थे । सामने के रास्ते से जाने से कई मोड पड जाने से उनका घर हमारे घर से कुछ दूर पड जाता था , पर खेत से होकर एक शार्टकट रास्ता था । हमलोग अक्सर उसी रास्ते से जाते आते थे , उन्होने भी उस दिन उसी रास्ते से जाने का निश्चय किया। पीछे के दरवाजे से उन्हें भेजकर हमलोग दरवाजा बंद करके अंदर अपने अपने कामों में लग गए। अचानक मेरी छोटी बहन के दिमाग में क्या आया , छत पर जाकर देखने लगी कि वे उनके घर पहुंचे या नहीं ? अंधेरा काफी था , मेरी बहन को कुछ भी दिखाई नहीं दिया , वह छत से लौटने वाली ही थी कि उसे महसूस हुआ कि कोई दौडकर हमारे बगान में आया और सामने नीम के पेड के नीचे छुप गया।
मेरी बहन ने पूछा ‘कौन है ?‘
उनकी आवाज आयी ‘मैं हूं’
‘आप चाचाजी के यहां गए नहीं ?’
‘खेत में कुएं के पास कोई बैठा हुआ है’
गांव में रात के अंधेरे में चोरों का ही आतंक रहता है , उनकी इस बात को सुनकर हमलोगों को चोर के होने का ही अंदेशा हुआ , जल्दी जल्दी पिछवाडे का दरवाजा खोला गया। पूछने पर उन्होने हमारे अंदेशे को गलत बताते हुए कहा कि वह आदमी नहीं , भूत प्रेत जैसा कुछ है , क्यूंकि कुएं के पास उसकी दो लाल लाल आंखे चमक रही हैं। तब जाकर हमलोगों को ध्यान आया कि कुएं के पास खेत में पानी पटानेवाला डीजल पंप रखा है और उसमें ही दो लाल बत्तियां जलती हैं।
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आत्मा का रहस्य (bhutiya kahani )
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बदला (bhutiya kahani )
एक बार पास के एक गाँव के उनके मुखिया मित्र ने कहा कि उनकी नजर में एक लड़का है, अगर आप तैयार हों तो मैं बात चलाऊँ? रमेसर काका के हाँ करते ही उनके मुखिया मित्र की अगुआई में चंदा का विवाह तय हो गया। चंदा का पति नदेसर उस समय कोलकाता में कुछ काम करता था। नदेसर देखने में बहुत ही सीधा-साधा और सुंदर युवक था। वह रमेसर काका को पूरी तरह से भा गया था। खैर शादी हुई और रमेसर काका ने नम आँखों से चंदा को विदा किया।
कोलकता पहुँचने पर नदेसर ने फिर से अपना काम-धंधा शुरू किया पर काम में उसका मन ही नहीं लगता था। बार-बार चंदा का शरारती चेहरा, उसके आँखों के आगे घूम जाता। वह जितना भी काम में मन लगाने की कोशिश करता उतना ही चंदा की याद आती। नदेसर की यह बेकरारी दिन व दिन बढ़ती ही जा रही थी। उसने अपने दिल की बात अपने साथ काम करने वाले अपने 5 मित्रों को बताई। ये पाँचों उसके अच्छे मित्र थे।
खैर अब नदेसर के पाँचों दोस्तों के दिमाग में जो एक भयानक, घिनौनी खिचड़ी पकनी शुरू हो गई थी उससे नदेसर पूरी तरह अनभिज्ञ था। उसके पाँचों दोस्तों ने एक दिन नदेसर से कहा कि यार, भाभी को यहीं ले आओ। कुछ दिन रहेगी, कोलकता भी घूम लेगी तो उसको बहुत अच्छा लगेगा और फिर 1-2 हफ्ते में उसे वापस छोड़ आना। पर नदेसर अपने बूढ़े माँ-बाप को यादकर कहता कि नहीं यारों, मैं ऐसा नहीं कर सकता, मेरी अम्मा और बाबू की देखभाल के लिए गाँव में चंदा के अलावा और कोई नहीं है।
कुछ दिन और बीते पर ये बीतते दिन नदेसर की बेकरारी को और भी बढ़ाते जा रहे थे। अब तो नदेसर का काम में एकदम से मन नहीं लग रहा था और उसे बस गाँव दिखाई दे रहा था। एक दिन रात को नदेसर के पाँचों दोस्तों ने नदेसर से कहा कि चलो हम लोग तुम्हारे गाँव चलते हैं। नदेसर अभी कुछ समझ पाता या कह पाता तबतक उसके उन पाँच दोस्तों में से निकेश नामक दोस्त ने कहा कि यार टेंसन मत ले।
टरेन और बस की यात्रा करते-करते आखिरकार नदेसर अपने पाँच दोस्तों के साथ अपने गाँव के पास के एक छोटे से बस स्टेशन पर पहुँच ही गया। इस स्टेशन से उसके गाँव जाने के लिए अच्छी कच्ची सड़क भी न थी। जंगल में चलने से बने पगडंडियों से, उबड़-खाबड़ रास्ते से होकर जाना पड़ता था। जंगल में चलते-चलते जब नदेसर से निकेश ने पूछा कि भाई नदेसर अभी तुम्हारा गाँव कितनी दूर है तो नदेसर ने प्रसन्न होकर कहा कि यार अब हम लोग पहुँचने ही वाले हैं। नदेसर की बात सुनते ही निकेश हाँफने का नाटक करते हुए वहीं बैठते हुए बोला कि यार अब मुझसे चला नहीं जाता।
निकेश और नदेसर के अन्य चार दोस्त चंदा और नदेसर के पास पूरी सख्ती से खड़े हो गए थे। चंदा और नदेसर कुछ समझ पाते इससे पहले ही निकेश ने दाँत भींजते हुए तेज आवाज में नदेसर से कहा कि साले, मैं अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता था पर तुम बिना बताए गाँव आकर अपनी कर लिए। उसकी बात सुनकर नदेसर ने भोलेपन से कहा कि निकेश भाई, आपने तो कभी हमसे अपनी बहन की शादी के बारे में बात भी नहीं की थी और जब मैं घर आया था तो यहाँ माँ-बाबू ने शादी कर दिया था। भला मैं उन्हें मना कैसे कर सकता था।
आग लगाने के बाद ये पाँचो दोस्त जिधर से आए थे, उधर को भाग निकले। जंगल जलने लगा और जलने लगे चंदा और नदेसर के जिस्म। सब कुछ स्वाहा हो गया था। इस आग से आस-पास के गाँववालों को कुछ भी लेना देना नहीं था, क्योंकि जंगल में आग लगना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। कभी भी कोई भी अपनी लंठई में जंगल में आग लगा दिया करता था।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा। रात तक जब चंदा और नदेसर घर नहीं आए तो नदेसर के पिताजी ने नदेसर के आने और चंदा को लेकर जाने की बात अपने पड़ोसियों को बताई। उसी रात को नदेसर और उनके कुछ पड़ोसी मशाल लेकर चंदा और नदेसर को खोजने निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद भी इन दोनों का पता नहीं चला। दूसरे दिन सुबह पुलिस में खबर दी गई पर पुलिस भी क्या करती। थोड़ा-बहुत छानबीन की पर उन दोनों का कोई पता नहीं। अब नदेसर के माँ-बाप और गाँववालों को लगने लगा था कि नदेसर अपनी बहुरिया को लेकर बिना बताए कोलकाता चला गया।
इधर कोलकाता में एक दिन अचानक निकेश के घर पर कोहराम मच गया। हुआ यह था कि किसी ने बहुत ही बेरहमी से उसके गुप्तांग को दाँतों से काट खाया था, उसके शरीर पर जगह-जगह भयानक दाँतों के निशान भी पड़े थे और वह इस दुनिया को विदा कर गया था। पुलिस के पूछताझ में उसके घरवालों ने बताया कि पिछले 1 महीने से निकेश का किसी लड़की के साथ चक्कर था। वे दोनों बराबर एक दूसरे से मिलते थे पर लड़की कौन थी, कैसी थी, किसी ने देखा नहीं था। पर इसी दौरान पुलिस को निकेश की बहन से एक अजीब व डरावनी बात पता चली। निकेश की बहन ने बताया कि एक दिन जब निकेश घर से निकला तो वह भी पीछे-पीछे हो ली थी।
इतना सुनते ही पुलिस और आस-पास जुटे लोग सकते में आ गए और पूरी तरह से डर भी गए। क्योंकि निकेश का जो हाल हुआ था, वह यह बयाँ कर रहा था कि इसके साथ जो हुआ है वह किसी इंसान ने नहीं अपितु भूत-प्रेत ने ही किया होगा। यह कहानी यहीं समाप्त होती है। पर इसके अगले भाग के रूप में एक कहानी और आ सकती है कि क्या निकेश का यह हाल किसी भूत-भूतनी ने ही ऐसा किया था या किसी और ने। कहीं चंदा तो नहीं या नदेसर? निकेश के अन्य चार दोस्तों के साथ भी कुछ हुआ क्या?
बच्चे मे आत्मा (bhutiya kahani )
उसी रात को मुज्जफरनगर के एक दुसरे गाँव में शोभाराम नाम के एक आदमी की बैलगाड़ी के पहिये के नीचे आ जाने से मौत हो गयी । उसको अस्पताल ले जाते वक़्त रास्ते में ही उसकी मौत हो गयी ।मृतक के घरवालो ने उसका दाह संस्कार कर दिया ।
दुसरी तरफ जब रसूलपुर में उस मृत बच्चे को दफन करने के लिए जंगल जाने लगे । अचानक रास्ते में उसके शरीर में हलचल हुई और वो उठकर खड़ा हो गया । लोग ये देखकर दंग रह गए । लेकिन बाद में उसको जिन्दा देखकर सभी खुश हो गए । लेकिन लोगो को ये पता नहीं था कि उस बच्चे के शरीर को किसी और की आत्मा ने जकड़ रखा था । उस तीन साल के बच्चे में 23 साल के शोभाराम की आत्मा घुस चुकी थी । वो अलग जगह पर आकर बहुत परेशान हो रहा था और खाना खाने से मना कर रहा था लेकिन बड़ी मुश्किल से समझाकर उसको खाने के लिए राजी किया ।
एक दिन वो बच्चा अपनी माँ के साथ उसके ननिहाल जा रहा था कि अचानक रास्ते में वो जगह आयी जहा शोभाराम की मौत हुई थी । उस बच्चे ने इशारा करके बताया कि ये रास्ता उसके गाँव की और जाता है उसकी माँ उसकी बातों को अनसुना कर उसके ननिहाल चली गयी । उसके ननिहाल में आत्माराम के गाँव का एक आदमी जगन्नाथ किसी काम से आया । आत्माराम की आत्मा ने उसको पहचान कर उसे आवाज़ लगाई । जगन्नाथ को बच्चे के मुह से अपना नाम सुनकर अचम्भा हुआ । जगन्नाथ के पूछने पर उस बच्चे ने उसका पूरा इतिहास बता दिया और बोला कि मेरी मौत से पहले ही तुम लोगो ने मुझे जला दिया और इस बच्चे के खाली शरीर को देखकर इसमें रहने लग गया
जब जगन्नाथ ने ये बात अपने गाँव में बताई तो उसके पुरे परिवार के आत्माराम से मिलने चल दिए । उस बच्चे ने सबको पहचान लिया और वो उनके साथ उसके गाँव चल दिया । और उसने वापस रसलपुर आने से मना कर दिया लेकिन लोगो के समझाने पर मान गया । इस तरह वो दो परिवारों को साथ लेकर चलता रहा ।
इस कहानी से हमे ये पता चलता कि यदि कम उम्र में किसी की मौत हो जाती है तो वो अपनी अधूरी इच्छाओ को पूरा करने के लिए किसी के शरीर को इसका जरिया बना सकती है । दोस्तों मै आपको बताना चाहता हु कि ये तो केवल कहानी है लेकिन हकीकत में ऐसे कुछ मामले होते है जिनको कोई पहचान नहीं पाता है । इस कहानी में आपको थोड़ी सी भी सच्चाई लगे तो कमेंट के जरिये अपना विचार लिखना ना भूले
जंगल की रात (bhutiya kahani )
भूतों के शिकार (bhutiya kahani )
इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं।
जो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं।
पूर्णिमा का रहस्य (bhutiya kahani )
वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है तो व्यक्ति का भविष्य भी उसी अनुसार बनता और बिगड़ता रहता है।
जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्ति भोजन करने के बाद नशा जैसा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों पर चन्द्रमा का प्रभाव गलत दिशा लेने लगता है। इस कारण पूर्णिमा व्रत का पालन रखने की सलाह दी जाती है।
भूतनी का बदला (bhutiya kahani )
एक बार पास के एक गाँव के उनके मुखिया मित्र ने कहा कि उनकी नजर में एक लड़का है, अगर आप तैयार हों तो मैं बात चलाऊँ? रमेसर काका के हाँ करते ही उनके मुखिया मित्र की अगुआई में चंदा का विवाह तय हो गया। चंदा का पति नदेसर उस समय कोलकाता में कुछ काम करता था। नदेसर देखने में बहुत ही सीधा-साधा और सुंदर युवक था। वह रमेसर काका को पूरी तरह से भा गया था। खैर शादी हुई और रमेसर काका ने नम आँखों से चंदा को विदा किया। कुछ ही दिनों में चंदा अपने ससुराल में भी सबकी प्रिय हो चुकी थी। 1-2 महीना चंदा के साथ बिताने के बाद नदेसर भारी मन से कोलकाता की राह पर निकल पड़ा। चंदा ने नदेसर को समझाया कि कमाना भी जरूरी है और 5-6 महीने की ही तो बात है, दिवाली में आपको फिर से घर आना ही है, तब तक मैं नजरें बिछाए आपका इंतजार प्रसन्न मन से कर लूँगी।
कोलकता पहुँचने पर नदेसर ने फिर से अपना काम-धंधा शुरू किया पर काम में उसका मन ही नहीं लगता था। बार-बार चंदा का शरारती चेहरा, उसके आँखों के आगे घूम जाता। वह जितना भी काम में मन लगाने की कोशिश करता उतना ही चंदा की याद आती। नदेसर की यह बेकरारी दिन व दिन बढ़ती ही जा रही थी। उसने अपने दिल की बात अपने साथ काम करने वाले अपने 5 मित्रों को बताई। ये पाँचों उसके अच्छे मित्र थे।
खैर अब नदेसर के पाँचों दोस्तों के दिमाग में जो एक भयानक, घिनौनी खिचड़ी पकनी शुरू हो गई थी उससे नदेसर पूरी तरह अनभिज्ञ था। उसके पाँचों दोस्तों ने एक दिन नदेसर से कहा कि यार, भाभी को यहीं ले आओ। कुछ दिन रहेगी, कोलकता भी घूम लेगी तो उसको बहुत अच्छा लगेगा और फिर 1-2 हफ्ते में उसे वापस छोड़ आना। पर नदेसर अपने बूढ़े माँ-बाप को यादकर कहता कि नहीं यारों, मैं ऐसा नहीं कर सकता, मेरी अम्मा और बाबू की देखभाल के लिए गाँव में चंदा के अलावा और कोई नहीं है।
कुछ दिन और बीते पर ये बीतते दिन नदेसर की बेकरारी को और भी बढ़ाते जा रहे थे। अब तो नदेसर का काम में एकदम से मन नहीं लग रहा था और उसे बस गाँव दिखाई दे रहा था। एक दिन रात को नदेसर के पाँचों दोस्तों ने नदेसर से कहा कि चलो हम लोग तुम्हारे गाँव चलते हैं। नदेसर अभी कुछ समझ पाता या कह पाता तबतक उसके उन पाँच दोस्तों में से निकेश नामक दोस्त ने कहा कि यार टेंसन मत ले। कह देना कि अभी काम की मंदी चल रही है इसलिए गाँव आ गया। और साथ ही इसी बहाने हम मित्र लोग भी तुम्हारा गाँव देख लेंगे और भाभी के साथ ही तुम्हारे माता-पिता से भी मिल लेंगे क्योंकि हम लोगों का तो गाँव भी नहीं है। इसी कोलकते में पैदा हुए और कोलकते को ही अपना घर बना लिए। हम लोग भी चाहते हैं कि कुछ दिन गँवई आबोहवा का आनंद लें।
टरेन और बस की यात्रा करते-करते आखिरकार नदेसर अपने पाँच दोस्तों के साथ अपने गाँव के पास के एक छोटे से बस स्टेशन पर पहुँच ही गया। इस स्टेशन से उसके गाँव जाने के लिए अच्छी कच्ची सड़क भी न थी। जंगल में चलने से बने पगडंडियों से, उबड़-खाबड़ रास्ते से होकर जाना पड़ता था। जंगल में चलते-चलते जब नदेसर से निकेश ने पूछा कि भाई नदेसर अभी तुम्हारा गाँव कितनी दूर है तो नदेसर ने प्रसन्न होकर कहा कि यार अब हम लोग पहुँचने ही वाले हैं। नदेसर की बात सुनते ही निकेश हाँफने का नाटक करते हुए वहीं बैठते हुए बोला कि यार अब मुझसे चला नहीं जाता।
नदेसर के रूकते ही निकेश ने अपने हाथ में लिए झोले में से एक अच्छी नई साड़ी और साथ ही चूड़ी आदि निकालते हुए कहा कि यार नदेसर, हम लोग भाभी से पहली बार मिलने वाले हैं, इसलिए उसके लिए कुछ उपहार लाए हैं। उसकी बात सुनते ही नदेसर ने कहा कि यारों इसकी क्या जरूरत थी। पर निकेश ने हँसकर कहा कि जरूरत थी भाई, हमारी भी तो भाभी है, हम पहली बार उससे मिल रहे हैं, तो बिना कुछ दिए कैसे रह सकते हैं।
निकेश और नदेसर के अन्य चार दोस्त चंदा और नदेसर के पास पूरी सख्ती से खड़े हो गए थे। चंदा और नदेसर कुछ समझ पाते इससे पहले ही निकेश ने दाँत भींजते हुए तेज आवाज में नदेसर से कहा कि साले, मैं अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता था पर तुम बिना बताए गाँव आकर अपनी कर लिए। उसकी बात सुनकर नदेसर ने भोलेपन से कहा कि निकेश भाई, आपने तो कभी हमसे अपनी बहन की शादी के बारे में बात भी नहीं की थी और जब मैं घर आया था तो यहाँ माँ-बाबू ने शादी कर दिया था। भला मैं उन्हें मना कैसे कर सकता था।
आग लगाने के बाद ये पाँचो दोस्त जिधर से आए थे, उधर को भाग निकले। जंगल जलने लगा और जलने लगे चंदा और नदेसर के जिस्म। सब कुछ स्वाहा हो गया था। इस आग से आस-पास के गाँववालों को कुछ भी लेना देना नहीं था, क्योंकि जंगल में आग लगना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। कभी भी कोई भी अपनी लंठई में जंगल में आग लगा दिया करता था।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा। रात तक जब चंदा और नदेसर घर नहीं आए तो नदेसर के पिताजी ने नदेसर के आने और चंदा को लेकर जाने की बात अपने पड़ोसियों को बताई। उसी रात को नदेसर और उनके कुछ पड़ोसी मशाल लेकर चंदा और नदेसर को खोजने निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद भी इन दोनों का पता नहीं चला। दूसरे दिन सुबह पुलिस में खबर दी गई पर पुलिस भी क्या करती। थोड़ा-बहुत छानबीन की पर उन दोनों का कोई पता नहीं।
इधर कोलकाता में एक दिन अचानक निकेश के घर पर कोहराम मच गया। हुआ यह था कि किसी ने बहुत ही बेरहमी से उसके गुप्तांग को दाँतों से काट खाया था, उसके शरीर पर जगह-जगह भयानक दाँतों के निशान भी पड़े थे और वह इस दुनिया को विदा कर गया था। पुलिस के पूछताझ में उसके घरवालों ने बताया कि पिछले 1 महीने से निकेश का किसी लड़की के साथ चक्कर था। वे दोनों बराबर एक दूसरे से मिलते थे पर लड़की कौन थी, कैसी थी, किसी ने देखा नहीं था।
मुझे बहुत ही अजीब लगा क्योंकि ऐसा लग रहा था कि निकेश किसी से बात कर रहा है, किसी को पुचकार रहा है पर वहाँ तो निकेश के अलावा कोई था ही नहीं। फिर मुझे लगा कि कहीं निकेश भइया पागल तो नहीं हो गए हैं न। अभी मैं यही सब सोच रही थी तभी एक भयानक, काली छाया मेरे पास आकर खड़ी हो गई। वह छाया बहुत ही भयानक थी पर छाया तो थी पर छाया किसकी है, यह समझ में नहीं आ रहा था।
इतना सुनते ही पुलिस और आस-पास जुटे लोग सकते में आ गए और पूरी तरह से डर भी गए। क्योंकि निकेश का जो हाल हुआ था, वह यह बयाँ कर रहा था कि इसके साथ जो हुआ है वह किसी इंसान ने नहीं अपितु भूत-प्रेत ने ही किया होगा। यह कहानी यहीं होती है। पर इसके अगले भाग के रूप में एक कहानी और आ सकती है कि क्या निकेश का यह हाल किसी भूत-भूतनी ने ही ऐसा किया था या किसी और ने। कहीं चंदा तो नहीं या नदेसर? निकेश के अन्य चार दोस्तों के साथ भी कुछ हुआ क्या?
माँ का साथ (bhutiya kahani )
अचानक कार में कुछ गड़बड़ी मालूम हुई और मैकू ने सड़क किनारे कार रोक दी। मैकू कार से नीचे उतरकर बोनट खोला और जाँच-पड़ताल करने लगा। उसका दोस्त रमेश कार में ही बैठा रहा था। काफी कुछ इधर-उधर करने के बाद मैकू ने रमेश से कार को चालू करने के लिए कहा। पर यह क्या रमेश तो बार-बार चाभियाँ घुमा रहा था पर अब कार स्टार्ट होने का नाम ही नहीं ले रही थी। इतनी रात को वे दोनों क्या करें, कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
अचानक उन्हें एक कार उनके पास आकर रूकती हुई दिखाई दी। बाबा आदम के समय की कार लग रही थी या यूं कहें जैसे किसी राजा-महराजा की कार हो। कार के रूकते ही मैकू भागकर उस कार के पास गया। उस कार में ड्राइवर के अलावा 3 लोग और बैठे थे। इन 3 में से एक महिला और एक किशोरी थी। मैकू ने कार में बैठे लोगों से कहना शुरु किया कि मेरी कार खराब हो गई है।
अब उनकी कार को खींचते हुए वह पुरानी कार एक कच्चे रास्ते से आगे बढ़ने लगी। मैकू और रमेश निश्चिंत लग रहे थे, उन्हें किसी भी प्रकार का डर नहीं लग रहा था क्योंकि इस पुरानी कार के यात्री समृद्ध घराने से लग रहे थे। लगभग 15-20 मिनट के बाद उनकी कार एक पुरानी हवेली के सामने खड़ी थी। मैकू और रमेश अपनी कार से उतर चुके थे। दूसरे कार से उनका ड्राइवर निकला और रोबदार आवाज में बोला कि आप लोग अंदर चलें। अभी मैकेनिक बुलाकर आपके कार को ठीक करा दिया जाएगा और उसके बाद आप लोग अपने रास्ते पर निकल जाइएगा। मैकू और रमेश कुछ कहे बिना उस ड्राइवर के साथ उस पुरानी हवेली में प्रवेश कर गए।
हवेली बहुत ही बड़ी थी और बहुत ही पुरानी लग रही थी और, एक बात मैकू और रमेश को चौंकाने वाली थी कि इतने समृद्ध लोगों के रहते हुए यह हवेली इतनी गंदी क्यों लग रही है। जगह-जगह झाले लटके हुए थे। अजीब प्रकार की बू भी आ रही थी। मैकू और रमेश कसकर एक दूसरे का हाथ पकड़े उस बूढ़े ड्राइवर के पीछे-पीछे हवेली में अंदर ही अंदर बढ़े जा रहे थे। अचानक हाथ में चिराग लिए एक अधेड़ महिला आई जो थोड़ी सी डरावनी लग रही थी उसने इशारे ही इशारे में उस ड्राइवर से कुछ कहा। वह ड्राइवर मैकू और रमेश को उस अधेड़ महिला के पीछे जाने का इशारा करते हुए खुद ही दूसरी तरफ चला गया।
वह अधेंड़ महिला उन दोनों को लेकर एक बड़े कमरे में दाखिल हुई। यह कमरा काफी अच्छा था पर यह चौंकाने वाली बात लग रही थी कि इस पुरानी, गंदी हवेली में इतना सुन्दर, सुसज्जित कमरा कैसे हो सकता है। वह कमरा दुधिया प्रकाश से भरा था पर यह प्रकाश कहाँ से आ रहा था, कुछ पता नहीं चल पा रहा था। मैकू और रमेश उस कमरे में लगी आलिशान कुर्सियों पर बैठ गए। उनकी आव-भगत शुरु हो गई थी पर अब उन दोनों को बहुत सारी बातें अजीब लग रही थीं। अब उस बड़े कमरे में कम से कम 12-15 लोग जमा हो गए थे। कहीं स्वादिष्ट भोजन की खुशबू थी तो कहीं पैगों का दौर चलना शुरु हो गया था।
मैकू तो आए दिन दूर-दूर की यात्राएँ करता था। रात-बिरात वह कहीं भी चला जाता था। उसे भूत-प्रेत पर विश्वास तो था पर वह एकदम निडर स्वभाव का था। वह अपने आप को माँ मैहरवाली का बहुत बड़ा भक्त मानता था और वर्ष में कम से कम दो बार माँ के दर्शन अवश्य करता था। उसके गले में माँ की माला हमेशा लटकी रहती थी और साथ ही उसके शर्ट की ऊपरी जेब में एक छोटा-सा दुर्गा चालीसा। उसे जब भी थोड़ा समय मिलता, इस चालीसा को निकालकर पढ़ लिया करता था। पर आज निडर मैकू को लगने लगा था कि वह और उसका दोस्त किसी बहुत बड़ी मुसीबत में फँस गए हैं।
अच्छा तो यह बात थी, अब मैकू और रमेश जिस सोफे पर बैठे थे, वहाँ पास में ही एक आलीशान शीशा (दर्पण) लगा था। मैकू कनखी आँखों से रह-रहकर उस शीशे में देख ले रहा था। रमेश को अजीब लगा कि मैकू उन कुर्सियों पर से उठकर इस सोफे पर क्यों बैठा। शायद मैकू रमेश के जेहन में उठनेवाली बात को समझ लिया था। उसने उसे शीशे में देखने के लिए इशारा किया। अरे यह क्या, ज्योंही रमेश ने शीशे में देखा, उसकी तो सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई। भय से उसका चेहरा पीला पड़ गया। दरअसल उस कक्ष में चलते-फिरते अच्छे लोग, इस शीशे में बहुत ही भयानक लग रहे थे।
अभी वे आपस में कुछ बात कर पाते तभी एक बूढ़ा, बड़ी-बड़ी मूँछों वाला उनके पास उपस्थित हुआ। वह लोई ओढ़े हुए था और उसके पीछे-पीछे 2-3 सेवक टाइप के लोग (भूत) थे। वह बुढ़ा मुस्कुराते हुए मैकू से कहा कि आज उसकी पोती का जन्मदिन है। अच्छा हुआ कि आप लोग भी आ गए। हमारी पोती का जन्मदिन धूम-धाम से मनाया जाएगा और इसमें शामिल होने वाले सभी लोगों को राजसी कपड़े पहनने होंगे। अस्तु आप लोगों से गुजारिश है कि पास के कमरे में जाकर अपने पहनावे बदल लें। यह बात कहते हुए वह बूढ़ा बार-बार मैकू के गले में लटकती हुई माला को देख रहा था।
खैर मैकू ने अपना विवेक नहीं खोया और रमेश का हाथ पकड़कर पहनावा बदलने के लिए पास के बताए कमरे में तेजी से चला गया। कमरे में पहुँचकर जब रमेश डर के मारे अपने कपड़े उतारने लगा तो मैकू ने उसे रोका और कहा, बेवकूफी मतकर। अपने कपड़े को पहनकर रख और साथ ही उसने अपने जेब से दुर्गा चालीसा को निकालकर रमेश की जेब में रख दिया और कहा, डर मत। देखा नहीं कि मेरे गले की माला को देखकर वह बूढ़ा कैसा भयभीत लग रहा था। अब उन दोनों ने वहाँ रखे कीमती राजसी कपड़ों को अपने पहने हुए कपड़ों के ऊपर ही पहन लिए।
इसके बाद वे दोनों कमरे से निकलकर फिर उस बड़े कक्ष में आकर सोफे पर बैठ गए। देखते ही देखते पार्टी शुरु हो गई। उस बूढ़े की पोती किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी पर उसी को शीशे में देखने पर वह एक महा कुरूप, डरावनी साया के रूप में तब्दील हो जा रही थी। वह किशोरी प्रसन्न मन से मैकू के पास आई और उसके कंधे पर एक हाथ रख दी। अरे यह क्या कंधे पर हाथ रखते ही ऐसा लगा कि जैसे उस किशोरी को ४४० बोल्ट का करेंट लगा हो, अभी कोई कुछ समझ पाता, तबतक वह बहुत दूर जाकर गिर गई। अब तो वहाँ हड़कंप मच गया।
मैकू ने ना में सिर हिलाते हुए कहा कि वह किसी भी हालत में इस माले को नहीं उतारेगा और इतना कहते ही वह रमेश का हाथ और कसके पकड़ते हुए खड़ा हो गया। अब तो उस कमरे का हाल पूरी तरह से भयावह हो गया था। जो लोग सीधे-साधे लग रहे थे। अब वे भयानक हो गए थे। कुछ के तो बड़े-बड़े दाँत बाहर निकल आए थे तो कुछ अजीब हरकत करते हुए मैकू और रमेश को डराने की कोशिश कर रहे थे।
कुछ समय के बाद अचानक आवाजें आनी बंद हो गईं। मैकू और रमेश ने अब अपनी आँखें खोल दीं। अब वहाँ इन दोनों के अलावा कोई नहीं था। अरे हवेली भी तो नहीं थी तो क्या ये दोनों सपना देख रहे थे। खैर वे दोनों उठे और वहाँ से चलने को तैयार हुए। सुबह होने वाली थी और सूरज की आभा उस जंगल में धीरे-धीरे फैलना शुरु हो गई थी। अचानक मैकू कार के पास गया और दरवाजा खोलकर बैठ गया। उसने कार को स्टार्ट की तो वह बिना देर किए चालू हो गई। अब उसके बगल में रमेश भी बैठ चुका था। वे जंगल से बाहर निकलकर एक कच्चे रास्ते पर हो लिए।
कुछ दूर आगे चलने पर उन्हें एक चाय की टपरी दिखाई दी। मैकू ने वहीं अपनी कार रोक दी और कार से उतरकर उस टपरी में आ गया। टपरी में आते ही दुकानदार थोड़ा डर से मैकू की तरफ देखकर बोला, “साहब, आप लोग सुबह-सुबह इस जंगल में से कहाँ से आ रहे हैं? कहीं आप लोग रात को ही नहीं तो।” मैकू एक टूटी बेंच पर बैठते हुए अब तक की सारी घटना सुना दी। दुकानदार ने एक लंबी साँस लेकर कहा कि अच्छा हुआ कि आप लोग सही सलामत बच गए।
खज़ानो के रक्षक (bhutiya kahani )
ये बंजारे हमेशा अच्छे नहीं होते थे। अक्सर बंजारों और नटों की टोली के रूप में डाकुओ की भी टोली घूमा करती थी। जो दिन में तो मेला लगाते थे मगर रात में लूटपाट किया करते थे। इसलिए अक्सर गाँव के जानकार लोग अपने गाँव के आसपास इस तरह का नटों का मेला नहीं लगने देते थे।
एक बार एक ऐसा ही मेला नानी के गाँव से थोड़ी दूर पर लगा हुआ था। वहां गाँव के बच्चे अक्सर जाने की जिद किया करते थे मगर कोई उन्हें वहां जाने नहीं देता था। इतना ही नहीं गाँव वालो ने बच्चो का खेतों में जाना और दोपहर को बाहर खेलने से मना कर दिया था। बच्चो को ये बात बहुत ख़राब लगती थी मगर बड़ो के आगे बच्चो की कहाँ चलती। इसलिए बच्चे न चाहते हुए भी सिर्फ तभी तक घर के बाहर खेलते थे जब तक कोई न कोई बड़ा उनके साथ रहता था। मेरी नानी ये सब रोज़ देखती थी ऐसा सिलसिला करीब एक महीने तक चला जब तक वहां वो नटों का मेला लगा हुआ था।
नानी को ये बात बहुत अजीब लगती थी के नटों का टोला हो या डाकुओ का आखिर बच्चो के ऊपर ये बंदिश क्यों है? खैर इस बात का जवाब बच्चो को सिर्फ यही मिलता था के ये नट उन्हें पकड़ ले जायेंगे।
करीब एक महीने तक बच्चों पर बंदिश और बड़ो पर डर का साया रहा। इन सब बंदिशों के बावजूद एक दिन सुबह दस बजे के करीब गाँव में काफी शोरशराबा मचा और पता लगा के एक पड़ोस का एक छोटा बच्चा करीब दस साल का एक लड़का घर से बाहर आया था और गायब हो गया। पूरे गाँव में उसे ढूँढा गया मगर कहीं उसका पता नहीं चला। आखिर कार गाँव के हर घर से सरे बड़े मर्द जोर शोर से उस लड़के की तलाश में लग गए। उन्हें शायद आने वाले खतरे का पता था इसलिए। पहले गाँव और खेत का चप्पा चप्पा छान मारा उन लोगों ने जब उस लड़के की गाँव में गैरमोजुदगी निश्चित हो गयी। फिर वहां के सारे मर्द एकत्र हुए और बिना किसी देर के अपने अपने हाशिये, कुल्हाड़ी, कुदाल वगेरह लेकर चल पड़े उस नटों की टोली की तरफ।
उस बच्चे के घर पर रोना पिटना मचा हुआ था। आस पास के सब लोग अपनी अपनी शंकाएं जताते और बच्चे को बार बार ढूंडते। मगर इस का कोई फायदा नहीं हो रहा था। दूसरी तरफ जब मर्दों की टोली उन बंजारों के मेले के पास पहुंचे तो चौंक गए। वहां अब सब खाली था सिर्फ चूल्हों की राख और तम्बू गाड़ने के निशान मौजूद थे। अब सबका शक यकीन में बदल चुका था, बच्चे को कोई और नहीं वो नट ही चुरा के ले गए हैं।
अब गाँव के सारे लोग वहीँ रण निति बनाने लगे की आगे क्या किया जाए। सबने अलग अलग दिशा में जाने का फैसला किया। क्योकि तब यातायात की इतनी सुविधा नहीं थी इसलिए उन बंजारों का बहुत दूर निकलना असंभव था। लेकिन उसने लड़ने का सामर्थ भी सब नहीं रखते थे क्योकि ये अच्छे लड़ाके भी हुआ करते थे। इसलिए रणनीति बनाना जरुरी था। फिर सबने तय किया की हर रस्ते हर दिशा की तरफ कुछ लोग जायेंगे और पता चलते ही सब एकत्र होकर वहां जाकर उस बच्चे की तलाश करेंगे और वो लोग न मिले तो दोपहर तीन बजे से पहले सब अपने गाँव में एकत्र हो जायंगे।
सब लोगो ने एक अलग अलग दिशा पकड़ी और अपनी अपनी राह चल पड़े। ५-५ लोगो का समूह अपनी अपनी राह पर अग्रसर था। पश्चिम की तरफ जाने वाले समूह के आखिर उनके निशान और फिर वो उनका वो टोला मिल गया। उन सबके पास वापस जाकर बाकि लोगो को बुलाने का वक़्त नहीं था। इसलिए वो किसी मौके के तलाश करने लगे और उनके झुण्ड में उस बच्चे को तलाशने लगे। लेकिन वहां उस बच्चे का कोई सुराग नहीं मिला।
फिर उन्होंने ये सोच लिया के शायद बच्चा इनके पास नहीं है वरना ये उसे अचेत अवस्था में ही सही साथ तो रखते। वो आशा खोने ही वाले थे के किस्मत ने उनका साथ दे दिया। और उनकी भीड़ से निकल कर एक आदमी नित्य कर्म के लिए कुछ दूर चला गया। पांचो ने फिर उसी से पूछताछ करने की ठानी। वो पीछे से जाकर उसके ऊपर टूट पड़े और दो लाठी उसके सर पे जमा कर उसे बेहोश कर दिया। फिर एक तांगे पर उसको लाद कर वापस अपने गाँव की और चल पड़े। वो जितनी जल्दी हो सकती थी कर रहे थे। क्योकि उसके साथी उसको ढूंढने जरुर आने वाले थे।
वो लोग उसको लेके आधे घंटे में अपने गाँव पहुँच गए बाकी सब भी वापस आये तो उन लोगो ने उसके सर पर एक मटका ठंडा पानी डाला और उसे होश में लाये। होश में आते ही वो आस पास गाँव वालो को देख कर घबरा गया।
लेकिन बिना मार खाए उसने कुछ नहीं बताया। जब गाँव वाले मिलकर उसको उसकी सहन शक्ति से ज्यादा खुराक देने लगे तो वो जान गया की उसकी जान के लाले पड़ने वाले हैं। फिर उसने बताया की वो बच्चा कहाँ है। उसने जो बताया उससे सबके होश उड़ गए और उसी वक़्त पास के गाँव के सिद्ध तांत्रिक को बुलाने के लिए कुछ लोग निकल पड़े और बाकि उसे लेकर उस दिशा में निकल पड़े जहाँ वो बच्चा था।
उसने बताया की उनकी टोली के सरदार ने उस लड़के को जीवाधारी बनाने के लिए इस्तेमाल किया है। उसकी जान को खतरा है अगर उसे बचाना है तो या तो उनकी टोली के उसी तांत्रिक को बुलाओ जिसने उसे इस्तेमाल किया है या फिर उससे ज्यादा माहिर खिलाड़ी को।
इसलिए गाँव वाले पास के गाँव के सिद्ध तांत्रिक को लाने के लिए निकल पड़े। वो तांत्रिक को लेकर जल्दी से जल्दी आ गए और वहीँ पहुँच गए जहाँ पर वो नट गाँव वालो को लेकर उससे बच्चे का पता बताने ले गया था। उसने एक जगह एक अजीब सा लिखा हुआ पत्थर दिखाया और गाँव वालो से वहां खोदने को कह दिया। गाँव वाले खोदने में लग गए और कुछ लोग रह रह कर उसको मारते जा रहे थे और धमकी दे रहे थे की अगर बच्चे को कुछ हो गया तो उसकी कब्र यहीं बना देंगे।
नीचे एक कमरा सा बना हुआ था करीब ५ फुट चोडा और ६ फुट लम्बा। उसमे ५ बड़े बड़े घड़े रखे हुए थे पूरे सोने चांदी से भरे हुए और पास में वो बच्चा लेटा हुआ था नए नए कपड़ो में अच्छा खासा तैयार किया हुआ और उसकी सांसे रुक रुक के चल रही थी और पास में एक दीया जल रहा था जिसका तेल ख़त्म हो चुका था और वो बुझने ही वाला था। सबने उस बच्चे को मरा हुआ समझ लिया और उस नट को दुबारा बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया।
तभी वो तांत्रिक बाबा आगे आये और दीये की बाती को थोडा बढ़ा दिया। दीये की लो तेज हो गयी और बच्चे ने आखें खोल दी। सबकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा मगर बच्चे ने किसी को भी पहचाना नहीं और अनजान की तरह सबका चेहरा देखने लगा।
तांत्रिक बाबा ने सबसे कहा की “ये बच्चा अभी जिन्दा है, लेकिन ये तभी जिन्दा बच सकता है अगर ये मेरी सिद्ध की हुयी जगह पर पहुँच जायेगा। वरना इसे कोई नहीं बचा सकता। इसे लेकर मेरे स्थान पर चलो और सब इस बात का ध्यान रखना के ये दीया न बुझने पाए, इसमें तेल बढ़ा दो और इसकी अच्छे से देख रेख करना जब तक में इसे बुझाने के लिए न कहु।”
फिर कुछ लोग और तांत्रिक बाबा उस बच्चे को तांगे पर लेकर बाबा के स्थान पर पहुँच गए और वहां जो कुछ भी किया वो किसी ने नहीं देखा क्योकि वो क्रिया बाबा ने अकेले में की थी। करीब १ घंटे बाद एक आदमी वहां वापस पहुंचा और उनसे बताया की बाबा ने दीया बुझाने को कह दिया है। दीया बुझा दिया गया और अब वो बच्चा सुरक्षित था। और सबको पहचानने भी लगा था।
उसके बाद जितना भी खजाना वहां मिला था उसके थोड़े से हिस्से से मंदिर बनवाया गया और बाकि गाँव के प्रधान ने गरीबों के बच्चो की शादी और गाँव की भलाई में लगा दिया। उस नट को बचाने उसके साथी नहीं आये गाँव वालो ने उसे १ हफ्ते तक कैद रखा उसके बाद धमकी दे के छोड़ दिया।
दोस्तों ये तो थी वो घटना जो वहां घटी थी लेकिन इसके असली पहलु बाद में उजागर हुए।अगर ये घटना न घटी होती तो शायद आज हम इतना बड़ा रहस्य न जान पाते। वो रहस्य मैं आपको बताता हूँ
“वहां जो नट आये हुए थे असल में वो लुटेरे नट थे, इन नटो का ये काम होता था एक आबादी वाले क्षेत्र से कुछ दूर मेला लगाना और फिर रात को लूटपाट करना और जब ये ज्यादा खजाना इकठ्ठा कर लेते थे। तो ये उसे जमीन में गाड़ देते थे। इनके साथ एक तांत्रिक भी होता था बहुत माहिर तांत्रिक जो अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके ये भी बता दिया करता था खजाना कहाँ कहाँ है। यही तांत्रिक जीवाधारी बनाते हैं, अपने खजानो की रक्षा के लिए।
जीवाधारी बनाने के लिए ये किसी के भी बच्चे को चुरा लिया करते थे क्योकि बड़ो से ये काम करवाना मुश्किल था और बच्चो को बहलाना आसान। ये जिस बच्चे को चुराते थे, ये उसे उसके पसंद की और भी बहुत अच्छी चीजें खिलाते थे ताकि वो ज़रा भी भूखा न हो। फिर उसे नहला धुला कर नए नए कपडे पहनाये जाते थे, पैरो में रंग आँखों में काजल और बालो में खास किस्म का तेल लगा कर उन्हें बैठाया जाता था फिर तांत्रिक अपनी क्रिया करते थे जिसमे वो बच्चा अपनी सुधबुध खो देता था। उस बच्चे को भिन्न भिन्न शक्तियों से सुसज्जित किया जाता था और उसके नाम का दीया उसके बगल जला दिया जाता था। उसके बाद उसके सामने उस कबीले का सरदार आता था और
कहता था “देखो मुझे और अच्छी तरह पहचान लो। ये खज़ाना मेरा है और तुम इसके रक्षक हो जो मेरे सिवा मेरा खजाना लेगा तुम उसको जिन्दा नहीं छोड़ना। मैं वापस आऊंगा और अपना खजाना ले जाऊंगा उसके बाद तुम आज़ाद हो जाओगे। ” ऐसी तांत्रिक क्रिया के बाद वो बच्चा उस इंसान को नहीं बल्कि की आत्मा को पहचान लेता है। फिर वो उसे खजाने के साथ उस गड्ढे में दफ़न करके चले जाते थे।
दोस्तों, ये कर्म निर्दयी होता है लेकिन इसका इस्तेमाल राजा महाराजा भी किया करते थे लेकिन उस समय में इंसान बहुत इमानदार हुआ करते थे जो खुद राजा की खातिर जीवाधारी बनने को तैयार हो जाते थे। आपने देखा होगा के इन जीवाधारीयों को अक्सर कुछ तांत्रिक हरा देते हैं ये केवल उन्ही जीवाधारियों के साथ संभव हो पता है जो बाल अवस्था में ही जीवाधारी बनाये गए हो।
बाबा (bhutiya kahani )
इस बार मैं श्योपुर रक्षाबंधन पर दीदी का यहाँ पर गया था। वहां के लोग उस जंगल के बारे मैं बताते रहते हैं कि इस जंगल मैं आत्माएं भूत-प्रेत रहते हैं। तो मुझे तो वेसे भी भूत-प्रेतों पर विश्वाश है शायद आप लोगों को भी हो।
तो मैं 15 अगस्त को अपने जीजा जी के कॉलेज गया था। वहां के लोग उन्हें आचार्य जी कहते थे। 15th अगस्त का प्रोग्राम खत्म होते ही हम लोग जाने ही वाले थे की वहां के पडोसी ने उन्हें घर पर चाय पीने को बुलाया तब हम लोग उनके घर चाय पीने गए ऐसे ही बातें हो रही थी।
तब उन्होंने अपनी आप बीती कहानी बताई कि अभी कुछ दिनों पहले मेरे बेटे राजीव के साथ ऐसी घटना घटी है। की आप को क्या बताएं राजीव के पिताजी ने बताया की एक दिन मेरी तबियत खराब हो गयी थी। तब मैंने राजीव को जंगल से बकरियों के लिए चारा लाने के लिए भेज दिया था।
राजीव वेसे तो कभी कभी जंगल जाता था पर वो हमेशा काम से जी चुराता था। पर आज उसे मजबूरी मैं जंगल जाना पड़ा वो रास्ते मैं चलता गया उसे कहीं भी पास मैं चारा नहीं मिला क्योंकि पास के सारे पेड़ तो पहले से ही बकरियों के लिए काट चुके थे। वो जंगल के और अंदर चला गया वो घने जंगल मैं पहुँच गया। जहाँ पर बहुत पास-पास पेड़ खड़े हुए थे। पेड़ इतने घने थे कि आसमान तो नजर ही नहीं आ रहा था।
बरसात का टाइम था अच्छी बरसात हो गयी थी तो पूरा जंगल हरा भरा हुआ था। पत्थरों पर पानी ऐसे बह रहा था जैसे साफ़ कोई झरना बह रहा हो। पहाड़ों से नीचे की और आता हुआ पत्थरों पर साफ़ पानी बह रहा था वहां पर इतनी शीतलता थी की उसकी देखते ही थकान दूर हो गयी उसने सोचा की पहले मैं थोडा आराम कर लूं फिर मैं पत्तियां काट कर घर चला जाऊँगा थोड़ी देर ही हुई थी उसे सोये हुए उसने सपना देखा कि वह चारे के चक्कर मैं बहुत दूर आ गया है और वह रास्ता भूल गया है।
उसने सपने मैं देखा कि उसके सामने कोई खड़ा है उसकी शक्ल देखते ही उसकी आंखें खुल गयी और वह डर गया अब उसे और ज्यादा डर लगने लगा अब चारा तो काट रहा था। पर वह सपने की बात याद करके बहुत घबराया हुआ था। उधर सूरज भी ढलने वाला था। उसके हाथ दूर-दूर तक किसी की भी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। वह जल्दी जल्दी पत्तियां काट ही रहा था की उसे आपस मैं बातें करते हुए एक आवाज सुनाई दी उसने सोचा कोई आदमी होगा तो मैं उसी के साथ घर चला जाऊँगा उसने जल्दी से पत्तियां बांधीऔर वह आवाज आ रही थी उधर की ओर चल दिया पास पर उसने यह ध्यान नहीं किया की वो आया किधर से है ओर किधर जा रहा है।
वह उल्टा जंगल मैं घुसता चला गया आवाज ओर साफ़ सुनाई देने लगी तो वह ओर आगे बढ़ा उसने देखा कि दो लोग आपस मैं बातें कर रहे हैं ओर उनकी पीठ दिखाई दे रही है उसने उनके पास जाकर बोला क्या तुम मुझे घर जाने का कोई छोटा रास्ता बता सकते हो इतना उसने कहते ही वो दो लोग उसके सामने से ऐसे फुर्र हुए कि वहां कोई था भी या नहीं उनके गायब होते ही उसके पशीने छूट गए ओर वह बेहोश हो गया जब उसे होश आया तो वह क्या देखता है कि वो सपने वाला आदमी उसके सामने खड़ा है
वह जाकर अपने सामने खड़े हुए नीम के पेड़ के नीचे गड्डा खोदने लगा और कहने लगा मेरा भाई आएगा-मेरा भाई आएगा वह कहे जा रहा था। दोस्तों उस नीम पर वह रोज सुबह ढूध चढाते थे। उसे अपने देवता का निवास मानते थे इधर उसके भाई की पुकार सुन के उनके देवता निकल पड़े। उधर रात हो गयी थी और राजीव को उन भूतों ने घेर रखा था भाई वह खुद बता रहा था। भाई क्या बताऊँ उस रात की बातें याद करके मैं अभी भी डर जाता हूँ
मुझे लग रहा था की मैं अब बचने वाला नहीं हूँ। लगता हैं यह लोग मुझे मार डालेंगे मैं तो इतना डरा हुआ था की मैं रो रहा था। कि अचानक घोड़े के पैरों कि आवाज आई सब लोग इक्दुम शांत हो गए। इन सब लोगों ने आस तोड़ दी कि अब हमे राजीव नहीं मिलेगा सब लोग वापिस आ गए सारे घर मैं मातम सा छा गया इधर किसी ने कहा कि किसी भगत को बुलाओ और पता कराओ कि वो अभी तक जिन्दा है कि नहीं वो लौट आएगा कि नहीं। एक आदमी वहां के भगत को बुलाने चला गया। उधर राजीव के देवता वहां पर पहुंचे हाथ मैं तलवार घोड़े पर सवार उनको देखते ही सारे भूतभागने लगे उन्होंने एक- एक को पकड़ पकड़ के ऐसे मारा जैसे कोई हीरो फिल्म मैं एक योद्धा सब को काट देता है जैसे ही उनकी तलवार उनकी गर्दन पर पड़ती वह मिट्टी मैं मिल जाते यह सब राजीव अपनी आँखों से देख रहा था।
तब उस घुड़सवार ने कहा कि तुम अब चिंता मत करो मैं आ गया हूँ और सुबह तक कोई तुम्हें लेने आ जायेगा अब तुम बेफिक्र होकर सो जाओ उनके आने से मेरा सारा डर खत्म हो गया और मैं आराम से सो गया। इधर भगत जी आये उन्होंने अपना ध्यान लगाकर देखा और कहा कि तुम्हारा लड़का सही सलामत है। और कल आ जायेगा तुम्हें चिंता करने कि कोई जरूरत नहीं है वहां पर तुम्हारे देवता पहले ही वहां पहुँच चुके हैं। और राजीव का भाई अभी वहीं पर बैठा है और कहे जा रहा है मेरा भाई आएगा। वह किसी की भी बात नहीं मान रहा है जो भी उसे वहां से उठाने को जाता वो उसे धकेल देता था।
सुबह उसकी आँख खुली तो वहां पर एक आदमी ने उसे पुछा की तुम कहाँ से आये हो और कहाँ जाना है मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा देता हूँ और वह अपनी साईकिल पर बिठा कर उसे उसके घर छोड़ दिया घर वालों को देखकर वो ऐसा रोया कि वह बेहोश हो गया तीन दिन का भूखा प्यासा कमजोर हो गया था। फिर उसे अस्पताल ले गए वहां वो दो-तीन दिन बाद ठीक हो गया
अभिशाप (bhutiya kahani )
उसकी बड़ी बहन घर पर ही थी । वो दौडकर अंदर आयी और अपनी बहन का घाव देखा तो वो बोली बस इतना सा जल जाने पर क्यों इतना मुह फाडकर रो रही है लता को उसकी इस बात पर गुस्सा आया और बोली तुझको आग लगे तब पता चले कि कितना दर्द होता है फिर होना क्या था अनहोनी होने में क्या देर थी । उसी रात घर के पास पड़े चारे में आग लगने से उसकी लपटे घर पर भी आ गयी और उन लपटों में केवल लता की बहन ही जली बाकि सब बच गए ।
लता अपनी कली जुबान के अभिशाप से अभी भी झुझ रही है और अक्सर चुप ही रहती है । पता नहीं कभी कौनसी बात मुह से निकल जाए और उसके पति और ससुराल वालो को कोई नुकसान पहुचे ।